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9 सितम्बर 2023 शनिवार (रात 10.15)
होटल हिमालय दर्शन बैरिनाग
इस वक्त हम सैराघाट से कुछ- किमी दूर इस हिमालय दर्शन होटल में ठहरे है और भोजन करके सोने की तैयारी में है। आज की सुबह धारचूला में हुई थी। हमारी गाडी नेपाल सीमा के पुल के पास की पेड पार्किंग में खडी थी। करीब पौने नौ बजे टोनी और दशरथ जी तैयार होकर गाडी लेने निकल गए। इधर हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए ताकि गाडी आते ही तुरंत अपना लगेज गाडी में जमाकर रवाना हो सके। प्रतीक को फोन किया था,वह भी आ गया। कुछ ही देर में दशरथ जी और टोनी गाडी लेकर आ गए। गाडी मेें सारा सामान जमाया। पहले ही तय कर लिया था कि नाश्ता धारचूला से बाहर निकल कर करेंगे।
धारचूला से चले तो गाडी में डीजल डलवाना था। करीब 5-7 किमी बाहर जाकर डीजल पंप मिला। वहीं एक देशी होटल पर नाश्ते की पूछताछ की तो उसने कहा कि वह सब्जी रोटी बना देगा। फिर वहीं अड्डा जम गया। सब्जी बनाने की व्यवस्था में सभी लोग जुट गए। टोनी ने प्याज टमाटर काटे। प्रकाश राव ने लहसुन छीली। दशरथ जी और नवाल सा. ने राई के पत्ते काटे। यह तय हुआ था कि सेव की सब्जी हम बनाएंगे। राई के पत्तों की सब्जी हरिभाई (होटल मालिक) बनाएंगे। करीब पैंतालिस मिनट में दोनो सब्जियां तैयार हुई। हरिभाई ने रोटियां बनाई। नाश्ता कैंसल हो गया। सीधे भोजन ही किया। दबा के। सेव और राई की सब्जी में मजा आ गया।
करीब बारह बजे वहां से चले। राहूल ने हमें पाताल भुवनेश्वर जाने की सलाह दी थी। जो कि यहां से करीब एक सौ पच्चीस किमी दूर था। मौसम सुबह से ही साफ नहीं था। पहाडों पर बादल छाए हुए थे। धूप निकली ही नहीं थी और पहाडों पर बादलों का कब्जा था। रास्ते में भी कई जगह बादल उतर आए थे,इसलिए दिन में भी हेडलाइट फोग लाइट जलाकर चल रहे थे। रास्ते में एक जगह चाय पीने रुके और चलते रहे। शाम करीब 4.15 पर पाताल भुवनेश्वर पंहुच गए।
इधर प्रकाश राव का स्वास्थ्य गडबड हो रहा था। सर्दी जुकाम,बुखार जैसी समस्या हो रही थी। पाताल भुवनेश्वर पंहुच कर गाडी खडी की और गाडी से उतरकर दर्शन करने के लिए चले। इस वक्त बारिश होने लगी थी। हल्की बूंदा बांदी के बीच पूरे रास्ते का विडीयो बनाते हुए चले।यहां से काफी नीचे उतर कर पाताल भुवनेश्वर गुफा के द्वार तक पंहुचा जाता है। गुफा के द्वार पर टिकट लेना पडता है। नोटिस लगा हुआ है कि यदि आपको बीपी,शुगर,अस्थमा जैसी कोई समस्या है तो गुफा के भीतर मत जाईए।
हमने टिकट लिए। यहां विडीयो बनाया। गुफा के भीतर मोबाइल कैमरा अलाउ नहीं है। पाताल भुवनेश्वर गुफा 90 फीट गहरी और 450 मीटर लम्बी है। गुफा में आक्सिजन की बहुत कमी होती है। इसमें उतरना बेहद कठिन है। जब उतरने लगे तो कुछ ही फीट उतरने पर मुझे लगने लगा कि मेरा दम घुट जाएगा,मैं नीचे नहीं जा पाउंगा। मेरे मन में आया कि मैं लौट जाउं,लेकिन पीछे से आशुतोष ने आवाज लगाई कि चलो चलो कुछ नहीं होगा। इस आवाज से हिम्मत बढी और मैं आगे बढ चला।
गुफा में उतरना बेहद कठिन था। दोनो तरफ लोहे की चैने लगी हुई थी,उसी के पकडकर बैठ बैठ कर उतरना पडता है। नीचे उतरते उतरते दम घुटने लगा। पीछे से टोनी ने पूछा कि गुफा का अंत आया या मैं वापस लौट जाउं? मैने कहा कि बस हम आ गए है। तुम भी आ जाओ। आक्सिजन इतनी कम थी कि हर किसी का दम फूल चुका था। धौंकनी की तरह सांसे चल रही थी। हमारे साथ मन्दिर समिति का एक गाइड भी टार्च लेकर चल रहा था। गुफा में नीचे उतर गए तो उसने उतरते ही सबसे पहले हमें बैठकर सांसों को व्यवस्थित करने को कहा। कुछ मिनट बैठे तो सांस में सांस वापस आई।
गाइड ने टार्च की रोशनी दिखाकर शेषनाग का फन दिखाया,जिस पर पृथ्वी टिकी हुई है। आगे बढे तो तीन धाम,ब्दीर,केदार और अमरनाथ के दर्शन कराए। फिर आगे बढे तो चारो युग,सतयुग,त्रेता,द्वापर और कलियुग भी दिखाए। चारो युग शिवलिंग जैसे थे। सबसे बडा शिवलिंग कलियुग का था। गाइड ने बताया कि यह लगातार बढ रहा है और जिस दिन यह उपर गुफा की छत को छू जाएगा,उसी दिन प्रलय हो जाएगी। आगे गणेश जी का वो सिर था,जिसे शिवजी ने काटा था। उसके आगे एक कुण्ड था,जहां मृतकों का तर्पण किया जाता है और कहते है कि इस कुण्ड में तर्पण करने से गया जी में तर्पण करने का पुण्य मिलता है।
यह गुफा बेहद अद्भुत है। माना जाता है कि सारा ब्रम्हाण्ड इस गुफा में समाया हुआ है। यहां तीनों धाम है,तैंतीस कोटि देवी देवता है,समुद्र मंथन है,ब्रम्हा विष्णु महेश है, और ये सब कुछ प्राकृतिक तौर पर बने हुए है। किसी मानव ने नहीं बनाए है। काले पत्थरों की इस गुफा में सफेद सन जैसी जटाएं छत से नीचे की तरफ लटकी हुई थी,जिसे गाइड ने शिवजी की जटाएं बताया था। देर से देखने पर मुझे लगा कि ये सफेद रेशमी कपडे या इस तर ह की किसी वस्तु से बनाई गई होगी। लेकिन जब इसे छूकर देखा तो यह भी पत्थर ही था। सबसे आखिर में शिवलिंग था,जिस पर प्राकृतिक रुप से जलाभिषेक होता रहता है।
लेकिन हमारा दम फूलने लगा था। ऐसे लगने लगा कि अगर यहां थोडी देर और रह गए तो प्राण ही निकल जाएंगे। अब लौटने लगे। गुफा से निकलने की बेहद कठिन खडी चढाई। लोहे की जंजीरें पकड कर जैसे तैसे बाहर निकले। प्रकाश राव खराब स्वास्थ्य के चलते गुफा ने नहीं उथरे थे। बाकी हम चारों गुफा में गए थे। बाहर निकले तो विडीयो को पूरा किया।
उपर आकर एक दुकान पर चाय पी। इस वक्त शाम के छ: बज चुके थे। अब यह तय किया कि अंधेरा होने से पहले रैन बसेरा ढूंढना है। बैरिनाग पाताल भुवनेश्वर से 18 किमी दूर है और हाईवे पर है। इसी रास्ते से हमें अलमोडा और आगे जाना है। यह तय कियी बैरिनाग जाकर रुकेंगे। बैरिनाग कस्बे के बाहर ही हमें इस होटल हिमालय दर्शन का बोर्ड नजर आया। टोनी की इच्छा हुई कि यही चला जाए। करीब 4 किमी अतिरिक्त चल कर यहां आए। होटल के रुम भी पसन्द आ गए। यहां रुक गए। टीवी पर जी-20 समिट की खबरें चल रही है। अब सोने की तैयारी...। शुभ रात्रि.....
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