Wednesday, November 20, 2019

लद्दाख कश्मीर यात्रा-3

 रोहतांग पास से गुजर कर डाक्टर और डीजल की तलाश

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4 सितंबर 2019 बुधवार (रात 9.20)
पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस जिस्पा(हिप्र)

इस वक्त रात के केवल 9.20 हुए हैं,लेकिन हम सोने की तैयारी में है। सुबह जल्दी छ: बजे हम यहां से निकल जाएंगे।
सुबह हम ठीक आठ बजे,होटल चलते चलते से निकल पडे थे। रोहतांग पास यहां से 40 किमी दूर था। शुरुआती रास्ता ठीक था,लेकिन थोडी ही देर बाद बेहद खराब रास्ता आ गया। जगह जगह लैंड स्लाइडिंग के कारन पतथर कीचड,हज से ज्यादा उबड खाबड रास्ता। हम चलते रहे,लेकिन रोहतांग पास से 15 किमी पहले बडा जाम लगा हुआ था। इस जाम में हम करीब ढाई घंटे फंसे रहे। सारा ट्रैफिक रोहतांग पास तक ही था। हम करीब बारह बजे रोहतांग पास पर पंहुच गए।
वहां रुक कर कुछ फोटो विडीयो बनाए। जल्दी ही वहां से निकल पडे।  आगे करीब पन्द्रह किमी तक बेहद खराब रास्ता था,लेकिन फिर इसके बाद शानदार रास्ता शुरु हो गया। बीच में कहीं कहीं पथरीला उबड खाबड रास्ता था,लेकिन कुल मिलाकर रास्ता अच्छा था।
हम करीब सवा दो बजे केलांग के पास पंहुच गए। टोनी एक बजे से भूख लगने की बात कह रहा था। तय ये हुआ था कि भोजन केलांग में करेंगे। केलांग में ही दशरथ जी को डाक्टर को दिखाना था। केलांग पंहुचे,तो एक रास्ता सीधे बाहर जा रहा था और दूसरा रास्ता केलांग गांव के भीतर जा रहा था। केलांग हिमाचल प्रदेश का जिला मुखयालय है। हमें दशरथ जी के लिए दवाईयां भी लेना थी। केलांग गांव का रास्ता तीखी ढलान वाला बेहद संकरा रास्ता था। टोनी ने थोडी सी आपत्ति की लेकिन मैने कहा कि दशरथ जी के लिए दवाईयां लेना है। केलांग के भीतर घुसे। बेहद संकरा रास्ता,लेकिन तभी अस्पताल का बोर्ड नजर आ गया। हम आगे बढते गए,लेकिन तभी एक मेडीकल स्टोर नजर आया। मैं वहां उतर गया। रास्ता बेहद संकरा था,इसलिए बाकी के लोग गाडी लेकर आगे बढ गए। मेडीकल स्टोर वाले ने बताया कि अस्पताल तो पीछे छूट गया है।  मोबाइल से फोन करके गाडी को वापस बुलाया। रास्ता इतना संकरा था कि गाडी बडी मशक्कत से पलट पाई। अब हम गाडी में बैठ कर अस्पताल के लिए चले। ये रास्ता भी बेहद संकरा था,लेकिन जैसे तैसे हम अस्पताल पंहुच ही गए। अस्पताल पर भी गाडी को पलटाना बेहद कठिन था। मैं और दशरथ जी अस्पताल में चले गए,बाकी तीनों गाडी को पलटाने के काम पर लग गए। उधर डाक्टर अभी आया नहीं था। मैं दशरथ जी को अस्पताल में बैठा कर वापस आया तब तक गाडी पलट चुकी थी,लेकिन जगह नहीं थी। कुछ ही देर में डाक्टर आ गया। उसने दशरथ जी को देखा। दशरथ जी को एक साधारण दर्द निवारक गोली लिखी और यूरिक एसिड का टेस्ट कराने की सलाह दी। इस समय हम जांच तो करवा नहीं सकते थे। अस्पताल के बाहर मेडीकल स्टोर था। उसे खुलवाया,लेकिन इटोरिकोक्सिब टेबलेट वहां उपलब्ध नहीं थी। ये दवा पहले वाले मेडीकल पर उपलब्ध थी। लेकिन अब गाडी वहां लेकर जाना संभव नहीं था। गाडी को नुक्कड पर छोडकर मैं और प्रकाश पैदल दवा लेने गए। दवा लेकर लौटे तब तक गाडी आगे बढ चुकी थी और ऐसी जगह खडी थी,जहां थोडी सी जगह उपलब्ध थी। हम दवा लेकर लौटे,लेकिन पैदल चढाई चढने में हमारा दम फूल गया। खैर हम गाडी पर पंहुचे और जल्दी ही केलांग से लेह वाले रास्ते पर आ गए। पांच सौ मीटर आगे ही होटल थे। अब तीन बज चुके थे और सभी को जोरदार भूख लग चुकी थी। एक होटल पर भोजन का आर्डर दिया। गोभी की सब्जी और दाल,साथ में तवा रोटी। भोजन शानदार था। भोजन करते कराते साढे तीन बज गए। तभी ध्यान में आया कि गाडी में डीजल डलवाना है। होटल वाले से पूछा तो उसने बताया कि डीजल सात किमी पीछे मिलेगा। आगे अब लेह तक कहीं डीजल नहीं मिलेगा।  अब सात किमी पीछे टेंडी तक जाना था। अभी मेरा और दशरथ जी का भोजन बाकी था। तब टोनी और प्रकाश ने कहा कि वे जाकर डीजल डलवा लेंगे। वे दोनो गाडी लेकर चले गए। हमने भोजन किया,चाय पी। पन्द्रह -बीस मिनट गुजर गए।
हमारे भोजन के दौरान बाइकर्स का एक ग्रुप भी वहां पंहुचा था। उनके साथ एक लडकी भी थी। बातचीत हुईतो पता चला कि ये लोग केरल से बाइक से निकले है। सभी विद्यार्थी थे और पिछले बारह दिनों से बाइक यात्रा करके यहां पंहुचे थे। अब लेह जा रहे थे।
भोजन करके डीजल डलवाकर निपटे,तब तक चार बज चुके थे। हमारा अगला पडाव डारचा था,जो कि यहां से केवल 31 किमी दूर था। रास्ता बेहद शानदार था और वहां पंहुचने में ज्यादा समय नहीं लगना था। डारचा के बाद अगला पडाव सरचू है। जो डारचा से करीब अस्सी किमी दूर है। रास्ते में बरलच ला पडता है,जो कि करीब पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर है। अगर जाम ना लगा हो तो हम वहां पंहुच सकते थे,लेकिन हम केलांग से चले तो जिस्पा से निकलते हुए 3 किमी आगे डारचा पंहुच गए। जिस्पा में मुझे पीडब्ल्यूडी आरएच का बोर्ड नजर आया था। लेकिन उस वक्त हम आगे निकल गए थे। डारचा में घुसने के पहले पुलिस की चैकींग थी। वहां गाडी नंबर आदि नोट कराए। वहीं के पुलिसकर्मी से पूछताछ की तो उसने सलाह दी कि आप यहां मत रुको,पीछे जिस्पा में जाकर रुको। वहां रुकने की ठीकठाक व्यवस्था है।  शाम करीब साढे पांच बजे जिस्पा लौटे। पीड्ब्ल्यूडी रेस्ट हाउस पर थोडी सी मशक्कत के बाद रुकने की व्यवस्था हो गई।  लेकिन यहां भोजन की कोई व्यवस्था नहीं थी।
यहां पंहुचकर यह भी तय हुआ कि सुबह छ: बजे यहां से निकल जाना है इसलिए जल्दी भोजन करके सोना चाहिए। यहां नजदीक ही एक ढाबा है,लेकिन आज यह ढाबा बंद था। करीब एक किमी आगे एक होटल में जैसे तैसे भोजन मिल गया। टोनी,दशरथ जी और अनिल ने भोजन किया। मैने थोडी सी सब्जी खाई। प्रकाश तो भोजन करने आया ही नहीं था। भोजन करके लौटे तो घर पर वैदेही को फोन किया। रेस्ट हाउस के बाहर से बीएसएनएल का नेटवर्क मिल रहा था। बातचीत करके,डायरी से जुडा। अब सोने की तैयारी.....। शुभ रातरी..।
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