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हम गौमुख ग्लैशियर के नजदीक तक गए। मेरी बाई ओर की पहाडी पर चलते हुए गौमुख ग्लैशियर के सामने पंहुचा जाता है। झण्डों से आगे का रास्ता बडे बडे पत्थरों पर से होकर है। इन पत्थरों पर काफी देर चलने के बाद बाई पहाडी में लैण्ड स्लाइडिंग की जगह से बेहद खतरनाक रास्ते से उपर चढना पडता है। इस रास्ते पर एक
स्थान पर केवल एक पैर ही टिकाया जा सकता है। दाहिनी ओर नीचे,भागीरथी प्रचण्ड वेग से शोर मचाती हुई बह रही है। यह रास्ता कच्चे भुरभुरे पहाड पर है,जिसका सहारा भी नहीं लिया जा सकता। केवल एक ही पैर टिकाने की जगह है। यह रास्ता देखकर ही मैं घबरा गया।
यहां से थोडा भी फिसले तो मौत तय है। मेरी बिलकुल भी हिम्मत नहीं थी,यहां चढने की,लेकिन दशरथ जी और प्रकाश जी चढ गए। उनके पीछे अनिल भी चल पडा। मजबूरन,राम राम करते हुए मैं भी उस रास्ते पर चढा। दो तीन कदम चलने पर ही मुझे लगा कि जरा सी चूक सीधे मौत के मुंह में ले जा सकती है। लेकिन मैने सोचा कि यदि यही विचार दिमाग में चलते रहे,तो चूक हो ही जाएगी,फिर मौत तय है। पैरों के नीचे सीधे नदी दिखाई दे रही थी। अगर फिसले,तो बचाव का कोई साधन नहीं था। अपने दिमाग में चलते इन विचारों को मैने झटका और सामने देखते हुए एक एक कदम रखते हुए आगे बढने लगा। जैसे तैसे वह खतरनाक हिस्सा पार हुआ। उपर थोडे से सुरक्षित स्थान पर पंहुचते ही मैने घोषणा कर दी कि मैं अब आगे नहीं जाउंगा। ग्लैशियर के ठीक सामने वाला स्थान अब भी करीब एक किमी दूर था। दशरथ जी,प्रकाश और आदित्य आगे बढ गए। उनके साथ पोर्टर नवीन भी गया। दूसरा पोर्टर टेकराज हमारे साथ ही रुका। उसी स्थान पर रुक कर हमने थोडा सा दलिया खाया। यह दलिया हम रेस्ट हाउस से बनवा कर लाए थे। हांलाकि हम दलिया खा नहीं पाए।
अब बडी चुनौती थी उसी खतरनाक रास्ते से वापस लौटने की। चढते वक्त तो शरीर का वजन आगे की ओर रहता है,लेकिन उतरते समय फिसलने का डर और भी ज्यादा रहता है। अब तो मैने कैमरा और जर्किन भी पोर्टर टेकराज को पकडा दी। बडे धीरे धीरे,डरते डरते उसी खतरनाक रास्ते पर एक एक कदम रखते हुए फिर से वापस लौटे। भगवान की कृपा से मैं और अनिल दोनो ही सकुशल इस खतरनाक रास्ते से उतर आए। फिर बडे बडे पत्थरों पर चलते हुए झण्डों तक लौट आए। यहां से भोजबासा का रास्ता बेहद आसान है। हम एक घण्टे में ही भोजबासा पंहुच जाएंगे। दशरथ जी और प्रकाश जी अब मुझे नहीं लगता कि तपोवन तक जाएंगे। वैसे उनके बैग्स पोर्टर के साथ है। अगर उन्होने हिम्मत की तो वे ग्लैशियर पर उपर चढकर ग्लैशियर को पार करते हुए तपोवन पंहुच सकते है। वे क्या निर्णय करेंगे?पता नहीं।
अभी मैं जिस जगह बैठा हूं,यहां मेरी दाईं ओर तीन शिवलिंग स्थापित है। इनके चारों ओर झण्डे लगाए गए हैंं। कुछ सालों पहले तक ग्लैशियर यहीं तक था।,अब वह एक डेढ किमी पीछे सरक चुका है। मेरी दाहीनी ओर भागीरथी तेज बहाव से बह रही है। सामने बर्फ से ढंके गंगौत्री पर्वत की चोटियां है। बाईं ओर उंचे पहाड हैं।
अब बात आज की ट्रेकिंग की। रात को तय किया था कि सुबह छ: बजे चल देंगे,लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हाई अल्टीट्यूड के कारण कोई भी ठीक से सौ नहीं पाया। भोजन के बाद एक नींद आई लेकिन ढाई तीन बजे नींद उचट गई। हाई अल्टी का असर ऐसा कि बिस्तर में पडे पडे भी चैन नहीं पड रहा था। पता चला सभी जगे हुए है और खाली नींद लाने का प्रयास कर रहे हैं। करवटें बदल बदल कर भी थकान होने लगी। बिस्तर में पडे पडे भी चैन नहीं पड रहा था,उठने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी। आखिरकार पहले दशरथ जी उठे और फिर मै। धीरे धीरे नित्यकर्म से निवृत्त हुए। ट्रैकिंग के दौरान मुंह धोने या नहाने जैसी कोई गतिविधि नहीं होती। सुबह उठने पर पानी को हाथ लगाने में भी डर लगता है। बर्फीले पानी से जैसे तैसे कुल्ला किया। चेहरा छोडकर केवल आंखों को पानी से धोया। फिर फ्रैश हुए और ब्रश किया। बस अब रवानगी। लेकिन मोजे पहनने और जूते के लैस बान्धने में भी सांस भर रही है। चाय के साथ दो-चार बिस्कीट्स खाए। रास्ते के लिए आलू पराठे और दलिया बनवाया था। एक पोर्टर को वहीं रोक दिया था कि वह पीछे से नाश्ता लेकर आएगा और गौमुख पर मिलेगा। हमने करीब 7.10 पर भोजबासा से चलना शुरु किया। यहां झण्डे तक रास्ता आसान था। हम साढे आठ पौने नौ तक झण्डे पर पंहुच गए थे।
अब मैं और अनिल यहां बैठे है। हमें यहां से भोजबासा पंहुचना है। उतरना आसान है। आज का सारा दिन हम भोजबासा में ही रुकेंगे।
पिछले दो तीन दिन लगातार इसी उहापोह में गुजरे थे कि हम तपोवन जा सकेंगे या नहीं। कल रात को भी यही चर्चा चली। लगभग सभी ने सोच लिया था कि तपोवन तक जाना है। लेकिन एक बचाव भी छोड कर रखा था कि भोजबासा से गौमुख पंहुचने के बाद जैसा होगा,वैसा निर्णय लिया जाएगा। मेरे पैर रात से ही जवाब देने लगे थे। सुबह हम चल तो पडे,लेकिन कई बार घुटने में तीखे दर्द का एहसास हुआ। यह तीखा दर्द मेरी हिम्मत तोड ही रहा था,कि आगे उस खतरनाक चढाई ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। मैने घोषणा कर दी कि मैं यहीं से लौटूंगा। हिमालय से कौन जीत सका है। मैं भी हार गया। शरीर और खासतौर पर पैर और घुटने अब इस स्थिति में नहीं है कि बडी चुनौती झेल सके। आज से बीस साल पहले जब घुमने का शौक लगा था,तभी अगर ट्रैकिंग का शौक लगा होता,तो शायद ये सारे दुर्गम ट्रैक मैं पूरे कर चुका होता। हांलाकि यह महंगा शौक है और तब इसे पूरा नहीं किया जा सकता था।
कैलाश मानसरोवर के बाद पिछले साल सतोपंत स्वर्गारोहिणी करने के बाद मैने और सभी मित्रों ने यह सोचा था कि हर साल ट्रैकिंग करेंगे। लेकिन इस बार घुटनों ने मजबूर कर दिया है कि अब इस शौक को यही रोक दिया जाए। आगे के समय में देश के बचे हुए हिस्सों को आराम के साथ घूमा जाए।
आज दोपहर में हम गौमुख के झण्डों पर बैठे थे। काफी देर बाद गौमुख की तरफ से हमारे साथी आते हुए नजर आए थे। यह तय हो गया कि तपोवन कोई नहीं गया। करीब ग्यारह बजे दशरथ जी प्रकाश जी झण्डों पर लौट आए थे।करीब आधा घण्टा हम लोग वहीं बैठे रहे। भोजबासा पंहुचना अब आसान था। साढे ग्यारह बजे हम वहां से चले। थोडा पथरीला रास्ता बाकी था। उसे पार कर चलते रहे। हम लोग करीब एक बजे भोजबासा लौट आए। सभी लोग थके हुए थे। आते ही बिस्तर पर पड गए। लेकिन अब हम लोगों पर हाई अल्टी का कोई असर बाकी नहीं था। क्योंकि हम उंचाई से नीचे आए थे। जाते समय रास्ते में खाने के लिए दलिया और पराठे ले गए थे,लेकिन हाई अल्टी का असर था कि वहां खाने की कोई इच्छा ही नहीं हो रही थी। लौटने पर भूख महसूस होने लगी। रेस्ट हाउस पर फिर से दलिया बनवाया। अब सभी लोगों ने आराम से दिलया खाया।
सोचा था कि खा-पी कर सोएंगे। लेकिन अब सोने की बजाय घूमने निकल पडे। भोजबासा में भोजपत्र के वृक्षों की भरमार है,इसीलिए इसका नाम भोजबासा है। दोनो ओर पहाडों के बीच छोटा सा मैदान है। इसी में जीएमवीएन का रेस्ट हाउस है। लाल बाबा और कुछ अन्य आश्रम है,जहां यात्रियों के ठहरने खाने का भी इंतजाम है।
विदेशी यात्रियों के दल भी यहां आए हुए हैं। एक ग्रुप चेक रिपब्लिक से आया है। इसमें करीब 23 लोग है। एक दल स्पेन से आया है,इसमें 21 लोग है।
हम पहले आश्रम में गए। वहां मन्दिर में दर्शन किए। फिर नदी किनारे बने शिव मन्दिर में गए। यहां भोजबासा में पुलिस,एसडीआरएफ,फारेस्ट और मौसम विभाग के भी कार्यालय व रेस्ट हाउस बने हुए हैं।
करीब एक डेढ घण्टा घूम कर लौटे और सौ गए। एकाध घण्टा सोये होंगे। साढे चार के करीब फिर उठे। बाहर बेहतरीन धूप खिली हुई थी। यहां ड्यूटी करने वाले पुलिस और एसडीआरएफ के जवानों ने यहां क्रिकेट मैदान भी बना रखा है। वे शाम को क्रिकेट खेलते हैं। हम काफी देर तक उनका खेल देखते रहे। यहां भोजबासा में देव तुलसी या गंगा तुलसी की भरमार है। पूरा वातावरण इसकी खुशबू से महकता रहता है। करीब छ: बजे हम रेस्ट हाउस में लौटे। बातें करते रहे। भोजन किया। फिर काफी देर तक बाहर बर्फीली हवाओं में बैठे रहे।
कल हमें यहां से चौदह किमी ट्रैक करके गंगौत्री पंहुचना है।
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पांचवां दिन
9 सितम्बर 2018 रविवार/सुबह 10.05
गौमुख ग्लैशियर झण्डाहम गौमुख ग्लैशियर के नजदीक तक गए। मेरी बाई ओर की पहाडी पर चलते हुए गौमुख ग्लैशियर के सामने पंहुचा जाता है। झण्डों से आगे का रास्ता बडे बडे पत्थरों पर से होकर है। इन पत्थरों पर काफी देर चलने के बाद बाई पहाडी में लैण्ड स्लाइडिंग की जगह से बेहद खतरनाक रास्ते से उपर चढना पडता है। इस रास्ते पर एक
स्थान पर केवल एक पैर ही टिकाया जा सकता है। दाहिनी ओर नीचे,भागीरथी प्रचण्ड वेग से शोर मचाती हुई बह रही है। यह रास्ता कच्चे भुरभुरे पहाड पर है,जिसका सहारा भी नहीं लिया जा सकता। केवल एक ही पैर टिकाने की जगह है। यह रास्ता देखकर ही मैं घबरा गया।
अभी मैं जिस जगह बैठा हूं,यहां मेरी दाईं ओर तीन शिवलिंग स्थापित है। इनके चारों ओर झण्डे लगाए गए हैंं। कुछ सालों पहले तक ग्लैशियर यहीं तक था।,अब वह एक डेढ किमी पीछे सरक चुका है। मेरी दाहीनी ओर भागीरथी तेज बहाव से बह रही है। सामने बर्फ से ढंके गंगौत्री पर्वत की चोटियां है। बाईं ओर उंचे पहाड हैं।
अब बात आज की ट्रेकिंग की। रात को तय किया था कि सुबह छ: बजे चल देंगे,लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हाई अल्टीट्यूड के कारण कोई भी ठीक से सौ नहीं पाया। भोजन के बाद एक नींद आई लेकिन ढाई तीन बजे नींद उचट गई। हाई अल्टी का असर ऐसा कि बिस्तर में पडे पडे भी चैन नहीं पड रहा था। पता चला सभी जगे हुए है और खाली नींद लाने का प्रयास कर रहे हैं। करवटें बदल बदल कर भी थकान होने लगी। बिस्तर में पडे पडे भी चैन नहीं पड रहा था,उठने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी। आखिरकार पहले दशरथ जी उठे और फिर मै। धीरे धीरे नित्यकर्म से निवृत्त हुए। ट्रैकिंग के दौरान मुंह धोने या नहाने जैसी कोई गतिविधि नहीं होती। सुबह उठने पर पानी को हाथ लगाने में भी डर लगता है। बर्फीले पानी से जैसे तैसे कुल्ला किया। चेहरा छोडकर केवल आंखों को पानी से धोया। फिर फ्रैश हुए और ब्रश किया। बस अब रवानगी। लेकिन मोजे पहनने और जूते के लैस बान्धने में भी सांस भर रही है। चाय के साथ दो-चार बिस्कीट्स खाए। रास्ते के लिए आलू पराठे और दलिया बनवाया था। एक पोर्टर को वहीं रोक दिया था कि वह पीछे से नाश्ता लेकर आएगा और गौमुख पर मिलेगा। हमने करीब 7.10 पर भोजबासा से चलना शुरु किया। यहां झण्डे तक रास्ता आसान था। हम साढे आठ पौने नौ तक झण्डे पर पंहुच गए थे।
अब मैं और अनिल यहां बैठे है। हमें यहां से भोजबासा पंहुचना है। उतरना आसान है। आज का सारा दिन हम भोजबासा में ही रुकेंगे।
9 सितम्बर (दोपहर 11.00 बजे)
मैं और अनिल झण्डे पर ही बैठे है। बढिया धूप खिली हुई है। हमारे साथी लौटते हुए नजर आ गए हैं। उनके आने पर ही हम यहां से आगे बढेंगे।पिछले दो तीन दिन लगातार इसी उहापोह में गुजरे थे कि हम तपोवन जा सकेंगे या नहीं। कल रात को भी यही चर्चा चली। लगभग सभी ने सोच लिया था कि तपोवन तक जाना है। लेकिन एक बचाव भी छोड कर रखा था कि भोजबासा से गौमुख पंहुचने के बाद जैसा होगा,वैसा निर्णय लिया जाएगा। मेरे पैर रात से ही जवाब देने लगे थे। सुबह हम चल तो पडे,लेकिन कई बार घुटने में तीखे दर्द का एहसास हुआ। यह तीखा दर्द मेरी हिम्मत तोड ही रहा था,कि आगे उस खतरनाक चढाई ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। मैने घोषणा कर दी कि मैं यहीं से लौटूंगा। हिमालय से कौन जीत सका है। मैं भी हार गया। शरीर और खासतौर पर पैर और घुटने अब इस स्थिति में नहीं है कि बडी चुनौती झेल सके। आज से बीस साल पहले जब घुमने का शौक लगा था,तभी अगर ट्रैकिंग का शौक लगा होता,तो शायद ये सारे दुर्गम ट्रैक मैं पूरे कर चुका होता। हांलाकि यह महंगा शौक है और तब इसे पूरा नहीं किया जा सकता था।
कैलाश मानसरोवर के बाद पिछले साल सतोपंत स्वर्गारोहिणी करने के बाद मैने और सभी मित्रों ने यह सोचा था कि हर साल ट्रैकिंग करेंगे। लेकिन इस बार घुटनों ने मजबूर कर दिया है कि अब इस शौक को यही रोक दिया जाए। आगे के समय में देश के बचे हुए हिस्सों को आराम के साथ घूमा जाए।
9 सितम्बर (रात 9.00)
जीएमवीएन रेस्ट हाउस भोजबासा
इस वक्त हम भोजबासा के रेस्टहाउस के कमरे में आ चुके हैं। भोजन हो चुका है और अब सोने की तैयारी है।विदेशी यात्रियों के दल भी यहां आए हुए हैं। एक ग्रुप चेक रिपब्लिक से आया है। इसमें करीब 23 लोग है। एक दल स्पेन से आया है,इसमें 21 लोग है।
हम पहले आश्रम में गए। वहां मन्दिर में दर्शन किए। फिर नदी किनारे बने शिव मन्दिर में गए। यहां भोजबासा में पुलिस,एसडीआरएफ,फारेस्ट और मौसम विभाग के भी कार्यालय व रेस्ट हाउस बने हुए हैं।
कल हमें यहां से चौदह किमी ट्रैक करके गंगौत्री पंहुचना है।
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