लेह में हाल आफ फेम और कारगिल वार का लाइट एण्ड साउण्ड शो
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)06 सितंबर 2019 शुक्रवार (रात 9.00)
होटल सिटी हार्ट,मेन बाजार लेह
दिन भर लेह घूमघाम कर वार मेमोरियल हाल आफ फेम से कारगिल वार का लाइट एंड साउंड शो देखकर इस वक्त मैं और अनिल होटल में आ गए हैं। बाकी तीनों बाजार में खरीददारी करने गए हैं।
आज की सुबह हम इस होटल में आ गए थे। कल जो होटल किया था,वह महंगा भी था और कमरे तो अच्छे थे,लेकिन पूरी तरह पैक थे। हवा आने की कोई जगह ही नहीं थी। रात को सफोकेशन की वजह से नींद ही नहीं
आ पाई। रात को दो बजे कमरे का दरवाजा खोला,बाहर जाकर खुली खिडकी से ताजी सांस ली। फिर दरवाजा खुला रखकर ही सोया। तब भी ठीक से नींद नहीं आई। यह पहले ही सोचा था कि सुबह होटल बदलना है। सुबह वाले होटल का चटैक आउट टाइम सुबह नौ बजे का था। इसलिए जो करना था,जल्दी करना था।
मैने ओयो पर चैक किया,तो इस होटल से महज 750 मीटर की दूरी पर यह होटल दिखाया जा रहा था,जहां अन्य सारी सुविधाओं के अलावा पार्किंग सुविधा भी थी। ओयो से तुरंत बुक किया। मैं और अनिल होटल देखने आए। यह पहले वाले से बहुत अच्छा था। कमरे भी तल मंजिल पर थे। कम कीमत के थे। यहां पोहे का नाश्ता भी मिल गया।
कई दिनों बाद पोहे खाए। मजा आ गया। अब चले लेह घूमने। सीधे पंहुचे,लेह पैलेस। यह तिब्बती शैली में बना हुआ प्राचीन महल है। लद्दाख के नामग्याल राजाओं ने इसे सन---- में बनवाया था। यह बैहद सुन्दर महल है। कई मंजिला यह भवन पारंपरिक तरीके से लकडी और मिट्टी से बनाया गया है। इसकी एक खासियत यह भी है कि यहां के सारे दरवाजे बेहद छोटे हैं और यहां झुककर ही जाना पडता है।यहां सौ से ज्यादा छोटे कमरे बने हुए हैं,जो राज कर्मचारियों के लिए थे। महल के भीतर बौध्द मंदिर भी है। कई बडे हाल भी है। इन दिनों एएसआई द्वारा इस महल को प्राचीन स्वरुप में वापस लाया जा रहा है। महल की दीवारों पर बने तिरों और पैंटिग्स को फिर से रंगा जा रहा है। जहां जहां महल जीर्न शीर्न हुआ था,उसकी भी मरममत की जा रही है।
महल देखकर नीचे उतरे तो ध्यान आया कि नूब्रा वैली और पैंगोंग लेक पर जाने के लिए इनर लाइन परमिट बनवाना है।महल से लौटकर मेन बाजार स्थित पर्यटक सूचना केन्द्र पंहुचे। वहां पता चला कि परमिट तो डीसी आफिस में बनेगा। डीसी आफिस पंहुचे,तो वहां के कर्मचारियों ने वहां मौजूद एक लडकी के साथ जाने को कहा। तेनङ्क्षजंग नाम की यह लडकी ट्रेवल एजेन्ट थी। डीसी आफिस के बाहर ही उसकी दुकान थी। उसने परमिट के लिए आईडी कार्ड मांगे। फिर बात आई गाडी के परमिट की। तब पता चला कि यदि गाडी आपकी है,तो आप ले जा सकते हैं,लेकिन किसी और की है तो फिर गाडी नहीं ले जा पाएंगे। उसने कहा कि आप डीसी से मिल लो,वो परमिट दे देगा तो आप अपनी गाडी से जा पाएंगे।
मैं और दशरथ जी डीसी आफिस पंहुचे। यहां सचिन कुमार वैश्य कलेक्टर है। कलेक्टर को कार्ड भेजा तो उसके एक कर्मचारी ने कहा कि आप एडीएम से मिल लो। एडीएम निचली मंजिल पर बैठता था। वह कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस का अधिकारी था। उसने कोई भी मदद करने से साफ इंकार कर दिया। हम फिर उपर डीसी के पास पंहुचे। डीसी की बजाय डीसी के पीए से मिले। पीए ने हमें समझाया कि गाडी के परमिट की कोई जरुरत नहीं होती,लेकिन टैक्सी यूनियन वालों ने अपने चैक पोस्ट बना रखे है। वो प्राइवेट गाडियां बाहर की गाडियां चैक करते है। अगर गाडी आपकी निजी है,तो कोई बात नहीं लेकिन अगर नहीं है,तो आपकी गाडी को नुकसान पंहुचाया जा सकता है। मारपीट भी की जा सकती है,और हम आपको सुरक्षा नहीं दे सकते। उसने कहा आप डीसी से मिल लो,कभी कोई रास्ता निकला तो दूसरे टूरिस्टों को भी फायदा हो जाएगा। हमने फिर डीसी से मुलाकात की कोशिश की,लेकिन वह बहुत ज्यादा व्यस्त था और किसी कार्यक्रम के लिए निकल रहा था। मुलाकात नहीं हो पाई। अब एक ही रास्ता था,टैक्सी किराए पर लेकर जाने का।
इस वक्त दो बजे थे। हम ट्रेवल एजेंट की दुकान पर पंहुचे। तेनजिंग का बडा भाई आ गया था। उसने कहा कि आप विचार कर लो,तीन बजे भी आप कहोगे,तो कल का परमिट बन जाएगा।
अब हम चले सिन्धु दर्शन करने। मनाली लेह हाईवे पर करीब आठ किमी दूर सिन्धु दर्शन घाट बना हुआ है। इन्द्रेश जी के सिन्धु दर्शन कार्यक्रम के चलते यहां खुला आडिटोरियम और घाट बना हुआ है। हम वहां पंहुचे। थोडी देर रुके। फोटो और विडीयो बनाए।
अब हम चले वार मेमोरियल देखने। वार मेमोरियल का टिकट दो सौ रु.है। लेकिन दो सौ रु. में मेमोरियल के साथ लाइट एंड साउंड शो,जोरावर सिंह फोर्ट और वहां का लाइट एंड साउंड शो का भी टिकट इसमें शामिल था। वार मेमोरियल में कारगिल वार के फोटो युध्द के वीर नायकों के फोटो,उनके लिखे पतर,प्रयुक्त हथियार वगैरह प्रदर्शित किए गए हैं। हर पर्यटक को यह देखना ही चाहिए। अब सवा तीन हो चुके थे। अब यह तय हुआ कि हम नुब्रावैली और पैंगोंग लेक के लिए टैक्सी लेकर जाएंगे। ट्रेवल एजेन्ट को परमिट की राशि चुकाई। टैक्सी भी उसी ने कराने का प्रस्ताव रखा,जिसे हमने स्वीकार कर लिया। यहां टैक्सी यूनियन ने हर स्थान का किराया तय किया हुआ है। परमिट बनवाने का बोल कर हम वहां से निकले। अब चार बज रहे थे और तेज भूख लग रही थी। हमारे होटल के बाहर ही एक रेस्टोरेन्ट है। वहीं भोजन किया। टोनी और अनिल बाजार घूमने चले गए और हम यानी मैं,दशरथ जी और प्रकाश होटल में आ गए। हमें छ: बजे परमिट लेने और सात बजे लाइट एंड साउंड शो देखने जाना था।
होटल पर आराम करने के दौरान मैने कमलेश से पिन्टू (आनंद शुक्ला) का नंबर लिया। पिन्टू आजकल भारतीय सेना में लेफटिनेंट कर्नल है। बात यह थी कि दशरथ जी की बडी इच्छा थी,बार्डर पर जीरो पाइंट तक जाने की। ट्रेवल एजेन्ट ने कहा कि अगर आर्मी में कोई परिचित हो तो परमिशन मिल सकती है,वरना वहां नहीं जा सकते। पिन्टू का नंबर आया तो मैने उसे फोन किया। उसने कहा कि वह थोडी देर में वह पता करके बताएगा। एक घंटे में उसका फोन आ गया। पूरे सियाचीन एरिया के ब्रिग्रेडियर सा. से उसकी बात हो गई थी और ब्रिग्रेडियर के एडीसी कैप्टन दीपक का नंबर उसने भेजा। उसने कहा आप बात कर लो। मेरी कैप्टन दीपक से बात हुई। उन्होने कहा कि परमिट का मामला वे ही देखते है। कोई समस्या नहीं,आप को जहां जाना हो,आप जा सकते हो। मजा तो तब आ गया,जब उन्होने रात रुकने की व्यवस्था करने को भी कहा। यह बात सुनकर सभी खुश हो गए। दशरथ जी तो खुशी से नाचने लगे। अब यह तय हो गया कि हम पैंगोंग लेक नहीं जाएंगे। खरंदुंगला टाप होकर तुर्तुक और वहां से आगे सीमा के आखरी गांव ठांग तक जाएंगे। रात भी वहीं गुजारेंगे।
इस वक्त शाम के साढे छ: हो गए थे। हम होटल से निकले। ट्रेवल एजेन्ट से परमिट लिया।बार्डर पर जाने के लिए टैक्सी तय कर ली। सात दस पर हम वार मेमोरियल पर पंहुच गए। वार मेमोरियल के पिछले हिस्से में लाइट एंड साउंड शो किया जाता है। यह साढे सात पर शुरु हो जाता है। लेकिन आज काफी देरी हो रही थी। पता चला कि कारगिल युध्द में शहीद कैप्टन विक्रम बतरा के भाई वहां आ रहे थे। इसलिए शो देरी से शुरु हुआ। आधे घंटे बाद बेहद प्रभावी ढंग से कारगिल युध्द जीवंत कर दिया गया था। शो देखने के लिए सैकडों लोग मौजूद थे। भारत माता की जय के नारे गूंज रहे थे। पता चला यह शो अभी एक महीने से ही शुरु हुआ है। कारगिल विजय दिवस से ही यह शुरु किया गया है।
कारगिल युध्द में एक हजार सात सौ सैनिक अधिकारी शहीद हो गए थे। उस वक्त तो इसे युध्द भी घोषित नहीं किया गया था। लेकिन बाद में इसे युध्द कहा जाने लगा। लौटते समय इसी पर चर्चा होती रही कि उस जमाने में भारत की एप्रोच कितनी ढीली थी,अगर उस समय नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री होता तो युध्द के दूसरे मोर्चे भी खोल दिए जाते। कारगिल की चोटियों पर बैठे दुश्मन पर एयर फोर्स से हमला कर दिया जाता और पाकिस्तान का पूरा निपटारा ही हो जाता। केवल नेता बदलने से ही देश के तौर तरीके और दुनिया के देशों का तरीका भी बदल गया। अब भारत घुस कर मारता है और पाकिस्तान घबरा रहा है।
यही बातें करते हुए हम मेन बाजार तक पंहुच गए। कैमरे के लिए मेमोरी कार्ड और कुछ अन्य चीजें खरीदना थी। मेन बाजार में गाडी पार्क करने की जगह नहीं है। गाडी को होटल की पार्किंग में ही पार्क करना था। दशरथ जी,टोनी और प्रकाश बाजार में उतर गए । मैं और अनिल गाडी लेकर होटल आ गए।
यहां आकर हमने 8 तारीख के लिए इसी होटल की बुकींग भी कर ली। हमारी गाडी यहीं पार्क रहेगी। अभी तक हमारे साथी लौटे नहीं है और हम उनका इंतजार कर रहे हैं।
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