गणेश जी की साक्षी में मल्लिकार्जुन के प्रथम दर्शन
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार/रात 10.30
चंदेश्वरा सदन श्री शैलम देवस्थान
श्री शैलम मल्लिकार्जुन देवस्थान के चंदेश्वरा सदन में इस वक्त हम सोने की तैयारी कर रहे हैं।
आज सुबह सबकुछ समय से हुआ। नौ बजे जेबीएस(जुबली बस स्टाप) से बस पकडना थी। जेबीएस पंकज के
घर के नजदीक ही है। लेकिन निकलते निकलते 8.40 हो गए थे। सडक़ पर ट्रैफिक जबर्दस्त था। पंकज दो चक्कर में हमें छोडने वाला था। पहले राउण्ड में मैं,वैदेही और दादा सारा सामान लेकर निकले। रास्ते में ट्रैफिक की स्थिति और समय की कमी को देखते हुए मैने प्रतिमा ताई को फोन किया कि वे आटो से निकल आएं। हम लोग बस स्टाप पर पंहुचे,तब 8.55 हो चुके थे। बस का प्लेटफार्म ढूंढा। वहां पंहुचे तो पता चला कि बस अभी आई नहीं है। मैने राहत की सांस ली।
कुछ ही देर में आई और ताई भी आ गए। उनके साथ मोनाली भी आई थी।
सब लोग आ गए,तब बस आई। छोटी सी एसी बस थी,जिसे वज्र कहते है। यह सरकारी बस है,इसकी बुकींग आनलाईन होती है। हमारी पांच सीटे बुक थी। बस में हमारे अलावा मात्र दो तीन लोग और थे।
बस चली,करीब डेढ घण्टे तो बस हैदराबाद में ही घूमती रही। श्री शैलम यहां से 230 किमी दूर है। लेकिन समय
करीब छ: घण्टे लगता है। यहां से एक सौ तीस किमी रास्ता तो समतल है। यह दूरी 12.15 तक तय हो गई। वहीं एक होटल पर बस रुकी,जहां हमने राइस प्लेट का नाश्ता/भोजन किया। घर से नाश्ता करके ही चले थे। इसके आगे का रास्ता अब पहाडी रास्ता था। यहीं से नागार्जुनसागर अभयारण्य (टाइगर रिजर्व) प्रारंभ होता है। पहाडी टेढा मेढा रास्ता,घनघोर जंगल। जंगल में बन्दरों की भरमार। जगह जगह सडक़ पर कब्जा जमाए बैठे बन्दर नजर आते है। हैदराबाद से श्री शैलम तक का पूरा रास्ता शानदार है। एसी बस की आरामदायक सीटों पर उंघते आंघते सफर चलता रहा। पहाडी रास्ते पर कृष्णा नदी पर बना एक बानध् भी नजर आया,लेकिन इसका नाम समझ में नहीं आया,क्योंकि अधिकांश बोर्ड स्थानीय भाषा में है। हिन्दी या अंग्रेजी का उपयोग बहुत कम है। बहरहाल इस बान्ध को पार करके करीब आधे पौने घण्टे बाद ही हम श्री शैलम पंहुच गए। प्रवेश करते ही शिव पार्वती और नन्दी की विशाल मूर्तियां नजर आती है। सुन्दर सडक़ें,आकर्षक उद्यान। देखते ही मन खुश हो जाता है। बस ने हमें मुख्य चौराहे यानी सेन्ट्रल रिसेप्शन आफिस(सीआरओ) पर उतार दिया। वहां उतरे तो आटो वाला मिल गया जिसने पचास रु. में हमें चांदीश्वरा सदन पर पंहुचा दिया। हम सवा तीन बजे यहां पंहुच गए। यहां पंहुचे तो पता चला बुकींग कन्फर्मेशन सीआरओ से ही होगी। बाकी सभी को वहीं छोडकर उसी आटो से मैं सीआरओ आफिस पंहुचा। आनलाईन बुकींग की स्लिप दिखाई तो उसने दो हजार रु.एडवान्स लेकर बुकींग के टिकट दे दिए। जब मैं इन्हे लेकर वापस पंहुचा,तो जाकर हमें कमरों की चाबियां मिल पाई।
कमरों में सामान टिका कर घर से लाई हुई पुडियों का नाश्ता करके चार बजे मन्दिर का दर्शन करने निकले। नीचे रिसेप्शन पर हमें बताया गया कि मन्दिर में दर्शन छ: बजे होंगे। तब तक हम लोकर साईट सीइंग कर सकते थे। उसी समय एक आटो वाला आ गया,जिसने चार सौ रुपए में साईट सीइंग पर हामी भरी।
आटो में सवार हुए तो सबसे पहले साक्षी गणेश मन्दिर पंहुचे। यह करीब तेरह सौ वर्ष पुराना मन्दिर है। यहां गणेश जी की काली प्रतिमा है। गणेश जी हाथ में कलम और डायरी लेकर बैठे है। कहते है कि शैलम के दर्शन की साक्षी गणेश जी ही देते है,इसलिए इनके दर्शन के बगैर श्री शैलम के दर्शनों का कोई महत्व नहीं है। यहां से चले तो हाटकेश्वर मन्दिर और ललिता देवी के मन्दिरों में दर्शन किए। ये दोनो भी प्राचीन मन्दिर है। यहां से आगे बढे तो शंकराचार्य मन्दिर या गुफा आ गई। यह स्थान काफी गहराई में है। यहां झरना बहता है,जिसे फलधारा कहते है। आदि शंकराचार्य जी ने यहां दो प्रसिध्द रचनाएं की,जिनका नाम शिवनन्दन लहरी और सौन्दर्य लहरी है। कहते हैं फलधारा और पंचधारा शिव के मस्तक और शिव के पांच रुपों से निकली है।
यहां से आगे बढे तो शिखरेश्वर पंहुचे। यह श्री शैलम से 9 किमी दूरी पर स्थित अत्यन्त प्राचीन स्थल है। यह इस क्षेत्र का सबसे उंचा स्थान है,जो करीब 2800 फीट की उंचाई पर है। शिखरेश्वर में सबसे उंचे स्थान पर नन्दी की छोटी सी मूर्ति है। नंदी के दोनो सिंगो के बीच में से देखने पर मल्लिकार्जुन मन्दिर के स्वर्णशिखर नजर आते है। नीचे शिवजी का मन्दिर भी है। यहां के दर्शन के बाद चले। अब वापसी का सफर था। आटो वाले ने हमें मल्लिकार्जुन मन्दिर के पास लाकर उतार दिया। इस वक्त शाम के सवा छ: बज चुके थे।
दर्शन के लिए जाने से पहले,जूते चप्पल फ्रीस्टैण्ड पर छोडे। यहां पास में मोबाइल जमा करने होते है। यहीं क्लाक रुम भी है,जहां सामान रखा जा सकता है। मोबाइल जमा कराए तो पता चला कि वरिष्ठ नागरिकों के दर्शन के लिए अलग से व्यवस्था है। प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक के साथ एक सहायक को जाने की अनुमति है। वैदेही और प्रतिमा ताई,आई दादा के साथ चले गए। मैं फ्री दर्शन का पास लेकर भीतर चला गया। मुझे लगा था कि भीड नहीं है,तो बडी आसानी से दर्शन हो जाएंगे। भीतर पंहुचा तो पता चला कि यहां भी तिरुपति बालाजी जैसे वेटिंग हाल बने हुए है। एक हाल पूरा भरा हुआ था। मैं इसके पास वाले हाल में जाकर बैठ गया। थोडी देर में इस हाल में भी कई लोग जमा हो गए। करीब पौन घण्टे बाद पहले हाल का गेट खुला और कई सारे लोग भीतर प्रवेश कर गए। इसके बाद फिर दरवाजा बन्द हो गया। मैने घडी देखी तो साढे सात हो चुके थे। मैं बोर हो गया था। मैं बाहर निकल आया। बाहर निकला तो पता चला कि डेढ सौ रुपए में वीआईपी दर्शन की व्यवस्था है। मैने डेढ सौ रुपए का एक टिकट लिया और भीतर पंहुचा। करीब पन्द्रह मिनट के इंतजार के बाद भीतर प्रवेश मिला। लम्बा रास्ता तय करके मुख्य मन्दिर के प्रवेश द्वार पर पंहुचा। आई,दादा,प्रतिमा ताई भी वहीं नजर आ गए। मन्दिर के मुख्य द्वार का चैनल बन्द था और भीतर आरती चल रही थी। करीब पन्द्रह मिनट के बाद चैनल खुला। हमने भीतर गर्भगृह में प्रवेश किया। हांलाकि दर्शन दूर से ही करने होते है। शिवलिंग को छू नहीं सकते। दर्शन करके अगला मन्दिर भ्रमराम्बा देवी(आदिशक्ति) का है। इसमें प्रवेश किया। इस मन्दिर के दर्शन के बाद सीधे बाहर निकलने का रास्ता है। यह रास्ता मन्दिर के पीछे निकलता है। हम चारों बाहर आ गए। वैदेही मन्दिर में दर्शनं करने नहीं आई थी। वह कल दर्शन करेगी।
आई दादा बुरी तरह थक चुके थे। मन्दिर का परिसर बेहद विशालकाय है। भीतर ही भीतर काफी चलना पडता है। बाहर निकलने के बाद जूता स्टैण्ड तक आने में भी काफी समय लगा। 8.40 हो चुके थे। भूख भी लग आई थी। देवस्थानम से थोडा आगे बढते ही मन्दिर प्रशासन का ही केन्टीन है। यहां मसाला डोसा का भोजन किया। बाहर निकले तो कुछ ही मिनटों में आटो मिल गया,जिसने हमें चंदेश्वरा सदन छोड दिया।
कुछ दवाएं लेना थी,इसलिए मैं और वैदेही इसी आटो से फिर से सीआरओ आफिस पंहुचे। यह मन्दिर प्रशासन का ही विशाल शापिंग काम्प्लेक्स है,जिसके पहले माले पर बुकींग आफिस है,जबकि तल मंजिल पर कई सारी दुकानें है। दवाईयां ली,यहां का पान खाया और फिर पैदल पैदल अपने ठिकाने पर लौट आए। कल सुबह मन्दिर में दर्शन के बाद पौने तीन बजे हैदराबाद की बस में सवार होना है।
अब कुछ जानकारियां मल्लिकार्जुन के बारे में। द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक मल्लिकार्जुन इकलौता ऐसा ज्योतिर्लिंग है,जहां शिव के साथ साथ आदि शक्ति भी भ्रमराम्बा माता के रुप में विद्यमान है। उनकी भी प्रतिमा यहां स्थापित है। यह शक्तिपीठ है।
मल्लिकार्जुन देवस्थान नल्लमलाई पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थापित है। इसे शैल पर्वत भी कहते है। देवस्थान के एक ओर से कृष्णा नदी प्रवाहित होती है। समुद्र सतह से इसकी उंचाई मात्र 476 मीटर है। कृष्णा नदी यहां बेहद गहरी खाई में से बहती है। पर्वत शिखर से लगभग एक हजार मीटर नीचे कृष्णा नदी बहती है,इसलिए इसे पाताल गंगा भी कहते है। इतिहास के मुताबिक श्री शैलम कृष्णा नदी के दाई ओर है,वहीं बाई ओर चन्द्रगुप्त नजर था,जिसका उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। इसके प्रमाण बारहवीं से सौलहवीं सदी तक मिलते है। परंपरागत हिन्दू मान्यताओं में इसे कई बार कैलास भी कहा गया है। इस क्षेत्र में इसे इला कैलासम कहा जाता है। श्री शैलम को वैसे तो आदिकाल स् स्थापित माना जाता है,लेकिन इसके एतिहासिक प्रमाण बारहवीं सदी से उपलब्ध है। उस समय श्री शैलम बहुत बडा धार्मिक केन्द्र था,जहां अनेक मन्दिर व मठ स्थापित थे। इस क्षेत्र में पहली सदी और उससे भी पहले के प्रमाण मिले हैं।
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