Saturday, February 12, 2022

बलात्कार और पाक्सो एक्ट के प्रावधानों में जरुरी है तर्कसंगतता,बेवजह सजा भुगतने को विवश है हजारों युवा

 -तुषार कोठारी


दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के बाद पूरे देश में हुए प्रदर्शनों और मीडीया के लगातार हंगामे के बाद जहां सरकार ने बलात्कार सम्बन्धी कानूनों में कडे प्रावधान किए वहीं बच्चों के साथ होने वाले लैैंगिक अपराधों पर नियंत्रण के लिए देश में पाक्सो (प्रोटेक्शन आफ चिल्र्डन्स फ्राम सैक्सुअल आफेन्स एक्ट) लागू किया गया। दोनो ही घटनाएं वर्ष 2012 में हुई। तब से लेकर दस वर्ष गुजर चुके है। इन दस वर्षों में इन कानूनों के कुछ कठोर और अतार्किक प्रावधानों ने समाज में नई समस्याएं उत्पन्न कर दी है। दस वर्षों के अनुभव का सबक यही है कि इन दोनों कानूनों में तर्कसंगतता लाना आवश्यक हो गया है। पाक्सो एक्ट के अस्तित्व में आने से देश भर में पाक्सो एक्ट के मामलों की बाढ आ गई है और बडी संख्या में नवयुवक जेलों में बन्द है। सबसे दुखद पहलू यह है कि इनमें से बडी संख्या ऐसे युवकों की है जो उस लडकी के बलात्कार की सजा भुगत रहे है,जो उसी के घर में,उस की पत्नी की हैसियत से बच्चों को पाल रही है।


पाक्सो एक्ट का यह सबसे चौंकाने वाला पहलू है। देश के किसी भी जिले की जेलों में ऐसे कई प्रकरण मिल जाएंगे,जहां कम उम्र के युवक युवती प्यार के चक्कर में पडे,फिर विवाह किया और बच्चे भी हो गए। लेकिन कानून की नजर में लडका पाक्सो एक्ट का आरोपी बना और कथित तौर पर बलात्कार की शिकार युवती द्वारा उसके पक्ष में बयान दिए जाने के बाद भी युवक को दस साल की सजा काटना पड रही है। इस तरह के बढते मामलों ने समाज में एक नई समस्या खडी कर दी है। कानून के प्रावधानों के चलते न सिर्फ पुलिस ऐसे मामलों में कार्यवाही करने को मजबूर हो जाती है,वहीं न्यायाधीश भी असलियत को जानने के बावजूद लडकी का पति बन चुके युवक को उसी लडकी के बलात्कार के आरोप में सजा सुनाने को मजबूर हो रहे है।


न्याय प्रशासन की ये उटपटांग समस्या,कानून बनाते समय गहराई से विचार विमर्श की कमी को दर्शाती है। ये समस्या क्यों और कैसे उत्पन्न हुई,इस पर अगर नजर डालते है,तो कानून बनाने वालों की नासमझी पर तरस आने लगता है।


बात को शुरु से समझना पडेगा। देश के कई स्वयंसेवी संगठनों और संस्थाओं ने पिछले दशकों में बच्चों के साथ होने वाले लैैंगिक अपराधों की ओर समाज और सरकार का ध्यान खींचना प्रारंभ किया था। याद कीजिए,आमिर खान द्वारा टीवी पर प्रदर्शित किए गए एक कार्यक्रम सत्यमेव जयते  में भी एक दो एपिसोड इसी विषय पर थे,जिनमें नन्हे बच्चों के साथ हुए लैैंगिक अपराधों की चर्चा की गई थी और इनके नियंत्रण के लिए प्रभावी व्यवस्था बनाए जाने की जरुरत बताई गई थी। वर्ष 2011 में भारत सर्वाधिक बच्चों की संख्या वाला देश था। संयुक्त राष्ट्र के यूएन कन्वेन्शन आन द राईट्स आफ चाइल्ड में भी इसी तरह की अनुशंसाएं की गई थी।


इन्ही परिस्थितियों के चलते भारत में 22 मई 2012 को पाक्सो एक्ट लागू कर दिया गया। इस कानून में बच्चों के साथ होने वाले लैैंगिक अपराधों के लिए दण्ड के बेहद कडे प्रावधान भी लागू कर दिए गए। ये सबकुछ तो ठीक था। लेकिन इस कानून को बनाते समय बालकों की परिभाषा में एक बडा बदलाव कर दिया गया था। और यही बदलाव आज की तमाम समस्याओं की जड है। पाक्सो एक्ट में दी गई बालक की परिभाषा के अनुसार 18 वर्ष तक की आयु के सभी युवक युवती,बालक की श्रेणी में आ गए। समस्या यहीं से उत्पन्न हुई। बलात्कार जैसे मामलों में इससे पहले सहमति योग्य आयु 16 वर्ष मानी जाती थी,परन्तु बालक की परिभाषा में आयु 18 वर्ष कर दिए जाने से सहमति की आयु भी बढकर 18 वर्ष हो गई।


समाज में बढता खुलापन,लडके लडकियों की एकसाथ पढाई, बढती आधुनिकता जैसे अनेक कारण है,जिसकी वजह से हायर सेकेण्डरी स्कूलों के युवक युवतियां आपस में एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते है। मेडीकल साइन्स की दृष्टि से भी लडकियां,मासिक धर्म प्रारंभ होने के बाद और लडक़ों में युवावस्था के हार्मोन्स विकसित होने के बाद युवक युवतियों में विपरित लिंग के प्रति आकर्षण बढता है। प्रेम सम्बन्धों के बनने की आयु भी युवावस्था ही होती है। तो इस तरह सामाजिक  तौर पर और मेडीकल आधार पर तो लडके लडकियां युवा हो रहे है,लेकिन पाक्सो एक्ट उन्हे बालक की ही श्रेणी में रखता है। यही समस्या की मूल जड है।


देश के आंकडों पर नजर डाले तो बात और स्पष्ट हो जाती है। राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकडे बताते है कि पाक्सो एक्ट और बलात्कार के सर्वाधिक मामले युवावस्था के ही है। वर्ष 2020 के आंकडे देखें। वर्ष 2020 में भारत में पाक्सो एक्ट के कुल 28327 प्रकरण दर्ज हुए। आयु समूह के आधार पर देखें तो छ: वर्ष की आयु तक के बालकों के विरुद्ध यह आंकडा मात्र 29 का था। जबकि छ: से बारह वर्ष की आयु के बालकों के विरुद्ध कुल 2540 अपराध दर्ज किए गए। ये वो वास्तविक अपराध है,जो कि बालकों के विरुद्ध हुए है। इसमें भी केवल 145 अपराध ऐसे थे,जिनके शिकार बालक थे,जबकि इसके अलावा तमाम अपराध बालिकाओं के विरुद्ध दर्ज किए गए। निश्चित तौर पर यह आंकडा भी डराने वाला है। वर्ष 2020 में बारह वर्ष तक की आयु के कुल 2569 बच्चों के विरुद्ध लैैंगिक अपराध दर्ज किए गए।


लेकिन जब बात बारह वर्ष से अधिक आयु के बालकों की आती है,तो आंकडे पूरी तरह बदल जाते है। 12 से सौलह वर्ष तक की आयु समूह के बालकों के विरुद्ध कुल 10949 लैैंगिक अपराध दर्ज किए गए। इनमें से बालक मात्र 80 थे,जबकि शेष सभी बालिकाएं थी। सबसे अधिक ध्यान देने वाला आंकडा 16 से अठारह वर्ष आयु समूह का है। पाक्सो एक्ट के सर्वाधिक मामले इसी आयु वर्ग में दर्ज हुए है। इनकी संख्या 14092 रही है। इनमें पुरुष बालकों की संख्या महज 26 है,जबकि शेष सभी युवतियां या बालिकाएं है। कुल मिलाकर देश में दर्ज हुए पाक्सो एक्ट के कुल प्रकरणों में 2569 अपराध उन बालकों के विरुद्ध दर्ज हुए है जिन्हे वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है। इसके अलावा 25041 प्रकरण उनके विरुद्ध है,जो या तो युवा हो चुके है या युवावस्था की दहलीज पर कदम रख चुके है।


मध्यप्रदेश के आंकडे भी यही कहानी कहते है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2020 में पाक्सो एक्ट के कुल  3262 प्रकरण दर्ज किए गए। इनमें से छ:वर्ष से कम आयु के बच्चों के विरुद्ध केवल 55 मामले दर्ज हुए थे,जबकि छ से बारह वर्ष की आयु समूह के बच्चों के  विरुद्ध 203 मामले दर्ज हुए। इन 258 मामलों के अलावा शेष सभी 3004 मामले 12 वर्ष से 18 वर्ष की आयु समूह के बालकों के विरुद्ध दर्ज किए गए। इनमें भी सबसे बडा आंकडा 16 से 18 वर्ष आयू समूह का है। इनके विरुद्ध कुल 1610 मामले दर्ज हुए। कुल मिलाकर बारह वर्ष तक की आयु वाले बच्चों के खिलाफ मामलों का प्रतिशत मात्र 8.5 प्रतिशत रहा।


कुछ ही वर्षों पूर्व सामाजिक व्यवस्था में सोलह वर्ष की आयु युवावस्था की आयु मानी जाती थी। सोलह वर्ष की  आयु पर कई सारे फिल्मी गाने भी बने है। मेडीकल साइंस भी स्पष्ट करता है कि सौलह वर्ष की आयु में लडके लडकियों में युवावस्था के हार्मोन्स बढते है और उनमें विपरित लिंग के प्रति आकर्षण बढता है। इसी उम्र की अधिकांश लडकियों के अपने प्रेमी के साथ घर से भागने की सर्वाधिक घटनाएं दर्ज होती है। कुछ दशकों पूर्व लडकियों की मासिक धर्म शुरु होने की आयु चौदह पन्द्रह वर्ष की मानी जाती थी,लेकिन वर्तमान समय में यह आयु घटकर बारह से तेरह वर्ष की मानी जाने लगी है। चिकित्सक भी इस तथ्य को स्वीकार करते है कि कई मामलों में तो इससे भी कम आयु में लडकियों में मासिक धर्म प्रारंभ हो जाता है। यह भी स्थापित तथ्य है कि मासिक धर्म प्रारंभ होने के बाद लडकियों के हार्मोन्स में होने वाले परिवर्तनों के चलते उनमें विपरित लिंग के प्रति आकर्षण उत्पन्न होने लगता है।


इस लिहाज से देखा जाए तो वर्तमान समय में चौदह वर्ष की लडकियों और पंद्रह  सौलह वर्ष के लडकों को बालक या बच्चा नहीं कहा जा सकता। हिन्दी भाषा में इस आयु के बालकों को किशोर कहा जाता है। जबकि सौलह के बाद तो उन्हे युवा कहा जाता है। यही नहीं भारत में तो अठारह वर्ष का युवक अपनी सरकार चुनने में सक्षम हो जाता है। लेकिन पाक्सो एक्ट की नजर में ये सभी बच्चे है,जो शारीरीक सम्बन्ध बनाने के लिए अपनी सहमति देने के योग्य नहीं है। 


किसी स्कूल या कालेज में पढने वाली सत्रह वर्ष की एक नवयुवती अपने किसी अठारह वर्षीय सहपाठी से प्रेम करने लगती है। दोनो प्रेमी विवाह करके दाम्पत्य जीवन गुजारना चाहते है और परिवार के लोगों की सहमति नहीं होने के कारण घर से भागकर शादी कर लेते है,लेकिन दोनो ही पाक्सो एक्ट को नहीं समझते। इस शादी से उनका बच्चा भी हो जाता है और परिवार के लोग लडकी को अपनी बहू के रुप में स्वीकार भी कर लेते हे। लेकिन लडके के खिलाफ पाक्सो एक्ट का मामला दर्ज है। परिवारवालों की अनुमति मिलने पर जब वह पत्नी के साथ घर लौटता है,तो पुलिस उसे पाक्सो एक्ट के अपराध में गिरफ्तार कर लेती है। उसे जेल भेज दिया जाता है। उसकी पत्नी कोर्ट में कहती है कि उसने स्वेच्छा से विवाह किया है,लेकिन कानून कहता है कि नहीं यह बलात्कार था। पति को जेल भेज दिया जाता है। उसकी जमानत भी नहीं होती।


बलात्कार के मामलों में भी कुछ ऐसी ही कहानी चल रही है। वर्ष 2020 में पूरेदेश में बलात्कार के कुल 28153 मामले दर्ज किए गए। इनमें से 6 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथ किए गए बलात्कार की संख्या 80 थी,जबकि 6 से बारह वर्ष तक की आयु की बच्चियों के साथ हुए बलात्कार की संख्या 211 थी। 12 से 16 वर्ष की आयु समूह की कुल 893 लडकियां बलात्कार का शिकार बनी,जबकि 16 से 18 वर्ष की कुल 1417 लडकियां बलात्कार की शिकार बनी। सर्वाधिक संख्या 18 से 30 वर्ष की युवतियों की है। देश कुल 17740 युवतियां बलात्कार की शिकार बनी,जबकि 30 से 45 वर्ष की 6832 महिलाएं बलात्कार की शिकार बनी। प्रतिशत में देखें तो 06 वर्ष की नन्ही बच्चियों का प्रतिशत कुल प्रकरणों की तुलना में मात्र 0.3 प्रतिशत था जबकि 06 से बारह वर्ष तक की बच्चियों का प्रतिशत 0.7 था। इसकी तुलना में 18 से 25 वर्ष की युवतियों के बलात्कार का प्रतिशत 63 प्रतिशत था।


निश्चित रुप से नन्ही बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले दरिन्दों को फांसी दिए जाने में किसी को कोई एतराज नहीं हो सकता,परन्तु स्वेच्छा से शारीरिक सम्बन्ध बनाने और बाद में उसे बलात्कार का नाम देकर प्रकरण दर्ज हो जाने पर क्या उस युवक को फांसी दी जा सकती है। लेकिन निर्भया काण्ड को लेकर हो हल्ला मचाने वाले मीडीया संस्थान और स्वयंसेवी संस्थाएं यही चाहती थी। इसी दबाव में आई सरकार ने बलात्कार कानूनों के प्रावधानो को कडा कर दिया और आज हजारों ऐसे युवक,जो प्रेमी थे,आज बलात्कारी कहे जाकर जेल में पडे है।


देश के आदिवासी क्षेत्रों में यह समस्या और भी विकराल रुप ले रही है। झाबुआ और अलीराजपुर जैसे आदिवासी अंचलों में तो आदिवासी समाज में भगौरिया की परम्परा है। जैसे ही आदिवासी लडके लडकियां जवान होते है,वे भगोरिया हाट में जाते है। युवक युवती एक दूसरे को पसन्द करके भाग जाते है। फिर भांजगडा(समझौता ) करके उनका विवाह कर दिया जाता था। आदिवासी समाज में युवतियों की विवाह की औसत आयु भी चौदह वर्ष की ही है। लेकिन पाक्सो एक्ट के चलते सैकडों युवा आज जेलों में बन्द है। आदिवासी परम्परा के मुताबिक युवती के परिवार को युवक के परिवार द्वारा भांजगडे (समझौते) की राशि भी दी जाती है,लेकिन इसके बावजूद युवक का जेल से छुटकारा नहीं हो पाता। न्यायाधीश को भी पता है कि दोनो पक्षों मेंं समझौता हो चुका है,लेकिन उसके पास सजा देने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होता।


बहरहाल,विधि निर्माताओं को इस विषय पर तत्काल ध्यान देने की आïवश्यकता है। उन्हे समझना होगा कि युवावस्था को कानून की बेडियों से जकडने की कोशिशों के बावजूद युवा रुकने वाले नहीं है। वे बेचारे कानून नहीं जानते। भावनाए भी कानून नहीं समझती। विधि निर्माताओं को समझना होगा कि भारतीय दण्ड संहिताओं में शारीरिक सम्बन्धों के लिए सहमति की आयु सौलह वर्ष होना आवश्यक है। नन्ही बच्चियों के प्रति होने वाले अपराधों की सजा युवकों को कैसे दी जा सकती है। जिस मामले में नन्ही बच्ची को बलात्कार का शिकार बनाया गया हो,उसे निश्चित रुप से मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए,लेकिन युवा प्रेमियों को केवल इस आधार पर कि अठारह वर्ष उम्र होने से कुछ महीनों पहले उन्होने प्रेम कर लिया,सजा नहीं जा सकती। बलात्कार और बच्चों के विरुद्ध होने वाले लैैंगिक अपराधों की सच्चाई को समझना जरुरी है।


 

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