Wednesday, May 29, 2019

Bhutan Sikkim Journey-6

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यात्रा वृतान्त-31/ शांति का देश भूटान-
पुनाखा में है भूटान का सबसे बड़ा किला

(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)
11 जनवरी 2019 शुक्रवार (सुबह 9.00)
होटल सामडेन चौइंग पारो (भूटान)

 भूटान से वापसी का वक्त। पारो में हम कल दोपहर ढाई बजे पंहुचे थे। आज पूरी कोशिश है कि रात तक गंगटोक पंहुच जाए।
अब बात पुनाखा की। 1955 के पहले तक भूटान की राजघानी पुनाखा ही थी। थिम्फू  से पुनाखा करीब 68 किमी दूर है। यहां जाने के रास्ते में डोचूला पास पडता। डोचूला पास की उंचाई (एल्टीट्यूड) 3100 मीटर या 10200 फीट है। हम जैसे ही डोचूला पास पर पंहुचे,यहां पहाडों पर भारी बर्फ जमी हुई थी। वैसे तो रास्ते में भी कई जगहों पर बर्फ जमी हुई थी लेकिन यहां बर्फ बहुत अधिक थी। डोचूला पास पर 108 बौध्द मानेस्ट्री बनी हुई है।

हमें बताया गया कि ये युध्द में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाए गए हैं। यहां बर्फ देखकर सभी को मजा आ गया। यहां बडी तादाद में पर्यटक मौजूद थे। करीब एक घंटा हम लोग बर्फ में फोटोग्राफी और मस्ती करते रहे। थोडी ही देर बाद यहां बर्फबारी शुरु हो गई। इससे और ज्यादा मजा आ गया।  लेकिन तब हमें कहां मालूम था कि बर्फबारी का यही मजा आगे जाकर सजा बनने वाला था। करीब एक घंटा यहां गुजार कर हम पुनाखा के लिए बढ गए। पुनाखा में देखने के लिए यहां का किला है। भूटानी भाषा में इसे जोंग (dzong) कहते है। पुनाखा में वाटर राफ्टिंग  भी होती है। किला देखने का समय दोपहर तीन से पांच तक का है। हम करीब सवा बजे पुनाखा पंहुच गए थे। भोजन करना था इसलिए मारकुश हमें एक होटल में ले गया। यहां कई सारे पर्यटक भोजन कर रहे थे। हमने भोजन का आर्डर दिया,तो भूटान की वेज सब्जी केवा डाटसी का भी आर्डर दिया। यह आलू मिर्ची की सब्जी दही के साथ बनाई जाती है। एक और भूटानी डिश इमा डाटसी हम थिम्फू  में चख चुके थे।  इमा डाटसी दही में बनाई गई सलाद थी।  बहरहाल भोजन करके हम किले पर पंहुचे। किला,पुनाखा छू नदी के दूसरी ओर है और किले में जाने के लिए नदी पर लकडी का पुल बना हुआ है। यहां का टिकट तीन सौ रु.प्रति व्यक्ति था। गनीमत यह थी कि इस टिकट में गाइड की सेवा भी शामिल थी। गाईड के साथ भीतर गए। किले का मुख्य  द्वार जमीन से करीब पचास मीटर उपर है,जिस पर सीढियां चढ कर जाना पडता है। सीढियां तीन हिस्सों में है। बीच वाला हिस्सा राजपरिवार के लिए आरक्षित है। उपर पंहुचे तो गाईड ने बताया कि यह भूटान का सबसे बडा किला है। भीतर बौध्द मंदिर है,जिसमें बुध्द की तीस मीटर उंची प्रतिमा बैठे हुए बुध्द की है।



इसके बाइ ओर गुरु पद्म संभव की प्रतिमा है। गौतम बुध्द कभी भूटान नहीं आए। भूटान में बौध्द धर्म को गुरु पद्म संभव ही लेकर गए थे तिब्बत से। दाई ओर झबद्रुंग की प्रतिमा है। झबद्रुंग भूटान के धार्मिक नेता या कहिए संस्थापक रहे हैं,जो कि तिब्बत से यहां आए थे। वे तिब्बत के राजपरिवार के थे। यहां आकर उन्होने भूटान के बीस जिलों में बीस किले(झोंग) बनवाए। आज उन्ही के वंशज भूटान के राजा है। यहां अभी भूटान के पांचवे राजा का शासन है। वर्तमान राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक  ने प्रेम विवाह ्िकया है।





भूटान में एक ही राज परिवार है,इसलिए राजा किसी सामान्य लडकी से ही विवाह करता है। वर्तमान राजा और रानी स्कूल में साथ साथ पढते थे। रानी,राजा से दस साल छोटी है। अभी वर्तमान राजा की उम्र 38 साल है,जबकि रानी अट्ठाइस साल  की है। इनका एक लडका है,जो भूटान का भावी राजा है। भूटान के वर्तमान राजा को सिंहासनारुढ करने की सेरेमनी पुनाखा के इसी किले में संपन्न हुई थी। राजा का विवाह भी इसी किले में हुआ था। वर्तमान में इस किले में करीब पांच सौ बौध्द भिक्षु रहते है। भूटान का बौध्द धर्म का प्रमुख संत भी यहीं रहता है। मंदिर में बुध्द की मूर्ति के आगे राजा और धर्म प्रमुख दोनों के सिंहासन एक ही उंचाई के है। यानी दोनों के अधिकार समान है। राजा शासन प्रमुख है तो प्रमुख संत धार्मिक प्रमुख है। धर्म प्रमुख की नियुक्ति राजा करता है,लेकिन राजा का उस पर नियंत्रण  नहीं होता। इसी मंदिर में भूटान के अलग अलग समय पर धर्म प्रमुख रहे संतों की भी मूर्तियां है। जब हम किले में पंहुचे थे,तो बौध्द संतों की पूजा और धार्मिक क्रियाएं चल रही थी।

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