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होटल शिव गंगा पैलेस गंगौत्री धाम
गौमुख का ट्रैक पूरा करके हम करीब डेढ बजे होटल में पंहुचे। इस समय,दशरथ जी,अनिल जी और प्रकाश जी गंगौत्री में डुबकी लगाने के लिए गए हुए हैं। मैं अकेला होटल में हूं। मैने गंगौत्री के ठण्डे पानी में स्नान करने से साफ इंकार कर दिया। पिछले तीन दिनों से मुंह तक नहीं धोया है। इसलिए यहां आते ही गर्म पानी मंगवाया। शेविंग की और स्नान किया। अब डायरी के साथ हूं। इस समय शरीर का पोर पोर दुख रहा है। पैरों की हालत बेहद खराब है। घुटने जांघे,पिण्डलिया,सब कुछ दर्द कर रहे हैं। इसके साथ ही बायें पैर का पंजा बुरी तरह दुख रहा है। पैर उठने को राजी ही नहीं है। लेकिन हमने तय किया था कि आज गंगौत्री से निकल कर जितना भी आगे जा सकेंगे,वहां जाएंगे और रात्रि विश्राम करेंगे।
हमारी आज की ट्रेकिंग सुबह आठ बजे भोजबासा से शुरु हुई थी। कल हम गौमुख तक जाकर आए थे। आने के बाद सारा समय,उसी खतरनाक पचास मीटर के रास्ते की चर्चा होती रही,जहां से फिसलने पर मौत तय थी और फिसलने की आशंका सर्वाधिक थी। हम चारों ने ईश्वर का धन्यवाद किया कि हम उस रास्ते से उपर भी चढ गए और सही सलामत नीचे भी उतर आए। कल चूंकि गौमुख की उंचाई पर जाकर नीचे भोजबासा लौटे थे इसलिए हाई अल्टी का असर नदारद था। नींद अच्छी आना थी। कल शाम को आठ बजे पत्ता गोभी की सब्जी,दाल रोटी चावल का भोजन करके नौ बजे सौ गए थे। रात करीब डेढ बजे एक बार सभी की नींद खुली,लेकिन दोबारा नींद आई तो पांच साढे पांच तक सोते रहे। छ: बजते बजते धीरे धीरे उठे और तैयार होकर निकलने में आठ बज गए।
जीएमवीएन रेस्ट हाउस का हिसाब करके हम चले। रेस्ट हाउस में हमने सिर्फ चाय और बिस्कीट्स का हलका नाश्ता किया। हमने सोचा था कि चीडबासा की दुकान पर पंहुचकर ही नाश्ता करेंगे। भोजबासा की घाटी से निकलने के लिए पहले तो खडी चढाई पर चढना पडा और दम फुला देने वाली इस चढाई को पार करते ही बडे बडे पत्थरों पर चलते हुए आगे जाना पडा। पत्थरों वाला रास्ता पार करने के बाद सामने तेज बहाव वाले नाले पर लकडी के पुल को पार करना था। हम अब तक करीब चौबीस किमी पैदल चल चुके थे। हाथ पैर सबकुछ जवाब दे रहे थे। लेकिन सुकून सिर्फ यही था कि अब लौटना है। उतरना अपेक्षाकृत आसान होता है। लेकिन मेरे लिए इस बार की ट्रेकिंग बेहद चुनौतीभरी थी। ट्रेकिंग शुरु करने से पहले बायें घुटने में दर्द होने लगा था। ट्रैकिंग शुरु की तो शुरुआत में ही बाए पैर का पंजा मोच खा गया। पंजे में दर्द भी हो रहा था। पिण्डलिया,जांघे,घुटने सबकुछ दुख रहा था। इसी दर्द के साथ एक एक कदम रखते हुए बढते रहे। करीब नौ बजे चीड बासा के पेड नजर आने लगे। इन्हे देखकर राहत मिली कि चीडबासा बस आने ही वाला है। लेकिन फिर भी चीडबासा की दुकान तक पंहुचते पंहुचते पैंतालिस मिनट लग गए। हम लोग पौने दस बजे चीडबासा की दुकान पर पंहुचे। यहां से ंगगौत्री अभी नौ किमी दूर था।
चीडबासा में मैने मैगी खाई दशरथजी ने आलू पराठा लिया। अनिल और प्रकाश ने बोटल वाला मीठा दूध लिया। यहां करीब आधा घण्टा आराम और नाश्ता करके फिर आगे बढे।
मेरे पैरों का दर्द और भी बढ गया था। पैर उठाने में जांघों की मांसपेशियां दर्द कर रही थी। लेकिन और कोई चारा नहीं था। कहीं बडे बडे पत्थरों वाला रास्ता,तो कहीं पहाड में बेहद संकरा रास्ता,जिस पर कोई रैंलिंग नहीं होती,पैर फिसला कि मौत तय है। बीच बीच में नालों पर बल्लियों से बनाए गए खतरनाक पुल।
कई जगहों पर सामने से आते विदेशी पर्यटक मिले। एक पौलेण्ड से था,दो-ती महिलाएं रशिया से थी। और भी कई विदेशी टकराये लेकिन मेरा सारा ध्यान पैरों पर था।
चीडबासा से लगातार डेढ घण्टे चलने के बाद सामने दूर कनखू नजर आने लगा। कनखू दिखाई देते ही थोडी राहत महसूस हुई। हांलाकि अभी कनखू काफी दूर था। नजर तो आ रहा था लेकिन वहां तक जाने के लिए अभी डेढ घण्टे और इसी खतरनाक पहाडी रासते पर चलना था। हम करीब साढे बारह बजे कनखू पंहुचे। अब गंगौत्री मात्र 2 किमी दूर था।
कनखू में वनविभाग की चेक पोस्ट है। गंगौत्री नेशनल पार्क में पर्यटक के प्रवेश की फीस डेढ सौ रुपए है। विदेशियों की अधिक है। इसी तरह स्टील कैमरा,मूवी कैमरा आदि की दरें निर्धारित है। बहरहाल,कनखू से गंगौत्री का रास्ता पार करना मेरे लिए और भी कठिन साबित हो रहा था। अब तो पैरों ने पूरी तरह जवाब दे दिया था। पैरों की तकलीफ और मेरी इच्छाशक्ति के बीच जबर्दस्त संघर्ष हो रहा था। आखिरकार मेरी इच्छाशक्ति की ही जीत हुई। मोच खाए पंजे और बुरी तरह दर्द करती मांसपेशियों के साथ मैं चलता रहा। लगातार करीब पचास मिनट चलने के बाद मैं अब गंगौत्री पंहुच चुका था। दस मिनट गंगौत्री के उपर चलते हुए आखिरकार होटल नजर आने लगा। मैने पोर्टर टेकराज से कहा कि वह मोबाइल से एक विडीयो शूट कर ले। डेढ बजे मैं कमरे में पंहुचा। बाकी सभी साथी वहां पंहुच चुके थे।
सभी की हालत बेहद खराब थी। लेकिन अब पडे रहने का कोई मतलब नहीं था। दस पन्द्रह मिनट बिस्तर पर गुजारने के बाद जब मैं उटा तो पैर हिलने को भी तैयार नहीं थे। पैरों से मोजे निकालने के लिए हाथों को पैरों के पास ले जाना पडता है,लेकिन वह दूरी भी बेहद लम्बी लग रही थी। पैर मुडने को तैयार नहीं थे। तभी मैने पोर्टर नवीन से कहा कि मेरे पंजों में बाम की मालिश कर दे। मालिश करवानी थी,इसलिए पैरों को कम से कम मोडते हुए मोजे उतारे और मालिश करवाई। इसी बीच गर्म पानी और चाय दोनो आ गए। चाय पीकर गर्म पानी से बढिया रगड रगड कर स्नान किया। अभी 3.10 हो चुके है। मेरे साथी अभी लौटे नहीं है। वे लौटेंगे। फिर हल्का भोजन और रवानगी। देखते हैं गंगौत्री से कब निकल पाते है...?
10 सितम्बर 2018(सोमवार)/ रात 11.10
होटल ग्रेट गंगा,गंगोरी,उत्तरकाशी
हम शाम साढे चार बजे गंगौत्री से निकल पाए। बीस मिनट तो इसलिए खराब हो गए कि अनिल और प्रकाश चाकू लेने चले गए थे। प्रकाश को सेवफल खरीद कर खाने थे और सेवफल काटने के लिए चाकू की जरुरत थी।
पौने चार बजे हम होटल से निकल गए थे। जहां मैने डायरी बन्द की थी,उसी समय मुझे याद आया कि मेरी रुद्राक्ष की माला.मैं भोजबासा में ही भूलकर आ चुका हंू। मैं डायरी लिख रहा था। मैने सोचा,भाई लोग गंगौत्री से डुबकी लगाकर निकलेंगे,होटल तक आएंगे,तब तक मैं नीचे उतर कर रुद्राक्ष की माला खरीद सकता हूं। पैर इजाजत नहीं दे रहे थे। हाथ का सहारा लेकर सीढी से नीचे उतरा,एक दो दुकानों पर पूछा। बात जमी नहीं। आगे बढता रहा,तभी सामने से हमारी गाडी आती हुई नजर आई। मैं भी गाडी में सवार हो गया और होटल आ पंहुचा। दशरथ जी ने होटल के ठीक सामने गाडी लगाई थी। हमने सारा सामान गाडी में जमाया। मैने पैरों के इंकार के बावजूद उपर के दो चक्कर लगाए। सामान पैक करने के बाद,सामने के ही रेस्टोरेन्ट में भोजन के लिए पंहुचे। मुझे खाने की कोई इच्छा नहीं थी। दशरथ जी ने आर्डर दिया। दशरथ जी और अनिल ने भोजन किया। मैने थोडे दाल चावल खाने का मूड बनाया। प्रकाश भी खाने को राजी हो गया। हमने थोडा दाल चावल खाया। उसी समय विदेशियों का एक दल वहां पंहुचा। मैं बडा हैरान हुआ,जब भोजन से पहले सभा विदेशियों ने हाथ जोड कर हिन्दू प्रार्थना की। हम निकलने को तैयार थे,लेकिन अनिल और प्रकाश चाकू लेने निकल गए। इसी दौरान मैने विदेशियों की भोजन प्रार्थना का एक विडीयो भी बनाया।
इसी दौरान मेरी आईजी संजय गुंजियाल जी से चर्चा भी हो गई। उनका सुझाव था कि हम रात उत्तरकाशी में रुक जाएं। अगले दिन टिहरी डैम देखें और फिर ऋ षिकेश पंहुचे। उन्हे मीटींग के लिए दिल्ली जाना था,इसलिए उन्होने उनके पीए संजय उप्रेती का नम्बर मुझे दिया। संजय उप्रेती से बात बहुत देर बाद हो पाई। क्योंकि यहां पहाडों में नेटवर्क की बहुत समस्या है। मेरा अंदाजा था कि हम साढे सात तक 89 किमी दूर उत्तरकाशी तक पंहुच जाएंगे। रास्ते में संजय उप्रेती जी से बात हो गई। उन्होने एसओ उत्तरकाशी का नम्बर मुझे भेज दिया। उत्तरकाशी से मात्र 20 किमी की दूरी पर थे कि उत्तरकाशी थाने से फोन आ गया। नेटवर्क की दिक्कतों के बाद पता चला कि उत्तरकाशी से करीब तीन किमी पहले गंगोरी में ग्रेट गंगा होटल में हमारे लिए कमरे बुक है। हम 7.35 पर वहां पंहुच गए।
रास्ते में कई जगह मुस्लिम चरवाहे भैंस गायों के रेवड के साथ मिले। भैंस गायों के झुण्ड के कारण रास्ते जाम हो रहे थे। समझ ही नहीं पाए कि ये आए कहां से हैं और जा कहां रहे हैं। कल पता करेंगे।
यहां ग्रेट गंगा होटल में आने के बाद ध्यान में आया कि मेरा चश्मा खो गया है। चश्मा मैने शर्ट की जेब में रखा था। गंगौत्री से चले तो रास्ते में एक जगह सेवफल लेने के लिए रुके थे। वहीं मैने कार से बाहर निकल कर जर्किन उतारी थी। चश्मा शर्ट की जेब में था। जर्किन उतारने के दौरान चश्मा शर्ट की जेब से गिर गया होगा। आगे भटवाडा में हमने काफी पी थी। वहां चश्मे का कोई उपयोग नहीं था। इसलिए चश्मा वहीं गिरा होगा जहां सेवफल लिए थे।
बहरहाल,मेरे मोबाइल में नेटवर्क अब तक नहीं आया है। प्रकाश के मोबाइल का नेटवर्क कनखू के कुछ पहले ही आ गया था। वहीं से मैने वैदेही को बता दिया था कि हम नीचे आ गए हैं। यहां उत्तरकाशी आकर आई से भी बात हो गई। वैदेही से भी बात हो गई। बडे आराम से भोजन किया। कमरे के बाहर भागीरथी जबर्दस्त शोर के साथ बह रही है। हम लोग अब सोने की तैयारी में है।
ग्रेट गंगा होटल,उत्तरकाशी
कमरे के पर्दे हटाते ही खिडकी में से गंगा मैया विकराल रुप से बहती हुई दिखाई दे रही है। कमरे का पिछला दिरवाजा खोलते ही गंगा की लहरों का शोर कमरे के भीतर आने लगता है। इस समय हम लोग तैयार होकर यहां से निकलने की तैयारी में है। अनिल वाशरुम में है,तो मैं डायरी लेकर बैठ गया। उसके आते ही मैं स्नान के लिए जाउंगा। दशरथ जी और प्रकाश जी दूसरे कमरे में हैं।
करीब अडतीस किमी की बेहद कठिन ट्रैकिंग करके लौटने के बाद पूरा शरीर हर जगह से दुख रहा है। चलना-फिरना और खास तौर पर सीढी चढना उतरना बेहद कष्टकारक लग रहा है। तीन दिन की 38 किमी की ट्रेकिंग में महने कष्ट तो उठाया,लेकिन आनन्द भी काफी लिया। पहाडों के पत्थरों में भटकने का यह शौक भी अजीब है। व्यक्ति अपना धन खर्च करता है,समय खर्च करता है और दुनिया भर के कष्ट उठाता है। जिसे ये शौक नहीं उसके लिए तो यह सरासर पागलपन है कि आदमी धन और समय दोनो खर्च करें और इसके बदले में उसे मिलेगी सिर्फ तकलीफें और पत्थर। लेकिन जिसे इसका शौक है,वही जानता है कि चौदह पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर बर्फीली हवाओं के थपेडों के बीच रहने,खाने और सोने में कितना आनन्द है। कोई फाईव स्टार या सेवन स्टार होटल भी ऐसा आनन्द नहीं दे सकता। यही कारण है कि हमारे शरीर दुख रहे हैं लेकिन खुशी इस बात की है कि हम गौमुख से साक्षात्कार करके आए है।
बहरहाल,अब यहां से निकलेंगे। इच्छा है कि टिहरी डैम देखते चले।
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छठां दिन
10 सितम्बर 2018 (सोमवार) दोपहर 2.35होटल शिव गंगा पैलेस गंगौत्री धाम
हमारी आज की ट्रेकिंग सुबह आठ बजे भोजबासा से शुरु हुई थी। कल हम गौमुख तक जाकर आए थे। आने के बाद सारा समय,उसी खतरनाक पचास मीटर के रास्ते की चर्चा होती रही,जहां से फिसलने पर मौत तय थी और फिसलने की आशंका सर्वाधिक थी। हम चारों ने ईश्वर का धन्यवाद किया कि हम उस रास्ते से उपर भी चढ गए और सही सलामत नीचे भी उतर आए। कल चूंकि गौमुख की उंचाई पर जाकर नीचे भोजबासा लौटे थे इसलिए हाई अल्टी का असर नदारद था। नींद अच्छी आना थी। कल शाम को आठ बजे पत्ता गोभी की सब्जी,दाल रोटी चावल का भोजन करके नौ बजे सौ गए थे। रात करीब डेढ बजे एक बार सभी की नींद खुली,लेकिन दोबारा नींद आई तो पांच साढे पांच तक सोते रहे। छ: बजते बजते धीरे धीरे उठे और तैयार होकर निकलने में आठ बज गए।
चीडबासा में मैने मैगी खाई दशरथजी ने आलू पराठा लिया। अनिल और प्रकाश ने बोटल वाला मीठा दूध लिया। यहां करीब आधा घण्टा आराम और नाश्ता करके फिर आगे बढे।
मेरे पैरों का दर्द और भी बढ गया था। पैर उठाने में जांघों की मांसपेशियां दर्द कर रही थी। लेकिन और कोई चारा नहीं था। कहीं बडे बडे पत्थरों वाला रास्ता,तो कहीं पहाड में बेहद संकरा रास्ता,जिस पर कोई रैंलिंग नहीं होती,पैर फिसला कि मौत तय है। बीच बीच में नालों पर बल्लियों से बनाए गए खतरनाक पुल।
कई जगहों पर सामने से आते विदेशी पर्यटक मिले। एक पौलेण्ड से था,दो-ती महिलाएं रशिया से थी। और भी कई विदेशी टकराये लेकिन मेरा सारा ध्यान पैरों पर था।
कनखू में वनविभाग की चेक पोस्ट है। गंगौत्री नेशनल पार्क में पर्यटक के प्रवेश की फीस डेढ सौ रुपए है। विदेशियों की अधिक है। इसी तरह स्टील कैमरा,मूवी कैमरा आदि की दरें निर्धारित है। बहरहाल,कनखू से गंगौत्री का रास्ता पार करना मेरे लिए और भी कठिन साबित हो रहा था। अब तो पैरों ने पूरी तरह जवाब दे दिया था। पैरों की तकलीफ और मेरी इच्छाशक्ति के बीच जबर्दस्त संघर्ष हो रहा था। आखिरकार मेरी इच्छाशक्ति की ही जीत हुई। मोच खाए पंजे और बुरी तरह दर्द करती मांसपेशियों के साथ मैं चलता रहा। लगातार करीब पचास मिनट चलने के बाद मैं अब गंगौत्री पंहुच चुका था। दस मिनट गंगौत्री के उपर चलते हुए आखिरकार होटल नजर आने लगा। मैने पोर्टर टेकराज से कहा कि वह मोबाइल से एक विडीयो शूट कर ले। डेढ बजे मैं कमरे में पंहुचा। बाकी सभी साथी वहां पंहुच चुके थे।
सभी की हालत बेहद खराब थी। लेकिन अब पडे रहने का कोई मतलब नहीं था। दस पन्द्रह मिनट बिस्तर पर गुजारने के बाद जब मैं उटा तो पैर हिलने को भी तैयार नहीं थे। पैरों से मोजे निकालने के लिए हाथों को पैरों के पास ले जाना पडता है,लेकिन वह दूरी भी बेहद लम्बी लग रही थी। पैर मुडने को तैयार नहीं थे। तभी मैने पोर्टर नवीन से कहा कि मेरे पंजों में बाम की मालिश कर दे। मालिश करवानी थी,इसलिए पैरों को कम से कम मोडते हुए मोजे उतारे और मालिश करवाई। इसी बीच गर्म पानी और चाय दोनो आ गए। चाय पीकर गर्म पानी से बढिया रगड रगड कर स्नान किया। अभी 3.10 हो चुके है। मेरे साथी अभी लौटे नहीं है। वे लौटेंगे। फिर हल्का भोजन और रवानगी। देखते हैं गंगौत्री से कब निकल पाते है...?
10 सितम्बर 2018(सोमवार)/ रात 11.10
होटल ग्रेट गंगा,गंगोरी,उत्तरकाशी
हम शाम साढे चार बजे गंगौत्री से निकल पाए। बीस मिनट तो इसलिए खराब हो गए कि अनिल और प्रकाश चाकू लेने चले गए थे। प्रकाश को सेवफल खरीद कर खाने थे और सेवफल काटने के लिए चाकू की जरुरत थी।
इसी दौरान मेरी आईजी संजय गुंजियाल जी से चर्चा भी हो गई। उनका सुझाव था कि हम रात उत्तरकाशी में रुक जाएं। अगले दिन टिहरी डैम देखें और फिर ऋ षिकेश पंहुचे। उन्हे मीटींग के लिए दिल्ली जाना था,इसलिए उन्होने उनके पीए संजय उप्रेती का नम्बर मुझे दिया। संजय उप्रेती से बात बहुत देर बाद हो पाई। क्योंकि यहां पहाडों में नेटवर्क की बहुत समस्या है। मेरा अंदाजा था कि हम साढे सात तक 89 किमी दूर उत्तरकाशी तक पंहुच जाएंगे। रास्ते में संजय उप्रेती जी से बात हो गई। उन्होने एसओ उत्तरकाशी का नम्बर मुझे भेज दिया। उत्तरकाशी से मात्र 20 किमी की दूरी पर थे कि उत्तरकाशी थाने से फोन आ गया। नेटवर्क की दिक्कतों के बाद पता चला कि उत्तरकाशी से करीब तीन किमी पहले गंगोरी में ग्रेट गंगा होटल में हमारे लिए कमरे बुक है। हम 7.35 पर वहां पंहुच गए।
रास्ते में कई जगह मुस्लिम चरवाहे भैंस गायों के रेवड के साथ मिले। भैंस गायों के झुण्ड के कारण रास्ते जाम हो रहे थे। समझ ही नहीं पाए कि ये आए कहां से हैं और जा कहां रहे हैं। कल पता करेंगे।
यहां ग्रेट गंगा होटल में आने के बाद ध्यान में आया कि मेरा चश्मा खो गया है। चश्मा मैने शर्ट की जेब में रखा था। गंगौत्री से चले तो रास्ते में एक जगह सेवफल लेने के लिए रुके थे। वहीं मैने कार से बाहर निकल कर जर्किन उतारी थी। चश्मा शर्ट की जेब में था। जर्किन उतारने के दौरान चश्मा शर्ट की जेब से गिर गया होगा। आगे भटवाडा में हमने काफी पी थी। वहां चश्मे का कोई उपयोग नहीं था। इसलिए चश्मा वहीं गिरा होगा जहां सेवफल लिए थे।
बहरहाल,मेरे मोबाइल में नेटवर्क अब तक नहीं आया है। प्रकाश के मोबाइल का नेटवर्क कनखू के कुछ पहले ही आ गया था। वहीं से मैने वैदेही को बता दिया था कि हम नीचे आ गए हैं। यहां उत्तरकाशी आकर आई से भी बात हो गई। वैदेही से भी बात हो गई। बडे आराम से भोजन किया। कमरे के बाहर भागीरथी जबर्दस्त शोर के साथ बह रही है। हम लोग अब सोने की तैयारी में है।
सातवां दिन
11 सितम्बर 2018 मंगलवार/सुबह 8.15ग्रेट गंगा होटल,उत्तरकाशी
कमरे के पर्दे हटाते ही खिडकी में से गंगा मैया विकराल रुप से बहती हुई दिखाई दे रही है। कमरे का पिछला दिरवाजा खोलते ही गंगा की लहरों का शोर कमरे के भीतर आने लगता है। इस समय हम लोग तैयार होकर यहां से निकलने की तैयारी में है। अनिल वाशरुम में है,तो मैं डायरी लेकर बैठ गया। उसके आते ही मैं स्नान के लिए जाउंगा। दशरथ जी और प्रकाश जी दूसरे कमरे में हैं।
करीब अडतीस किमी की बेहद कठिन ट्रैकिंग करके लौटने के बाद पूरा शरीर हर जगह से दुख रहा है। चलना-फिरना और खास तौर पर सीढी चढना उतरना बेहद कष्टकारक लग रहा है। तीन दिन की 38 किमी की ट्रेकिंग में महने कष्ट तो उठाया,लेकिन आनन्द भी काफी लिया। पहाडों के पत्थरों में भटकने का यह शौक भी अजीब है। व्यक्ति अपना धन खर्च करता है,समय खर्च करता है और दुनिया भर के कष्ट उठाता है। जिसे ये शौक नहीं उसके लिए तो यह सरासर पागलपन है कि आदमी धन और समय दोनो खर्च करें और इसके बदले में उसे मिलेगी सिर्फ तकलीफें और पत्थर। लेकिन जिसे इसका शौक है,वही जानता है कि चौदह पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर बर्फीली हवाओं के थपेडों के बीच रहने,खाने और सोने में कितना आनन्द है। कोई फाईव स्टार या सेवन स्टार होटल भी ऐसा आनन्द नहीं दे सकता। यही कारण है कि हमारे शरीर दुख रहे हैं लेकिन खुशी इस बात की है कि हम गौमुख से साक्षात्कार करके आए है।
बहरहाल,अब यहां से निकलेंगे। इच्छा है कि टिहरी डैम देखते चले।
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