Thursday, November 23, 2017

Satopant Swargarohini Yatra-5 स्वर्ग की सीढियां चढने की चाहत-5

(पांचवा दिन)12 सितम्बर 2017 मंगलवार (शाम 4.40)
कैम्प साईट लक्ष्मीवन

माना गांव से यहां तक का करीब सात किमी का रास्ता,जो कि है ही नहीं,बेहद कठिन,खतरनाक और थका देने वाला है। ये रास्ता पार कर हम साढे चार पर यहां पंहुचे। सबसे बडी परेशानी यह है कि हमारे पोर्टर,टेण्ट और खाद्य सामग्री लेकर अब तक नहीं पंहुचे है। हम उन्ही का इंतजार कर रहे है। इसी इंतजार को मैं डायरी लिख कर पूरा कर रहा हूं।


कल सारी तैयारियां पूरी हो गई थी,लेकिन आज सुबह सब कुछ गडबडा गया। पोर्टर को रात में ही सारा सामान
दिखा दिया था,उसने कहा था कि चार पोर्टर सारा सामान ले लेंगे। सुबह साढे आठ पर पोर्टर आए। सामान लादने के लिए इनके पास बैंत से बनी बास्केट होती है,जिसे ये पीठ पर टांग लेते है। हमें बताया गया था कि एक पोर्टर 30-35 किलो तक सामान ले लेता है। हम सभी लोगों को अपना निजी सामान खुद ही ढोना था।
सुबह जब पोर्टर अपनी कण्डियों में सामान जमाने लगे,तभी उन्होने कहा कि चार की बजाय पांच पोर्टर लगेंगे। पोर्टर की तलाश में एसडीआरएफ के एसआई जगमोहन भी लगे। लेकिन ये व्यवस्था होते होते पौने ग्यारह बज गए। पौने ग्यारह पर हम गाडियों में सवार होकर माना की तरफ चले। माना गांव से करीब एक-डेढ किमी पहले ही नदी पर बने एक पुल को पार कर आगे तक गाडी हमें ले गई और ठीक सवा ग्यारह पर हमारी ट्रैकिंग प्रारंभ हुई।




















शुरुआती दो-ती किमी का रास्ता बेहद संकरा और खतरनाक था। पहाड पर बनी संकरी पगडण्डियों से होकर चलना था और लगातार उपर चढना था। इसके बाद शुरु हुआ पत्थरों का सिलसिला। उबड खाबड,बिखरे हुए पत्थरों पर पांव रख रख कर उपर पहाड चढना था। ये पत्थर पांव के वजन से कभी भी खिसक कर हजारों फीट नीचे जा सकते है। इन पत्थरों पर चलकर दो-तीन पहाड चढे कि हमारी दाईं ओर वसुधारा जलप्रपात नजर आने लगा। हमारे और वसुधारा के बीच में अलकनन्दा नदी थी। ये वसुधारा झरना यहां कैम्प साईट से भी नजर आ रहा है। हमें कहा गया था कि वसुधारा झरने से कैम्प साईट नजदीक ही है। झरने के दूसरी तरफ रंग बिरंगे टेन्ट लगे दिखे। हमारे गाईड ने बताया कि ये आईटीबीपी की ट्रैनिग के टेन्ट हैं।  उसने कहा कि वहीं नीचे हम भी टेन्ट लगाएंगे। हांलाकि उस जगह से यहां कैम्प साईट तक पंहुचने में हमें ढाई घण्टे लग गए। बीच में फिर से पत्थरों पर चढना पडा।
अब यहां पंहुचे है। चारों तरफ पहाड है। दाहीनी ओर अलकनन्दा बह रही है। इसके किनारे पर भोजपत्रों के वृक्ष भी है। कडाके की ठण्ड है। हमारे पोर्टर आने पर ही हमारी व्यवस्थाएं होना शुरु होगी। जब तक वे नहीं आते,हम इस बर्फीली हवा को झेलने को मजबूर है।

छठे दिन की यात्रा पढने के लिए यहां क्लिक करें


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