Wednesday, May 29, 2019

Bhutan Sikkim Journey-3

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यात्रा वृतान्त-31 / शांति का देश भूटान-
यहाँ है दुनिया की सबसे ऊँची बुद्ध प्रतिमा

(4 जनवरी 2019 से 14 जनवरी 2019 तक)
8 जनवरी 2019 मंगलवार(शाम 5.10/5.40)
होटल शांतिदेवा थिम्फू


इस वक्त हम पूरा थिम्फू घूम घाम कर होटल के गर्म कमरों में आ चुके हैं। अब कोई काम नहीं बचा है। शाम का भोजन करना है।
आज के दिन की शुरुआत करीब एक घंटे की देरी,यानी सुबह दस बज हुई। वैसे हम सुबह सात बजे उठ गए थे। गीजर में गर्म पानी नहीं आ रहा था। दशरथ जी और हिमांशु एक कमरे में थे। उनके कमरे का गीजर ठीक से चल रहा था। उन दोनो का स्नान हो गया,लेकिन हमारे कमरे में गर्म पानी नहीं आ रहा था। अनिल,आशुतोष और मैने लगभग ठंडे पानी से स्नान किया। स्नान के बाद होटल के डाइनिंग हाल में आलू पराठे का नाश्ता किया।  आलू पराठों में आलू का अता पता नहीं था।
जैसे तैसे पराठे खाए। फिर एक ब्रेड टोस्ट खाया और चाय पी। यहां से अब थिम्फू के लिए निकले। थिम्फू घूमने की शुरुआत पारो का परमिट लेने से हुई। हमारा ड्राइवर थापा सबसे पहले गाडी वहां ले गया जहां पारो का परमिट बनता है। करीब बीस मिनट के लिए वह आफिस में गया,तब तक हम बाहर धूप का मजा लेते रहे। कमरों में थे,तबतक ठंड महसूस नहीं हो रही थी,बाहर निकले तो खतरनाक ठंड से सामना हुआ। इनर पहन कर उपर से जर्किन पहनी थी फिर भी धूप में बडी राहत मिल रही थी।

बाहर सडक पर खडे थे तो एक भूटानी बन्दा सैमुअल मिला। सैमूअल को भूटानी के अलावा हिन्दी,अंगे्रजी,तमिल,फ्रेन्च,बंगाली जैसी कई भाषाएं आती थी। उसकी पढाई चैन्नई में हुई। भारत में वह कई स्थानों पर घूमा हुआ था। कुछ देर उससे बातें होती रही।
परमिट के कागजात लेकर थापा लौटा। अब हम चले थिम्फू  के बाहर एक किनारे पर। काफी चढाई चढ कर एक उंची पहाडी पर बुध्दा पाइन्ट हैं। उंची पहाडी पर बैठे हुए बुध्द की विशालकाय प्रतिमा है।
बौध्द धर्म का पालन करने वाले भूटान ने बौध्द धर्म प्रवर्तक गौतम बुध्द के प्रति अपनी श्रध्दा दर्शाने के लिए शहर से बाहर सबसे उंची पहाडी पर ध्यानस्थ बैठे हुए बुध्द की अत्यंत  विशालकाय प्रतिमा बनाई है। शाक्यमुनि गौतम बुध्द की यह कांस्य प्रतिमा  54 मीटर अर्थात 177 फीट उंची है। इस पर सोने की पालिश की गई है। यह विश्व में बुध्द की सबसे उंची प्रतिमा है। इसका निर्माण  2006 में प्रारंभ किया गया था और यह चार वर्षों में अर्थात 2010 में बनकर तैयार हुई। इस उंची पहाडी पर पंहुचते ही तूफानी बर्फीली हवाएं आप पर हमला करती है। लेकिन यहां अपार शांति का वातावरण  है। बुध्द की विशालकाय प्रतिमा बेहद आकर्षक है। प्रतिमा के चारों ओर सुन्दर बौध्द देवियों की प्रतिमाएं बनाई गई है। इस उंचाई पर बर्फीली हवाएं चल रही थी। रास्ते में किनारों पर जगह जगह बर्फ जमी हुई थी। खिली धूप की राहत तो थी,लेकिन ठंड भरपूर थी। बुध्दा पाइन्ट से चले तो थिम्फू  के ही एक दूसरे काफी उंचे स्थान पर पंहुचे। यहां से पूरे थिम्फू  शहर का पूरा दृश्य नजर आता है। थिम्फू  शहर घाटी में बसा हुआ है। इस स्थान से विडीयो फोटो बनाए। इस समय तक दोनो कैमरों की बैटरी समाप्त होने को आ चुकी थी। यहां से आगे बढे। एक मोनेस्ट्री देखने पंहुचे। यहां का टिकट सौै रु.था। हमने बाहर गेट से ही इसे देख लिया। यहां से आगे बढे तो भूटान के झू (चिडीयाघर) पर गए। यहां भी सौ रु.का टिकट था। पांच सौ रु. के टिकट लेकर भीतर गए। झू बेहद विशाल स्थान में फैला हुआ था। यहां भूटान का राष्ट्रीय पशु देखना था। देखा भी। लेकिन कुल मिलाकर पांच सौ रु. का खर्च व्यर्थ ही हुआ। ये सब देखते हुए करीब पौने दो बज गए। फिर हम पंहुचे भूटान का ट्रेडिशनल मयूजियम देखने । इस संग्रहालय का भी टिकट था,लेकिन भीतर घुसते ही एक दुकान थी,जहां स्थानीय हस्तकला सामग्री बिक रही थी। हमें कुछ खरीदना नहीं था। हिमांशु ने बालक  के लिए टी शर्ट खरीदी। अब सभी को भूख लग आई थी। होटल पर लौटे। ड्राइवर ने बताया था कि प्योर वेज रेस्टोरेन्ट होटल के पास ही है। वहां पंहुचे,तो पता चला कि होटल के साथ वाले सारे रेस्टोरेन्ट्स तीन से छ: तक बन्द रहते है। तीन बज चुके थे। हमारा होटल थिम्फू  के बाजार में ही है। दो तीन स्थान और ढूंढे। सभी बन्द थे। आखिरकार फूडबाल नामक एक होटल का एक रेस्टोरेन्ट खुला मिला। साढे तीन बजे हमने हलका फुलका लेकिन बेहद महंगा भोजन किया। वहां से चले तो हिमांशु तो होटल में पंहुच गया। यहां प्रमुख बाजार में हाजरवल्ली का जुआ खुले आम चलता है। बाजार के बीचो बीच एक खुला स्टेज बना हुआ था,जिस पर भूटानी गानों पर भूटानी लडकियां डांस कर रही थी। हम भी इस बाजार में घूमते रहे। फिर बाजार घूमते घूमते करीब साढे पांच बजे होटल में लौट आए। दिनभर की मशक्कत से हम थक चुके थे। आकर डायरी लिखना शुरु की,लेकिन जल्दी ही नींद आ गई।  करीब दो घंटे नींद निकाली । फिर शाम साढे सात पर उठे। अभी अभी भोजन किया है। अभी टीवी पर न्यूज देख रहे हैं। अब सोने की तैयारी है।

अब कुछ बातें थिम्फू  के बारे में। यह बेहद खूबसूरत शहर है। बेहद सुन्दर इमारतें,चौडी सडकें। कारों की भरमार है,लेकिन शोरशराबा नदारद है। गाडियों में हार्न नहीं बजाए जाते। सडक़ों पर जहां जेब्रा क्रासिंग है,वहां राहगिर जब चलते है गाडियां रुक जाती है। पहले राहगिर पार करेंगे,तब गाडियां आगे बढेंगी। कोई कार या वाहन वाला हार्न नहीं बजाता। हर ओर शांति है। पूरी दुनिया में भूटान को शांति का देश ही माना जाता है।

9 जनवरी 2019 बुधवार/सुबह 6.30/7.00 भूटान
होटल शांतिदेवा थिम्फू

 भूटानी समय के मुताबिक इस वक्त सुबह के सात बजे है,जबकि मेरी घडी अभी साढे छ: बता रही है। कल हमारे ड्राइवर ने कहा था कि आप सुबह जल्दी उठ जाना,जल्दी निकलना पडेगा। आज हमें यहां से पुनाखा जाना है। पुनाखा देखकर हम पारो पंहुचेंगे और आज व कल की रात हम पारो में ही गुजारेंगे।
पहले हमने भूटान में सात दिन और छ: रातें गुजारने की योजना बनाई थी।
थिम्फू पारो और पुनाखा के अलावा चेलेला पास और हा घाटी भी देखने की योजना थी। चेलेला दर्रा भूटान के सबसे उंचे मोटरेबल रास्तों में से एक है। यहां पर अक्सर बर्फ जमी रहती है। हांलाकि जब जैगांव में बात हो रही थी,टूर आपरेटर ने चेलेला पास जाने से साफ इंकार कर दिया था। फिर हमारे दबाव पर राजी हुआ था। उसने हमारी होटल चार दिन की ही बुक की थी। उसका कहना था कि अगर आप आगे रुको तो खुद होटल बुक कर लेना।
लेकिन कल हमारा ड्राइवर कहने लगा कि चेलेला पास जाने का तीन हजार रु.अलग से देना पडेगा। गाडी जहां तक जाएगी,मैं ले जाउंगा। लेकिन हम लोगों ने विचार किया कि पैकेज को पांच दिन का ही रखा जाए। बचे हुए दो दिनों का उपयोग गंगटोक या दार्जिलिंग देखने में किया जाए। तो अब चूंकि हमें यहां से पुनाखा जाकर पारो ही रुकना है तो वापसी के सफर से पहले कोई जल्दी नहीं है।
  पारो और पुनाखा के अलावा चेलेला पास और हा घाटी भी देखने की योजना थी। चेलेला दर्रा भूटान के सबसे उंचे मोटरेबल रास्तों में से एक है। यहां पर अक्सर बर्फ जमी रहती है। हांलाकि जब जैगांव में बात हो रही थी,टूर आपरेटर ने चेलेला पास जाने से साफ इंकार कर दिया था। फिर हमारे दबाव पर राजी हुआ था। उसने हमारी होटल चार दिन की ही बुक की थी। उसका कहना था कि अगर आप आगे रुको तो खुद होटल बुक कर लेना।
लेकिन कल हमारा ड्राइवर कहने लगा कि चेलेला पास जाने का तीन हजार रु.अलग से देना पडेगा। गाडी जहां तक जाएगी,मैं ले जाउंगा। लेकिन हम लोगों ने विचार किया कि पैकेज को पांच दिन का ही रखा जाए। बचे हुए दो दिनों का उपयोग गंगटोक या दार्जिलिंग देखने में किया जाए। तो अब चूंकि हमें यहां से पुनाखा जाकर पारो ही रुकना है तो वापसी के सफर से पहले कोई जल्दी नहीं है।

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