हिडिम्बा मन्दिर के पास ही है खाटू श्याम बर्बरीक का स्थान
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)3 सितंबर 2019 मंगलवार (रात 10.00)
होटल चलते चलते पालचन (हिप्र)
दोपहर को भोजन करने के बाद निकले तो कुल्लू से बाहर हो ही चुके थे। अब हमें मनाली पंहुचना था। हम शाम करीब पांच बजे मनाली पंहुच गए। गूगल मैप पर हिडिंबा मन्दिर देखा तो पता चला कि जहां हम थे,हिडिंबा मंदिर भी वहीं दिख रहा था। गाडी पार्क की,भीतर जाने का टिकट पचास रु.प्रतिव्यक्ति था। 5 टिकट लेकर भीतर गए तो पता चला कि यह तो वन विहार है। हिडिंबा मन्दिर तो अभी तीन किमी आगे है। इस गार्डन में नीचे एक छोटा सा तालाब बनाकर इसमें पैडल बोट भी डालकर रखी है। यह सिर्फ एक उद्यान था,जिसमें देवदार के बडे बडे पेड थे।
15 मिनट इस उद्यान में घूमकर बाहर निकले। बाहर ही माल रोड थी। एकाध घंटे मालरोड पर घूमे। टोनी ने बालिका पावनी के लिए कुछ गर्म कपडे खरीदे। अब यहां से बढे तो हमारा लक्ष्य था हिडिंबा मंदिर। हिडिंबा मंदिर बेहद उंची पहाडी पर था। हिडिंबा मंदिर में पंहुचे और दर्शन किए। हिडिंबा मंदिर महाभारत काल में भीम की राक्षस पत्नी के नाम पर बना है। महाभारत की कथा के अनुसार हिडिंब वन में हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था और यहां से गुजरने वाले मनुष्यों को मार कर खा जाता था। भीम ने हिडिंब का वध कर दिया तब उसकी बहन हिडिंबा ने भीम से विवाह कर लिया। हिडिंबा से भीम को घटोत्कच नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हुआ,जिसे आजकल खाटू श्याम कहा जाता है। कहते है कि बर्बरीक के पास तीन तीर थे और इनमें से हर एक तीर पूरी दुनिया को नष्ट करने की क्षमता वाला था। उसके दो तीर तो भगवान कृष्ण ने अपनी चतुराई से नष्ट करवा दिए थे,लेकिन उसके पास एक तीर और बचा था। महाभारत के युध्द में भाग लेने के लिए जब बर्बरीक चला तो उसने अपने गुरु से कहा कि वह हारने वाले की मदद करेगा। कृष्ण ने सोचा कि अगर बर्बरीक कौरवों से मिल गया तो पांडव जीत नहीं पाएंगे। भगवान कृष्ण ने चतुराई से उसे रोका और उससे दान मांगा। बर्बरीक ने कहा कि जो चाहो मांग लो। भगवान ने उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक ने कहा कि वह सिर देने को तैयार है,लेकिन उसकी इच्छा है कि वह महाभारत का युध्द देख सके। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसका सर काट कर एक उंचे टीले पर रख दिया जहां से उसने पूरा महाभारत युध्द देखा। हिडिंबा मंदिर के पास ही बर्बरीक का स्थान भी है। हम वह भी देख कर आए।
अब हमें वशिष्ट होकर कोठी पंहुचना था। कोठी में हमने एफआरएच बुक करवा रखा था। वशिष्ठ रास्ते में ही था। वशिष्ट मन्दिर में गर्म पानी के कुंड है। हम चले। इस वक्त साढे छ: हो रहे थे। मनाली लेह हाईवे पर चल रहे थे। उमीद थी कि हम वशिष्ठ पंहुचेंगे,लेकिन वशिष्ट तो आया ही नहीं,हम सात बजे तक कोठी पंहुच गए। हम बीच में कहीं रास्ता चूक गए थे। कोठी पंहुचे तो कोठी में एफआरएच ढूंढते हुए कोठी से दो किमी आगे निकल गए। फिर लौट कर आए तो पता चला कि जहां पीडब्ल्यूडी आरएच का रास्ता है,वहीं से आगे एफआरएच है। रास्ता बेहद संकरा था,फिर भी उस रास्ते पर आगे बढे। अंधेरा हो चुका था। टूटा फूटा रास्ता पांच सौ मीटर आगे जाकर खतम हो गया। आगे एक नाले ने रास्ता बंद कर दिया था। एफआरएच अभी बहुत दूर नजर आ रहा था। वहां एफआरएच था भी या नहीं,पता नहीं। रास्ता बंद था। अब कोई चारा नहीं था। वापस लौटना था। गाडी पलट नहीं सकती थी। जैसे तैसे रिवर्स करके गाडी वापस लाए। अब तय हो चुका था कि एफआरएच नहीं है। रात गुजारने के लिए होटल ढूंढना था। ओयो पर होटल बुक किया। होटल दो किमी पीछे था। फिर पीछे लौटे। होटल में आ गए। अभी आठ बजे थे। इस होटल में रुके। अब सोने का समय। कल लेह की यात्रा शुरु करेंगे।
4 सितंबर 2019 बुधवार (सुबह 7.45)
होटल चलते-चलते (पालचन-कोठी) मनाली रोहतांग रोड
इस वक्त तीन लोग तैयार हो चुके है और दशरथजी और अनिल तैयार हो रहे हैं। हमने सुबह आठ बजे निकलने की समय किया था। सबकुछ ठीक ही था,लेकिन इस वक्त एक नई समस्या सामने हैं। रात को एक डेढ बजे दशरथ जी के दाए पैर की कनिष्ठिका उंगली में जबर्दस्त दर्द होने लगा था। उनका दर्द अभी भी जारी है और समस्या यह है कि इस वजह से वे अपना दाया पैर जमीन पर भी नहीं रख पा रहे हैं।
ऐसे में अब डाक्टर की जरुरत है। अब या तो हम पीछे मनाली जाएं या आगे केलांग पंहुचकर डाक्टर को दिखाएं। यह तय हुआ कि केलांग ही जाते है। केलांग करीब सौ किमी दूर है। चार से पांच घंटों में हम केलांग में होंगे।
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