तालाब पर परिन्दों की फोटोग्राफी
प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें1 फरवरी दोपहर 3.45
बेसला कैम्प,गांधीसागर
इस वक्त हम बेसला के वन चौकी परिक्षेत्र सहायक के घर पर रुके हुए हैं और शाम की बर्ड्स वाचिंग के लिए जाने को तैयार है। हमारे दो साथी आशुतोष पण्डित जी स्नान कर चुके है और प्रत्यूष स्नान करने गया हुआ है। दोनो ही उज्जैन के हैं और फोटोग्राफर है। आशुतोष जी बर्डिंग करते हैं और उन्हे इस विषय का अच्छा ज्ञान है।
आज की सुबह मैं साढे छ: पर उठ गया था। जहां हम रुके हैं वहां टायलेट बना हुआ है,लेकिन दरवाजे ठीक से नहीं लगते। हमें कोई फर्क नहीं पडता।
सुबह उठ कर तुरंत फ्रैश हुए। यहां बाहर ही नीम का पेड लगा हुआ है। मुझे तो मजा आ गया। नीम की दातुन करके मैं तो पूरी तरह तरोताजा हो गया। सुबह करीब सवा सात बजे हम यहां से निकल गए। पास में ही तालाब है,जहां हमें बर्डिंग करना थी। भूख भी लग रही थी। तालाब के रास्ते में एक दुकान पर पोहे भी मिल गए। मजा आ गया। मैने पोहे दबाए,चाय पी। अब तो आनन्द आ गया था। अब हम चले तालाब पर बर्डिंग करने। तालाब पर पंहुचे। अभी करीब साढे सात बजे थे। आज तक परिन्दों के पीछे नहीं भागे थे। कल डॉ.पाण्डे का भाषण सुनने के बाद हम भी उत्साहित हो गए थे। तालाब पर ना जाने कितने परिन्दे इधर उधर उड रहे थे। कई सारे फोटो बनाए। अब पता चला कि अपना कैमरा तो बेहद कमजोर है। बर्डिंग के लिए हाई फाई कैमरे चाहिए। फिर भी अपने छोटे से कैमरे से कई सारे फोटो बनाए। सवा घण्टा कब गुजर गया पता ही नहीं चला। करीब पौने नौ बजे फारेस्टर बैरागी जी हमें लेने आए। वापस लौटे,उसी दुकान पर फिर से पोहे समोसे चाय का नाश्ता किया।
अब हम रवाना हुए,हमारे बर्डिंग ट्रैल पर। हमे जाना था घारोल घाटी के रपटे तक। बेसला गांव की मुख्य सडक़ से बाई ओर एक संकरी सडक़ पर मुडे। यहां से करीब पांच किमी तक तो पक्की सडक़ है और यहां डायली वन चौकी बनी हुई है। डायली से थोडा आगे जाकर हमारी गाडी कच्चे रास्ते पर उतर गई। अब हम घने जंगल में प्रवेश कर रहे थे। भीतर घुसे,कच्ची सडक़ के दोनो ओर कई तरह परिन्दे उछल कूद मचा रहे थे।
अब तक तो ये शौक सिर्फ राजेश को ही था। वही हमे यहां ले आया। हम आए तो थे जंगल कैम्पिंग करने,लेकिन लगता है कि धीरे धीरे बर्डिंग का कीडा हमें भी लगने लगा है।
सुबह बडे मनोयोग से परिन्दों की फोटोग्राफी की थी। हम तो उनकी प्रजातियों के बारे में कुछ जानते नहीं थे,लेकिन हमारे साथ आए आशुतोष पण्डित जी सबकुछ जानते हैं.उनसे समझ लेंगे।
अब घने जंगल में आशुतोष जी को नए नए परिन्दे नजर आ रहे हैं,और जहां तक संभव हो रहा है मैं भी उनके फोटो ले रहा हूं। इस जंगल में विलुप्त होते जा रहे गिध्द भी बडी तादाद में है। इण्डियन वल्चर,इजिप्शियन वल्चर और ना जाने कौन कौन से गिध्द। इसी तरह उल्लू भी कई तरह के । घने जंगल में भीतर जाने के बाद फिर एक फारेस्ट चौकी आई। यह चौकी रायली चौकी कहलाती है। इस चौकी से हम दाहिने मुडे और कच्चे रास्ते पर चलते रहे। रास्ते में कई जगह पण्डित जी ने गाडी रुकवाई। फोटो लिए। अब दस बजने को थे। मेरे कैमरे की बेटरी अब जवाब देने लगी है। जंगल में भीतर जाने पर एक प्राकृतिक जल ोत नजर आया। हमारे साथी और गाइड बैरागी जी ने यहां गाडी रुकवाई। इस जलोत को रायली कुई कहा जाता है। अब मेरे कैमरे की बैटरी लगभग खत्म हो चुकी थी। एकाध फोटो यहां लिया और कैमरे को बन्द करके रख दिया। लेकिन हमारे पण्डित जी लगातार नई नई प्रजातियों के फोटो ले रहे थे।
अब यहां से बढे। अब हम पंहुचे,घारोल घाटी के रपटे पर। वहां जाने के लिए हमें गाडी को एक पहाडी के उपर छोडना पडा। यहां से ढलान थी। इस ढलान पर हम पैदल ही आगे बढे। करीब एक किमी ढलान पर उतरते हुए हम वहां पंहुचे,जिसे रपटा कहा जा रहा था। यहां भी एक प्राकृतिक जलोत,तालाब सा था। एकदम साफ पानी। आसपास के सारे पेड पौधो के प्रतिबिंब इसमें बन रहे थे। हमें यहीं तक आना था। एक दूसरी पार्टी जो दूसरी तरफ से आ रही थी,उसे साथ लेकर हमें यहां से वापस लौटना था। हम करीब ग्यारह बजे घाटोल घाटी पंहुच गए थे। मेरा कैमरा बन्द हो चुका था इसलिए मैं और अनिल फारेस्टर बैरागी जी के साथ रपटे पर ही टिक गए। पण्डित जी और प्रत्यूष बर्डिंग में व्यस्त हो गए। पण्डित जी अब तक पक्षियों की करीब साठ प्रजातियां देख कर उनके फोटो ले चुके थे। अब साढे बारह हो चुके थे और दूसरी पार्टी का कहीं पता नहीं था। दूसरी पार्टी यहां नहीं पंहुची थी। हम फिर से पहाड चढ कर गाडी के पास पंहुचे। नीचे घाटी में तो किसी भी मोबाइल में नेटवर्क नहीं आ रहा था,लेकिन जहां गाडी खडी थी वहां एक स्थान पर हल्का सा नेटवर्क मिल रहा था। वहां से बैरागी जी ने अन्य वनकर्मियों को फोन लगाया। जिस दूसरी पार्टी का हम इंतजार कर रहे थे,उनके तो फोन आउट आफ नेटवर्क थे,लेकिन एक दूसरी पार्टी के वनकर्मी से बैरागी जी की बात हो गई। यह दूसरी पार्टी बेहद परेशान थी। उनका नाश्ता हमारे पास था। इस पार्टी में दो महिलाएं भी थी। सुबह से उन्होने कुछ भी नहीं खाया था। वो हमारा इंतजार कर रहे थे। पहली पार्टी तो अब तक आई नहीं थी। दूसरी पार्टी डायली चौकी पर इंतजार कर रही थी। हम लोग डायली चौकी के लिए निकल पडे। करीब सवा एक बजे हम डायली चौकी पर पंहुचे। उस पार्टी को समोसे दिए। एक मैडम तो बैंगलोर से आई थी। बेहद नाराज थी। जैसे तैसे शांत हुई। हमारी पार्टी और उनकी पार्टी सारे लोगों को अब भोजन करना था। डायली चौकी से बैसला होकर बैसला से करीब तीन किमी रामपुरा की तरफ एक ढाबे पर भोजन की व्यवस्था थी। मैं और अनिल बैसला में ही रुक गए। हम स्नान करना चाहते थे। बाकी के लोग भोजन करने चले गए।
1 फरवरी 2020 शनिवार रात 11.20
सिंचाई विभाग रेस्ट हाउस गांधीसागर
दोपहर में मैं डायरी लिख रहा था। उस वक्त चार बजे थे,कि अचानक हमें ले जाने वाली गाडी आ गई। हमें शाम की बर्डिंग करना थी। डायरी वहीं रोकी और बर्डिंग के लिए निकल गए।
अब कहानी वहीं से जहां रुकी थी। हम लोग बैसला लौटे,जब मैं और अनिल मेनरोड़ आते ही गाडी से उतर गए। हमने कहा कि हम स्नान करके ढाबे पर पंहुच जाएंगे। जहां हम उतरे थे,वहां से हमारा ठिकाना करीब पांच सौ मीटर दूर था। जहां उतरे थे,वहीं बगल में वो दुकान थी,जहां सुबह नाश्ता किया था। वहां फिर से चाय पी औप अपने ठिकाने पर लौटे। कैमरे की बैटरी खत्म हो चुकी थी,उसे चार्जिंग पर लगाया। एक बाल्टी पानी भर कर उसमें इलेक्ट्रिक राड लगाई। सुबह का बचा हुआ काम निपटाया। शेविंग की। स्नान किया। अब करीब 2.40 हो गए थे। तैयार होकर निकल रहे थे,उसी वक्त हमारे साथी भोजन करके आ गए। वे लोग आराम करना चाहते थे। हम भोजन करने निकल गए। बैसला से करीब तीन किमी आगे ढाबे पर पंहुचे। शानदार स्वादिष्ट भोजन किया। साढे तीन पर जब हम ढाबे से निकल रहे थे,उसी वक्त वो पार्टी वहां पंहुची,जिसका हम डेढ घण्टे तक इंतजार करते रहे थे। उन्हे उलाहना देकर हम बैसला कैम्प पर लौट आए। हमारी जीप अभी आई नहीं थी,इसलिए मैं फिर से डायरी लिखने लगा। सुबह से दोपहर तक का सारा घटनाक्रम लिखा ही था कि गाडी आ गई और हम फिर चल पडे।
इस वक्त साढे चार हो रहे थे। बैसला से चले,तो फिर से वही पांच किमी पक्की सडक़ पर चलकर डायली कैम्प पंहुचे। डायली कैम्प वाली टीम और बैरागी जी को लेकर अब बर्ड्स वाचिंग के लिए चले। शाम के पांच बज चुके थे और अब समय बेहद कम था। गाडी पर सवार होकर 4-5 किमी आगे चलकर एक तालाब पर पंहुचे। अभी पौने छ: हो गए थे। फोटोग्राफी के लिए पन्द्रह बीस मिनट का ही समय बचा था। आशुतोष पण्डित जी ने फिर भी काफी सारे फोटो लिए। कुछ ही देर में सूरज डूब गया और हम लौट पडे। फिर से डायली कैम्प पर पहुचे। अब पौने सात हो चुके थे और अंधेरा घिरने लगा था। बैरागी जी ने चाय का आर्डर दे दिया,इसलिए अभी दस पन्द्रह मिनट और रुकना था।
दोपहर में जब बैसला कैम्प पर पंहुचे थे,उस वक्त राजेश का फोन आया था कि शाम को बर्डिंग के बाद यहीं आ जाओ। एमपीईबी रेस्ट हाउस पर भोजन बनवाने की उसकी इच्छा थी। दोपहर में भोजन करते हुए मैने मन्दसौर में आशुतोष को इस बारे में फोन किया था और उसने सिंचाई विभाग के इस रेस्ट हाउस पर रुकने की व्यवस्था करवा दी थी। हमें शाम की बर्डिंग के बाद यहां पंहुचना था।
डायलीकैम्प से चाय पीकर सवा सात बजे हम बैसला पंहुचे। वहां पंहुचते ही सारा सामान समेट कर हम गांघीसागर के लिए निकल पडे। उन्हे बता दिया कि अब मुलाकात सुबह गांधीसागर में ही होगी। करीब आठ बजे हम गांधीसागर पंहुचे। राजेश को लिया और पौने नौ बजे तीन नम्बर पर स्थित सिंचई विभाग के रेस्ट हाउस में आ गए। इस दौरान राजेश ने मेरे कैमरे के फोटो देखकर बताया कि हमने उन्नीस प्रजातियों के फोटो लिए हैं। हमारे टीम लीडऱ आशुतोष जी ने बताया था कि इसमें पांच ऐसी प्रजातियां भी थी,जिनके फोटो वो भी नहीं ले पाए थे। इनमें से एक तो बेहद दुर्लभ प्रजाति है।
ये शौक बडा निराला है। ये दुनिया ही अलग है। हम सारा दिन यही चिन्ता करते रहे थे कि कि कहीं हमें भी ये शौक और लग गया तो बडी समस्या हो जाएगी। लेकिन फिर भी ये शौक तो लग ही गया। हमें इन परिन्दों के नाम मालूम नहीं है,लेकिन इन्हे कैमरे में पकडने का शौक तो लग ही गया है। अनिल को भी यह शौक लग गया है। अब यही तय हुआ है कि जहां भी बर्ड्स सर्वे होगा,हम जरुर जाएंगे।
बहरहाल,इस वक्त भोजन करने के बाद अब सोने की तैयारी है। कल सुबह हमें बोटिंग करना है। देखते है कैसी होती है?....शुभरात्रि...। 11.44 pm
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