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अतिथी होटल (हरिद्वार-दिल्ली हाईवे)
सभी उठ चुके है। विचार है कि यहां से साढे आठ तक निकल चलें। आज दिल्ली से होते हुए शाम तक अजमेर पंहुच जाएं,ताकि पुष्कर के दर्शन करके फिर रतलाम की ओर बढ सकें। इस समय सभी लोग निकलने की तैयारी में है।
होटल कृष्णा पैलेस,पुष्कर(राज.)
इस वक्त मैं पुष्कर के इस होटल में स्नान के लिए अपनी बाल्टी का इंतजार कर रहा हूं। बीती रात साढे नौ बजे हम इस होटल पर पंहुचे थे।
कल हमारी यात्रा अतिथी होटल से सुबह 8.50 पर प्रारंभ हो गई थी। होटल से निकले और करीब दस किमी आगे जाकर एक ढाबे पर हमने आलू और प्याज के दो दो पराठे मंगवा कर नाश्ता किया। नाश्ता करने वाले हम तीन यानी मै,दशरथ जी और अनिल ही थे. प्रकाश ने नाश्ता नहीं किया। जब से यात्रा शुरु हुई है,वह दिन भर कम से कम खाता है। बल्कि भोजन की बजाय फल इत्यादि खाता है। इसलिए मैने उसका नाम फलाहारी बाबा रख दिया है।
बहरहाल नाश्ता करके चले,उत्तरांचल को छोडते हुए हम हरियाणा में घुस गए। पूरे रास्ते में खराब सडक़ें और जबर्दस्त ट्रैफिक। करीब साढे ग्यारह बजे सडक़ किनारे रुक कर प्रकाश ने केले और सेवफल लिए,हमने चाय पी। अब दिल्ली ज्यादा दूर नहीं थी। इस बार हमने दिल्ली होकर लौटने का निर्णय किया था। गाजियाबाद आ गया तो समझिए दिल्ली आ गई। गाजियाबाद पार कर दिल्ली में में घुसे। गूगल गुरु की मदद से अकबर रोड,तीनमूर्ति मार्ग,सरदार पटेल मार्ग होते हुए अपेक्षाकृत बेहद आसानी से दिल्ली से बाहर हो गए। दिल्ली से निकलने में एक या दो जगहों पर छोटी मोटी दिक्कतें आई,लेकिन कुल मिलाकर ठीक ही रहा। उत्तरांचल से उत्तरप्रदेश होते हुए हरियाणा पार करते हुए आगे बढे।
दोपहर करीब ढाई बजे हरियाणा की सीमा में ही,जयपुर से करीब डेढ सौ किमी पहले एक ढाबे पर रुक कर दोपहर का भोजन किया। आज का पूरा दिन ही गाडी में गुजारना था। फिर जयपुर को पार करते हुए अजमेर की ओर बढ गए। आसपास के दृश्य बदलते जा रहे थे। पहले खेतों में गन्ने खडे नजर आ रहे थे,अब दूसरी तरह के खेत दिखाई दे रहे हैं। करीब बारह घण्टे लगातार चलने और साढे तीन सौ किमी की दूरी तय करके रात को साढे नौ बजे पुष्कर से करीब तीन किमी पहले इस होटल में पंहुचे।
यहां आकर आशुतोष और रतलाम में टोनी और प्रतीक से बात हुई। आज शाम को सबको मन्दसौर बुलाया जा रहा है। उम्मीद है कि शाम तक मन्दसौर पंहुच जाएंगे। अभी पुष्कर के दर्शन करना है।
20 सितम्बर 2018(शाम 5.30)
इ खबरटुडे आफिस,रतलाम।
यात्रा से लौटे हुए लगभग छ: दिन हो चुके है। यात्रा के समापन की कहानी रतलाम में ही लिखी जानी थी,लेकिन रतलाम आते ही कई सारे उलझे हुए मामलों में उलझना पडा। इसलिए मौका ही नहीं मिल पाया कि समापन की कहानी लिखी जा सके। आज इस वक्त अचानक मूड बना,कम्प्यूटर पर लिखने के लिए डायरी निकाली तो पता चला कि समापन की कथा अभी बाकी ही रह गई है। इसलिए पहले डायरी लिखना शुरु किया। अब अपनी यादों के सहारे लिखता हूं।
पुष्कर के कृष्णा पैलेस होटल में सुबह उठने के बाद जो सबसे अच्छी बात हुई वह यह थी कि मुझे नीम का पेड नजर आ गया। पिछले दस दिनों से पेस्ट और टूथ ब्रश के कारण मुंह की हालत खराब हो गई थी। होटल से कुछ ही दूर नीम का पेड था। फौरन जाकर एक टहनी तोडी और दातून शुरु की। सचमुच मजा आ गया।
दूसरी बढिया बात यह हुई कि होटल वाले ने नाश्तें में पोहे खिलाने का प्रस्ताव रखा। यह सुनकर भी मजा आ गया। कई दिनों बाद पोहे खाने को मिल रहे थे। हम स्नानादि से निवृत्त हुए तो साढे नौ बज गए थे। होटल वाला चार प्लेट पोहे ले आया। प्लेट बेहद बडी और पूरी भरी हुई थी। रतलामी सेव साथ ही थी। सेव के साथ पोहे खाने में मजा आ गया। पोहे इतने ज्यादा थे कि अब भोजन की जरुरत ही नहीं बची थी।
पोहे खाकर पुष्कर दर्शन के लिए निकले। कहते हैं पूरे भारत में ब्रम्हा जी का एकमात्र मन्दिर यहीं है। वैसे राजस्थान में ब्रम्हखेड नामक स्थान पर भी ब्रम्हा जी का मन्दिर है। मैं वहां भी गया हूं,लेकिन वह प्राचीन नहीं है। पुष्कर में एक सरोवर है। कई सालों पहले जब मैं यहां आया था,तब इस तालाब की हालत बेहद खराब थी और पानी बेहद गन्दा। मैने तब स्नान भी नहीं किया था। लेकिन अब यह तालाब बेहद सुन्दर और स्वच्छ हो चुका है। चारों ओर से अतिक्रमण हट चुके हैं और पक्के घाट बन गए हैं। पानी साफ है नहाने लायक,लेकिन हम तो नहाए हुए थे।
जब होटल से निकले थे,तो एक लडका गाइड बनकर लटक गया। उसके मार्गदर्शन में गाडी भीतर तक ले गए। गाडी पार्क करके पहले पुष्कर सरोवर पर पंहुचे। एक पण्डित आ गया पूजा पाठ करने मैने झिडक दिया,लेकिन प्रकाश,पूजा करने को राजी हो गया। पन्द्रह बीस मिनट तक पूजा पाठ चली। तब तक मैं सरोवर से फेसबुक लाइव करता रहा। सरोवर से निपट कर अब हम ब्रम्हा मन्दिर की ओर चल पडे। पौराणिक कथा यह है कि विद्या की देवी सरस्वती,ब्रम्हा की पुत्री थी,ब्रम्हा जी उसी पर मोहित हो गए। इसलिए उन्हे श्राप मिला कि उनके मन्दिर नहीं बनाए जाएंगे। पूरे संसार में ब्रम्हा जी का एक ही मन्दिर होगा।
मन्दिर बहुत उंचा है। कई सीढियां चढकर मन्दिर में जाना पडता है। हम भी पंहुचे। दर्शन इत्यादि करके जल्दी ही बाहर आ गए। पुष्कर बहुत ही प्रसिध्द स्थल है। यहां विदेशी बडी संख्या में आते हैं। इसी वजह से यहां राजस्थानी हस्तकला की वस्तुओं की दुकानों की भरमार हैं। इसके अलावा यहां की एक खासियत और भी है। यहां तलवार,गुप्ती आदि की कई दुकानें हैं। यहां इनकी खरीद बिक्री पर कोई रोक नहीं है। हम हथियार देखने एक दुकान पर रुके। काले पाइप में बनी एक गुप्ती बेहद पसन्द आई। भाव ताव करके एक हजार रुपए में चार गुप्तियां खरीदी। फिर तलवार खरीदने पर बात आई। चमडे की म्यान वाली एक तलवार दुकानदार सात सौ में देने को राजी हो गया। लेकिन हम छ:सौ पर अटक गए। सौदा नहीं पटा। इसी तरह की तलवारें दूसरी दुकानों पर देखी,तो कोई भी हजार रुपए से कम में देने को राजी नहीं हुआ। आखिरकार तलवार नहीं खरीदी।अब यहां से रवानगी का वक्त था। करीब बारह बजे हम पुष्कर से रवाना हो गए। हमारी अगली मंजिल थी सांवरिया जी। अजमेर से सांवरिया जी का रास्ता करीब चार घण्टे का है। हम करीब तीन बजे रास्ते के एक ढाबे पर भोजन करने रुके और करीब साढे चार बजे सांवरिया जी पंहुच गए। मन्दिर का परकोटा पूरा बन चुका है। बगल के द्वार से प्रवेश करके पूरे परकोटे का चक्कर लगाकर मन्दिर तक पंहुचना पडता है। परकोटे में कृष्ण से सम्बन्धित अलग अलग कलाकारों की पेन्टिंग्स लगाई गई है। पेन्टिंग्स देखते हुए मन्दिर के गर्भगृह में पंहुचे और दर्शन करके बाहर निकले। हमें प्रसाद लेना था। प्रसाद काउण्टर पर भारी भीड थी। प्रसाद लेने में काफी समय लगा और अब करीब छ: बज चुके थे। हमने मन्दसौर सात बजे तक पंहुचने का लक्ष्य रखा था। रतलाम से टोनी,संतोष जी और नायडू मन्दसौर पंहुच रहे थे। अब करीब सवा छ: बज चुके थे। सांवरिया जी से निकले तो मन्दसौर पंहुचते पंहुचते आठ बज चुके थे। मन्दसौर के सांवरिया ढाबे पर सभी मित्र इंतजार कर रहे थे। पंहुचते ही सबसे गले मिले,फोटो खींचे। भोजन आदि करते कराते रात के साढे दस बज गए। अब रतलाम पंहुचने की बारी थी। मन्दसौर से जावरा पंहुचे और चूंकि अनिल को सैलाना छोडना था इसलिए पिपलौदा होते हुए सैलाना पंहुचे। अनिल को छोडकर रतलाम पंहुचे। अलकापुरी में प्रकाश को छोडा। दशरथ जी ने मुझे घर छोढा। घर पर ताला मेरा इन्तजार कर रहा था,क्योंकि आई दादा और वैदेही भोपाल गए हुए थे,जो अभी लौटे नहीं थे। मैं कमरे में पंहुचा और मेरी यात्रा पूरी हुई। दशरथ जी नगरा के लिए रवाना हो गए।
इस तरह गंगौत्री से गौमुख की ट्रैकिंग घुटनों की तकलीफ के बावजूद पूरी हुई। तपोवन नहीं जा पाए,जिसका मलाल हमें हमेशा रहेगा।
इति......।
दसवां दिन
14 सितम्बर 2018 शुक्रवार (सुबह 7.30)अतिथी होटल (हरिद्वार-दिल्ली हाईवे)
सभी उठ चुके है। विचार है कि यहां से साढे आठ तक निकल चलें। आज दिल्ली से होते हुए शाम तक अजमेर पंहुच जाएं,ताकि पुष्कर के दर्शन करके फिर रतलाम की ओर बढ सकें। इस समय सभी लोग निकलने की तैयारी में है।
ग्यारहवां दिन
15 सितम्बर 2018 शनिवार/सुबह 8.15होटल कृष्णा पैलेस,पुष्कर(राज.)
इस वक्त मैं पुष्कर के इस होटल में स्नान के लिए अपनी बाल्टी का इंतजार कर रहा हूं। बीती रात साढे नौ बजे हम इस होटल पर पंहुचे थे।
कल हमारी यात्रा अतिथी होटल से सुबह 8.50 पर प्रारंभ हो गई थी। होटल से निकले और करीब दस किमी आगे जाकर एक ढाबे पर हमने आलू और प्याज के दो दो पराठे मंगवा कर नाश्ता किया। नाश्ता करने वाले हम तीन यानी मै,दशरथ जी और अनिल ही थे. प्रकाश ने नाश्ता नहीं किया। जब से यात्रा शुरु हुई है,वह दिन भर कम से कम खाता है। बल्कि भोजन की बजाय फल इत्यादि खाता है। इसलिए मैने उसका नाम फलाहारी बाबा रख दिया है।
बहरहाल नाश्ता करके चले,उत्तरांचल को छोडते हुए हम हरियाणा में घुस गए। पूरे रास्ते में खराब सडक़ें और जबर्दस्त ट्रैफिक। करीब साढे ग्यारह बजे सडक़ किनारे रुक कर प्रकाश ने केले और सेवफल लिए,हमने चाय पी। अब दिल्ली ज्यादा दूर नहीं थी। इस बार हमने दिल्ली होकर लौटने का निर्णय किया था। गाजियाबाद आ गया तो समझिए दिल्ली आ गई। गाजियाबाद पार कर दिल्ली में में घुसे। गूगल गुरु की मदद से अकबर रोड,तीनमूर्ति मार्ग,सरदार पटेल मार्ग होते हुए अपेक्षाकृत बेहद आसानी से दिल्ली से बाहर हो गए। दिल्ली से निकलने में एक या दो जगहों पर छोटी मोटी दिक्कतें आई,लेकिन कुल मिलाकर ठीक ही रहा। उत्तरांचल से उत्तरप्रदेश होते हुए हरियाणा पार करते हुए आगे बढे।
दोपहर करीब ढाई बजे हरियाणा की सीमा में ही,जयपुर से करीब डेढ सौ किमी पहले एक ढाबे पर रुक कर दोपहर का भोजन किया। आज का पूरा दिन ही गाडी में गुजारना था। फिर जयपुर को पार करते हुए अजमेर की ओर बढ गए। आसपास के दृश्य बदलते जा रहे थे। पहले खेतों में गन्ने खडे नजर आ रहे थे,अब दूसरी तरह के खेत दिखाई दे रहे हैं। करीब बारह घण्टे लगातार चलने और साढे तीन सौ किमी की दूरी तय करके रात को साढे नौ बजे पुष्कर से करीब तीन किमी पहले इस होटल में पंहुचे।
यहां आकर आशुतोष और रतलाम में टोनी और प्रतीक से बात हुई। आज शाम को सबको मन्दसौर बुलाया जा रहा है। उम्मीद है कि शाम तक मन्दसौर पंहुच जाएंगे। अभी पुष्कर के दर्शन करना है।
20 सितम्बर 2018(शाम 5.30)
इ खबरटुडे आफिस,रतलाम।
यात्रा से लौटे हुए लगभग छ: दिन हो चुके है। यात्रा के समापन की कहानी रतलाम में ही लिखी जानी थी,लेकिन रतलाम आते ही कई सारे उलझे हुए मामलों में उलझना पडा। इसलिए मौका ही नहीं मिल पाया कि समापन की कहानी लिखी जा सके। आज इस वक्त अचानक मूड बना,कम्प्यूटर पर लिखने के लिए डायरी निकाली तो पता चला कि समापन की कथा अभी बाकी ही रह गई है। इसलिए पहले डायरी लिखना शुरु किया। अब अपनी यादों के सहारे लिखता हूं।
पुष्कर के कृष्णा पैलेस होटल में सुबह उठने के बाद जो सबसे अच्छी बात हुई वह यह थी कि मुझे नीम का पेड नजर आ गया। पिछले दस दिनों से पेस्ट और टूथ ब्रश के कारण मुंह की हालत खराब हो गई थी। होटल से कुछ ही दूर नीम का पेड था। फौरन जाकर एक टहनी तोडी और दातून शुरु की। सचमुच मजा आ गया।
दूसरी बढिया बात यह हुई कि होटल वाले ने नाश्तें में पोहे खिलाने का प्रस्ताव रखा। यह सुनकर भी मजा आ गया। कई दिनों बाद पोहे खाने को मिल रहे थे। हम स्नानादि से निवृत्त हुए तो साढे नौ बज गए थे। होटल वाला चार प्लेट पोहे ले आया। प्लेट बेहद बडी और पूरी भरी हुई थी। रतलामी सेव साथ ही थी। सेव के साथ पोहे खाने में मजा आ गया। पोहे इतने ज्यादा थे कि अब भोजन की जरुरत ही नहीं बची थी।
पोहे खाकर पुष्कर दर्शन के लिए निकले। कहते हैं पूरे भारत में ब्रम्हा जी का एकमात्र मन्दिर यहीं है। वैसे राजस्थान में ब्रम्हखेड नामक स्थान पर भी ब्रम्हा जी का मन्दिर है। मैं वहां भी गया हूं,लेकिन वह प्राचीन नहीं है। पुष्कर में एक सरोवर है। कई सालों पहले जब मैं यहां आया था,तब इस तालाब की हालत बेहद खराब थी और पानी बेहद गन्दा। मैने तब स्नान भी नहीं किया था। लेकिन अब यह तालाब बेहद सुन्दर और स्वच्छ हो चुका है। चारों ओर से अतिक्रमण हट चुके हैं और पक्के घाट बन गए हैं। पानी साफ है नहाने लायक,लेकिन हम तो नहाए हुए थे।
जब होटल से निकले थे,तो एक लडका गाइड बनकर लटक गया। उसके मार्गदर्शन में गाडी भीतर तक ले गए। गाडी पार्क करके पहले पुष्कर सरोवर पर पंहुचे। एक पण्डित आ गया पूजा पाठ करने मैने झिडक दिया,लेकिन प्रकाश,पूजा करने को राजी हो गया। पन्द्रह बीस मिनट तक पूजा पाठ चली। तब तक मैं सरोवर से फेसबुक लाइव करता रहा। सरोवर से निपट कर अब हम ब्रम्हा मन्दिर की ओर चल पडे। पौराणिक कथा यह है कि विद्या की देवी सरस्वती,ब्रम्हा की पुत्री थी,ब्रम्हा जी उसी पर मोहित हो गए। इसलिए उन्हे श्राप मिला कि उनके मन्दिर नहीं बनाए जाएंगे। पूरे संसार में ब्रम्हा जी का एक ही मन्दिर होगा।
मन्दिर बहुत उंचा है। कई सीढियां चढकर मन्दिर में जाना पडता है। हम भी पंहुचे। दर्शन इत्यादि करके जल्दी ही बाहर आ गए। पुष्कर बहुत ही प्रसिध्द स्थल है। यहां विदेशी बडी संख्या में आते हैं। इसी वजह से यहां राजस्थानी हस्तकला की वस्तुओं की दुकानों की भरमार हैं। इसके अलावा यहां की एक खासियत और भी है। यहां तलवार,गुप्ती आदि की कई दुकानें हैं। यहां इनकी खरीद बिक्री पर कोई रोक नहीं है। हम हथियार देखने एक दुकान पर रुके। काले पाइप में बनी एक गुप्ती बेहद पसन्द आई। भाव ताव करके एक हजार रुपए में चार गुप्तियां खरीदी। फिर तलवार खरीदने पर बात आई। चमडे की म्यान वाली एक तलवार दुकानदार सात सौ में देने को राजी हो गया। लेकिन हम छ:सौ पर अटक गए। सौदा नहीं पटा। इसी तरह की तलवारें दूसरी दुकानों पर देखी,तो कोई भी हजार रुपए से कम में देने को राजी नहीं हुआ। आखिरकार तलवार नहीं खरीदी।अब यहां से रवानगी का वक्त था। करीब बारह बजे हम पुष्कर से रवाना हो गए। हमारी अगली मंजिल थी सांवरिया जी। अजमेर से सांवरिया जी का रास्ता करीब चार घण्टे का है। हम करीब तीन बजे रास्ते के एक ढाबे पर भोजन करने रुके और करीब साढे चार बजे सांवरिया जी पंहुच गए। मन्दिर का परकोटा पूरा बन चुका है। बगल के द्वार से प्रवेश करके पूरे परकोटे का चक्कर लगाकर मन्दिर तक पंहुचना पडता है। परकोटे में कृष्ण से सम्बन्धित अलग अलग कलाकारों की पेन्टिंग्स लगाई गई है। पेन्टिंग्स देखते हुए मन्दिर के गर्भगृह में पंहुचे और दर्शन करके बाहर निकले। हमें प्रसाद लेना था। प्रसाद काउण्टर पर भारी भीड थी। प्रसाद लेने में काफी समय लगा और अब करीब छ: बज चुके थे। हमने मन्दसौर सात बजे तक पंहुचने का लक्ष्य रखा था। रतलाम से टोनी,संतोष जी और नायडू मन्दसौर पंहुच रहे थे। अब करीब सवा छ: बज चुके थे। सांवरिया जी से निकले तो मन्दसौर पंहुचते पंहुचते आठ बज चुके थे। मन्दसौर के सांवरिया ढाबे पर सभी मित्र इंतजार कर रहे थे। पंहुचते ही सबसे गले मिले,फोटो खींचे। भोजन आदि करते कराते रात के साढे दस बज गए। अब रतलाम पंहुचने की बारी थी। मन्दसौर से जावरा पंहुचे और चूंकि अनिल को सैलाना छोडना था इसलिए पिपलौदा होते हुए सैलाना पंहुचे। अनिल को छोडकर रतलाम पंहुचे। अलकापुरी में प्रकाश को छोडा। दशरथ जी ने मुझे घर छोढा। घर पर ताला मेरा इन्तजार कर रहा था,क्योंकि आई दादा और वैदेही भोपाल गए हुए थे,जो अभी लौटे नहीं थे। मैं कमरे में पंहुचा और मेरी यात्रा पूरी हुई। दशरथ जी नगरा के लिए रवाना हो गए।
इस तरह गंगौत्री से गौमुख की ट्रैकिंग घुटनों की तकलीफ के बावजूद पूरी हुई। तपोवन नहीं जा पाए,जिसका मलाल हमें हमेशा रहेगा।
इति......।
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