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यात्रा वृतान्त-31/ शांति का देश भूटान-
सुबह भूटान रात में सिक्किम
(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)11 जनवरी 2019 शुक्रवार रात 11.45
स्टेट सर्किट हाउस गंगटोक,सिक्किम
आज सुबह तो हम पारो में थे। सुबह साढे नौ भूटान समय यानी नौ बजे हम तैयार हो चुके थे। मारकुश थापा को फोन लगाया। वह गाडी लेकर आ गया। हम तैयार थे। पौने दस बजे हम पारो से चल पडे। भूटान के पहाडी रास्तो पर फुनशिलिंग अभी एक सौ चालीस किमी दूर था। पहाडी रास्ते और एक सौ अस्सी डिग्री वाले मोड,लेकिन सडक़ बेहद अच्छी थी। भूटान के सीन कुछ अलग होते है। कहीं सडक़ पर हीरो हीरोईन के बोर्ड नहीं। जहां भी होर्डिंग दिखेगा,राजा रानी और राजकुमार का। पहाडी रास्तों पर इतना घूम चुके है कि उसका कोई असर नहीं रहा।
चलते रहे। हमारे ड्राइवर को सब्जी खरीदना थी। फुनशिलिंग से करीब बीस किमी पहले सडक़ किनारे एक दुकान से उसने पांच तरह की सब्जियां खरीदी। सारी सब्जियां पत्तों वाली थी,पालक जैसी। हमने पत्ते चखकर देखे। काफी तीखे थे। इसकी सब्जी बेहद शानदार बनती होगी। लेकिन हमको ये खाने को नहीं मिली। हमको भूटान में किसी ने भूटान की सीजनल सब्जियां बताई ही नहीं। बताई तो इमा डाटसी केवा डाटसी बताई। खैर।
हम करीब दो बजे जैगांव पंहुच गए। हमारे ड्राइवर मारकुश थापा ने आज हमारी अच्छी मदद की। उसने कहा था कि वो हमारे लिए गंगटोक की गाडी तय करके देगा,तब तक हम भोजन कर सकते थे। सुबह पारो के होटल में सब्जी पूरी रोटी का नाश्ता करके चले थे। जैगांव में उसने एक राजस्थानी होटल का पता बताया था। हमारा सारा सामान उसकी गाडी में बंधा हुआ था। हम एक पतली गली में घुसकर भीतर पंहुचे तो राजस्थानी भोजनालय नजर आया। यहां एक सौ बीस रु.की थाली थी। यहां हमने पांच थालियां मंगवाई। खाने में मजा आ गया। एकदम अपने मालवा का टेस्ट। जम कर खाया। खाना ही खा रहे थे कि मारकुश का फोन आ गया कि साढे पांच हजार में आर्टिगा तय कर ली है। हमारा अंदाजा यही थी। हमने फौरन हां कर दी। भोजन करके आए। पहले मारकुश का हिसाब किया। पांच हजार दे चुके थे। पांच दिन के पन्द्रह हजार होते है। दस हजार और देना थे। उसने ग्यारह हजार की मांग की। एक हजार ईनाम के। उसे दस हजार रु.भाडे के दिए और पांच सौ रु.ईनाम दिया। आर्टिगा तैयार खडी थी। सारा सामान इस गाडी से उतारकर उस गाडी में पैक करवाया। तीन दस पर हम जैगांव से चल दिए। हमारा लक्ष्य था गंगटोक। छ: घंटे का एक सौ साठ किमी का रास्ता। इसमें से करीब सत्तर किमी समतल और फिर नब्बे किमी सिक्किम का पहाडी रास्ता। हमारा नया ड्राइवर बेहद साहसी था। सत्तर किमी का समतल रास्ता आसानी से जल्दी ही पार हो गया। फिर सामने था पहाडी रास्ता,जिसमें एक ओर उंचे पहाड थे और दूसरी ओर हजारों फीट गहरी खाईयां।
भूटान से चलते वक्त ही ग्यारह बजने के बाद गंगटोक सर्किट हाउस के बुकींग की कोशिशें शुरु कर दी थी। जैगांव पंहुचे,तब तक बुकींग कन्फर्म हो चुकी थी।
आर्टिगा से गंगटोक के लिए चले। ड्राइवर ने एक दो जगह चाय पीने के लिए रोका। गूगल मैप गंगटोक पंहुचने का समय दस बजे का बता रहा था। शाम करीब साढे छ: बजे गंगटोक सर्किट हाउस पर फोन लगाया तो हमने कहा कि हम दस बजे तक पहुंच जाएंगे। उधर से हमारा भोजन कमरे में रखने की बात कही गई। अब हम निश्चिंत थे। भोजन की चिंता नहीं थी। हम गंगटोक शहर में तो समय पर ही पंहुच गए,लेकिन वीआईपी सर्किट हाउस शहर से करीब पांच छ: किमी दूर एक बेहद उंची पहाडी पर है। हम रात को ठीक दस बजे सर्किट हाउस के गेट पर पंहुचे। हमारे स्वागत के लिए एक कर्मचारी इन्द्रकुमार मौजूद था। उसने हमे हमारे कमरे दिखाए। भोजन कमरे में ही रखा था। यहां आए,तो वैदेही से विडीयो काल पर बात हुई। भोजन किया।
इस वक्त रात के सवा बारह बज रहे हैं। हमने तय किया है कि सुबह आठ बजे तैयार हो जाएंगे। भोजन के ठीक पहले यात्रा के खर्च का हिसाब लगाया गया। भूटान हद से ज्यादा महंगा था। खर्चा सीमा से उपर जा रहा है,लेकिन सभी ने इस पर सहमति दे दी। अब तक हम पांचों मिलकर सवा लाख रु.खर्च कर चुके हैं और अभी पच्चीस हजार रु.और खर्च होने की संभावना है। अब दो दिन गंगटोक घूम कर बागडोगरा से उडान पकड कर इन्दौर पंहुचेंगे।
अब सोने का वक्त.....।
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