शांतदुर्गा मंदिर के असवैधानिक नियम
11 नवंबर 2019 सोमवार (रात 11.00)श्री शांतादुर्गा मंदिर गोवा
आज का पूरा दिन कई सारे सत्रों में गुजर गया। सुबह की शुरुआत साढे पर हुई। नाश्ते के तुरंत बाद सभाकक्ष में पहला सत्र हुआ। पहले सत्र में श्री शांतादुर्गा संस्थान के कोई पदाधिकारी आए थे,जिन्होने कोठारी सम्मेलन को अपनी तरह का अनूठा आयोजन बताया। दूसरा सत्र सवा ग्यारह बजे शुरु हुआ। इस सत्र में इस क्षेत्र के प्रख्यात जानकार चन्द्रकान्त धूमे ने श्री शांतादुर्गा मंदिर के इतिहास और नियमों पर प्रेजेन्टेशन दिया। श्री धूमे ने बताया कि किस तरह यहां शांतादुर्गा की प्रतिमा लाई गई और किस तरह मंदिर का निर्माण हुआ। यह सारा इतिहास प्रसन्न जी मजूमदार (मंगेश प्रकाशन) ने प्रकाशित कर संस्थान को भेंट किया है। यह पुस्तक मैने भी खरीदी।
श्री धूमे के भाषण का दूसरा खंड यहां के नियमों के बारे में था। उन्होने बताया कि श्री शांतादुर्गा और मंगेश के लिए शासन द्वारा विशेष कानून बनाया गया है। इसी के तहत इन मंदिरों का संचालन होता है। इस मंदिर की स्थापना करने वालों के वंशज ही इस मंदिर की प्रबन्ध समिति के सदस्य यानी महाजन बन सकते हैं। हम कोठारी के पूर्वज इस मंदिर की स्थापना में सहभागी थे,इसलिए हम यहां के महाजन बनकर चुनाव में मताधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन इसके बाद जो उन्होने बताया,वह बडा आपत्तिजनक था। यहां की प्रबन्ध कारिणी ने जो नियम बनाए है,वो कतई तर्कसंगत नहीं है और पूरी तरह असंवैधानिक है। इनका नियम यह है कि यदि कोई गौड सारस्वत ब्राम्हण(जीएसबी) किसी अन्य जाति की लडकी से विवाह करता है तो उसकी मंदिर के गर्भगृह में जाकर देवी का अभिषेक करने की पात्रता समाप्त हो जाती है। ये नियम सरासर मूर्खतापूर्ण है। क्योंकि महिला,जिस जाति के पुरुष से विवाह करती है,उसी जाति में प्रविष्ट हो जाती है। संतानों का कुल और जाति पिता से ही तय होती है,ना कि माता से। मैं तो यह सुनकर भी हैरान हो गया कि गोवा के कुछ मंदिरों में आज भी दलितों को प्रवेश नहीं दिया जाता।
अब सवाल आता है महाजन बनने का। यहां का हर वंशज महाजन बनने का अधिकारी है। उसे आवेदन पत्र भरकर देना होता है और कम से कम दो महाजनों की सिफारिश करवानी होती है। महाजन बनने का फार्म जब मेरे पास आया,तो पता चला कि महाजन बनने वाले की माता के पीहर की जाति और गौत्र तो पूछा ही जाता है पत्नी का गौत्र और जाति के साथ साथ पत्नी के माता पिता के गौत्र और जाति की भी जानकारी मांगी जाती है।
मैने भी फार्म भरा और उसमें साफ लिख दिया कि मेरी धर्मपत्नी विवाह के पहले मुस्लिम थी. इसलिए उसकी जाति और गौत्र मैने नहीं लिखी। अब देखना है कि मेरा आवेदन स्वीकार होता है या निरस्त? निरस्त होने की स्थिति में इस नियम को हाईकोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है। अब देखते है कि क्या होता है?
धूमे सा. के व्याख्यान के बाद दोपहर का भोजन हुआ। शानदार कोंकणी डिशेज परोसी गई। भोजन के बाद के सत्रों में कोठारी परिवार के विशीष्ट जनों ने अपनी योग्यताओं और विशेषज्ञताओं की जानकारी दी। भोपाल एम्स के प्रोफेसर डॉ.शशांक कोठारी ने दिव्यांग लोगों के लिए चल रही नई योजनाओं की जानकारी दी। बार्क (भाभा एटोमिक रिसर्च सेन्टर) की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.कांचन कोठारी ने रेडियो फार्मास्यूटिकल्स पर उपयोगी जानकारी दी। सौ.वन्दना मजूमदार (नागपुर) ने आई क्लीन नागपुर नाम से उनके द्वारा चलाए जा रहे अभियान पर प्रकाश डाला।
आखरी सत्र में डॉ.रोहित फलगांवकर ने गोवा के देवस्थानों के इतिहास की रोचक जानकारियां दी। उनके मुताबिक गोवा में मूलत: सांतेरी देवी ही हर जगह है। शांतादुर्गा भी सातेरी से शांतेरी,शांतेरी से शांताई और आखिर में शांतादुर्गा बन गई। उन्होने गोवा के कई देवस्थानों की विस्तार से जानकारी दी।
इस सत्र के बाद कुछ देर का विराम दिया गया। आखरी सत्र कोठारी परिवार के सदस्यों को अपनी योग्यताएं प्रदर्शित करने का था। इस सत्र में बांसवाडा से आए राजन कोठारी की नन्ही पोतियों ने सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किए। वैदेही ने अपनी कविता सुनाकर तारीफ बटोरी। कई अन्य लोगों ने गीत कविता गाने आदि प्रस्तुत किए। अब रात के नौ बज चुके ते। भोजन भी लगा दिया गया था और भोजन के साथ साथ मनोरंजन कार्यक्रम चलता रहा।
दोपहर में ही वन्दू ताई के सत्र के दौरान मैने अपनी पुस्तक कारसेवा आंखो देखी भी वितरित कर दी। कई लोगों ने इसकी तारीफ की। कुछ ने तो मेरे हस्ताक्षर भी पुस्तक पर करवाए। शाम को टोनी ने गोवा पंहुच जाने की भी खबर दी। आज वो लोग किसी महंगे होटल में रुके है। कल कोई नया इंतजाम करेंगे। कल हम लोग भी उधर पहुचेंगे।
आज का दिन पूरा मंचीय कार्यक्रमों को सुनते हुए गुजरा है। कल दोपहर तक सम्मेलन का समापन हो जाएगा। फिर गोवा में नए ढंग से घूमेंगे।
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