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यात्रा वृतान्त-31/ शांति का देश भूटान-
फिर से डोचु ला पास पर
(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)10 जनवरी 2019 गुरुवार (रात 9.20 आईएसटी)
पारो
इस वक्त हम पारो के होटल में भोजन करके सोने की तैयारी कर रहे है। डायरी जहां छोडी थी,वो सुबह साढे सात का वक्त था.....।
हमारे ड्राइवर ने आवाज लगाई और हम सब गाडी से बाहर निकल पडे। सडक़ पर खतरनाक फिसलन थी। इस फिसलन के बावजूद हम धक्का लगाने को तैयार थे। बीती रात ड्राइवर मारकुश,दशरथ जी के नालेज से प्रभावित हो चुका था। सुबह वो दशरथ जी के मार्गदर्शन में गाडी चलाने को राजी हो गया। दशरथ जी ने समझाया कि जहां बर्फ ज्यादा नजर आ रही है,गाडी वहीं से निकाले। इसी फार्मूले पर वो चला। जिस मोड पर हम रात भर रुके रहे उसी मोड से बडी आसानी से पार हो गए। हम उतरे तो थे धक्का देने के लिए,लेकिन ज्यादा धक्का नहीं देना पडा।
अब हमारा ड्राइवर हर मोड पर दशरथ जी से पूछने लगा कि गाडी किधर से निकालना है? धूप तेज हो चुकी थी,सडक़ें साफ हो रही थी। हम सुबह करीब नौ बजे डोचूला पास पर पंहुच गए। ये टूरिस्ट पाइन्ट है। यहां टूरिस्ट्स के लिए रेस्टोरेन्ट भी है। पूरी रात भर से किसी ने पानी तक नहीं पिया था। हमने सोचा थोडा चाय काफी पीकर आगे बढेंगे। इस रेस्टोरेन्ट में आधा-आधा बटर पराठा खाया। काफी पी। बेहद महंगी। लेकिन पूरी रात के तनाव के बाद राहत मिली थी,इसलिए कीमत का कोई महत्व नहीं था । सुबह जब से आंख खुली थी,नित्य कर्म से निवृत्त होने की बात भी मन में नहीं आई थी। दिमाग में एक ही लक्ष्य था कि जैसे भी हो यहां से बाहर निकलना है। डोचूला पास पर चाय पराठे का बाद ध्यान में आया कि यहां ठीकठाक वाश रुम है। इसी अवस्था में सुबह के जरुरी काम निपटाये। जबर्दस्त राहत महसूूस हुई। हांलाकि सारे कपडे पहने हुए निवृत्त होना कोई आसान काम नहीं होता,पर और कोई चारा नहीं था,जैसे तैसे काम निपटाया।
करीब दस बजे हम यहां से निकलने को तैयार थे। इसी दौरान हमारे साथी बर्फ में धमाल मस्ती करने लगे। हिमांशु से हाटस्पाट लेकर मैने वैदेही से विडीयो काल पर बात की। आई भी आ गई। सब को बर्फ के सीन दिखाए। हांलाकि ये सीन रात की तुलना में कुछ भी नहीं थे। घर पर बात हो जाने के बाद अब मैं निश्चिन्त था।
फिर यहां से आगे बढे। घुमावदार रास्तों पर झपकियां लेते हुए हम आगे बढे। आगे कोई समस्या नहीं थी। रास्ता पूरी तरह साफ था।
पारो जाने के लिए थिम्फू होकर ही जाना पडता है। थिम्फू से दस किमी पहले हम उसी रेस्टोरेन्ट
पर रुके जहां जाते वक्त रुके थे। इस रेस्टोरेन्ट पर करीब आधा घंटा रुके। यहां से चले। अब हमें पारो पंहुचना था। हम थिम्फू होते हुए पारो के लिए चल पडे। पारो पंहुचने में दो घंटे और लगना थे। हम चलते रहे और करीब ढाई बजे हम पारो पंहुचे। हमारे ड्राइवर ने पारो के एयरपोर्ट का एरियल व्यू दिखाया। भूटान का इकलौता एयरपोर्ट पारो में ही है।
इस व्यू पाइंट से मैने पारो एयरपोर्ट का पूरा विडीयो बनाया। रायल भूटान एयरवेज का एक विमान उसी समय उतरा था। मेरे विडीयो में मैने उसे कवर किया।
अब हम होटल पंहुचे। इच्छा थी कि होटल पंहुच कर अच्छे से स्नान ध्यान करके भोजन करेंगे,लेकिन हम पूरा एक दिन बर्फबारी में गंवा चुके थे। हम लोगों ने विचार किया कि यदि बचा हुआ समय भी गंवा दिया,तो हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा। हमने तय किया कि ना तो स्नान करेंगे,ना मुंह धोएंगे। भोजन तैयार था,भोजन करके घूमने निकल जाएंगे। भोजन किया और सीधे पारो का राष्ट्रीय संग्रहालय देखने निकल पडे। लेकिन हमारी सारी मेहनत व्यर्थ हो गई। जब हम संग्रहालय पर पंहुचे,संग्रहालय बंद हो चुका था। वहां के कर्मचारियों से बहुत आग्रह किया। फिर संग्रहालय के प्रभारी से निवेदन किया,पर वह भी राजी नहीं हुआ। हम बैरंग वहां से लौटे। ड्राइवर राजी नहीं था,लेकिन हम पारो शहर घूमते हुए एक दो जगह और गए। आखिरकार शाम साढे पांच बजे हम होटल पर लौट आए। अब हमे कोई काम नहीं था। घर पर वैदेही से बात की। अब एक ही विषय बचा है कि कल हमें जल्दी से यहां से निकल कर भारत में जैगांव और आगे गंगटोक पंहुचना है,ताकि आगे का आनंद ले सके।
ये सारा घटनाक्रम तो कल शाम को बर्फ में फंसने के बाद का है। लेकिन कल सुबह जब थिमफू से चले थे,तो पुनाखा जाना था। वहां का पूरा घटनाक्रम बर्फ में फंसने की वजह से छूट ही गया है। पूरे दिन की कहानी भी बडी रोचक थी,लेकिन इस वक्त रात के साढे दस बज गए हैं और सुबह जल्दी उठकर जैगांव के लिए निकलना है। जल्दी निकलेंगे तभी सिक्कीम जा पाएंगे। इसलिए ये कहानी अभी यहीं बंद। अगले दिन जैसे ही समय मिलेगा,फिर लिखेंगे।
गुड नाईट.......।
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