द्रास में कारिगल वार मेमोरियल,मोहर्रम और जाम का मातम
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)10 सितंबर 2019 (दोपहर 2.30)
सोनमर्ग (लेह-श्रीनगर हाईवे)
सभी अपने हाथों से छाती पीट रहे हैं। कई पुरुष खूनजार हो चुके है। एम्बूलैंस और मेडीकल हैल्प साथ में है। हमने इनके विडीयो भी बनाए। ये अजीब पागलपन है। लोग हुसैन की शहादत की याद में खुद को हर साल घायल करते हैं। पता नहीं कब ठीक होते होंगे? तर्क और दिमाग का कोई काम नहीं। महिलाएं और यहां तक कि छोटी बच्चियां भी छातियां पीट रही है। मैं गाडी में बैठकर ये सब लिख रहा हूं। अभी शायद एकाध घण्टा यही नाटक चलेगा। आगे श्रीनगर के रास्ते में और भी कहीं जाम मिल सकता है। मातम मनाने वाले सभी शिया है। सुन्नी मुस्लिम मोहर्रम तो मनाते है लेकिन इस तरह नहीं। इनका ये ही पागलपन तो पूरी दुनिया को बरबाद कर रहा है।
खैर। सुबह भी हमारे सामने यही संकट था। होटल वाले ने हमसे कहा था कि यदि जल्दी निकल गए तो ठीक वरना सडक़ पर जाम लग जाएगा। हम लोगों ने वहीं आलू पराठे का नाश्ता किया। साढे नौ हो चुके थे। हम कारगिल वार मेमोरियल देखने जा पंहुचे। हम यह नहीं छोड सकते थे,चाहे जाम में दिनभर फंसना पडे।
कारिगल वार मेमोरियल बेहद शानदार है। यहां आकर भारतीय सेना के वीर जवानों का अप्रतिम शौर्य जीवंत हो उठता है। मेमोरियल तोलोलिंग पहाडी की तलहटी में ही बना है। इसी चोटी को सबसे पहले फतह किया गया था। यहां अमर जवान ज्योति जलती है,जिसके पीछे विशाल तिरंगा लहराता है। गेट से प्रवेश करते ही सामने अमर जवान ज्योति और तिरंगा नजर आता है। भीतर प्रवेश करते ही बाई ओर एक युध्दक विमान खडा किया गया है। बीच में बने रास्ते से आगे बढते है,तो दोनो ओर छोटी होवित्जर तोपें रखी हुई है। बाई ओर एक बडी बोफोर्स तोप भी प्रदर्शित की गई है। इस तोप ने कारगिल युध्द में कमाल का काम किया था। आगे बढते है तो हम जा पंहुचते है,अमर जवान ज्योति पर। इसके बाई ओर तोलोलिंग के युध्द में शहीद हुए वीर सैनिकों की समाधियां बनी हुई है। समाधियों पर श्रध्दांजली अर्पित कर हम लौटते है,फिर से अमर जवान ज्योति पर। अमर जवान ज्योति से दाई ओर वार म्यूजियम है,जिसमें पाकिस्तान से छीने गए हथियार,पाकिस्तानी ध्वज आदि तो है ही कारगिल युध्द के तमाम मोर्चों की लडाईयों के फोटोग्राफ्स और अन्य विवरण भी मौजूद है। वीर सैनिकों द्वारा लिखे गए पत्र,परमवीर,महावीर और वीर चक्र प्राप्त सैनिकों के फोटो आदि भी दर्शाएं गए हैं। हमने म्यूजियम देखा विडीयोग्राफी की। इस वक्त सवा दस बज चुके थे। हमें पता था कि अब जाम में फंसना तय है। यहां कारगिल युध्द की एक डाक्यूमेन्ट्री भी दिखाई जाती है। इसका शुल्क सौ रु.प्रति व्यक्ति है। अब सोचा कि जब जाम में फंसना ही है,तो फिल्म भी देख ली जाए। फिल्म बेहद शानदार थी हृदयस्पर्शी। यह देखकर पता चलता है कि वह लडाई कितनी कठिन असंभव जैसी थी,जिसे सैनिकों ने अपनी वीरता से जीता था। पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर बैठे दुश्मन को नीचे जाकर मारना असंभव ही है,जिसे हमारे सैनिकों ने संभव कर दिखाया था। यहां सैविनियर शाप भी है। मैने और अनिल ने कारगिल युध्द पर आधारित कहानियों की पुस्तक ली। अन्य लोगों ने भी कुछ कुछ खरीदा।
यहां से निकलते निकलते ग्यारह बज गए थे। द्रास कस्बा करीब पांच किमी आगे था। वहां पंहुचे तो सडक़ जाम थी। सडक़ पर मातम चल रहा था। वह देखकर आए। तभी एक स्थानीय ड्राइवर ने द्रास से बाहर निकलने का रास्ता बताया। उसने कहा कि उस रास्ते से हम आगे जा सकते थे। हमें जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई। यह कच्चा रास्ता बेहद खराब था,लेकिन इसने हमें जाम से बचा लिया था।
हम द्रास को पार कर आगे बढ गए। कारगिल जिले की सीमा पर चैकिंग के लिए रुके। यहां चाय पी। यहां से जोजी ला पास यहां से 18 किमी और सोनमर्ग 35 किमी था। हमें गाडी में डीजल भी डलवाना था,जो कि सोनमर्ग में मिलने की बात कही गई थी। जोजी ला दर्रा करीब साढे ग्यारह हजार फीट उंचाई पर है। इसे पार करने के बाद आगे सडक़ पर जाम लगा हुआ था। सडक़ बनाने के लिए पहाड में ब्लास्ट किए जा रहे थे। यहां से नीचे सोनमर्ग घाटी नजर आ रही थी। जाम तो करीब आधे घण्टे बाद खुल गया,लेकिन आगे बढने के बाद हमसे आगे चल रही गाडियां पक्का रोड छोडकर एक कच्चे रास्ते से उतरने लग गई। यह बेहद खतरनाक तीखा नागमोडी ढलान था। छोटी गाडियां तो जैसे तैसे उतर रही थी लेकिन बडी गाडियों का यहां से उतरना बेहद कठिन असंभव सा था। इसका पूरा विडीयो मैने बनाया। इसी रास्ते पर अब ट्रक भी आ गए थे। ढलान वाले तीखे 180 डिग्री के मोड पर ट्रक के मुडने की जगह ही नहीं थी इसलिए ट्रक एक पट्टी रिवर्स गेयर में उतर रहे थे। ट्रक एक मोड से दूसरे मोड तक सीधे,फिर अगले मोड पर पलट ना पाने की वजह से रिवर्स गेयर में उतर रहे थे। यह बेहद खतरनाक था। हमें यह डर भी लग रहा था कि पहाडी पर रिवर्स गेयर में उतरता कोई ट्रक अगर फिसल जाए,तो वह सीधे हमारे उपर आकर गिरेगा। नीचे से देखने पर तो ऐसा ही लग रहा था। खैर हम जैसे तैसे नीचे उतर आए और फिर से हाई वे पर आ गए। अब दस बारह किमी सोनमर्ग तक का रास्ता बेहद शानदार था। फौैरन यहां पंहुच गए,लेकिन यहां मातम चल रहा है और हमारे वाहन अटके पडे है। सडक़ खून से लाल हो चुकी है। अब ये मातम जब खत्म होगा,तभी हमारा मातम भी खत्म होगा। वो हुसैन के लिए मातम कर रहे है और हम रास्ता बंद होने का मातम मना रहे हैं।
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