साढे सत्रह हजार फीट की उंचाई पर ड्राइविंग और हाई अल्टी का असर
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)5 सितंबर 2019 गुरुवार (दोपहर 11.35)
(सरचू-टंगलंग ला रोड पर पांग से 14 किमी पहले किसी स्थान पर)
हम काफी देर से इस जाम में फंसे थे। मैने सोचा कि डायरी ही निकाल ली जाए,लेकिन अब जाम खुल गया है और अब गाडी आगे बढ गई है।
5 सितंबर 2019 (दोपहर 12.15)
पांग( 15280 फीट)
इस वक्त हम पांग पंहुच चुके है और अभी भोजन का वक्त है।
हम सुबहं ठीक छ: बजे जिस्पा से निकल गए थे।
रास्ता कहीं कहीं बेहद शानदार और कहीं कहीं बेहद खराब था। बडे बडे पत्थरों पर से गाडी निकालना पड रही थी। शुरुआती रास्ता अच्छा था। हम करीब सवा आठ बजे बरलच ला पास पर पंहुच गए थे। बरलच ला दर्रा भी करीब सौलह हजार फीट की उंचाई पर है और यहां हाई अल्टीट्यूड पूरा असर दिखाता है। बरलच ला पार करके अगला ही गांव सरचू था। सरचू पंहुचने का रास्ता बेहद खराब था।
असल में सडक़ का काम चल रहा था। इस वजह से डायवर्जन बनाए हुए थे। सरचू हम करीब दस बजे पंहुच गए थे। सरचू से पांग 71 किमी दूर है। सरचू से जैसे ही निकले,बेहद शानदार सिंगल रोड मिली। ये रोड करीब 40 किमी तक अच्छा था। फिर बीच में बेहद खराब रास्ता आ गया। दस पन्द्रह किमी खराब सडक़ के बाद फिर से इस पडाव तक करीब पन्द्रह किमी का रास्ता अच्छा था। अब हम भोजन करने वाले हैं। हमें बताया गया है कि यहां से आगे का रास्ता अच्छा है. देखते है क्या होता है?
5 सिंतबर 2019 (रात 10.00)
होटल ब्ल्यू बू इन,मेन बाजार लेह
इस वक्त हम लेह के मेन बाजार में स्थित होटल ब्ल्यू बू इन में ठहरे हुए हैं। यह होटल हमारे लिए लेह की प्रोटोकाल असिस्टेंट ने बुक किया था। सर्किट हाउस में कमरे नहीं थे,इसलिए उसने इस होटल में एक दिन ठहरने का प्रस्ताव दिया था। होटल कुछ महंगा था,लेकिन हम इतने थके हुए थे कि हमें तुरंत रुकने की जगह चाहिए थी।
अब बात दोपहर की। पांग में भोजन करने के लिए रुके थे। पांग में जिस होटल पर गए वह होटल वाली मैदे की ठंडी रोटियों को गर्म करके खिला रही थी। दशरथ जी ने तीन प्लेट भोजन का आर्डर दे दिया था। जब रोटियां ठंडी दिखी तो टोनी नाराज हो गया। उसने खाने से इंकार कर दिया। हांलाकि उस पर हाई अल्टी का असर पहले से ही शुरु हो गया था। मैने उसे कहा कि वह किसी दूसरे होटल में गर्म खाना बनवा लें,लेकिन वह नाराज हो चुका था। इसी गुस्से में उसने कुछ भी नहीं खाया। उसकी हालत पहले ही खराब थी। भूखा रहने से और खराब हो गई। प्रकाश की हालत भी ठीक नहीं थी। उसका पेट गडबड हो रहा था। उसने भी कुछ नहीं खाया। अनिल ने भी नहीं खाया। मैने और दशरथ जी ने भोजन किया। मैने जैसे तैसे दो रोटियां खाई। हमें बताया गया था कि आगे का रास्ता अच्छा है। अच्छा क्या,रास्ता बेहद शानदार टू लेन था।
पांग से निकलते ही करीब 40 किमी तक घाटी थी। समतल रास्ता था। पांग से टंगलंग ला करीब 75 किमी था। पांग करीब साढे पन्द्रह हजार फीट की उंचाई पर था,जबकि टंगलंग ला साढे अठारह हजार फीट की उंचाई पर है। सभी लोगों पर हाई अल्टी का असर अभी जारी रहना था। रास्ता अच्छा था,इसलिए दिक्कतें कम थी। हम करीब ढाई बजे टंगलंग ला पर पंहुच गए। यहां करीब बीस मिनट तक रुके। फोटो और विडीयो बनाए। रास्ते भर बाईकर्स और साइकिल से इस रास्ते को पार करने वाले मिलते रहे।
टंगलंग ला के बाद रास्ता आसान और नीचा था। टंगलंग ला पार करते ही कई पहाड लगातार उतरना पडते है। फिर रास्ता नदी के साथ चलने लगता है। हम शाम चो छ: बजे लेह पंहुच गए।
दो दिन पहले टोनी ने ओयो से लेह में होटल बुक करवाया था। आधा घंटा सफर करके,पूरा बाजार पार करके हम वहां पंहुचे तो उसने रुम देने से साफ इंकार कर दिया। हम पांच लोगों में से अब सिर्फ दशरथ जी का फोन चालू था। उन्होने चलने से पहले जियो का पोस्टपेड कनेक्शन ले लिया था। दशरथ जी के पोन से मैने लेह की प्रोटोकाल असिस्टेंट को फोन किया। उसने बताया कि मेन बाजार में होटल ब्ल्यू बू इन में सौलह सौ रु.प्रति कमरे के हिसाब से कमरे मिल जाएंगे। इधर अब अंधेरा होने लगा था। होटल महंगा था,लेकिन दो लोग ढीले पड चुके थे। मैने फौरन इसी होटल को हां कहा और हम इस होटल में आ गए। यहां आए। सैटल हुए।
टोनी की तबियत खराब हो चुकी थी। उसे अब बुखार आने लगा था। कमरे में आते ही उसने बिस्तर पकड लिया था। भोजन करने के लिए बाजार जाने को भी वह तैयार नहीं था। उसने कहा कि उसके लिए हम कुछ लेकर आ जाएं,ताकि वह यहीं खा लेगा।
होटल की मैनेजर से शुध्द शाकाहारी होटल के बारे में पूछा और बाजार में उस होटल पर पंहुचे। मुझे तो भोजन करना नहीं था। दशरथ जी और अनिल ने भोजन किया। टोनी के लिए दाल चावल पैक करवा कर लाए. उसने कमरे पर थोडा सा भोजन किया।
अब सोने की तैयारी....।
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