-तुषार कोठारी
कर्नाटक के उडुपी में एक स्कूल से शुरु हुए हिजाब विवाद की आग अब देश के कई कोनों तक फैल चुकी है। यहां तक कि मध्यप्रदेश में भी कहीं कहीं इसकी आहट आने लगी है। मामला हाईकोर्ट में है। लेकिन यह मान लेना कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह विवाद थम जाएगा,बिलकुल सही नहीं होगा। वास्तविकता यह है कि देश में अब इस तरह के बेसिरपैर वाले या कहें बेवजह के विवाद अब बढते जाने वाले है। दस मार्च को यदि उत्तर प्रदेश में दोबारा योगी सरकार बन गई तो ऐसे अवांछित विवादों की बाढ आना तय है। विवाद की असल वजह हिजाब या धर्म पर प्रहार नहीं है,बल्कि मोदी विरोधियों के हाथ आया एक नया हथियार है।
कर्नाटक के उडुपी से शुरु हुए विवाद को एक छोटे से स्कूल का विवाद मान लेना सरासर नासमझी है। इस विवाद की तैयारियां व्यापक स्तर पर और काफी पहले से की जा रही थी। अब इस बात के सबूत सामने आने लगे है कि किस तरह सीएफआई जैसे राष्ट्रविरोधी संगठनों ने इसमें भूमिका निभाई। देश की छबि बिगाडने,केन्द्र सरकार को मुस्लिम विरोधी साबित करने और अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर इन मुद्दें को हवा देने के लिए इस तरह के बैसिरपैर के विवादों को अब लगातार खडा किया जाएगा।
इस विवाद की असलियत को समझने के लिए हमें ज्यादा नहीं,तीन साल या कहें सात सात पीछे जाना होगा। वर्ष 2014 मेंं केन्द्र में भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार बनी। याद कीजिए,मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में इस तरह की बातें सतही स्तर तक थी। विरोध का स्तर,अवार्ड वापसी और बयानबाजी तक सीमित था। देश में सक्रिय लैफ्ट लिबरल लाबी,जेहादी मुस्लिम कïट्टरपंथी तत्व और विपक्ष को नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल में कहीं ना कहीं ये उम्मीद थी कि पांच साल के बाद सत्ता फिर से विपक्षी दलों के हाथों में आ जाएगी। उन्हे उम्मीद थी कि सरकार ना भी बदली तो कम से कम भाजपा बहुमत से कुछ पीछे रह जाएगी और गठजोड की सरकार में प्रधानमंत्री का पद नरेन्द्र मोदी के अलावा किसी अपेक्षाकृत उदारवादी नेता के हिस्से में आएगा। सरकार चूंकि अन्य दलों के समर्थन से बनेगी,इसलिए कमजोर रहेगी और सख्त फैसले नहीं लिए जा सकेंगे।
लेकिन हुआ इसका ठीक उलटा। नरेन्द्र मोदी 2014 से भी ज्यादा प्रचण्ड बहुमत से जीत कर आए और आते ही उन्होने एक के बाद एक कडे फैसले लेने शुरु कर दिए। नरेन्द्र मोदी की लगातार दूसरी सफलता ने पूरे मोदी विरोधी धडे को निराशा से भर दिया। मोदी विरोधी धडा,जिसमें लैफ्ट लिबरल,जेहादी मुस्लिम कïट्टरपंथी और कांग्र्रेस समेत तमाम विपक्षी दल शामिल है। इस मोदी विरोधी धडे को अब लगने लगा था कि नरेन्द्र मोदी को सीधी तरह से राजनीतिक लडाई लड कर,चुनाव जीत कर हटा पाना मुश्किल है,इसलिए विरोध का एक सर्वथा नया तरीका खोज निकाला गया। जिसमें विरोधी खेमे को आंशिक सफलता भी मिली।
विरोध का नया हथियार था किसी भी मुद्द्े पर मुस्लिम महिलाओं को सडक़ों पर उतार देना। इसकी शुरुआत शाहीन बाग से हुई थी। विरोध के नए तरीके में,विरोधी हाथों में तिरंगे झण्डे लेकर,संविधान की दुहाई देते हुए देशविरोधी कृत्य करते है। सामने महिलाओं को रखा जाता है। विरोध का मुद्दा कुछ भी हो सकता है। मुद्दा हो या ना हो,विरोध किया जा सकता है। सीएए एक ऐसा ही मुद्दा था,जिसमें बहस करने वाले अपने तर्क तक नहीं रख पाते थे,हर बहस में एक्सपोज हो जाते थे,लेकिन फिर भी विरोध जारी रहता था। सीएए विरोधी आन्दोलन की परिणति दंगों और अनेक निर्दोषोंं की मौत के रुप में हुई थी।
मोदी विरोधियों को अब सरकार को अस्थिर करने और मोदी को परेशान करने का नया हथियार मिल गया था। सीएए भले ही वापस ना हुआ हो,सीएए विोधी मुहिम को इस पैमाने पर सफल माना गया था कि देश के कोने कोने में शाहीन बाग बन गए थे। विदेशों में भी इसकी जमकर चर्चा हुई थी और सरकार को कई वैश्विक मंचों पर इसका स्पष्टीकरण देना पडा था।
सीएए विरोध की सफलता से उत्साहित मोदी विरोधी खेमें ने दूसरा प्रयोग कृषि कानूनों का विरोध करके किया। यह भी उसी तरह का मामला था,जिसमें तर्क और तथ्यों का कोई आधार नहीं था,लेकिन विरोध करना था,इसलिए साल भर से अधिक वक्त तक विरोध होता रहा। केन्द्र सरकार ने आन्दोलनकारियों पर बल प्रयोग ना करने की अपनी प्रतिबद्धता के चलते जबर्दस्त असफलता झेली। आखिरकार कृषि कानून वापस ले लिए गए। इस विरोध ने मोदी विरोधी खेमे को और भी ज्यादा उत्साहित कर दिया।
अब हिजाब को मुद्दा बनाया जा रहा है,जो कि मुद्दा है ही नहीं। सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी जानता है कि यह मौलिक अधिकारों का प्रश्न नहीं है। किसी भी स्कूल में वहां के गणवेश(यूनीफार्म) को धारण करना अनिवार्य होता है। न्यायालय का निर्णय भी इसी बात पर आना तय है कि यदि स्कूल द्वारा यूनीफार्म निर्धारित है,तो उसका पालन करना अनिवार्य होगा। लेकिन विरोध न सिर्फ जारी है,बल्कि पूरे देश में फैल रहा है। कांग्र्रेस समेत तमाम विरोधी नेता इसमें कूद चुके है। पाकिस्तान समेत विश्व के कुछ अन्य देशों और सेलिब्रिटीज ने भी ट्विट करना शुरु कर दिए है। आन्दोलनकारी यह कहने से भी नहीं चूक रहे है कि हाईकोर्ट चाहे जो निर्णय दे वे हिजाब नहीं छोडेंगे।
कुल मिलाकर विवाद हिजाब का नहीं है। मोदी विरोधी खेमे को पता चल गया है कि घरेलु मोर्चे पर नरेन्द्र मोदी वैसी सख्ती नहीं दिखाते है,जैसी राष्ट्र की सुरक्षा के मुद्दे पर। उन्हे किसी भी कीमत पर देश को अस्थिर और बदनाम करना है। अभी हिजाब को मुद्दा बनाया जा रहा है। इसे जहां तक आगे ले जा सकेंगे,ले जाएंगे। दंगे करने का मौका मिला तो दंगे भी भडकाए जाएंगे। पश्चिम बंगाल के एक स्कूल में हिंसक विरोध की खबरें भी आ ही चुकी है।
दस मार्च को उत्तर प्रदेश चुनावों के परिणामों में यदि भाजपा को सफलता मिली,तो यह तय है कि देश में इस तरह के विवाद और बढेंगे। किसी भी छोटी सी बात को लेकर विरोध शुरु होगा और देखते ही देखते पूरे देश में फैल जाएगा। सामान्य रणनीति यही रहेगी। महिलाओं को आगे रखा जाएगा,हाथ में तिरंगे झण्डे भी होंगे,संविधान की दुहाई भी दी जाती रहेगी,लेकिन काम सारा राष्ट्र विरोधी होगा। इन विरोधियों की मदद करने के तमाम भारत विरोधी देशी विदेशी संस्थाएं सक्रिय है ही।
हाल के हिजाब वाले विवाद में कर्नाटक के मुख्यमंत्री पूरे मामले की जांच एनआईए से कराने की मांग कर चुके है। यह बात तो वैसे ही स्पष्ट है कि इस तरह के हर आन्दोलन या विवाद में देशविरोधी ताकतें सक्रिय रोल निभा रही है। ऐसे में जरुरी है कि अब मोदी सरकार घरेलु मोर्चे पर भी सख्त रुख अपनाना शुरु करें। किसी मुद्दे पर तार्किक विरोध हो तो विरोध को समझा जा सकता है,लेकिन बिना किसी मुद्दे के होते हुए भी विरोध हो रहा हो,तो यह तय है कि मामला कुछ और है। ऐसे तत्वों के खिलाफ कडी कार्यवाही जरुरी है। वरना आने वाले वक्त में देश को बेवजह के कई विवाद झेलने पडेंगे और ना जाने कितने निर्दोषों को अपनी जान गंवाना पडेगी।
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