Friday, May 1, 2020

जैसलमेर डेजर्ट सफारी-3

प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

कुलधारा के उजड़े गांव,किले और बॉर्डर की रक्षा करती तनोट माता 


2 जनवरी 2020 बुधवार (सुबह 10.15)

व्हायएचएआई कैम्प जैसलमेर
इस वक्त सुबह के सारे काम निपटा कर अब स्नान की तैयारी है। कडाही में पानी गर्म हो रहा है। पानी गर्म हो जाएगा तभी स्नान हो पाएगा। कैम्प के वाहन से घूमने जाने वाले निकल चुके हैं। हमें अपनी गाडी से जाना है,इसलिए हम देर से भी जाए तो भी चलेगा। पकौडे चाय का नाश्ता हो चुका है। आलू की सब्जी और पूडी का लंच पैक किया जा चुका है।

अब कहानी कल की। कल सुबह निकलते निकलते दोपहर के बारह बज गए थे। ठण्ड तब भी जबर्दस्त थी और तापमान पांच डिग्री बना हुआ था। धूप निकली नहीं थी। हमें सीधे तनोट माता जाना था। तनोट माता मन्दिर यहां से एक सौ दस किमी दूर है। साठ किमी पर रामगढ है,जहां एशिया का सबसे उंचा टीवी टावर बनाया गया है। यह दो सौ अस्सी मीटर उंचा है। रामगढ पंहुचे तो वहां चाय,आलू की कचौरी आदि का नाश्ता निपटाया।
हम सडक़ के दोनो तरफ रेतीले टीलों को देखते हुए चलते रहे। सीधी शानदार सडक़। रास्ते में धाराऊ  नामक गांव है,जहां सम की ही तरह रेतीले टीले हैं। यहां कई पर्यटक रुक कर फोटोग्राफी कर रहे थे। हिमांशु ने कहा कि हम यहां रुकते है,लेकिन मैने मना किया,क्योंकि समय कम था। हम 1.50 पर तनोट माता पंहुच गए। यहां भारी भीड थी। ढेरों गाडियां। लम्बी कतारें। पहली बार मैं जब मोटर साइकिल से यहां आया था,तब यहां गिने चुने लोग ही आते थे,लेकिन अब भारी भीड पडने लगी है। तनोट माता वह चमत्कारी मन्दिर है जहां 65 और 71 के युध्द में पाकिस्तान द्वारा फेंके गए हजारों बम फटे ही नहीं। ये गोला बारूद आज भी मन्दिर में सजा कर रखा गया है। इस मन्दिर की सारी व्यवस्था बीएसएफ ही करती है।


















 तनोट माता के दर्शन करने में करीब आधा घण्टा लगा। दर्शन करने के बाद भोजन करने की योजना थी। तनोट से लोंगेवाला के रास्ते में पांच सात किमी आगे बढकर एक जगह सडक़ किनारे गाडी रोक दी। इस वक्त चमकीली धूप खिली हुई थी,लेकिन हवाएं तेज और बेहद ठण्डी थी। ये हवाएं धूप के असर को पूरी तरह खत्म कर दे रही थी।  मैने और हिमांशु ने तो कार के बोनट पर भोजन के डिब्बे रखकर पुडी और छोले का भोजन किया। अचार भी था,सेव हम साथ में लाए थे। भोजन के बाद यहां से चले। दोपहर करीब साढे तीन पर लोंगेवाला पोस्ट पर पंहुच गए। यहां सबकुछ बदल चुका है। पहली बार जब हम यहां आए थे,पाकिस्तानी सेना के टेंक और वाहन ठीक उसी अवस्था में पडे थे,जैसे वो छोडकर भागे थे। दूसरी बार आए,तो टैंक को एक प्लेटफार्म बनाकर उस पर रखा गया था। इस बार तो पूरा दृश्य ही बदला हुआ है। यहां लोंगेवाला म्यूजियम बना दिया गया है। पाकिस्तानी टैंक वाहन इत्यादि सुव्यवस्थित खडे कर दिए गए हैं। बंकर आदि बनाकर प्रदर्शन के लिए तैयार किए गए हैं। यहां के म्यूजियम में लोंगेवाला युध्द की एक फिल्म भी दिखाई जाती है,जिसका शुल्क पच्चीस रु. है। एक बंकरनुमा हाल बनाया गया है,जिसमें फिल्म दिखाई जाती है। हिमांशु ने फिल्म देखने से इंकार कर दिया। वहीं के केन्टीन पर चाय पीकर मैं और वैदेही कुशाग्र को साथ लेकर फिल्म देखने गए। फिल्म से निकल कर म्यूजियम में पंहुचे। अब पांच बज चुके थे। यह वापसी का वक्त  था। हम शाम साढे छ: बजे कैम्प पर लौटे।  यहां शाम के भोजन में कढी खिचडी बनी थी।



 आज नए साल का पहला दिन था। हमने कैम्प आयोजकों से कहा कि यहां आग जलाकर कुछ नाच गाना किया जाए। कैम्प लीडर घनश्याम खत्री जी ने खुशी खुशी सारी व्यवस्था करवाई। खत्री जी व्हायएचएआई से लम्बे समय से जुडे है और ट्रैकिंग करते हुए सारी दुनिया घूम चुके हैं। काफी देर उनसे चर्चा होती रही। नम्बरों का आदान प्रदान हुआ। वे चले गए। इधर आग जल चुकी थी और गानों पर नाच हो रहा था। करीब एक घण्टे अच्छी धमाल हुई। इसी दौरान हिमांशु किचन में बच्ची के लिए दूध लेने गया। वहां मौजूद किसी व्यक्ति ने उससे बदतमीजी करते हुए दूध देने से इंकार कर दिया। अब ये विवाद बढने लगा। हिमांशु ने व्हायएचएआई के रतन भाटी को फोन लगा दिया। गरमागरमी चलती रही। फिर घनश्याम खत्री वहां आए। उन्होने हिमांशु को शांत किया। दूध की व्यवस्था तो हो ही गई थी। रात को ग्यारह बजे टेंट में सोने के लिए घुसे। बीती रात स्लीपिंग बैग में सोने का अनुभव शानदारक रहा था,इसलिए कल की रात भी स्लीपिंग बैग में ही बडे मजे में कटी। आज की सुबह भी ठण्ड उतनी ही खतरनाक थी। इस वक्त पानी के गर्म फिर आज का भ्रमण शुरु होगा।

3 जनवरी 2020 शुक्रवार (रात 10.30)
ओयो होटल उदयपुर वैली,उदयपुर

इस वक्त हम उदयपुर से ठीक बाहर एक ओयो होटल उदयपुर वैली में रुके हैं। टीवी पर जी न्यूज चल रहा है। यहां हम पौने नौ बजे पंहुचे थे। यहां आकर भोजन आदि करके अब सोने का वक्त है। अब डायरी से जुडा हूं तो कहानी वहीं से जहां छोडी थी.....
कल (2 जनवरी)सुबह डायरी लिख रहा था। स्नान में देरी हुई। हम लोग पौने बारह बजे कैम्प से निकल पाए। कुशाग्र पिछले दो दिनों से बोटिंग की जिद कर रहा था। कैम्प से निकल कर सीधे गडीसर लैक पर पंहुचे। बोटिंग का चार्ज टू सीटर पैडल बोट का दो सौ रु.था। हमने दो टू सीटर पैडल बोट ली। कुशाग्र हमारे साथ था। बोटिंग की कुछ फोटो बनाए। मैं और वैदेही कुछ जल्दी लैक से बाहर आ गए। हम लोग करीब सवा एक बजे लैक से बाहर निकले। पटवा हवेली देखना कैंसल किया। यहां से सीधे कुलधारा के लिए रवाना हुए। कुलधारा जैसलमेर से 18 किमी दूर है। जैसलमेर के पास पालीवाल ब्राम्हणों के कुलधारा समेत 84 गांव थे। ये सारे गांव रातो रात उजाड हो गए थे। पालीवाल ब्राम्हण बेहद सम्पन्न थे। लेकिन जैसलमेर के एक मंत्री का दिल एक बालीवाल लडकी पर आ गया। उसने कहा कि मैं लडकी को उठाकर ले जाउंगा। इस मुसीबत से बचने के लिए पालीवालों ने रातोरात सारे गांव छोड दिए। तब से सभी गांव उजडे हुए हैं। कई सारी फिल्मों में कुलधारा समेत इन गांवोंकी शूटिंग हुई है। हम लोग कुलधारा पंहुचे। प्रतिव्यक्ति 20 रु. टिकट है,गाडी का शुल्क 50 रु।
 यहां फोटो लिए। कुलधारा से बाहर निकल कर खाभा फोर्ट के रास्ते में एक जगह रुक कर  दरी बिछा कर भोजन किया। यहां से खाभा फोर्ट 18 किमी दूर था। इस वक्त सवा तीन बजे थे। हमें आज ही सम भी जाना था। सम पंहुचने का समय चार सवा चार का था। मैने कहा कि हम खाभा फोर्ट जाकर सही समय पर सम पंहुच सकते हैं। हम खाभा फोर्ट पंहुच गए। यह पालीवाल ब्राम्हणों की राजधानी थी।यहां बेहद शानदार जानकारियां थी,जो मैने फोटो खींचकर प्राप्त कर ली। फोर्ट के बाहर का गांव भी उजडा हुआ गांव है। इसके कुछ फोटो बनाकर बाहर आए तो पता चला कि यहां से सीधे सम का रास्ता भी है। मात्र 21 किमी की यात्रा करके हम हम सम पंहुच गए।  सम पंहुचते ही एख व्यक्ति ने जीप सफारी और कैमल सफारी का आफर दिया। तीन हजार रु. का। मैने डेढ हजार लगाए आखिर में साढे सत्रह सौ में बात तय हो गई।
 हम लोग अपनी गाडी छोडकर जीप में सवार हो गए। अर्चना और गौरवी को आगे ड्राइवर के साथ बन्द केबिन में बैठा दिया। हम लोग पीछे खुले हिस्से में खडे और बैठे थे। हमें तीन डेजर्ट पर जाना था। मुगल डेजर्ट, रायल डेजर्ट और एक अन्य डेजर्ट। फोर व्हील गाडी,रेतीले टीलों पर उपर नीचे चढती उतरती गाडी में पिछले खुले हिस्से में टिके रहना बेहद रोमांचक था। ठण्डी हवाओं में जीप सफारी काफी मजेदार रही। आखरी डेजर्ट पर वहां की स्थानीय महिलाओं ने लोकगीत सुनाकर दोनो महिलाओं को नाच भी नचवाया। जीप सफारी से लौटे तो दो ऊंट आ गए। ऊंटों पर भी वही व्यवस्था। कुशाग्र हमारे साथ था। बमुश्किल बीस मिनट की कैमल सफारी। सम के रेतीले टीलों पर कैमल सफारी करने के बाद अब लौटने  का समय। लौट कर आए,चाय पी।
जैसलमेर यहां से मात्र 37 किमी था। हम शाम 6.40 पर जैसलमेर पंहुच गए। वैदेही और अर्चना की जिद शापिंग करने की थी। जैसलमेर के पंसारी बाजार पंहुचे। यह बाजार किले के गेट के पास ही है। ऋ षभ जैन के रिश्तेदार की दुकान थी,कपडों की। वहां वैदेही और अर्चना को भेजा। इस दौरान किले के मुख्य द्वार के नजदीक पकौडे,हाट डॉग और फिर सूप का मजा लिया। वैदेही को सूप बहुत पसन्द आया। फिर हिमांशु ने भी वेज सूप पिया।
हम लोग आठ बजे कैम्प पर वापस लौटे। डिनर तैयार था। कढी खिचडी। तुरंत सभी को भोजन के लिए भेजा।  कल सुबह रवानगी होना है। ठण्ड भी कम हो गई थी। सुबह हमें रवाना होना है। सुबह जल्दी निकलने की योजना है।

अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

No comments:

Post a Comment

अयोध्या-3 /रामलला की अद्भुत श्रृंगार आरती

(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे )  12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)  साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43   अयोध्या की यात्रा अब समाप्...