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7 सितम्बर 23 गुरुवार (जन्माष्टमी)
शाम 5.00 प्रतीक होम स्टे नाबी
इस वक्त हम आदि कैलास,पार्वती सरोवर,गौरी कुण्ड और शिव मंदिर के दर्शन करके लौट चुके हैं।
आज सुबह 6.00 बजे नींद खुल गई थी। सभी लोग जल्दी उठ गए थे। ये शायद हाई अल्टी का असर है। कल शाम को जब हम बुधी पंहुचे थे,वहीं से हाई अल्टी शुरु हो गई थी। वहीं हम लोगों ने गर्म कपडे निकाल लिए थे। यहां नाबी में तो जबर्दस्त ठण्ड है। तो सुबह सभी लोग जल्दी उठ गए थे,इसलिए जल्दी निकलने का तय किया। करीब साढे सात तक सभी तैयार हो गए। प्रतीक की माताजी ने गर्मागर्म पुडी और लौकी की सब्जी,हरी मिर्ची की चटनी के साथ नाश्ते में खिलाई। फिर चाय पी और करीब 8.10 पर आदि कैलास के निकल पडे।
प्रतीक की माता जी पीडब्ल्यूडी की कर्मचारी है और फिलहाल उनकी पोस्टिंग यहां बगल के गूंजी गांव में है। गूंजी में पोस्टिंग यानी वे ज्यादा से ज्यादा वक्त घर को दे पाती है। प्रतीक के मामा का लडका भी यहीं उनके पास रहता है। प्रतीक का एक बडी भाई और एक बहन है। ये सभी मिलकर होम स्टे चला रहे हैं। ये लोग रंग जनजाति के लोग है। रंग को 'रं' लिखा जाता है ,जबकि उच्चारण 'रंग' का किया जाता है। इनकी भाषा में माता को 'नाह' कहते है।
ये चार आसपास के गांव है,गूंजी,नाबी,कुटि और जोंगकांग,इन गांवों के लोग आदि कैलास की देखरेख का जिम्मा सम्हालते हैं। बडी जिम्मेदारी कुटि गांव के लोगों की है। नाबी से चलते है,तो करीब 18 किमी पर कुटि गांव आता है,जो सीमा का आखरी गांव है।यहां पर आइटीबीपी वाले यात्रियों का परमिट चैक करते है। यहां से आगे बढते है,तो करीब 15 किमी पर ज्वालीकांग आता है। यही वह स्थान है,जहां से आदि कैलास के दर्शन के लिए पैदल जाना पडता है।
इस स्थान से आदि कैलास बाई ओर दिखाई देता है,जबकि शिव मन्दिर और पार्वती सरोवर दाई ओर है। शिवमन्दिर जाने के लिए करीब दो किमी पैदल चलना पडता है,लेकिन जन्माष्टमी होने से आज गाडी को उपर तक ले जाने की अनुमति थी। जन्माष्टमी पर आदि कैलास पर बडा धार्मिक समारोह होता है,जिसमें आसपास के गांवों के रहवासी रातभर आदि कैलास के सामने शिवमन्दिर पर रात्रि जागरण कर भजन कीर्तन करते है और सुबह आदि कैलास के दर्शन करेके घर लौटते है। यानी बीती रात सैकडों लोगों ने यहां जागरण और भजन कीर्तन किए थे।
चूंकि गाडी उपर तक जा रही थी,इसलिए हम सीधे उपर शिव मन्दिर पर जा पंहुचे। यहां से आदि कैलास के भव्य दर्शन होते है। मौसम एकदम साफ था,तेज धूप खिली हुई थी। इसलिए आदि कैलास एकदम साफ दर्शन दे रहे थे। आदि कैलास बिलकुल कैलास मानसरोवर जैसे दिखाई दे रहे थे। हुबहू वैसे ही। बर्फ से ढंका पवित्र पर्वत। मन्दिर के पीछे पार्वती सरोवर है। पार्वती सरोवर पंहुचे तो दशरथ जी और नवाल जी ने सरोवर में स्नान किया। उनके विडीयो फोटो बनाए। फिर शिव मन्दिर में जाकर दर्शन किए।
मन्दिर के पीछे की पहाडी पर चढ कर कैलास के दर्शन और निकट से किए जा सकते है। यहां गौरी कुण्ड भी है। गौरी कुण्ड के दर्शन भी करना थे। करीब आधा किमी की खडी चढाई चढकर हम पार्वती सरोवर के पीछे की पहाडी पर चढे। उम्मीद थी कि गौरी कुण्ड इस पहाड के पीछे है। पहाड पर चढे तो लगा कि कैलास के और नजदीक आ गए हैं। कई सारे फोटो विडीयो बनाए। इसी पहाडी पर और आसपास की पहाडियों पर आईटीबीपी और आर्मी के कई बंकर बने हुए है। पहाडी की दूसरी तरफ गहराई में एक तालाब जैसा नजर आया। हमे लगा यही गौरी कुण्ड है।
पहाडी के उपर ज्वालीकांग भी बेहद नजदीक नजर आ रहा था। ऐसा लगा कि पहाडी उतर कर ज्वालीकांग पंहुच सकते है। लेकिन गाडी पीछे खडी थी। फिर पहाडी से उतरे,पार्वती सरोवर पार कर जहां गाडी खडी थी,वहां पंहुच गए। जाते ही गाडी में सवार हुए और ज्वाली कांग से थोडा सा पहले बने एक शिवमन्दिर पर रुके। यहां एक बहुत बडा त्रिशूल लगाया गया है। जब इस मन्दिर में पंहुचे तो पता चला कि कैलाश यहां से और भी ज्यादा नजदीक दिखाई दे रहा था।
ज्वालीकांग में एक दुकान पर भोजन बनवाया जा रहा था। यहां बैठ कर चर्चाएं हुई तो पता चला कि जो हमने पहाडी के उपर से देखा था,वह गौरी कुण्ड नही था बल्कि भीम की खेती थी। गौरी कुण्ड तो बिलकुल कैलास पर्वत के चरणों में हैं। वहां जाने के लिए करीब दो किमी पैदल,यहां से बाई ओर जाना पडता। अब हमारी हिम्मत वहां जाने की नहीं थी।
इस वक्त करीब एक बजे का वक्त हो रहा था। धूप जाने लगी थी। हवाएं तेज चलने लगी थी। ठण्ड बढने लगी थी। पास में टेण्ट लगा हुआ था। ठण्डी हवाओं से बचने के लिए हम टेण्ट में पंहुच गए। यहां गादियां भी पडी हुई थी,कम्बल भी थे। हम सभी यहां आकर बैठ गए। बैठे तो नींद सी आने लगी। सभी को भूख भी लग रही थी। भोजन तैयार हो रहा था। काफी इंतजार के बाद दाल चावल का भोजन परोसा गया। भोजन हो गया। स्वादिष्ट भोजन था। लेकिन फिलहाल यहां से निकलना संभव नहीं था। क्योंकि आगे रोड पर जाम लगा हुआ था।
करीब आधे घण्टे हम लोग वहीं इधर उधर भटकते रहे। फिर रास्ता खुला। जीप में सवार हुए। चलने को हुए तो पता चला कि भोजन का पेमेन्ट करना है। हमे लगा था कि भोजन भी प्रतीक के पैकेज में होगा। बिल पूछा तो छब्बीस सौ रु. का बताया गया। चार लोगों ने भोजन किया था,उसका बिल छब्बीस सौ रु. कैसे? पूछने पर बताया कि आठ लोगों का भोजन 250 रु. प्रति व्यक्ति के हिसाब से था। जोकि दो हजार रु. था,इसके अलावा बिस्कीट पापड इत्यादि के लग गए। ज्वालीकांग से चले तो शाम 4.45 पर नाबी आ गए। मैं पूरे वक्त सोता रहा।
यहां गांव में ग्राम प्रधान के घर पर वाई फाई लगा है,जिसके जरिये मोबाइल से बात की जा सकती है। वहां पंहुचकर वाई फाई कनेक्ट किया। बहुत ही वीक सिग्नल थे। टोनी और दशरथ जी की तो बात हो गई,लेकिन हमारे तो मैसेज भी नहीं जा पाए। वहां से रुम पर लौटे। अभी अभी चाय पी है और डायरी लिखने बैठ गया। कल हम ओम पर्वत के दर्शन करके धारचूला लौटेंगे।
07 सितम्बर 23 गुरुवार (रात 9.30)
प्रतीक होम स्टे नाबी
इस वक्त भोजन करके सारे लोग औढ आढ कर सोने की तैयारी में है। शाम को पांच बजे हम लौट आए थे। ठम्ड़ जबर्दस्त थी। हाथ मुंह धोकर शाम के भोजन के लिए तैयार हुए और अब सोने की तैयारी में है। उत्तराखण्ड के कुमाउं क्षेत्र में हम सबसे आखरी इलाके में है। हम नाबी गांव में है। इसके आगे भारत का आखरी गांव कुटि है। इसके बाद आदि कैलास और उसके बाद तिब्बत जो आजकल चीन के कब्जे में है।
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस इलाके की तस्वीर बदलने लगी है। आदि कैलास तक सड़क बन जाने से पर्यटन में जबर्दस्त वृध्दि हुई है और होती जा रही है। नाबी में कुल 108 परिवार रहते हैं। अब ये सभी,नई संभावनाओं को देखते हुए परिवर्तन कर रहे हैं। घरों को होम स्टे में बदल रहे है। टैक्सियां बढ गई है। वहां धारचूला में तो पार्किंग ही सबसे बडी समस्या है। अगर आप अपनी गाडी से जाते है तो धारचूला में गाडी को खडा करना बडी मुसीबत है। हमारे साथ तो लोकल बन्दे थे,इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं आई,लेकिन नए व्यक्ति के लिए ये बडी समस्या है। उत्तराखण्ड का ये इलाका व्यास घाटी कहलाता है। यहां के निवासी 'रंग' जनजाति के है,इसलिए यहां कोई बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता। आने वाले दिन इनके लिए सुनहरे रहने वाले है। पूरे देश के पर्यटक यहां आने लगेंगे।
बहरहाल आज का दिन शानदार गुजरा। कल हमें ओम पर्वत,काली नदी का उदगम स्थल और व्यास गुफा आदि देखकर धारचूला लौट जाना है। संभवतया परसों धारचूला से वापसी की यात्रा प्रारंभ होगी।
8 सितम्बर 2023 शुक्रवार (सुबह 8.00)
प्रतीक होम स्टे नाबी
इस वक्त हम स्नान करके नाश्ता कर चुके है। आज नाश्ते में प्रतीक की माताजी ने आलू की सब्जी और पराठे के अलावा कद्दू के आटे के चीले बनाए थे,जिन्हे इधर की भाषा में चीलाकद्दू कहते है।इसे हरी मिर्च और पोदीने की चटनी के साथ खाया जाता है।नाश्ता करने के बाद हमने अपने बैग पैक किए। अभी प्रतीक और उसके दोस्त नाश्ता कर रहे हैं। इसके बाद हम ओम पर्वत के लिए रवाना होंगे और दोपहर बाद तक धारचूला पंहुच जाएंगे।
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