बार्डर पर बन्द गाडी ,हिमालय पर भी है रेगिस्तान
(प्रारंभ करने के लिए यहां क्लिक करें)09 सितम्बर 2019 सोमवार
होटल सिटी हार्ट लेह (लद्दाख)
इस वक्त हम लेह से निकल कर कारगिल जाने की तैयारी कर रहे हैं। कल रात डायरी से जुडने का मौका ही नही मिल पाया था। टीवी पर थ्री इडियट्स फिल्म आ रही थी। वही देखते देखते नींद आ गई,डायरी रह ही गई। इस वक्त भी समय कम है,देखते है कितना आगे बढ पाती है।
बात वहीं से,जहां छोडी थी। हमारी गाडी बन्द थी। स्टार्ट नहीं हो पा रही थी। पोस्ट पर तैनात फौजी अमनदीप भी हमारी मदद करने के लिए बाहर आ गया था।
ड्राइवर पुनचुक ने गाडी के फ्यूज चैक किए। बोनट खोल कर बैटरी को चैक किया। फिर सेल्फ मारा। एक,दो,तीन,चार बार सेल्फ मारा,लेकिन इंजिन स्टार्ट होने को तैयार ही नहीं था। फौजी अमनदीप ने कहा आप कोशिश कर लो,वरना आगे फोन करके किसी जानकार को बुलवाने की कोशिश करेंगे। सभी लोगों को एक अजीब सी घबराहट महसूस हो रही थी। हम पूर्णत: प्रतिबन्धित क्षेत्र में और पाकिस्तानियों की नजर में थे। इसी समय एक फौजी अफसर अपने परिवार के साथ जिप्सी में वहां आया। हमारी मदद को तत्पर अमनदीप तुरंत अफसर की सेवा में जुट गया। अब,जब तक फौजी अफसर वहां से रवाना नहीं हो जाता,हमें उसकी मदद नहीं मिल सकती थी। ड्राइवर पुनचुक ने किसी को फोन लगाकर पूछताछ की। काफी देर गुजर गई। अंधेरा घिरने ही वाला थी,कि अचानक चमत्कार हुुआ और गाडी स्टार्ट हो गई। हम लोग बेहद खुश थे। करीब पौने सात पर हम वहां से चले तो रात नौ बजे 162 आरडी आर्मी सेन्टर के रेस्ट हाउस पर पंहुचे।
बेहद शानदार रेस्ट हाउस। जबर्दस्त खुबसूरती,ढेरों सुविधाएं। हमारे वहां आने की सूचना पहले से थी,इसलिए भोजन भी तैयार था। आर्मी के रेस्ट हाउस में रुकने का यह सभी के लिए पहला मौका था। आर्मी के जवान सेवा के लिए तत्पर खडे थे। शानदार रात रही। सुबह ठीक नौ बजे आलू पराठे का नाश्ता आ गया। नाश्ते के बाद हम वहां से निकल पडे।
9 सितंबर 2019 सोमवार (रात 11.00)
टोलोलिंग रिजोर्ट,द्रास कारगिल
इस वक्त हम कारगिल से करीब पचास किमी आगे,द्रास से 8 किमी पहले कारगिल वार मेमोरियल के सामने की ओर इस रिजोर्ट में ठहरे हुए हैं।
कल सुबह आर्मी के रेस्टहाउस में आलू पराठे का शानदार नाश्ता करने के बाद हम वहां से निकल गए थे। जाते समय और आते समय भी रास्ते भर सियाचीन वारियर लिखे हुए स्तंभ नजर आते हैं। केप्टन दीपक से मुलाकात नहीं हो पाई। फोन पर बात हुई। धन्यवाद ज्ञापित किया। परतापुर जो असल में प्रतापपुर है,वहां से आगे बढे। आगे हुन्दर आता है। हुन्दर से कुछ आगे निकल गए थे,लेकिन अचानक पलटे। मैं फोन पर व्यस्त था। बात खत्म हुई तो मैने पूछा कि क्यो पलटे,तो कहा गया कि यहां कैमल सफारी करेंगे। प्रताप पुर से हिमालय का रेगिस्तान शुरु हो जाता है,जो करीब तीस पैतींस किमी तक चलता रहता है। इस रेगिस्तान की खासियत यह है कि रेतीले टीले तो है,लेकिन आसपास हरियाली भी है,पानी भी है और चारो ओर पहाड है। एक और खासियत यह है कि यहां दो कूबड वाले कम उंचे उंट होते है। हमने प्रति व्यक्ति तीन सौ रु.के हिसाब से कैमल सफारी की। मात्र पन्द्रह मिनट की सफारी। लेकिन यह मजेदार थी। बौने उंटों पर पन्द्रह मिनट तक रेत में घूम कर हम लौटे। इसी दौरान दशरथ जी की बाईं आंख में रेत या कोई अन्य चीज चली गई। वे दो तीन घंटे परेशान रहे।
हुन्दर से चले,तो डिस्कीट खालसर,सुमुर और खारदुंग होते हुए फिर से खारदुंग ला पंहुचे। हम यहां जाते समय फोटोग्राफी कर चुके थे। इस बार रुके नहीं,लगातार चलते रहे। ठीक साढे चार बजे हम लेह में अपने होटल पर पंहुच चुके थे। ड्राइवर पुनचुक को साढे बारह रु.का भुगतान कर रवना किया। आज शाम हमें जोरावर फोर्ट पर लाइट एण्ड साउण्ड शो देखना था। होटल के कमरे में टीवी पर रावडी राठौर फिल्म आ रही थी। सब लोग उसी का मजा ले रहे थे,तभी मैने बाजार चलने को कहा। हम लोग बाजार के लिए निकल पडे। करीब डेढ घंटे बाजार में घूमे। मेन बाजार की एक दुकान पर गरम समोसे बनते दिखाई दिए। पूछा कि ये वेज है या नानवेज। होटल वाले ने बताया कि हम तो प्याज भी नहीं डालते। समोसे लिए,छोले और चटनी के साथ। समोसे मजेदार थे। समोसे खाकर,जरुरत का सामान खरीदकर लौटे,तब तक साढे छ: बज चुके थे। अब हमें जोरावर फोर्ट जाना था।
हम जोरावर फोर्ट पंहुचे। यहां म्यूजियम भी बनाया गया है। डोगरा राजा गुलाब सिंह के सेनापति जोरावर सिंह ने कश्मीर के बाद लद्दाख और तिब्बत तक लडाईयां लडी थी। जोरावर सिंह ने कैलाश मानसरोवर को छुडाने के लिए चीन से लडाई लडी थी। 15 हजार फीट की उंचाई पर खतरनाक पहाडी उंचाईयों में युध्द लडने की क्षमता जोरावर सिंह में थी। जोरावर सिंह ने तकलाकोट में चीन से युध्द लडा था। तकलाकोट में ही जोरावर सिंह की समाधि है,जो कि तिब्बतियों ने जोरावरसिंह की अप्रतिम वीरता को देखते हुए बनाई थी। यह समाधि मैने कैलाश यात्रा के दौरान देखी थी। आज लेह के जोरावर फोर्ट पर लाइट एण्ड साउण्ड शो में जोरावर सिंह का पूरा इतिहास जाना समझा। वहां से लौटे तो लद्दाख वाले टी शर्ट खरीदकर होटल में लौटे। जोरावर फोर्ट पर ही टोनी की तबियत फिर से खराब होने लगी थी। उसे बुखार आने लगा था। होटल पर आकर उसे दवा खिलाई। रात को टीवी पर थ्री इडियट्स फिल्म आ रही थी,उसी को देखते हुए सो गए।
9 सितंबर सुबह 9.30
हम सुबह करीब दस बजे लेह के होटल से निकल गए। कल शाम को जोरावर फोर्ट जाते समय ओल्ड बस स्टैण्ड के पास पंजाबी वैष्णो ढाबा का बोर्ड दिखाई दिया था। आज वहीं नाश्ता करने का मन था। होटल से निकल कर सीधे उसी ढाबे पर पंहुचे। टोनी की तबियत ठीक नहीं थी,उसने सुबह स्नान भी नहीं किया था। टोनी और प्रकाश को छोडकर हम तीनों ने नाश्ता किया। यहां से आगे बढे तो कारगिल रोड पर करीब पच्चीस किमी आगे गुरुद्वारा पत्थर साहिब पर पंहुचे। गुरुनानक देव यहां आए थे। गुरुद्वारे के सामने की पहाडी पर एक राक्षस रहता था,जिससे लोग बहुत परेशान थे। जब गुरुनानक देव यहां आए तो लोगों ने उन्हे बताया कि यह राक्षस बहुत परेशान करता है। तब गुरु नानक देव ने इसी स्थान पर अपना डेरा जमाया। राक्षस ने गुरु नानक देव को मारने के लिए एक बडा पत्थर उनपर लुढकाया। वह पत्थर गुरु नानक देव पर आकर मोम का बन गया और बाद में राक्षस उसी मोम में फंस गया। तब उसने गुरु नानक से क्षमायाचना की। यहां के एक पत्थर पर गुरुमुखी लिपी में प्राकृतिक रुप से ओम लिखा हुआ है। गुरुद्वारा पत्थर साहिब पर दर्शन करके लंगर चख के हम आगे बढे। पूछताछ के दौरान पता चला कि मैग्रेटिक हिल दो किमी आगे है। उस स्थान पर पंहुचे,लेकिन वहां कोई प्रयोग नहीं कर पाए। वहीं दुकानदारी जमी हुई थी। एक रेस्टोरेन्ट बना हुआ है,जिसने मैग्रेटिक हिल पर बैरियर लगा दिया है। हम इस पहाडी को चैक नहीं कर पाए। यहां से आगे बढे। अब हमें जाना था आर्यन वैली। कहते है कि आर्यन वैली में वैदिक आर्यों के मूल वंशज रहते है। इन्हे देखने दुनिया भर के लोग आते है। आर्यन वैली हाईवे से भीतर करीब पचास किमी चलने के बाद शुरु होती है। हम भी इसी रास्ते पर चल पडे। समस्या यह थी कि टोनी बीमार था और उसके लिए सफर बडा कष्टदायक साबित हो रहा था। हम आर्यन वैली के रास्ते पर करीब तैरह किमी चले गए,लेकिन आगे सडक़ का काम चल रहा था,रोड जाम थी। पता चला कि करीब एक घण्टा जाम खुलने में लगेगा। इस वक्त 2.25 हो रहे थे। वहीं से वापस लौटने का फैसला किया। आर्यन वैली जाने का आइडिया ड्राप किया और बारह किमी चल कर फिर से हाई वे पर आ गए। कुछ दूर चले तब मैने गाडी चलाने का प्रस्ताव रखा। कारगिल अभी सत्तर किमी दूर था। वहां रुक कर चाय पी और गाडी का स्टैयरिंग मैने अपने हाथ में लिया।
लेह से चले थे,तब से कई पहाडी उतर चुके थे। अब मेरे हाथ में गाडी थी,अभी ढलान चल ही रहा था,लेकिन थोडी ही देर बाड चढाई आ गई। हम लगातार उपर चढते हुए फिर से साढे बारह हजार किमी की उंचाई पर पंहुच गए और फिर नीचे उतरने लगे। यह घाट उतरने के बाद अब रास्ता लगातार घाटी में था। रास्ता नीचे उतरता जा रहा था। इसी दौरान कारगिल डीसी के पीए से बात हो रही थी,कारगिल रेस्ट हाउस में रात रुकने के लिए। पीए मि.करमा ने बताया कि सर्किट हाउस तो नहीं है डाकबंगलो में हमारे लिए कमरे बुक हो गए हैं। हम करीब साढे पांच बजे कारगिल में प्रविष्ट हुए। 1999 से कारगिल शब्द सुन सुन कर परेशान हो चुका था। आज कारगिल पंहुच ही गया।कारगिल में हर महिला पुरुष काले कपडों में नजर आ रहा था। सुन्दर लडकियां भी काले कपडों में थी। पता चला कि मोहर्रम की वजह से सभी ने काले कपडे पहने हुए हैं। डाक बंगला ढूंढते ढूंढते हम कलेक्टोरेट पंहुच गए। यहां डाक बंगला है। वहां मौजूद दो कर्मचारियों से पूछताछ की तो उन्होने कहा कि उन्हे बुकींग की कोई जानकारी नहीं है। कारगिल में दो डाक बंगले है। कर्मचारियों ने दूसरे डाकबंगले पर फोन लगाया तो पता चला कि वहां पर हमारे नाम की बुकींग है। अब हमें वहां जाना था। इसी डाकबंगले पर कर्मचारियों से बातचीत में पता चला कि कल मोहर्रम है और कल कारगिल के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। फिर एक पुलिस वाले से पूछा तो उसने भी यही बताया। यह जानकारी मिलने पर सभी ने कारगिल से आगे बढ कर कहीं ठिकाना ढूंढने का फैसला किया। दूसरे वाले डाक बंगले पर तो हम पंहुचे ही नहीं। सीधे ही कारगिल कस्बे से बाहर हो गए। कारगिल में धारा ३७० हटने का सकारात्मक असर पडा है।
कारगिल का मामला गडबडाने के बाद आगे बढे रास्ते में दो तीन जगह कमरे ढूंढने की कोशिश की,लेकिन हमारी खोज इस रिजोर्ट पर आकर खत्म हुई। यह होटल कारगिल वार मेमोरियल के बेहद नजदीक है। सुबह हम वहां जाएंगे।
टोनी की तबियत अब भी खराब है। उसे एन्टीबायोटिक भी दे रहे है। उम्मीद है कि कल तक वह ठीक हो जाएगा। बस अब सोने का वक्त।
10 सितंबर 2019 मंगलवार (सुबह 7.30)
तोलोलिंग रिजोर्ट द्रास
इस वक्त यहां अच्छी खासी ठण्ड है। इस रिजोर्ट के सामने पहाड है। सामने ही कारगिल वार मेमोरियल है। इसे देखकर श्रीनगर चलेंगे। आज मुहर्रम है। बातचीत से पता चल रहा है कि सारी दुकानें बन्द है। श्रीनगर में घुसने रुकने की व्यवस्था हो पाएगी या नहीं,वहीं जाकर पता चलेगा।
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