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के मैनेजर से बिल का पूछा तो बाईस सौ का बिल लाया। फिर बोला आप दो हजार दे दो। आखिरकार पन्द्रह सौ पर मामला सैट हुआ। वहां से निकले। नाश्ता करना था। धारासू बैण्ड से कुछ पहले डूण्डा नामक स्थान पर साढे गायरह बजे आलू पराठे मिल पाए। वहां नाश्ता या भोजन जो भी कहिए,किया। अब आगे चले। हमारी मंजिल थी न्यू टिहरी। आईजी गुंजियाल सा.का नेटवर्क,मोबाइल के नेटवर्क से ज्यादा तेज चल रहा था। सुबह जब निकले तो सीधे उत्तरकाशी में काशी विश्वनाथ के दर्शन करने पंहुचे।
यहां देवासुर संग्राम में शिवजी द्वारा उपयोग में लाया गया त्रिशूल गडा हुआ है। कहते है आज तक कोई इसकी गहराई कोई नाप नहीं पाया है। यह हाथ लगाने से हिलने लगता है,लेकिन उखडता नहीं है। कहते है यह शेषनाग के फन पर टिका है। काशी विश्वनाथ के दर्शन कर ही रहे थे कि आईजी सा.के आफिस से उनके पीए का फोन गया। मैने बताया कि टिहरी डैम देखना है। उन्होने भागीरथी पुरम के एसओ नैगी को नम्बर दे दिया। एसओ नैगी से बात हुई। उन्होने हमारे नाम उम्र और वाहन नम्बर मांगा। उत्तरकाशी से निकलते निकलते सारी जानकारी एसएमएस से भेज दी। साढे ग्यारह पर नाश्ता/भोजन करके आगे बढे। बीच में एक स्थान पर सडक़ चौडीकरण का काम चल रहा था। हमें पन्द्रह बीस मिनट रुकना पडा। करीब पौने तीन बजे हम चम्बा के चौराहे पर पंहुच गए। यहां दस मिनट अपनी व्यवस्था के लिए रुके। यहां से न्यू टिहरी पंहुचे,तो बोर्ड देखकर पता चला कि भागीरथी पुरम अभी सौलह किमी आगे है। फिर से एसओ नैगी को फोन लगाया। उन्होने कहा यहां आ जाईए। करीब साढे तीन बजे हम एसओ नैगी के सामने मौजूद थे। वहां हमारे लिए टिहरी डैम देखने का अनुमति पत्र मौजूद था,जो कि सीआईएसएफ के डिप्टी डायरेक्टर द्वारा जारी किया गया था। उसी अनुमति पत्र में सीआईएसएफ के मेजर रवीन्द्र सिंह का नाम दर्ज था,जिसने हमे डैम दिखाना था।
डैम यहां से पांच किमी दूर था। अनुमति पत्र लेकर चले। इस दौरान कुछ देर के लिए नेटवर्क मिल गया। रतलाम में सौरभ और विवेक से बात भी हो गई। रास्ते में दशरथ जी ने चाय पीने की इच्छा जताई,लेकिन सभी का कहना था कि समय कम है,पहले डैम देख लेते है,फिर चाय पिएंगे।
डैम पर शुरुआती जांच के बाद भीतर पंहुचे। भीतरी गेट पर पास दिखाया तो रवीन्द्र सिंह के स्थान पर विजयभान सिंह हमें डैम दिखाने आए। वीबी सिंह बेहद खुशमिजाज व्यक्ति है। वे आए,हमारी गाडी में सवार होकर हमें डैम दिखाने ले गए। डैम पर ही करीब ढाई किमी नीचे उतरने के बाद पहाड के नीचे बनी विशालकाय टनल के बाहर हमने गाडी छोड दी। अब हमें करीब आठ सौ मीटर पैदल ही टनल के भीतर जाना था। टनल के सिरे पर मैटल डिटेक्टर से जांच के बाद हमें विजिटर पास दिए गए। वीबी सिंह के साथ इस टनल में हम पैदल चले। ट्रैकिंग का असर था कि पैदल चलना बेहद कठिन और कष्टदायी था,लेकिन डैम देखने की उत्सुकता के चलते यह कष्ट झेलते हुए हम चल रहे थे। वीबी सिंह ने बताया कि हम पहाड के नीचे,करीब आठ सौ मीटर नीचे चल रहे हैं। इंजीनियरिंग का कमाल है कि पहाड के उपर सबकुछ जस का तस है,लेकिन पहाड को नीचे से पूरा खोखला कर नीचे ही पूरे डैम की व्यवस्था बनाई गई है। पहाड के नीचे नीचे 16 वर्ग किमी का हिस्सा डैम के उपयोग में आ रहा है। विद्युत उत्पादन की ईकाई भी पूरी तरह पहाड के नीचे ही है। भीतर भी कुछ नजर आता। यहां ढाई सौ मेगावाट के चार टर्बाइन है। भागीरथी और वीरांगना दो नदिया को पानी को रोक कर,उसके पानी के वेग से टर्बाईन घुमाए जाते है,जिससे बिजली पैदा होती है। पहाड के नीचे नीचे सौलह मंजिला संयंत्र है। यह देखना अपनेआप में आश्चर्यजनक था। आम आदमी को यहां प्रवेश नहीं मिलता। कुछ विशीष्ट व्यक्ति ही यहां प्रवेश पा सकते है,जो कि हम थे। टिहरी बांध की पूरी व्यवस्था वीबी सिंह ने बडे विस्तार से समझाई। उन्होने बताया कि कैसे पानी को उपर से नीचे लाया जाता है और पहाड के नीचे नीचे ही टर्बाइन तक अत्यधिक वेग के साथ पंहुचाया जाता है। यहां उत्पादित बिजली सीधे मेरठ ग्रिड पर जाती है,और वहां से आगे सप्लाय होती है। उत्तराखण्ड को इसकी बिजली सीधे नहीं मिलती,मेरठ ग्रिड से ही मिलती है। एक छोटा संयंत्र कोटेश्वर में है। वहां भी विद्युत उत्पादन होता है। वीबी सिंह ने एक और आश्चर्यजनक तथ्य बताया कि भागीरथी गंगा नहीं है। गंगा तो ऋ षिकेश पंहुचकर बनती है,जब इसमें आठ नौ नदियों जैसे अलकनन्दा,मन्दाकिनी आदि मिल जाती है। गंगाजल का दैवीय गुण इन सभी नदियों का जल मिलने के बाद ही उत्पन्न होता है। भागीरथी को वह
सम्मान प्राप्त नहीं है,जो गंगा को है। बांध के विरोध की घटनाओं पर उन्होने बताया कि बाद में अविरल गंगा के नाम पर एक धारा अविरल रुप से बांध से छोडी गई है,ताकि भागीरथी पूरी तरह रुक ना जाए। हमने अविरल गंगा की धारा भी देखी। यह बांध भी अद्भुत है। यह दुनिया के सर्वाधिक उंचाई वालेदो-तीन बांधों में से एक है। एशिया में सर्वाधिक उंचाई वाला बांध है। बांध की एक और खासियत यह है कि इसमें सीमेन्ट का बिलकुल भी उपयोग नहीं किया गया है। बांध का आधार करीब एक हजार दो सौ पचास (1250) मीटर यानी सवा किमी चौडा है,जबकि टाप इसकी चौडाई महज 22 मीटर है। इस पर रखने के लिए राजस्थान से पत्थर मंगवाए गए थे,जो कि पानी के असर से बेअसर रहते है। बांध देखकर उपर आए। विजयभान सिंह से मिलकर सभी को बडा मजा आया। डैम में उपर आकर दो तीन सेल्फियां,प्रतिबन्ध के बावजूद ली। वीबी सिंह से रात का भोजन साथ में करने का आह्रह किया,लेकिन उन्होने विनम्रता से इंकार कर दिया। डैम से लौटे तो रास्ते में एक दुकान पर बोहतरीन पकौडों के साथ चाय पी। आगे बढे तो एक स्थान से बांध का पूरा विडीयो भी बनाया। बांध से लौटे। भागीरथीपुरम एसओ नैगी जी से मुलाकात हुई। उन्होने बताया कि टीएचडीसी रेस्ट हाउस पर हमारे लिए दो कमरे बुक है। सरकारी दरों पर हमें दो शानदार कमरे उपलब्ध हो गए।
जब यहां आए थे,तभी से टीएचडीसी का फुलफार्म समझ में नहीं आ रहा था। इन चार अक्षरों में से टी से टिहरी,डी और सी से डेवलपमेन्ट कारपोरेशन तो समझ में आ रहा था,लेकिन एच का अर्थ जानते हुए भी ध्यान में नहीं आ रहा था। इस एच का अर्थ वीबी सिंह ने बताया,हाईड्रो। यानी कि टिहरी हाईड्रो डेवलपमेन्ट कारपोरेशन। बस इसी टीएचडीसी के रेस्ट हाउस में हम रुके है।
अभी कुछ देर पहले प्रतीक दवे रतलामी से भी बात हो गई। प्रतीक ऋ षिकेश में है। कल हम साथ होंगे।रेस्ट हाउस में भोजन के बाद काफी देर बाहर घूमे,फोटो लिए। काफी प्रयासों के बाद वीबी सिंह से भी बात हो गई। कल सुबह मुलाकात का वादा भी हो गया। अब कल हम ऋ षिकेश पंहुचेंगे।
12 सितम्बर 2018 बुधवार (सुबह 9.00)
टीएचडीसी रेस्ट हाउस भागीरथी पुरम
इस वक्त मैं स्नान करके तैयार हो चुका हूं। अनिल और प्रकाश बाहर फोटो ले रहे हैं। दशरथ जी का स्नान अभी बाकी है। आज हमेंकोई जल्दी नहीं है,क्योंकि हमें सिर्फ
ऋ षिकेश तक पंहुचना है। वहां पंहुचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
सुबह छ: बजे नींद खुल गई थी। सात बजे बाहर निकल कर देखा तो बडा अद्भुत दृश्य नजर आया। रेस्ट हाउस बिल्डिंग के सामने पहाड पर नीचे बादल छाए हुए थे। यानी कि मैं जहां खडा था,वहां से भी नीचे। बादलों से उपर होना बडा अच्छा लगता है। दृश्य भी बडा सुन्दर था। मैने फोटोग्राफ्स लिए। अब यहां से नाश्ता करके आगे निकलेंगे।
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11 सितम्बर 2018 मंगलवार/रात 11.10
टीएचडीसी रेस्ट हाउस,भागीरथीपुरम न्यू टिहरी
सुबह दस बजे जब ग्रेट गंगा होटल से चले थे,तो यह इच्छा लेकर चले थे कि टिहरी डैम देख लें। ग्रेट गंगा होटलयहां देवासुर संग्राम में शिवजी द्वारा उपयोग में लाया गया त्रिशूल गडा हुआ है। कहते है आज तक कोई इसकी गहराई कोई नाप नहीं पाया है। यह हाथ लगाने से हिलने लगता है,लेकिन उखडता नहीं है। कहते है यह शेषनाग के फन पर टिका है। काशी विश्वनाथ के दर्शन कर ही रहे थे कि आईजी सा.के आफिस से उनके पीए का फोन गया। मैने बताया कि टिहरी डैम देखना है। उन्होने भागीरथी पुरम के एसओ नैगी को नम्बर दे दिया। एसओ नैगी से बात हुई। उन्होने हमारे नाम उम्र और वाहन नम्बर मांगा। उत्तरकाशी से निकलते निकलते सारी जानकारी एसएमएस से भेज दी। साढे ग्यारह पर नाश्ता/भोजन करके आगे बढे। बीच में एक स्थान पर सडक़ चौडीकरण का काम चल रहा था। हमें पन्द्रह बीस मिनट रुकना पडा। करीब पौने तीन बजे हम चम्बा के चौराहे पर पंहुच गए। यहां दस मिनट अपनी व्यवस्था के लिए रुके। यहां से न्यू टिहरी पंहुचे,तो बोर्ड देखकर पता चला कि भागीरथी पुरम अभी सौलह किमी आगे है। फिर से एसओ नैगी को फोन लगाया। उन्होने कहा यहां आ जाईए। करीब साढे तीन बजे हम एसओ नैगी के सामने मौजूद थे। वहां हमारे लिए टिहरी डैम देखने का अनुमति पत्र मौजूद था,जो कि सीआईएसएफ के डिप्टी डायरेक्टर द्वारा जारी किया गया था। उसी अनुमति पत्र में सीआईएसएफ के मेजर रवीन्द्र सिंह का नाम दर्ज था,जिसने हमे डैम दिखाना था।
डैम यहां से पांच किमी दूर था। अनुमति पत्र लेकर चले। इस दौरान कुछ देर के लिए नेटवर्क मिल गया। रतलाम में सौरभ और विवेक से बात भी हो गई। रास्ते में दशरथ जी ने चाय पीने की इच्छा जताई,लेकिन सभी का कहना था कि समय कम है,पहले डैम देख लेते है,फिर चाय पिएंगे।
डैम पर शुरुआती जांच के बाद भीतर पंहुचे। भीतरी गेट पर पास दिखाया तो रवीन्द्र सिंह के स्थान पर विजयभान सिंह हमें डैम दिखाने आए। वीबी सिंह बेहद खुशमिजाज व्यक्ति है। वे आए,हमारी गाडी में सवार होकर हमें डैम दिखाने ले गए। डैम पर ही करीब ढाई किमी नीचे उतरने के बाद पहाड के नीचे बनी विशालकाय टनल के बाहर हमने गाडी छोड दी। अब हमें करीब आठ सौ मीटर पैदल ही टनल के भीतर जाना था। टनल के सिरे पर मैटल डिटेक्टर से जांच के बाद हमें विजिटर पास दिए गए। वीबी सिंह के साथ इस टनल में हम पैदल चले। ट्रैकिंग का असर था कि पैदल चलना बेहद कठिन और कष्टदायी था,लेकिन डैम देखने की उत्सुकता के चलते यह कष्ट झेलते हुए हम चल रहे थे। वीबी सिंह ने बताया कि हम पहाड के नीचे,करीब आठ सौ मीटर नीचे चल रहे हैं। इंजीनियरिंग का कमाल है कि पहाड के उपर सबकुछ जस का तस है,लेकिन पहाड को नीचे से पूरा खोखला कर नीचे ही पूरे डैम की व्यवस्था बनाई गई है। पहाड के नीचे नीचे 16 वर्ग किमी का हिस्सा डैम के उपयोग में आ रहा है। विद्युत उत्पादन की ईकाई भी पूरी तरह पहाड के नीचे ही है। भीतर भी कुछ नजर आता। यहां ढाई सौ मेगावाट के चार टर्बाइन है। भागीरथी और वीरांगना दो नदिया को पानी को रोक कर,उसके पानी के वेग से टर्बाईन घुमाए जाते है,जिससे बिजली पैदा होती है। पहाड के नीचे नीचे सौलह मंजिला संयंत्र है। यह देखना अपनेआप में आश्चर्यजनक था। आम आदमी को यहां प्रवेश नहीं मिलता। कुछ विशीष्ट व्यक्ति ही यहां प्रवेश पा सकते है,जो कि हम थे। टिहरी बांध की पूरी व्यवस्था वीबी सिंह ने बडे विस्तार से समझाई। उन्होने बताया कि कैसे पानी को उपर से नीचे लाया जाता है और पहाड के नीचे नीचे ही टर्बाइन तक अत्यधिक वेग के साथ पंहुचाया जाता है। यहां उत्पादित बिजली सीधे मेरठ ग्रिड पर जाती है,और वहां से आगे सप्लाय होती है। उत्तराखण्ड को इसकी बिजली सीधे नहीं मिलती,मेरठ ग्रिड से ही मिलती है। एक छोटा संयंत्र कोटेश्वर में है। वहां भी विद्युत उत्पादन होता है। वीबी सिंह ने एक और आश्चर्यजनक तथ्य बताया कि भागीरथी गंगा नहीं है। गंगा तो ऋ षिकेश पंहुचकर बनती है,जब इसमें आठ नौ नदियों जैसे अलकनन्दा,मन्दाकिनी आदि मिल जाती है। गंगाजल का दैवीय गुण इन सभी नदियों का जल मिलने के बाद ही उत्पन्न होता है। भागीरथी को वह
सम्मान प्राप्त नहीं है,जो गंगा को है। बांध के विरोध की घटनाओं पर उन्होने बताया कि बाद में अविरल गंगा के नाम पर एक धारा अविरल रुप से बांध से छोडी गई है,ताकि भागीरथी पूरी तरह रुक ना जाए। हमने अविरल गंगा की धारा भी देखी। यह बांध भी अद्भुत है। यह दुनिया के सर्वाधिक उंचाई वालेदो-तीन बांधों में से एक है। एशिया में सर्वाधिक उंचाई वाला बांध है। बांध की एक और खासियत यह है कि इसमें सीमेन्ट का बिलकुल भी उपयोग नहीं किया गया है। बांध का आधार करीब एक हजार दो सौ पचास (1250) मीटर यानी सवा किमी चौडा है,जबकि टाप इसकी चौडाई महज 22 मीटर है। इस पर रखने के लिए राजस्थान से पत्थर मंगवाए गए थे,जो कि पानी के असर से बेअसर रहते है। बांध देखकर उपर आए। विजयभान सिंह से मिलकर सभी को बडा मजा आया। डैम में उपर आकर दो तीन सेल्फियां,प्रतिबन्ध के बावजूद ली। वीबी सिंह से रात का भोजन साथ में करने का आह्रह किया,लेकिन उन्होने विनम्रता से इंकार कर दिया। डैम से लौटे तो रास्ते में एक दुकान पर बोहतरीन पकौडों के साथ चाय पी। आगे बढे तो एक स्थान से बांध का पूरा विडीयो भी बनाया। बांध से लौटे। भागीरथीपुरम एसओ नैगी जी से मुलाकात हुई। उन्होने बताया कि टीएचडीसी रेस्ट हाउस पर हमारे लिए दो कमरे बुक है। सरकारी दरों पर हमें दो शानदार कमरे उपलब्ध हो गए।
जब यहां आए थे,तभी से टीएचडीसी का फुलफार्म समझ में नहीं आ रहा था। इन चार अक्षरों में से टी से टिहरी,डी और सी से डेवलपमेन्ट कारपोरेशन तो समझ में आ रहा था,लेकिन एच का अर्थ जानते हुए भी ध्यान में नहीं आ रहा था। इस एच का अर्थ वीबी सिंह ने बताया,हाईड्रो। यानी कि टिहरी हाईड्रो डेवलपमेन्ट कारपोरेशन। बस इसी टीएचडीसी के रेस्ट हाउस में हम रुके है।
अभी कुछ देर पहले प्रतीक दवे रतलामी से भी बात हो गई। प्रतीक ऋ षिकेश में है। कल हम साथ होंगे।रेस्ट हाउस में भोजन के बाद काफी देर बाहर घूमे,फोटो लिए। काफी प्रयासों के बाद वीबी सिंह से भी बात हो गई। कल सुबह मुलाकात का वादा भी हो गया। अब कल हम ऋ षिकेश पंहुचेंगे।
12 सितम्बर 2018 बुधवार (सुबह 9.00)
टीएचडीसी रेस्ट हाउस भागीरथी पुरम
इस वक्त मैं स्नान करके तैयार हो चुका हूं। अनिल और प्रकाश बाहर फोटो ले रहे हैं। दशरथ जी का स्नान अभी बाकी है। आज हमेंकोई जल्दी नहीं है,क्योंकि हमें सिर्फ
ऋ षिकेश तक पंहुचना है। वहां पंहुचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
सुबह छ: बजे नींद खुल गई थी। सात बजे बाहर निकल कर देखा तो बडा अद्भुत दृश्य नजर आया। रेस्ट हाउस बिल्डिंग के सामने पहाड पर नीचे बादल छाए हुए थे। यानी कि मैं जहां खडा था,वहां से भी नीचे। बादलों से उपर होना बडा अच्छा लगता है। दृश्य भी बडा सुन्दर था। मैने फोटोग्राफ्स लिए। अब यहां से नाश्ता करके आगे निकलेंगे।
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