Thursday, November 23, 2017

Satopant Swargarohini Yatra -7 स्वर्ग की सीढियां चढने की चाहत-7

 (सातवां दिन)14 सितम्बर 2017 गुरुवार (शाम चार बजे)
चक्रतीर्थ कैम्प

टेण्ट के बाहर बर्फीली तेज हवा चल रही है। हम किचन टेण्ट में बैठे है। टेण्ट में ही दो स्टोव जलाकर सूप बनाकर पी चुके है। सारे लोग सतोपन्त झील और स्वर्गारोहिणी मार्ग पर जाकर भी आ चुके हैं। यात्रा के अंतिम लक्ष्य को हासिल कर चुके है।

आज की यात्रा सुबह 8.10 पर शुरु कर दी थी। सुबह मैगी का नाश्ता करके चले। कल हम जिस दिशा से चक्रतीर्थ घाटी में घुसे थे,आज उसकी विपरित दिशा में चलना था। सामने ही एक पहाडी थी। हमें बताया गया था कि इस पहाडी के पीछे ही हमें जाना है। इस पहाडी की चढाई एकदम खडी और बेहद कठिन थी। इसे चढने में ही एक सवा घण्टा लग गया। पहाडी की सबसे उपरी कगार पर दो रंग बिरंगे झण्डे लगे हुए थे। ये झण्डे बता रहे थे कि सतोपंत अब नजदीक ही है। पहाडी की कगार बेहद संकरी थी। इस पर एक ही व्यक्ति खडा रह सकता है। इस कगार की दूसरी ओर तीखी ढलान है। मिट्टी की वजह से फिसलन है।
हांलाकि चढाई के बाद ढलान सुकून देती है,लेकिन फिसलन का डर भी होता है। कगार की दूसरी तरफ ढलान उतरने के बाद लम्बा पत्थरों से भरा इलाका शुरु हो गया। पत्थरों पर पांव टिकाते टिकाते चलते रहे। इन पत्थरों पर चलना बेहद खतरनाक है। कब कौनसा पत्थर फिसल जाएगा,पता नहीं चलता। गलती से पत्थर फिसला तो चोट लगना तय है।

















पथरीला इलाका चलते चलते,चार पहाडियां पार हो गए,तब कहीं जाकर सामने एक पहाडी की कगार पर झण्डे लगे हुए नजर आए। पता चला कि इसी पहाडी के पीछे सतोपंत झील है। फिर से खडी चढाई सामने थी,लेकिन सुकून यह था कि इसके बाद कोई चढाई नहीं है। धीरे धीरे एक एक कदम रख रख कर इस पहाडी की चोटी पर पंहुचे। दूसरी तरफ सतोपंत झील नजर आने लगी। स्वच्छ हरा जल,तिकोनी झील। चारो ओर बर्फ से ढंके पहाड। झील के तट पर पंहुचने के लिए फिर से उतरना था। जो पहाड अभी चढे थे,उसकी दूसरी तरफ उतर कर झील के किनारे पंहुचे। नीचे उतर कर सभी लोग स्नान की तैयारी करने लगे। हमारे पोर्टर भी बैग्स लेकर आ चुके थे।
कल हमने तय किया था कि टेण्ट नहीं उखाडेंगे। वापस लौटकर यहीं आ जाएंगे। इसी का नतीजा था कि हमारे बैग आज पोर्टर लेकर आ रहे थे। मेरे अलावा सभी ने झील में डुबकी लगाई। दशरथ जी और महेश जी ने तो स्नान के बाद काफी देर तक खुले बदन ध्यान किया। मैने उन्हे बहुत रोका लेकिन वे नहीं माने। प्रकाश शेविंग के लिए रेजर लेकर आया था। मैने अनिल ने और प्रकाश ने सेविंग की। मैने शेविंग के बाद झील के पानी से सिर धोया,लेकिन स्नान नहीं किया। स्नान के बाद प्रकाश द्वारा लाए गए अधिवक्ता परिषद के बैनर के साथ फोटो खिंचवाए। फिर महेश जी ने किसान संघ का झण्डा लेकर फोटो खिंचवाए। महेश जी के कहने पर सतोपंत झील के किनारे शाखा लगाई और प्रार्थना भी की।  लेकिन हाई अल्टीट्यूड और ठण्ड का असर था कि महेश जी एक दो बार प्रार्थना की पंक्तियां ही भूल गए। प्रार्थना करने के बाद हमारे कुक द्वारा लाई गई ब्रेड बटर का नाश्ता किया।
हम लोग करीब ढाई घण्टे में झील पर पंहुच गए थे। दो घण्टे वहां रुके।























अब लौटने का समय था। महेश जी और दशरथ जी ने आगे स्वर्गारोहिणी जाने की इच्छा जताई। बाकी हम चारो ने चूंकि वहीं से स्वर्ग की सीढियां देख ली थी,इसलिए लौटने की योजना बनाई। हम दोपहर साढे बारह बजे वहां से फिर चल दिए। करीब दो घण्टे उन्ही पत्थरों,चढाई और ढलानों पर चलते हुए दोपहर ढाई बजे कैम्प में आ गए। धूप अब जा चुकी है। बर्फीली तेज हवा चल रही है। हमारे पास मौजूद एकमात्र स्टोव भी खराब हो गया था। कुक ने दूसरा स्टोव मंगवाया। अब दोनोौ स्टोव जल रहे है। ये दोनो स्टोव किचन टेण्ट में ही जलाए जा रहे है,ताकि हवा से बचाया जा सके। हम लोग सूप पी चुके है। अब चर्चा यह  हो रही है कि वापसी दो दिन की बजाय एक ही दिन में करले और कल यहां से चलें तो सीधे बद्रीनाथ जाकर रुके।
आठवें दिन की यात्रा पढने के लिए यहां क्लिक करें


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