Thursday, June 25, 2020

चीन से सीमा विवाद और मोदी के अंध विरोधियों का विधवा विलाप

-तुषार कोठारी

स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद नरेन्द्र मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री है जिन्हे देश में सर्वाधिक प्रेम और सर्वाधिक घृणा दोनों ही मिले हैैं। उनके समर्थकों की तादाद लगातार बढती रही,तो उनके विरोधियों की घृणा भी उसी परिमाण में बढी। हांलाकि विरोधियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है,लेकिन उनकी घृणा जरुर बढती जा रही है। विरोध जताने वाले,मोदी के समर्थकों को तो अंधभक्त कहते रहे,लेकिन विरोध करते करते वे स्वयं कब अंध विरोधी हो गए उन्हे पता ही नहीं चला। चीन से चल रहे सीमा विवाद में भी यही तथ्य सामने आ रहे हैैं।

राष्ट्र हित के मुद्दों पर ओछी राजनीति करते करते बरबाद होने की कगार पर आ पंहुची कांग्र्रेस और उसके नेताओं के बचकाने और मूर्खताभरे प्रश्नों को आम लोगों ने कतई गंभीरता से नहीं लिया। देश की तमाम दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने भी इसमें पूरी परिपक्वता दिखाई और सरकार का समर्थन किया। लेकिन इसके उलट बुद्धिजीवी समझे जाने वाले कुछ व्यक्तियों ने कांग्र्रेस के सुर में सुर मिलाना शुरु कर दिया। तब लगता है कि मोदी से घृणा के मामले में लोग अंधविरोधी हो गए है। भारत चीन सम्बन्ध और सीमा विवाद के तमाम तथ्यों को जानते बूझते यदि कोई बुद्धिजीवी कांग्र्रेस के सुर में सुर मिलाता है,तो अंधविरोध सामने नजर आने लगता है।



अब बात करें,हाल में हुए घटनाक्रम की। गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों में खूनी संघर्ष हुआ और भारत के बीस सैनिक शहीद हो गए। बस अब तो जैसे मोदी विरोधियों को ब्रम्हास्त्र मिल गया। शुरुआत तो सीधे,मोदी जी कहां छुप गए हो,वाली स्टाइल में राहूल ने कर डाली। अब मौका दूसरे लोगों के पास पंहुचा। खबर की शुरुआत एक अफसर और तीन सैनिकों की मौत से हुई थी और आखिर में सरकार ने अधिकारिक तौर पर बीस सैनिकों के शहीद होने की जानकारी दी थी। शहीदों की संख्या तीन से बीस होते ही पूरी सरकार और खास तौर पर मोदी जी को लतियाने गरियाने का काम शुरु हो गया। पूरी सरकार विफल हो गई। मोदी जी ने अक्षम्य अपराध कर दिया। टीवी की बहस में कांग्र्रेस के एक विद्वान प्रवक्ता ने राहूल जी के सवाल को दोहराते हुए पूछा कि सच्चाई बताईए। अगर चीन हमारी सीमा में नहीं घुसा,तो सैनिकों में खूनी संघर्ष क्यों हुआ? राहूल ने पूछा सैनिकों को हथियार क्यों नहीं दिए थे,किसकी जिम्मेदारी थी? भ्रष्टाचार के मामले में जेल की हवा खा चुके राष्ट्रभक्त पी चिदम्बरम जी को यह कष्ट था कि मोदी जी ने गलवान घाटी सरैण्डर कर दी है। देश के एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने एक लेख में मोदी जी के बयान को बहुत बडा अक्षम्य अपराध करार दे दिया। उनका कहना है कि मोदी जी के इस बयान से चीन ने अपना वह लक्ष्य प्राप्त कर लिया है,जो वह कभी हमसे लडकर नहीं हासिल कर सकता था। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री के एक वक्तव्य ने ही देश को बिना कोई जमीनी युद्ध लडे मनौवैज्ञानिक रुप से हरा दिया।



उन्हे लगता है कि मोदी जी के इस बयान से एलएसी की वर्तमान स्थिति को भारत से स्वीकार कर लिया है। चीन द्वारा जारी बयान कि गलवान घाटी एलएसी के चीन वाले हिस्से में है,से भी उन्हे यही लगा कि गलवान घाटी चीन ने भारत से छीन डाली है। इसके बाद तो उन्होने मोदी जी के पूरे छ:साल के कार्यकाल को लहूलुहान कर डाला।
सवाल सिर्फ मोदी के अंधविरोध का है। अगर अंधविरोध नहीं होता,तो वास्तविक तथ्यों का भी उल्लेख किया जाता। कम से कम बुद्धिजीवी लोग अगर सिर्फ अंधविरोध नहीं कर रहे होते,तो निष्पक्ष तथ्यपरक आकलन करते। तब ये नहीं कहते कि एक वक्तव्य से भारत हार गया। और वक्तव्य भी क्या कि कोई हमारी जमीन पर नहीं आया है। भारत चीन की हजारों किमी लम्बी सीमा पूरी तरह अस्पष्ट है,ये हर कोई जानता है। ये भी हर कोई जानता है कि भारत का दावा अक्साईचिन तक है,तो दूसरी ओर चीन अक्सर अरुणाचल प्रदेश तक पर अपना दावा जताता है। अब कोई ये पूछे कि क्या चीन का दावा कर देने भर से अरुणाचल चीन का हिस्सा हो जाएगा? इसी प्रकार अगर चीन गलवान वेली पर दावा जता रहा है,तो क्या यह चीन की हो जाएगी? और क्या प्रधानमंत्री का वक्तव्य से देश हार गया। यह भी हर कोई जानता है कि जिसे एलएसी कहा जाता है,वह भी पूरी तरह अस्पष्ट है। भारत के सैनिक अपनी पैट्रोलिंग के दौरान जिसे चीन अपना हिस्सा कहता है,वहां तक चले जाते हैैं और इसी तरह चीनी सैनिक भी जिसे भारत अपना हिस्सा कहता हैैं,वहां तक आ जाते है। इतना ही नहीं इस घटना से पहले तक भारतीय सैनिक चीनी हिस्से में अपने खाने पीने की चीजें,बिस्कुट के रैपर,पानी की बोटलें इत्यादि फेंक कर आते थे,ताकि उसे अपना हिस्सा बताया जा सके। यही कहानी चीन के सैनिक भी दोहराते थे। इन्ही कारणों से दोनो ओर के सैनिकों में अक्सर मारपीट की घटनाएं होती रहती थी,लेकिन गोली बारी नहीं होने के कारण कभी बडी खबर नहीं बनती थी।



देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम हैैं,जिन्होने स्वयं लद्दाख क्षेत्र का भ्रमण किया हो। ये स्थापित तथ्य है कि सत्तर सालों तक चीन से लगने वाली सीमाएं सड़कों से नहीं जुडी थी और भारत की पूर्ववर्ती सरकारों ने चीन से भय के चलते ही सड़कों का निर्माण नहीं किया था। उत्तराखण्ड का लिपूलेख हो या लद्दाख में दौलतबेग ओल्डी। इन इलाकों को सड़कों से जोडने की पहल इसी सरकार ने की है। कैलाश मानसरोवर जाने वाले प्रत्येक यात्री को लिपूलेख तक पैदल जाना पडता था और इसमें दस दिन लगते थे,लेकिन अब यह दूरी एक ही दिन में पार की जा सकती है। लद्दाख क्षेत्र में भी तेजी से सड़के बन रही है और चीन की आपत्तियों के बावजूद काम लगातार चलता रहा है। क्या यही इतना बताने के लिए पर्याप्त नहीं है कि चीन को भारत का क्या सन्देश है।
भारत की यह पहली सरकार है जिसने चीन को इतनी स्पष्ट भाषा में सन्देश दिया है। यही नहीं संसद में भी इसी सरकार ने घोषणा की थी कि अक्साई चीन भारत का भाग है। इसके बाद भी अगर किसी को लगता है कि एक वक्तव्य से देश हार गया,तो इस अंधविरोध का कुछ नहीं किया जा सकता। देश की सरकार ने जब यह स्पष्ट घोषणा कर दी कि गलवान घाटी समेत देश की एक इंच भूमि पर भी चीन घुस नहीं सका है और उसे रोकने में ही संघर्ष हुआ,तब ऐसे सवाल उठाना कि सैनिक क्यो लडे और क्यो और कहां शहीद हुए,अंधविरोध का ही प्रमाण है।

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