वृध्द मल्लिकार्जुन स्वामी का अभिषेक,साथ में गौसेवा भी
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार/सुबह 7.00 बज
चांदीश्वरा सदन श्री शैलम
आज हमें फिर से मल्लिकार्जुन स्वामी और भ्रमराम्बा देवी के दर्शन करना है। दोपहर तो पौने तीन बजे हमारी
बस है,जिसमें हम वापस हैदराबाद लौटेंगे। इस वक्त सभी लोग जाग चुके है और स्नानादि की तैयारियां जारी है। मुझे आठ बजे तक सीआरओ आफिस जाकर कल जमा कराया हुआ एडवान्स वापस लेना है। देवस्थान संस्थान की व्यवस्थाएं बहुत अच्छी है। यहां अनेक इमारतों में हजारों कमरे है,जहां श्रध्दालुओं के ठहरने की व्यवस्था है।
कमरों की बुकींग आनलाईन हो जाती है। किराया भी बहुत कम है। हम यहां मात्र पांच सौ रुपए में एसी कमरों में रुके है। साफ सुथरे हवादार कमरे है। इसी तरह पूजा अभिषेक आदि भी आनलाइन बुक करवाए जा सकते है। इसके अलावा यहां मठ व धर्मशालाएं भी है। इन दिनों चूंकि श्राध्द पक्ष चल रहा है.इसलिए अभी यहां गिने चुने श्रध्दालु ही है। इसी वजह से हर चीज में आसानी है।
5 अक्टूबर 2018/ दोपहर 2.10
चण्डीश्वरा सदन
यहां से निकलने की तैयारी। हमारी बस 2.45 पर है। यहां से सीआरओ जाने में दस मिनट लगेंगे। इस वक्त सब लोग कपडे बदलकर सामान पैक कर रहे हैं।
सुबह हम लोग 9.45 पर कमरों से निकल पाए थे। इससे पहले,मैं बिना स्नान किए सीआरओ आफिस जाकर तीन कमरों को खाली कर उनकी एडवान्स राशि वापस लेकर आ गया था। एक कमरा हमने एक दिन बढवा लिया था,ताकि लौटने तक सामान आदि रखा जा सके। बहरहाल 9.45 पर कमरों से निकले। यहां चण्डीश्वरा सदन के सामने ही एक दुकान पर,वडा और डोसा चाय का नाश्ता किया। डोसा वडा खाने में आनन्द आ गया।
मैं गौ पूजा पहले ही आनलाईन बुक कर चुका था। जब एडवान्स वापस लेने गया,तब वृध्द मल्लिकार्जुन स्वामी का अभिषेक भी बुक कर लिया था। हम करीब साढे दस बजे मन्दिर पंहुच गए। आई दादा और प्रतिमा तो सीधे गौपूजा के लिए चले गए। मुझे बताया गया कि अभिषेक के लिए लुंगी या धोती जरुरी है। इसलिए बाहर जाकर डेढ सौ रु.में लुंगी खरीदी और मंदिर में वापस लौटा।
05 अक्टूबर 2018 (रात 12.30)
होटल मेघा सिटी हैदराबाद
दोपहर में जब डायरी लिख रहा था,ठीक उसी समय बस का भी समय हो रहा था।इसलिए अचानक डायरी रोकना पडी थी। वहां रुकी हुई कहानी वहीं से शुरु करता हूं।
------ मैं लुंगी लेकर वापस लौटा। मैं और वैदेही गेट न.2 से भीतर गए। यह गेट स्पेशल एन्ट्री वालों का है। हम भीतर गए तो पता चला कि वृध्द मल्लिकार्जुन स्वामी के अभिषेक के लिए लुंगी तो जरुरी है,लेकिन पेन्ट उतारना जरुरी नहीं है,लुंगी पेन्ट के उपर ही बान्धी जा सकती है। मैने पेन्ट के उपर ही लुंगी बान्ध ली। मन्दिर में जाने पर पहले हमने मल्लिकार्जुन स्वामी के मुख्य मन्दिर में दर्शन किए। इसी दौरान आई दादा भी नजर आ गए। वे लोग गौ पूजा करवाने जा रहे थे। हम वृध्द मल्लिकार्जुन स्वामी के मन्दिर में पंहुचे। यह मुख्य मन्दिर के बगल में ही छोटा सा मन्दिर है। यहां अभी पण्डित नहीं था। मंदिर में एक नन्हे बच्चे का अन्नप्राशन संस्कार चल रहा था। उन्हे पेन की जरुरत थी,जो मैने उन्हे दिया। बच्चे के सामने एक सौ रु.का नोट,एक पुस्तक,एक पेन,एक खिलौना और एक सोने का हार रखा गया था। बच्चा जिस वस्तु को हाथ लगाएगा,वहीं उसकी प्रवृत्ति होगी। खापी देर बच्चे से किसी वस्तु पर हाथ रखवाने के प्रयास चलते रहे। मुझे पता नहीं चला कि बच्चे ने किस चीज पर हाथ रखा। उसी वक्त पण्डित जी आ गए। उन्होने मुझे पूजा सामग्री लेने भेजा। मन्दिर परिसर में ही एक स्थान पर पूजा सामग्री का काउण्टर बनाया गया है,वहां से पूजन सामग्री दी गई। इसमें एक नारियल,एक प्रसाद का बडा लड्डू और तेलगु भाषा की मन्दिर की पत्रिका थी। मैं यह सामग्री लेकर लौटा। तब पण्डित ने वृध्द मल्लिकार्जुन का अभिषेक करवाया। अभिषेक करीब पन्द्रह मिनट तक चला। इसके बाद हमने मंदिर परिसर के अन्य मन्दिरों में दर्शन किए। मन्दिर परिसर में ही 11.50 हो गए थे। अभी हमें पाताल गंगा भी जाना था और भोजन भी करना था। मन्दिर से बाहर आकर मोबाइल और जूते चप्पल हासिल किए। भोजन प्रसादी के निशुल्क कूपन मैं और वैदेही भ्रमराम्बा माता के मन्दिर से निकलते वक्त ले आए थे। निकलते वक्त ही हलवे का प्रसाद भी मिला था। जो हम सब ने खाया। अब हम भोजन प्रसादी के लिए चले। देवस्थानम प्रशासन द्वारा निशुल्क भोजन प्रसादम की व्यवस्था है। प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी यहां भोजन पाते है। एक पंगत-एक संगत।
जाति पाति का कोई भेदभाव नहीं। कोई पूछता भी नहीं। भोजन करने के लिए बडे बडे हाल है। भोजन तैयार करने की आधुनिकतम व्यवस्था है। नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर इण्डियाज बिग किचन्स कार्यक्रम में इसका पूरा चित्रण भी आ चुका है। यहां चावल सब्जी,सांभर चटनी और सिवईयां का हलवा,शानदार भोजन किया। अब 12.45 हो चुके थे। एक आटो वाले को पाताल गंगा जाने के लिए रोका तो वह बोला शिवाजी मन्दिर भी चलो। दुगुने रेट पर शिवाजी मन्दिर भी गए। यह शिवाजी का भव्य मन्दिर है। कथा यह है कि शिवाजी महाराज मल्लिकार्जुन स्वामी के भी भक्त थे। वे यहां आए। तपस्या में लीन हो गए। तभी उनकी इच्छा आत्मोत्सर्ग की हुई। वे अपना ही शीशदान करने को उद्यत हुए। उन्होने अपनी तलवार निकाली और गर्दन काटने ही वाले थे कि तभी तुलजा भवानी प्ररट हो गई। तुलजा भवानी ने शिवाजी के हाथ से तलवार छीनकर उन्ही को भेंट कर दी। तुलजा भवानी ने कहा कि अभी तुम्हारे कई काम शेष है। इसी की याद में भव्य शिवाजी मन्दिर बनवाया गया है। यहां सिंहासन पर बैठे शिवाजी महाराज की मूर्ति है। बडे हाल के तीनों तरफ शिवाजी का जीवन चिरत्र बताने वाली चित्रकथा लगाई गई है।
यहां से आगे बढे। पाताल गंगा पंहुचे। यहां करीब एक हजार मीटर नीचे कृष्णा नदी बहती है। अब नीचे जाने के लिए रोप वे है। हमने 65 रु.प्रतिव्यक्ति के हिसाब से 5 टिकट लिए। नीचे गए। प्रतिमा ताई नीचे नदी तक जाकर दो बाटले भर कर लाई। तुरंत ही वापस चले और रोप वे से उपर आ गए। यहां से सौ रु. में फिर आटो किया,जिसने दस मिनट में चण्डीश्वरा सदन छोड दिया। हम 1.50 पर लौट आए थे।
2.45 पर हमारी बस थी। यहां सामान पैक किया और 2.20 पर नीचे उतरे। फिर 50 रु.आटो किया और सीआरओ बस स्टैण्ड पंहुच गए। यहां बस तैयार थी। बस में सवार हो गए।
उन्ही पहाडी रास्तों पर चलते हुए हैदराबाद की तरफ लौटे। आज का दिन यूं भी खास था कि रतलाम में ट्रस्ट भवन के एक किरायेदार ने स्टे आर्डर के बावजूद काम नहीं रोका था। आज यह विवाद और बढा। मेरे पास विडीयो भी आए।
रात 8.15 पर हम हैदराबाद के इमलीबन बस स्टाप पर पंहुच गए। विनय इंतजार कर रहा था। रात 9.15 पर उसके घर पंहुचे। बगल के इस होटल में कमरा बुक था। अब यहां आ चुके है। अब सोने की तैयारी है.....।
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