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9 सितम्बर 2023 शनिवार,सुबह 9.15
होटल आदि कैलास धारचूला
इस वक्त हम धारचूला से वापसी की यात्रा के लिए तैयार हो रहे है। लगभग सभी लोग तैयार हो चुके है। टोनी और दशरथ जी गाडी लेने के लिए जा रहे है।,ताकि हम हमारा लगेज गाडी में जमा कर निकल सके। कल का सारा दिन डायरी ही नहीं लिख पाया,इसलिए आज लिख रहा हूं-
8 सितम्बर- सुबह करीब सवा आठ पर नाश्ता करके नाबी से निकल पडे। सिर्फ दो किमी पर गूंजी गांव है। यहां तक सडक डामरीकृत और शानदार थी,लेकिन गूंजी के बाद का रास्ता बेहद खराब और खतरनाक है। बीआरओ ने सडक के लिए पहाड तो काट दिए हैं,लेकिन लैण्ड स्लाइडिंग के कारण रास्ते की हालत बेहद खराब हो गई है। जगह जगह संकरी सडकें है। गूंजी से 9 किमी पर काला पानी यानी काली देवी का मन्दिर और काली नदी का उद्गम स्थल है। यहां आते वक्त रुकने की बात थी। यहां आईटीबीपी और सेना के चैकपोस्ट है,जहां हमारे परमिट चेक किए गए।
बेहद खतरनाक फिसलन भरे उबड खाबड और संकरे रास्ते पर चलते हुए हम सुबह करीब साढे नौ पर ओम पर्वत यानी नाबीढांग पंहुच गए। कहते है यहां माता सती की नाभि गिरी थी। पर्वत पर नाभि जैसी आकृति भी प्राकृतिक रुप से बनी हुई है। कैलास यात्रा के दौरान हम यहीं रुके थे और यहीं से लिपूलेख के लिए निकले थे। हम जिस कैम्प में रुके थे,उससे काफी पहले नाभिढांग का स्टाप है। यहां से कुछ ही दूरी पर थोडी उंचाई पर एक द्वार बनाया गया है,जिसे ओम पर्वत का व्यू पाइंट कहा जाता है। यहां एक छोटा सा शिवंिलंग भी स्थापित किया गया है। हांलाकि जहां हमारी गाडी रुकी थी,वहां से भी ओम पर्वत स्पष्ट दिखाई देता है।
लेकिन आज सुबह से ही मौसम खराब था और बादल छाए हुए थे। हम जब नाभिढांग पंहुचे थे तो ओम पर्वत पर बादल छाने लहे थे। हमे ओम की आकृति का थोडा सा हिस्सा नजर आया और देखते ही देखते ओम पर्वत अदृश्य हो गया। बादलों ने उसे पूरी तरह ढंक लिया था। हम गाडी से उतरे,ओम पर्वत बादलों से ढंका हुआ था। गाडी से उतरकर उस व्यू पाइन्ट तक गए,जहां द्वार बना हुआ था और शिवलिंग भी था,लेकिन बादल हटने को तैयार ही नहीं थे। किसी ने कहा कि अगर आप थोडी देर पहले आ जाते तो पूरा ओम पर्वत स्पष्ट नजर आ जाता। लेकिन क्या करें? ये भाग्य की बात है।
हम व्यू पाइन्ट पर पंहुचे,तब तक बारिश होने लगी। थोडी देर व्यू पाइ्न्ट पर खडे रहे। फिर नजदीक में एक टीनशेड बना हुआ था,वहां घुस गए। 10-15 मिनट इंतजार किया,लेकिन बादल छंटने की बजाय बढते ही जा रहे थे। अब कोई चारा नहीं था। बारिश की वजह से मौसम बेहद ठण्डा हो गया था। व्यू पाइन्ट से नीचे उतरे,नीचे एक दुकान पर चाय पी। दशरथ जी ने एक समोसा खाया। कमाल ये था कि आशुतोष ने भी चाय पी।
अब यहां से बढे। यहां से नौ किमी पर काला पानी नामक स्थान है,जो कि काली नदी का उद्गम स्थल है। साथ ही यहां व्यास गुफा भी है।इस पूरे इलाके को व्यास घाटी कहा जाता है और यहां के लोग अपने आपको व्यासी कहते है। काली माता के मन्दिर पर रुके। यहां विडीयो बनाए। काली मन्दिर वह स्थान है,जहां कैलास यात्रियों के पासपोर्ट चैक किए जाते थे। अब तो कैलास यात्रा बन्द है। यहां के दृश्य देखकर पुरानी यादें ताजा हो रही थी। व्यास गुफा के बेहतरीन फोटो विडीयो टोनी ने बनाए।
अब यहां से आगे बढे तो हमारे ड्राइवर राहूल को गूंजी में कुछ काम था। गूंजी पंहुचे तो हमारी इच्छा हुई कि संजय गुंजियाल जी के घर को देख लें। वहां जाकर गुंजियाल सा. के घर के सामने खडे होकर फोटो खींचे। वहीं से सेवफल की चकती खरीदी। इसका दाम 300 रु. था। वहां से चलने लगे तो दशरथ जी को शिलाजीत की याद आई। पूछा तो एक बन्दा शिलाजीत लेकर आया. उसने एक हजार रु. के भाव बताए। मोलभाव करने पर आठ सौ पर आया। हम इतना महंगा ले नहीं सकते थे। तो आगे बढ गए।
गूंजी से चले। खतरनाक रास्ते पर चलते हुए करीब दो बजे बुधी पंहुच गए। जहां एक ढाबे पर भोजन की व्यवस्था की गई थी। यहां गूंजी से खरीदी गई चकती का आनन्द लिया। दाल चावल का भोजन किया और करीब तीन बजे आगे चले। कैलास मानसरोवर यात्रा में भी हम एक रात बुधी में रुके थे। वो यादें ताजा हो गई। अब बुधी से चले तो सीधे धारचूला के लिए।
रास्ते में हमारे ड्राईवर राहूल ने बताया कि यदि कुछ अच्छा देखना हो तो हमे पाताल भुवनेश्वर जाना चाहिए। वहां का रास्ता पूछा। हमारे मुख्य रास्ते से कुछ 40-50 किमी अतिरिक्त जाना था। बहरहाल,हम शाम करीब 6 बजे धारचूला पंहुचे। जिस आदि कैलास होटल में रुके थे,उसके बगल वाले होटल में हमारा लगेज पडा था। हमें रात उसी बगल वाले होटल में गुजारना थी,लेकिन जब हम पंहुचे तो वहां की बिजली गुल थी। पता चला दो दिन से लाइट बन्द है। पता नहीं कब चलेगी। इस होटल में अन्धेरा था,लेकिन बगल के आदि कैलास होटल में लाइट चालू थी,इसलिए फिर से वहीं चले गए। भाव ताव पहले ही तय था। दो कमरे 1500 रु. में। बगल के आदि कैलास होटल में ही रुके।
प्रतीक को बुलाया। गाडी के बीस हजार और प्रतीक के होम स्टे पर रुकने के दस हजार,इस तरह तीस हजार रु. का भुगतान करना था। उसका भुगतान किया। फिर रात्रि भोजन की व्यवस्था में जुटे। रात करीब ग्यारह बजे सो गए। अब कल सुबह निकलना था।
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