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छठा दिन
15 जुलाई 2024 सोमवार (अपरान्ह 3.00)
भीम तलाई (अपर)
इस वक्त हम अपर भीमतलाई में एक टेण्ट लेकर रुक गए है। हमने आज सुबह 7.50 पर थाटीविल से चलना प्रारंभ किया था।
थाटीविल के कैम्प से निकलते ही फिर खडी चढाई। थाचडू यहां से मात्र 2 किमी दूर था और लगातार खडी चढाई का रास्ता। रास्ता इतना संकरा कि एक वक्त में एक ही व्यक्ति चल सकता है। भोले के भक्तों की भारी भीड थी,इसलिए चढते समय,यदि आपके आगे चल रहा व्यक्ति सुस्ताने के लिए रुका हुआ है,तो आपको भी रुकना जरुरी है। आप आगे नहीं जा सकते।
थाचडू तो हम डेढ घण्टे में चढ गए। थाचडू में सरकारी बेस केम्प है,इसलिए यहां मेडीकल फेसिलिटी और सरकारी अधिकारी भी कैम्प करते है। थाचडू के लंगर में मैने थोडा सा दाल चावल खाया।
हांलाकि इससे पहले मैं यह बताना भूल गया कि थाटीविल की रात कैसी रही। थाटीविल में लगभग सभी को ठीक ठीक नींद आ गई ती। सुबह का नित्यकर्म निपटाना मुश्किल था। घुटने पर बैठकर ही नित्यकर्म करना था। पेट की गडबड वैसे तो ठीक हो चुकी है,लेकिन फिर भी सुबह दो बार जाना पडा था।
खैर अब बात थाचडू से आगे कालीटाप की। कालीटाप की चढाई भी बेहद थकाने वाली थी। हांलाकि जाओ से लेकर काली टाप तक ये एक ही पहाड था,जिस पर चढते जा रहे थे। यहां भी संकरा रास्ता। चढने के लिए बेतरतीब पत्थरों पर पांव टिकाकर चढना था।
काली टाप की चढाई बुरी तरह थकाती है। नीचे से हमें,काफी उपर एक टाप नजर आता है,हमे लगता है कि बस यही काली टाप है,लेकिन जैसे ही हम उस उंचाई पर पंहुचते है,आगे एक नया शिखर नजर आने लगता है। इस तरह कई टाप एक के बाद एक चढते रहे। हर दस कदम पर रुक कर उखडी हुई सांसो को व्यवस्थित करो और फिर चल पडो। श्रीखण्ड कैलास से लौटकर आते भक्तों की भीड बम भोले और जय भोले के नारे लगा रहे है। इधर से जवाब में उपर चढने वाले भी नारे लगाते है।
रास्ते में एक चट्टान पर तीन लोग बैठे थे? बात करने पर पता चला कि इनमें से एक देवव्रत थाचडू के सेक्टर मजिस्ट्रेट थे। उनके साथ एक और सेक्टर मजिस्ट्रेट था। साथ में एक डाक्टर भी था। ये सब यात्रा की व्यवस्थाओं में जुटे हैं। कल के पानी के संकट की चर्चा भी इन लोगों से हुई। मैने देवव्रत का एक इंटरव्यू भी लिया। चढते चढते आखिर 1 बज गया। मैं सबसे पहले काली टाप पर पंहुचा।
काली टाप के तक के रास्ते की एक खासियत ये है कि पूरे रास्ते में तरह तरह के फूल खिले हुए थे। इसे फूलों की घाटी भी कहा जाता है। आमतौर पर खडी चढाई की तकलीफ से परेशान यात्री इस पर ध्यान नहीं दे पाते है। मैने इन फूलों के विडीयो भी बनाए।
1 बजे कालीटाप पर पंहुचा तो वहां मौजूद काली माता के छोटे से मन्दिर में दर्शन किए। फिर विडीयो बनाया। यहां की उंचाई 12750 फीट है। यहां आक्सिजन कंम हो जाता है। मेरे काली टाप पर पंहुचने के काफी देर बाद बाकी के साथी वहां पंहुेचे।
कालीटाप से देखने पर एक कैम्प नीचे नजर आ रहा था,और दूसरा सामने की एक पहाडी पर काफी उंचाई पर नजर आ रहा था। पूछने पर पता चला कि नीचे वाला कैम्प भीमतलाई है जबकि उपर वाला कैम्प कुंशा। हमने तय तो ये किया था कि आज कुंशा में रुकेंगे। लेकिन काली टाप पर ही दोपहर के दो बज चुके थे ,इसलिए मैने सुझाव दिया कि कुंशा की बजाय आज भीमतलाई में ही रैन बसेरा किया जाए।
थोडी चर्चा के बाद यही तय हुआ कि भीमतलाई में ही रुका जाए। दो बजे कालीटाप से आगे बढे। अब जितना हम थाचडू से काली टाप तक उपर चढे थे,उतना ही नीचे उतरना था। बेहद तीखी ढलान। मुझे उतरना हमेशा आसान लगता है,लेकिन आदित्य और आशुतोष के लिए उतरना बेहद कठिन था। बेहद धीमी गति से नीचे उतरे। काली टाप से उतरने वाली ढलान थी भी बेहद खतरनाक। पूरे पत्थर वाला रास्ता। कई जगह तो ऐसा लगता जैसे पत्थर की फिसलपट्टी हो। फिसलने का जबर्दस्त खतरा।
मै सबसे पहले नीचे पंहुचा,तो मैने लोअर भीमतलाई में ही टेण्ट तय कर लिया। लेकिन कुछ देर बाद प्रकाश और आशुतोष पंहुचे तो उन्होने उपर ही रुकने की इच्छा जताई। मैने सुबह से सिर्फ थोडे से दाल चावल खाए थे,मुझे भूख लगी थी,इसलिए जहां रुकने की बात की थी,उसी से मैगी बनवाई। मैने दोनो बन्धुओं से कहा कि आप लोग उपर जाकर टेण्ट बुक करो। मैं भी पीछे आता हूं। अभी दशरथ जी और आदित्य नहीं आए थे।
मेरी मैगी खत्म होने से पहले वे भी आ गए। फिर वे भी आगे वढ गए। मैगी खाकर मैं भी आगे बढा। आगे भण्डारे पर चाय पी। अब मैं चला। छोटी सी पहाडी थी। 10-15 मिनट में उपर पंहुच गया। टेण्ट तय हो चुका था। टेण्ट में पंहुचा और डायरी लिखने बैठ गया।
टेण्ट के बाहर ठण्डक होने लगी है। हांलाकि इस वक्त हम ज्यादा उंचाई पर नहीं है,इसलिए फिलहाल कोई समस्या नहीं है।
15 जुलाई 2024 (शाम 6.00 बजे)
भीमतलाई
मैं अपने टेण्ट मेंं आ चुका हूं। हम तीन बजे भीमतलाई में आ गए थे। थोडी देर आराम करने के बाद मैं बाहर निकल गया। मेरी नजर जहां तक जा रही है,यात्रियों के जत्थे ही आते जाते नजर आ रहे हैं। कालीघाटी की तरफ से श्रध्दालु उतरते हुए नजर आ रहे है,इसी तरह भीमद्वार से भी लोग आते हुए नजर आ रहे हैं।
मैं सोच रहा हूं कितने साहसी लोग है,जो शाम को छ: बजे भी यात्रा कर रहे है। वैसे मौसम साफ बै। अभी थोडी देर पहले तक धूप खिली हुई थी। भीम द्वार की तरफ से लौट रहे लोग ज्यादा से ज्यादा थाचडू तक जाने की इच्छा रखे हुए हैं। इसी तरह काली घाटी की तरफ से आ रहे लोग भीमद्वार तक पंहुचने की इच्छा रखे हुए हैं। कुछ लो ग रास्ते में अब यहीं थक कर यहीं रुकने की तैयारी में है। मुझे टेण्ट के बाहर से इसी तरह की आवाजें सुनाई दे रही है। मैरे सारे साथी थक कर सौ चुके है। मुझे लगा कि इस वक्त का घटनाक्रम भी थोडा लिख दिया जाना चाहिए,क्योकि इसके बाद अब कल ही मौका मिल पाएगा डायरी से जुडने का।
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