कड़ाके की सर्दी में रेगिस्तान का सफर
(29 दिसंबर 2019 से 4 जनवरी 2020)29 दिसंबर 2019 (रात 10.17)
---- होटल जोधपुर
पिछली गोवा यात्रा के ठीक 42 दिन बाद मै सपत्नीक जैसलमेर की यात्रा पर निकल चुका हूं।
जैसलमेर की यह यात्रा अचानक ही बन गई। मेरी कोई खास इच्छा नहीं थी,लेकिन यूथ होस्टल के फैमिली केम्पिंग में 22 दिसंबर को भी न्यू इयर केम्प की बुकींग मिल गई। हिमांशु भी सपरिवार आने का इच्छुक था। अचानक ही बुकींग कन्फर्म हो गई। अब यह तय हो गया था हिमांशु और मैं सपरिवार जैसलमेर यात्रा पर जाएंगे। मै यानी हम तो सिर्फ दो थे,मैं और वैदेही।
हिमांशु के साथ उसकी पत्नी अर्चना,बेटा कुश और नन्ही बिटिया गौरवी इस तरह कुल चार लोग। योजना के मुताबिक हम आज सुबह पौने दस पर हिमांशु की नई वेन्यू गाडी से रतलाम से रवाना हो गए। योजना के मुताबिक रात्रि विश्राम जोधपुर में करना था। रतलाम से निकले,जावरा से बाहर निकल कर जोयो होटल में पौहे कचौरी का नाश्ता किया। फिर आगे बढा। गाडी हिमांशु चला रहा था। मैं आगे बैठा था। कुश मेरे साथ था। जावरा के जोयो होटल में गाडी की डिक्की का सारा सामान व्यवस्थित किया,जिससे पिछली सीट पर रखे सामान को भी डिक्की में जगह मिल गई और सीट खाली हो गई।
जावरा से मन्दसौर,नीमच,निंबाहडा होकर आगे बढे। दोपहर करीब ढाई बजे एक माहेश्वरी होटल में भोजन किया। कुछ रास्ता नेशनल हाईवे पर था,तो कुछ स्टेट हाई वे पर। कभी धीमे और कभी तेज चलते हुए आखिरकार शाम साढे सात पर हम जोधपुर पंहुच चुके थे। दो-तीन होटल देखे और आखिरकार शाम आठ बजे इस होटल में चैक इन कर लिया। चैक इन करते ही नरेन्द्र शर्मा का फोन आ गया। उसने बताया कि वह भी यूथ होस्टल के फैमिली कैम्प में ही था। वह आज ही वहां से निकला था और इस वक्त जैसलमेर के स्टेशन पर था। उसने बताया कि केम्प की व्यवस्थाएं कमजोर है। वहां जाकर देखते है कि कैसी व्यवस्था है?
इस होटल में ही नीचे रेस्टोरेन्ट भी है। होटल में ही भोजन किया। मुझे तो भोजन करना नहीं था,बाकी सब ने भोजन किया। सारे काम निपट गए है। अब सोने का वक्त। कल सुबह नौ बजे यहां से निकलेंगे और मेहरानगढ और उम्मेद भवन पैलेस देखकर शाम तक जैसलमेर पंहुचने का इरादा है।
सौ साल पुराना उम्मेद पैलेस और पांच सौ साल पुराना मेहरान गढ़
31 दिसंबर 2019 सोमवार (9.30 प्रात:)
व्हायएचएआई कैम्प,जैसलमेर
सुबह के साढे नौ बजे हैं,लेकिन सूरज का अता पता नहीं है। जबर्दस्त ठिठुरन है,हाथ पैर ठण्डे हो रहे हैं। ऐसे वक्त में मै डायरी खोल चुका हूं।
कल,सुबह 9.30 पर जोधपुर के होटल से रवाना हुए थे। होटल से निकलते ही गूगल मैप की मदद से उम्मेद पैलेस पंहुचे। इसका निर्माण महाराज उम्मेद सिंह ने करवाया था। इसका इतिहास यह है कि 1920 के दशक में मारवाड में लगातार तीन साल तक भीषण अकाल पडा। इस अकाल से लोगों को राहत दिलवाने के लिए तत्कालीन महाराजा उम्मेद सिंह ने इस महल की योजना बनाई और काम शुरु करवाया,जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल पाया। महाराजा उम्मेज सिंह मारवाड के 37 वें शासक थे। उम्मेद भवन पैलेस 1943 में बनकर तैयार हुआ। इसका डिजाईन इटली के प्रसिध्द वास्तुकार हैनरी वान लैनचैस्टर ने तैयार किया था। लैन चैस्टर नई दिल्ली के वास्तुकार एडविन लुटियंस के समकालीन थे,इसलिए इसकी सरंचना दिल्ली के भवनों से मिलती जुलती है। उम्मेद भवन पैलेस आज भी निजी सम्पत्ति है और यह दुनिया के सबसे बडे निजी महलों में से एक है। इसमें 347 कमरे है। इसके वर्तमान मालिक महाराज गजसिंह है। 1972 में इसे निजी होटल ग्रुप ताज ग्रुप को दे दिया गया। तब से यहां के एक बडे हिस्से में होटल संचालित हो रहा है। एक हिस्सा राजपरिवार के आवास के रुप में उपयोग में आता है,जबकि एक छोटे हिस्से में संग्रहालय बनाया गया है,जो आम पर्यटकों के लिए खुला है।
हम करीब एक डेढ घण्टे में उम्मेद भवन पैलेस घूम कर अब मेहरान गढ के लिए चले।
साढे ग्यारह बज चुके थे। मेहरानगढ किले के द्वार तक पंहुचते पंहुचते करीब बारह बज गए। किला घूमने में कम से कम दो घण्टे लगते है। भीतर घुसे तो अचानक नजर लिफ्ट पर पडी। लिफ्ट से पर्यटकों को सीधे उपर ले जाया जाता है। लिफ्ट के लिए लम्बी कतार लगी थी,लेकिन फिर भी समय बचाने के लिए हम लिफ्ट में चढ कर उपर पंहुचे। उपर से किले में बनाया गया म्यूजियम जल्दी जल्दी देखते हुए नीचे उतरे। इस किले में हम साथ साथ है फिल्म के म्हारा हिवडा में नाचे मोर गाने की शूटिंग हुई थी।
वैसे मेहरान गढ भारत के प्राचीनतम दुर्गों में से एक है।जोधपुर के पन्द्रहवें शासक राव जोधा ने 12 मई 1459 को इसकी नींव रखी थी और यह महाराजा जसवंत सिंह (1638-78) के समय में बनकर तैयार हुआ। यह किला मैदान से करीब 125 मीटर उंचाई पर स्थित है और दस किमी लम्बी उंची दीवार से सुरक्षित किया गया है। इसमें मुख्यरुप से चार द्वार बनाए गए थे। बाद के शासकों ने अपनी आवश्यकता के मुताबिक तीन द्वार और बनवाए। इस तरह इस किले में कुल सात द्वार और एक गुप्त द्वार है। किले में कई सुन्दर महल और दर्शनीय कलाकारी है। इसमें एक संग्रहालय भी बना दिया गया है,जहां राजपूती राजाओं के अस्त्र शस्त्र,पालकियां,उनके उपयोग में आने वाली वस्तुएं कपडें इत्यादि प्रदर्शित किए गए हैं। किले से उतरते वक्त किले के एक द्वार पर राजस्थानी वेशभूषा में लोक गायकों का संगीत सुनना बेहद आनन्ददायक था। यह लोकसंगीत किले में आने जाने वालों को अपनी ओर खींच लेता है।
बहरहाल,हम करीब सवा बजे किले से बाहर निकले। हमने जानकारी के अभाव में गाडी को कोफी दूर पार्क कर दिया था,जबकि यहां किले के गेट के सामने भी पार्किंग है। खैर,हम नीचे पंहुचे और ठीक डेढ बजे गाडी में सवार होकर जैसलमेर के लिए निकल पडे। रास्ता टू लेन है,लेकिन बेहद शानदार। रास्ते में ढाई बजे एक होटल में राजस्थानी भोजन किया। शाम को पौने छ: बजे हम जैसलमेर मे व्हायएचएआई कैम्प पर आ गए।
यहां जबर्दस्त ठण्ड थी। इसलिए दो दो कंबल आदि लिए। टेण्ट अलाट करवाए। टेण्ट में सारा सामान टिका कर चाय पीने के लिए शहर के हनुमान चौक पर पंहुचे। चाय पीकर लौटे। साढे सात पर डिनर सर्व कर दिया गया। मेरे अलावा सभी ने डिनर किया।
रात को जबर्दस्त ठण्ड बर्फीली हवा। चार कम्बल शाल आदि से नींद तो बढिया आ गई,लेकिन आज सुबह उठते ही कडकडाती ठण्ड से मुकाबला हुआ। इस वक्त टेण्ट में मोजे पहनकर बैठा हूं फिर भी पैर सुन्न हो रहे हैं।
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