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31 मई 2022 मंगलवार (प्रात: 8.30)
पूणे
इस यात्रा का आज अंतिम दिन है। पिछले तीन दिन मैने और वैदेही ने पूणे में गुजारे है।
29 की सुबह हम मलवली में थे जहां से 10.20 पर पूणे की लोकल थी। कमलेश को उसके भाई निमिल के पास चिंचवड जाना था। हम लोकल में सवार हुए। पूणे आखरी स्टेशन था। हम पूणे दोपहर 12 बजे पंहुचे। यहां सुरक्षा(मनु) के घर पंहुच कर भोजन किया। कुछ वक्त रुक कर शाम को पूणेके हाण्डेवाडी रोड इलाके में डा.रवीन्द्र कोठारी (रवि काका) के घर पंहुचे। वहां दो तीन घण्टे गुजारे। कोठारी घराने का पूरा इतिहास मैने मोबाइल से पीडीएफ फार्मेट में मोबाइल में सेव किया। इसे अब मेरे ब्लाग पर लगाना है।
कल यानी रविवार का दिन हमने पुरा पुणे शहर नाप दिया। जिस जगह हम है,वह बीटी कवडे रोड है। यहां से करीब 15 किमी दूर कोथरुड क्षेत्र में स्व. वसन्त मामा के घर गए। मामी का 11 दिन पहले निधन हुआ है इसलिए वहां जाकर मिलना था। वहां मृदुला ताई से मुलाकात हुई। ये पहली मुलाकात थी। वहां करीब एक घण्टा रुक कर लौटे।
यहां से हमारी मंजिल थी शनिवार वाडा। ये इलाका कोथरुड से करीब 6 किमी दूर था। तेज धूप जबर्दस्त गर्मी। शनिवार वाडा भारत के इतिहास की धरोहर है। ये बाजीराव पेशवा का महल है,जो 1730 के दौरान बनाया गया था। बताते है कि ये 7 मंजिला भव्य भवन था,जिसमें 1 हजार फौव्वारे हुआ करते थे। पेशवाओं ने इसी स्थान से अफगानिस्तान तक अपनी तलवार का डंका बजाया था। एक तरह से पूरा भारत ही पेशवाओं के अधीन था।अब शनिवार वाडा में केवल मुख्यद्वार और परकोटा ही सहा सलामत बचा है। भीतर की सारी संरचनाएं ध्वंसावशेष के रुप में पडी है।
धूप बहुत तीखी और गर्मी ज्यादा थी,इसलिए वैदेही बैचेन हो रही ती। मैने उसे एक पेड की छांव में बैठा दिया। फिर मैने परकोटे की सीढी चढकर शनिवार वाडे का पूरा एक चक्कर लगाया। शनिवार वाडे में पांच द्वार है,जिनमें दिल्ली दरवाजा,नारायण दरवाजा,मस्तानी दरवाजा आदि।
शनिवार वाडे से निकले तो पास में ही लाल महल है। लाल महल भी स्वर्णिम इतिहास का प्रतीक है। अब यहां महल तो नहीं है,लेकिन जो महल यहां हुआ करता था,उसने शिवाजी महाराज का बचपन,शिक्षा दीक्षा सब कुछ देखा था। पूणे की जागीर देकर शहाजी राजे ने जीजा माता शिवाजी को दादाजी कोण्डदेव के साथ यहां भेजा था। उस वक्त पूणे शहर मुगलों के आक्रमण से श्मशान बना हुआ था। जीजा माता ने यहां आकर शिवाजी के हाथों सोने के हल से जुताई करवा कर सारे अपशकुनों को समाप्त किया और नगर को फिर से आबाद किया। यहां,शिवाजी द्वारा स्थापित गणेश मन्दिर भी है।
इसी लाल महल में घुसकर बाद में शिवाजी ने शाईस्ता खां की उंगलियां काटी थी। स्वराज्य स्थापना के अपने उद्देश्य में आदे बढते हुए शिवाजी ने एक के बाद एक करके कई किलों पर कब्जा कर लिया था। उनपर मुगलों के लगातार आक्रमण होते रहते थे इसलिए शिवाजी ने सुरक्षा की दृष्टि से पूणे की बजाय किलों को अपना ठिकाना बनाया था। शिवाजी के लगातार हमलों से परेशान औरंगजेब ने अपने मामा शाईस्ता खां को एक लाख की फौज देकर शिवाजी पर चढाई करने को भेजा।
मुगलों के संख्या बल के सामने शिवाजी नगण्य थे,इसलिए वे अपनी रणनीति से लडते थे। शाईस्ता खां की फौज महाराष्ट्र की तरफ बढने लगी। रास्ते के गांवों को लूटना,जलाना,महिलाओं का अपहरण,मन्दिरों को तोडते हुए शाईस्ता खां सीधे पूणे तक आ गया। रास्ते में कहीं भी उसका प्रतिरोध नहीं किया गया। पूणे में आते ही शाईस्ता खां ने शिवाजी के लाल महल पर कब्जा जमाया।
शिवाजी उससे दूर पन्हाला किले में अपनी रणनीति बना रहे थे। अपने लाल महल पर शाईस्ता खां के कब्जे से शिवाजी जबर्दस्त क्रोध में थे,लेकिन वे उस पर ऐसी चोट करना चाहते थे,जो कि बरसों तक याद रखी जाए। शिवाजी ने अपनी सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई। उनके कुछ खास लडाके पूणे में प्रवेश करके धीरे धीरे लाल महल में नौकरी पर लग गए। शिवाजी को लाल महल की सारी सूचनाएं मिलने लगी।
इसके बाद दो तीन सौ चुनिन्दा योद्धाओं के साथ शिवाजी एक बारात सजाकर पूणे में प्रविष्ट हुए। शिवाजी सीधे शाईस्ता खां के ख्वाबगाह में पंहुच गए,लेकिन बगल के कमरे में उसकी बेगमें चीखने लगी और शाईस्ता खां सतर्क हो गया। बेगमों ने शमादान बुझा दिए और अंधेरे का लाभ उठाकर शाईस्ता खां खिडकी में से कूदा। उसी वक्त शिवाजी ने तलवार का वार किया। शाईस्ता खां तो बच गया,लेकिन उसके हाथ की चार उंगलिया कट कर गिर गई। शिवाजी की इस सर्जिकल स्ट्राईक में शाईस्ता खां का एक लडका और कई सिपाही मारे गए। शाईस्ता खां इस हमले से इतना आतंकित हुआ कि दो ही दिन बाद वह पूणे से निकल भागा।
तो,इसी लाल महल की जगह पर अब एक हाल सा बनाया गया है,जिसमें शिवाजी के जीवन की प्रमुख घटनाओं के चित्र प्रदर्शित है। जीजा माता की प्रतिमा है। हाल के भीतर रायगढ किले की प्रतिकृति बनाई गई और ईतिहास भी लिखा गया है। हाल के बाहर बाई ओर शिवाजी द्वारा सोने का हल चलाकर पूणे को आबाद करने का पूरा दृश्य सजीव किया गया है। शिवाजी की हल चलाते हुए प्रतिमा बनाई गई है। साथ में जीजा माता भी खडी है।
लाल महल से निकले तो दगडू शेठ हलवाई (गणेश) के मन्दिर में दर्शन किए। दोपहर के दो बज गए थे। अब यहां से खराडी स्थित वरुण के घर जाना था। शरद काका और कल्पना काकी वही थे। खराडी भी यहां से 15 किमी दूर था। करीब 45 मिनट का रास्ता तय करके आटो से करीब तीन बजे वहां पंहुचे। काका काकी और वरुण से मुलाकात हुई। शाम को तरुण और सोनल भी आ गए। उनका बेटा नहीं आया था। हम सबने ग्र्रुप फोटो लिए। रात करीब 9.30 पर हम मनु के घर लौट आए।
आज दोपहर साढे तीन बजे रतलाम की ट्रेन है। दोपहर 2 बजे यहां से निकलेंगे। कल सुबह रतलाम पंहुच जाएंगे।
समाप्त।
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