खारदुंगला और नूब्रा वैली के साथ ठांग से पीओके का नजारा
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)8 दिसंबर 2019 (सुबह 9.00)
162 आरडी,आर्मी रेस्ट हाउस,परतापुर
इस वक्त हम परतापुर के आर्मी रेस्ट हाउस में स्नान करके नाश्ता करने की तैयारी में है। बात कल से शुरु करता हूं। कल सुबह हम करीब सवा नौ बजे होटल से निकले। नाश्ता करना था। ड्राइवर पुनचुक ने कहा कि
नाश्ता रास्ते में करेंगे।
गाडी चली। थोडी ही देर में खारदुंगला का चढाई वाला रास्ता शुरु हो गया। जबर्दस्त तीखी चढाई,घुमावदार रास्ते और उंचाई बढने के साथ तेजी से कम होती आक्सिजन। आक्सिजन की कमी का ही असर था कि नींद आने लगी।
गाडी में मौजूद सभी लोग झपकियां लेते हुए चल रहे थे। खारदुंगला,लेह से चालीस किमी दूर है। करीब सवा घण्टे की यात्रा के बाद हम दुनिया की सबसे उंची सडक खारदुंगला टाप पर पंहुच गए। 18500 फीट से अधिक की उंचाई पर आक्सिजन बेहद कम थी। गाडी से उतरते ही कडाके की ठण्ड से सामना हुआ। सभी ने अपनी जर्किनें पहन ली। बाहर निकलते ही केन्टीन नजर आया। अभी तक कुछ खाया नहीं था। केन्टीन में जाकर मैगी खाई। काफी पीकर बाहर निकले। अब खारदुंगला टाप पर फोटोग्राफी का मौका था।केन्टीन के सामने सडक के दूसरी ओर करीब तीस फीट उंची टेकरी पर खारदुंगला गोम्पा है। धीरे धीरे सीढियां चढकर गोम्पा पर पंहुचे। यहां फोटो खींचे। विडीयो बनाए। गोम्पा के सामने सडक़ के दूसरी ओर शिव मन्दिर भी है। वहां पंहुचे। शिव मन्दिर के भी फोटो लिए। मैं विडीयो बना रहा था,तभी आर्मी के एक जवान ने आकर रोका और बोला डिलीट करो। मैने उसे दिखाया कि डिलीट कर रहा हूं,लेकिन डिलीट किया नहीं। वह संतुष्ट होकर लौट गया।
करीब पैंतालिस मिनट खारदुंगला पर गुजार कर हम आगे बढे। करीब आधे घण्टे की लगातार उतराई के बाद अब हम नूब्रा वैली में प्रविष्ट हो चुके थे। हम डिस्कीट पंहुच चुके थे। यहां हमने भोजन किया। यहां मैन्यू में मैने वेज थुप्का देखा,तो उसी का आर्डर किया। अभी तक मुझे पता नहीं था कि थुप्का क्या होता है? थुप्का आया,तो पता चला कि नूडल्स में कई तरह की सब्जियां,गोभी,मशरुम,पालक इत्यादि डाले जाते है। इसी को थुप्का कहते है। यह मजेदार था। भोजन करने के बाद हम आगे बढे।
आगे लगातार घाटी थी। आगे परतापुर था,जहां सेना की चैक पोस्ट थी। यहां पंहुचकर मैने कैप्टन दीपक को फोन लगाया। उन्होने बताया कि हमारे ठहरने की व्यवस्था यहां से तीन किमी आगे 162 आरडी के रेस्ट हाउस में है। हम वहां पंहुचे और पूछताछ करने के बाद आगे बढे। खुबसूरत नूब्रा वैली में गाडी चलती रही। करीब दस किमी बाद रास्ता पहाड पर चढ गया। शेयोक नदी हमारे साथ साथ चल रही थी। खतरनाक बहाव के साथ। पहाडी पर चढा रास्ता आगे बढ कर नीचे उतरा और नदी का पुल पार करके हम फिर से घाटी में उतर गए। आगे तुर्तुक गांव आया।
वास्तव में खारदुंगला टाप से उतरने का रास्ता लगभग साठ किमी का है और इसके बाद डिस्कीट गांव से नूब्रा वैली शुरु हो जाती है। दोनो ओर आसमान छूते भूरे मटमैले पहाड,बीच में बहती शेयोक नदी और नूब्रा घाटी। यहां एक और चमत्कार है। डिस्कीट से हिमालय का रेगिस्तान भी शुरु हो जाता है। ये रेतीला रेगिस्तान करीब तीस किमी में फैला है। डिस्कीट से शुरु हुआ रेगिस्तान हुंदर तक चलता रहता है। ये दृश्य भी मजेदार है कि रेगिस्तान जैसे रेतीले टीले और गांवों में चीड के उंचे वृक्ष और जबर्दस्त हरियाली। वास्तविक रेगिस्तान में हरियाली नहीं होती,लेकिन हिमालय के रेगिस्तान में हर कहीं हरियाली है। ऐसा विरोधाभासी दृश्य एक साथ पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं दिखाई देता है। खारदुंगला से उतरने के बाद जगह जगह सेना के कैम्प है। तुर्तुक से आगे ग्याक्षी गांव है और इससे आठ किमी आगे भारतीय सीमा का आखरी गांव ठांग है। हमें वहीं तक जाना था। परतापुर (प्रताप पुर) से आगे बढे तो दाई ओर की पहाडी पर सेना के कई बंकर दिखाई देते रहे।
ग्याक्षी के आगे सामान्य पर्यटकों का जाना मना है। लेह से जो इनर लाइन परमिट बनता है,वह तुर्तुक तक का ही होता है। हमें ग्याक्षी में पुलिस चैक पोस्ट पर रोका गया। कैप्टन दीपक से पुलिसकर्मी की बात करवा कर हम आगे बढे। करीब पांच किमी बाद दाई ओर ठांग गांव दिखाई देने लगा। यहीं से दो रास्ते निकल रहे थे। एक सीधा सामने जा रहा था। यही जीरो आरडी तक जाने का रास्ता था। दूसरा रास्ता दाई ओर मुड कर नदी के पुल पर जा रहा था,जो आगे ठांग गांव तक जाता है।
इसी स्थान पर सेना का चैकिंग बूथ था। पंजाब रेजीमेन्ट को दो जवान यहां मौजूद थे। यहां बैरियर भी लगा हुआ था। इन जवानों की बात भी कैप्टन दीपक से करवाई। फिर हमें आगे जाने की अनुमति दी गई। यहां से तीन किमी आगे जीरो आर डी पोस्ट है। यहां जगह जगह बोर्ड लगे हैं,यू आर ईन एनिमिज आब्जरवेशन। यानी आप दुश्मन की निगाहों में है। सामने की पहाडी के उफर पाकिस्तान सेना की पोस्ट है।
हम जीरो आर डी पोस्ट पर पंहुच गए। यहां हमारे आने की खबर थी। पंजाब रेजीमेन्ट के एक युवा स्मार्ट फौजी ने हमारा स्वागत किया। यहां पर एक गोलाकार कमरा बना हुआ है,जिसमें कई दूरबीनें लगी हुईं है। प्रत्येक दूरबीन अलग अलग बिन्दुओं पर सैट है। एक दूरबीन से सीमा पार बसा पाकिस्तानी गांव नजर आता है,तो दाई ओर की पहाडी पर मौजूद पाकिस्तानी पोस्ट दूसरी दूरबीन से नजर आती है। कुछ दूरबीनों से भारतीय और पाकिस्तानी पोस्ट देखी। अमनदीप नामक इस फौजी ने हमें बताया कि 1971 से पहले तुर्तुक ग्याक्षी और ठांग पाकिस्तान के कब्जे में थे। 1971 में युध्द के दौरान यहां के कमांडिंग आफिसर की बहादुरी के चलते इन सभी इलाकों को भारतीय सेना ने कब्जे में ले लिया था। 16 दिसम्बर 1971 को युध्द विराम हो जाने के कारण आगे के गांवों पर कब्जा नहीं किया जा सका। यदि फौजे नहीं रुकती तो पाक अधिकृत कश्मीर का इस तरफ वाला काफी इलाका भारत के कब्जे में आ सकता था। भारतीय सीमा के आखरी छोर पर एकाध घण्टा गुजार कर हम बाहर निकले। युवा फौजी अमनदीप को कई धन्यवाद ज्ञापित कर जब बाहर आए,तो नई मुसीबत सामने खडी थी। गाडी ने स्टार्ट होने से इंकार कर दिया। करीब एक घण्टे तक हम गाडी से जूझते रहे। अंधेरा भी घिरने लगा था। डर ये था कि यदि गाडी स्टार्ट नहीं हुई तो क्या होगा?
(अगला भाग पढने के लिए यहां क्लिक करें)
No comments:
Post a Comment