Monday, April 13, 2015

सच को सामने लाने का सही वक्त

-तुषार कोठारी
subhashbossदेश की स्वतंत्रता के बाद सही मायने में  सच को सामने लाने का यही सही वक्त है। पिछले 68 वर्षों में देश की जनता से कई सारे सच छुपाए गए है। सुभाष चन्द्र बोस हो या सावरकर,देश के सच्चे नायकों को दरकिनार कर जनता को भ्रम में रखा गया है। आज जब नेताजी से जुडी गोपनीय फाइलों और दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग उठाई जा रही है,तो यह इसके लिए सबसे सही वक्त है। यही नहीं इस तरह की और भी छुपा कर रखी गई जानकारियों को देश की जनता के सामने लाने का भी यही वक्त है।

Saturday, March 28, 2015

यात्रा वृत्तान्त-6 अमरनाथ बाबा के दरबार में

(अमरनाथ यात्रा  14 जुलाई 2001 से 4 अगस्त 2001)
लद्दाख यात्रा के दस महीनों बाद इस बार हम जम्मू काश्मीर के रास्ते पर चले। अमरनाथ यात्रा के बहाने जम्मू काश्मीर का बचा हुआ हिस्सा देखने के लिए इस बार भी वही टीम निकली,लेकिन इसमें एक सदस्य कम हो गया। अमरनाथ यात्रा में मै,राजेश घोटीकर,कमलेश पाण्डेय और विनय कोटिया शामिल हुए। इस बार भी
गाडी की समस्या आशुतोष ने ही हल की। उसने अपने किसी परिचित की गैस से चलने वाली मारुति वैन किराये पर दिलाने का इंतजाम किया। पिछली बार की तुलना में यह गाडी बेहद आरामदायक थी क्योकि यह पैट्रोल और गैस दोनो से चलती थी। इसके अलावा इस बार हम लोग अनुभवी ड्राइवर और यात्री बन चुके थे। हमारी यह यात्रा 14 जुलाई को रतलाम से शुरु हुई।

Sunday, March 8, 2015

गठबन्धन धर्म बडा या राष्ट्रधर्म….?


-तुषार कोठारी
अब से करीब छब्बीस साल पहले काश्मीर में मेडीकल की एक 23 वर्षीय छात्रा का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। उस युवती के पिता ने अपहरण से मात्र पांच दिन पूर्व इस महान भारत देश के अत्यधिक महत्वपूर्ण गृह मंत्रालय का कामकाज सम्हाला था। इस युवती के अपहरण का ड्रामा छ: दिनों तक चला और आखिरकार अपनी जान की कीमत देकर सुरक्षाकर्मियों द्वारा पकडे गए पांच आतंकियों को सरकार ने जेल से रिहा कर दिया। छ: दिनों बाद वह युवती सही सलामत अपने घर लौट आई थी।

Wednesday, February 25, 2015

मदर की सच्चाई बताने का हक सिर्फ विदेशियों को,भारतीयों को नहीं

-तुषार कोठारी
दुनिया की भयानकतम औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक भोपाल गैस काण्ड में अधिकारिक तौर पर चार हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी और इससे कई गुना ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए थे। दुर्घटना के फौरन बाद करुणा की मूर्ति कोलकाता से भोपाल पंहुची थी। लेकिन वह गैस काण्ड से पीडीत प्रभावित लोगों की मदद के लिए वहां नहीं पंहुची था,बल्कि गैस काण्ड के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के प्रबन्धन की मदद के लिए पंहुची थी। उसने यूनियन कार्बाइड के प्रबन्धन को इस अपराध के लिए क्षमा कर देने का निवेदन किया था।

Saturday, February 21, 2015

क्या सचमुच आ गए अच्छे दिन….?

- तुषार कोठारी
करीब साढे सात साल जेल में गुजार कर जमानत पर रिहा हुए गुजरात के आईपीएस पुलिस अधिकारी डीजी वंजारा ने कहा कि अब अच्छे दिन आ गए है। लेकिन क्या सचमुच अच्छे दिन आ गए है। डीजी वंजारा के लिए तो जरुर अच्छे दिन आ गए है,लेकिन साध्वी प्रज्ञा और उन जैसे कई लोग है जो वोट बैंक की घृणित राजनीति की सूली पर चढाए गए और आज तक कष्ट झेलने को मजबूर है।

Monday, February 16, 2015

हिमालय का हाई एल्टीट्यूड

रतलाम से लद्दाख (2 सितम्बर से 26 सितम्बर 2000)
रतलाम से लद्दाख की यह यात्रा चार पहिया वाहन से पहली हमारी पहली यात्रा थी। यात्रा के लिए हमने आशुतोष नवाल की मारुति वैन ली थी। यह गाडी आशुतोष ने कुछ ही दिन पहले खरीदी थी और इसमें स्टीमर का इंजिन लगाकर इसके डीजल से चलने वाली गाडी में तब्दील कर लिया था। इस यात्रा में मेरे साथ राजेश घोटीकर,कमलेश पाण्डेय,विनय कोटिया और आशुतोष नवाल (मन्दसौर) थे। यात्रा की एक खासियत यह भी थी कि हममें से कोई भी परफेक्ट ड्राइवर नहीं था,लेकिन फिर भी हम डीजल की मारुति वैन से 2 सितम्बर 2000 को लद्दाख यात्रा के लिए निकल पडे। यह यात्रा 26  सितम्बर को समाप्त हुई।

केन्सर व झुलसी त्वचा के कई मरीज हुए लाभान्वित


कास्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जरी शिविर संपन्न
Dr.SumitSinghalरतलाम,15 फरवरी (इ खबरटुडे)। भारत भक्ति संस्थान रतलाम द्वारा आयोजित निशुल्क कास्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जरी शिविर में मुंह के कैन्सर,झुलसी त्वचा जैसी समस्याओं से ग्रस्त कई मरीज लाभान्वित हुए। उदयपुर के कास्मेटिक एवं प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ डॉ.सुमित सिंघल ने मरीजों को यथायोग्य चिकित्सकीय परामर्श दिया।
शिविर का आयोजन कस्तूरबा नगर स्थित गीतादेवी अस्पताल में किया गया था। शिविर के दौरान करीब तीन दर्जन से अधिक मरीजों ने विशेषज्ञ डॉ.सुमित सिंघल से परामर्श प्राप्त किया। शिविर में मुंह के केन्सर,झुलसने से चिपकी त्वचा,शरीर पर बनाए गए टैटू को हटाने,चेहरे पर बनी झुर्रियों को हटाने,गंजेपन को समाप्त करने,चेहरे और गर्दन पर मस्से जैसी समस्याओं से पीडीत मरीज आए थे।
शिविर आयोजन में गीतादेवी अस्पताल के डॉ.लेखराज पाटीदार,भारत भक्ति संस्थान के राजेश घोटीकर,तुषार कोठारी,राजेश पाण्डेय,दशरथ पाटीदार,उदित अग्रवाल,संजय पाटीदार इत्यादि का सराहनीय सहयोग रहा।

http://epaper.patrika.com/c/4521303

Monday, February 2, 2015

वरिष्ट पत्रकार श्री गर्ग ई खबर टुडे के कार्यालय मे


देश के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्रवण गर्ग पिछले दिनो
महाराष्ट्र समाज के एक कार्यक्रम मे व्याख्यान देने रतलाम आए थे. इस मौके पर वे ई खबर टुडे के कार्यालय मे भी आये.उन्होने यहा काफ़ी समय गुज़ारा और ई खबर टुडे के समाचारो की सराहना भी की. यह समाचार उज्जैन से प्रकाशित दैनिक अवन्तिका मे भी प्रकाशित हुआ था.




Thursday, January 29, 2015

दुनिया के लिए जरुरी है तिब्बत की स्वतंत्रता

तवांग बौध्द मठ के प्रमुख गुरु रिनपोचे से विशेष बातचीत
(तवांग से लौटकर तुषार कोठारी)
भारत के आखरी छोर पर बसे दुनिया के दूसरे सबसे बडे बौध्द मठ तवांग तक पंहुचना अपने आप में दुष्कर कार्य है। देश के सुदूर उत्तर पूर्व में तिब्बत या वर्तमान में कथित तौर पर चीन की सीमा से सटे तवांग शहर को यहां के विशाल बौध्द मठ की वजह से भी पहचाना जाता है। इस मठ के प्रमुख गुरु तुलकु रिनपोचे का कहना है कि तिब्बत स्वतंत्र होकर रहेगा। तिब्बत की स्वतंत्रता पूरी दुनिया के लिए जरुरी है। तिब्बत की स्वतंत्रता का संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि तिब्बत पूर्णत:स्वतंत्र नहीं हो जाता।

Thursday, January 15, 2015

चमत्कारी तनोट माता,जहां बेकार हो गए पाकिस्तान के बम

राजस्थान यात्रा नवंबर 1999
रतलाम-जैसलमेर-रतलाम
इस यात्रा में हम चार मित्र मै,कमलेश पाण्डेय,अनिल मेहता और राजेश घोटीकर मोटर साइकिलों से गए थे। यूथ होस्टल्स आफ इण्डिया की नेशनल डेजर्ट सफारी में हिस्सा लेने के लिए हम लोग रतलाम से निकले थे। यह यात्रा हमने मेरी राजदूत (175 इलेक्ट्रानिक) और कमलेश की यामाहा आरएक्स-100 से की थी। इस यात्रा में पहले विनय कोटिया जाने वाला था,लेकिन एन वक्त पर उसका कार्यक्रम रद्द हुआ और उसके स्थान पर राजेश घोटीकर हमारे साथ हो गया।

Tuesday, January 6, 2015

कलात्मकता और विशालता है खजुराहो की खासियत


सांची-खजुराहो-झांसी-ओरछा-ग्वालियर यात्रा
 दि. 4 जनवरी 1997 शनिवार
पूरे 362 दिन बाद फिर से यात्रा पर।  इस यात्रा में भी हम दो ही लोग थे। मै और अनिल मेहता। एक बहाना भोपाल में एपीपी की परीक्षा का था,जो कल सुबह नौ बजे बैरागढ में होना है। सोचा था,दोपहर तीन की ट्रेन से उज्जैन पंहुचकर इन्दौर भोपाल पैसेंजर से भोपाल पंहुचेंगे। घर से निकलने में कुछ देरी हो गई और आखिरकार शाम 5.30 पर रतलाम-ग्वालियर बस से साढे आठ पौने के बीच उज्जैन पंहुचे। समय का

प्राकृतिक गुफा में रहती है मां काली

(अम्बा जी और माउण्ट आबू यात्रा)
रतलाम से अम्बा जी और माउण्ट आबू की यह यात्रा मैने और अनिल मेहता (सैलाना) ने मेरी राजदूत मोटर साइकिल से की थी। रतलाम से निकलते समय यह तय नहीं था कि वास्तव में जाना कहां है। रतलाम से निकलने के बाद हमने रोड एटलस देखकर यह तय किया कि माउण्ट आबू देखा जाए। इस यात्रा पर हम 7 जनवरी 1996 को निकले थे।

Tuesday, December 30, 2014

फिल्म पीके का विरोध कितना जायज?

-तुषार कोठारी
 विधु विनोद चौपडा,राजू हीरानी और आमिर खान इन दिनों बेहद खुश होंगे। उनकी फिल्म पीके पहले ही हफ्ते में पीके दो सौ करोड के क्लब में शामिल तो हो ही गई थी। अब हर दिन फिल्म को लेकर चल रहे विरोध के कारण नया प्रचार मिल रहा है और हो सकता है कि अब पीके कमाई के नए रेकार्ड बना दे। धार्मिक भावनाओं को आहत करना ,धार्मिक परंपराओं पर आघात करना और देवी देवताओं को अपमानित करना भारत के तथाकथित बुध्दिजीवी और प्रगतिशील लोगों का पुराना शौक रहा है।

Thursday, December 18, 2014

भारतीय सिध्दान्त से ही चल पाएगी दुनिया

- तुषार कोठारी
पेशावर की गलियों से पाकिस्तान के हर शहर तक और भारत समेत दुनिया के तमाम मुल्कों में फैली गम और गुस्से की लहर के बाद कई ऐसे सवाल खडे हो रहे हैं,जिन्हे अब तक जानबूझ कर पीछे धकेला जाता रहा है। लेकिन मानवता की सुरक्षा के लिए इन सवालों के जवाब पूरी ईमानदारी से खोजना बेहद जरुरी है। पूरी दुनिया ने इस जघन्य,क्रूरतम और पैशाचिक हत्याकाण्ड की निन्दा की है। लेकिन इस निन्दा के साथ यह भी जरुरी है कि पूरी दुनिया तेजी से इस जघन्यता और पैशाचिकता की जडों को ढूंढे और इन्हे जल्दी से जल्दी नष्ट करें। ताकि मानवता सुरक्षित रह सके।

Wednesday, December 10, 2014

अयोध्या कारसेवा का आंखोदेखा हाल


बाईस साल पहले 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण के लिए कारसेवा की गई थी। इस कारसेवा में बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर रामलला का अस्थाई मन्दिर बनाया गया था। इन बाईस सालों में आज तक यह कहीं भी प्रकाशित नहीं हुआ था कि उन दिनों में वास्तव में कारसेवा किस तरह  से हुई थी। इस कारसेवा में,मैं दुनिया का अकेला शख्स था जो कैमरे के साथ उस परिसर के भीतर मौजूद था। क्योकि मीडीया के लोगों को वहां से हटा दिया गया था और मैं कारसेवक की हैसियत से वहां था। उसी समय मैने कारसेवा का आंखोदेखा हाल अपनी डायरी में नोट किया था। फोटो फिलहाल मेरे पास उपलब्ध नहीं है। कारसेवा के मेरे संस्मरण इन्दौर से प्रकाशित  दैनिक स्वदेश में 6 दिसम्बर 2014 से 10 दिसम्बर तक निरन्तर प्रकाशित हुए है। ये संस्मरण www.ekhabartoday.com पर और मेरे ब्लाग tusharkothari.blogspot.com पर भी उपलब्ध है।

Sunday, December 7, 2014

रामजन्मभूमि कारसेवा का आंखोदेखा हाल

यात्रा-वृत्तान्त अयोध्या (राम जन्मभूमि कारसेवा)
बाइस साल पहले विश्व भर के अरबों हिन्दुओं  द्वारा पूजित प्रभू श्रीराम की अयोध्या स्थित जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवा प्रारंभ हुई थी। इस कारसेवा के दौरान कारसेवकों ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर दिया और राम जन्म भूमि को विदेशी आक्रमणों के चिन्हों से मुक्त कर दिया।  अयोध्या की इस कारसेवा में रतलाम से भी हजारों कारसेवक गए थे। कारसेवा के दौरान तुषार कोठारी द्वारा लिखी गई यात्रा डायरी कारसेवा का आंखोदेखा विवरण प्रस्तुत करती है।

Wednesday, November 5, 2014

Indore Swadesh me 5.11.14 ko prakashit mera lekh


देश के लिए घातक है यह मौन










- तुषार कोठारी
दिल्ली की जामा मस्जिद के कथित शाही इमाम द्वारा देश के प्रधानमंत्री की
उपेक्षा करने और शत्रु देश के नेता को न्यौता भेजने के निहितार्थ जितने
खतरनाक है,उससे कहीं अधिक खतरनाक इस मुद्दे पर राष्ट्रवादी मुस्लिमों का
मौन है। देश में यदि कोई अल्पसंख्यक समस्या है,तो उसका हल मुख्यधारा में
मौजूद राष्ट्रवादी अल्पसंख्यकों के ही पास है। उनकी मुखरता ही देश में
मौजूद इक्का दुक्का अलगाववादी स्वरों को बन्द कर सकती है।

Saturday, August 30, 2014

इतिहास फिर से क्यों लिखा जाना चाहिए

आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की भारी-भरकम जीत के साथ ही यह तय हो गया था कि अब देश में इतिहास को लेकर विवाद उठेगा. भारतीय जनता पार्टी की सरकार इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश करेगी, जिसका विरोध भी होगा. सरकार के अभी सौ दिन पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन यह विवाद भी शुरू हो गया और विरोध का बिगुल भी फूंक दिया गया. जब अटल जी की सरकार बनी थी, तब भी इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश की गई थी. सबसे पहले एनसीईआरटी की किताबें बदली गईं. लेकिन तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने यह काम ऐसे लोगों के हाथों में दे दिया, जो इतिहास की किताबें लिखने में अपरिपक्व साबित हुए.

Friday, August 29, 2014

भ्रम के बादलों में घिरा दुनिया का सबसे बडा संगठन

-तुषार कोठारी
पूरी दुनिया में गैर राजनीतिक और बिना सरकारी मदद के चलाए जा रहे स्वयंसेवी सामाजिक संगठनों की संख्या गिनी चुनी ही है। कुछ स्वयंसेवी अन्तर्राष्ट्रिय संस्थाओं की शाखाएं भारत में भी सक्रीय है। लेकिन इस तरह की संस्थाओं में सामान्य लोगों की भागीदारी न के बराबर है। किसी एक शहर में इस तरह के क्लब या संस्था में दो तीन दर्जन लोगों से अधिक सदस्य नहीं होते। इस लिहाज से इस प्रकार की संस्थाओं का वजूद महज अखबारी खबरों और दस्तावेजों में होता है,लेकिन समाज में परिवर्तन ला सकने जैसे बडे उद्देश्य के लिहाज से इस तरह की संस्थाएं पूरी तरह बेअसर है।

Tuesday, June 17, 2014

हम कब खेलेंगे फुटबाल?


-तुषार कोठारी
इन दिनों पूरी दुनिया पर फुटबाल विश्व कप का खुमार छाया हुआ है। भारत में फुटबाल की लोकप्रियता नहीं के बराबर है और फुटबाल के इस सर्वाधिक लोकप्रिय खेल में भारत की कोई हैसियत नहीं है। लेकिन चूंकि पूरी दुनिया फुटबाल के नशे में झूम रही है,इसलिए भारत के समाचार माध्यम टीवी और अखबारों में भी फुटबाल विश्व कप को लेकर रोजाना खबरें और विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा रहे है।

Friday, May 23, 2014

Andman & Nicobaar Journey कालापानी नहीं स्वतंत्रता का महातीर्थ अण्डमान

(यात्रा वृत्तान्त - तुषार कोठारी)
रतलाम लौटने के बाद कई लोग मिले,जो कि अण्डमान निकोबार से पूर्णत: अपरिचित थे। वे नहीं जानते कि अण्डमान निकोबार भारत का अंग है और सुदूर समुद्र में स्थित द्वीप समूह है। कुछ इतना जरुर जानते थे कि ये भारत का केन्द्रशासित प्रदेश है,लेकिन कहां है,कैसा है,ये नहीं जानते थे। कुख्यात कालापानी जेल और भारत की स्वतंत्रता के लिए अण्डमान में सहे गए कष्टों को जानने वाले तो नगण्य से है।

Tuesday, May 20, 2014

अपने अन्त के निकट आ पंहुची है कांग्रेस

-तुषार कोठारी
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद अब लगने लगा है कि कांग्रेस समाप्त होने के निकट पंहुचती जा रही है। हांलाकि ये स्थिति भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत अच्छी नहीं होगी,लेकिन राजनीतिक परिदृश्य के जो संकेत मिल रहे है,वे साफ दिखा रहे है कि आने वाला समय सचमुच कांग्रेस मुक्त भारत का समय होगा।
कांग्रेस से सम्बन्धित कुछ रोचक तथ्य देखिए। कांग्रेस की स्थापना के समय भी मनमोहन मौजूद थे और समाप्ति के समय भी मनमोहन मौजूद है। हर कोई जानता है कि एक सौ उन्तीस वर्ष पूर्व 1885 में सर ए ओ ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी। लेकिन ये तथ्य बहुत कम लोग जानते होंगे कि संस्थापक सदस्यों में से एक मनमोहन घोष भी थे। दूसरा रोचक संयोग। कांग्रेस की स्थापना विदेशी व्यक्ति ने की थी,उसके अन्त की इबारत भी विदेशी महिला श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता में लिखी जा रही है।

Thursday, May 8, 2014

आरोपों को अपने पक्ष में मोडने की कला

-तुषार कोठारी
नरेन्द्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बने एक दशक से अधिक समय गुजर चुका है,लेकिन इस लोकसभा चुनाव से पहले तक कोई नहीं जानता था कि वे अगडे है या पिछडे। अपने उपर लगने वाले आरोपों को बडी खुबसूरती से अपने ही पक्ष में उपयोग करने की जो कला नरेन्द्र मोदी जानते है,वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मौजूद कोई भी नेता इस कला में वैसा पारंगत नहीं है। उन पर इस चुनाव में जो भी आरोप लगाया गया,मोदी का ही चमत्कार था कि वह आरोप मोदी के लिए फायदे का सौदा बन गया। चाय बेचने वाले से लगाकर नीच राजनीति तक उनके खिलाफ बोला गया हर शब्द उन्हे फायदा दे गया जबकि आरोप लगाने वाले के लिए बगले झांकने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।

Sunday, February 23, 2014

पाशविकता की पराकाष्ठा और अदम्य साहस का साक्षी कालापानी


(स्वातंत्र्यवीर वि.दा.सावरकर की पुण्यतिथी २६ फरवरी पर विशेष) 

अमानवीय अत्याचारों की इन्तेहा,पाशविकता की पराकाष्ठा और इनके साथ देश की आजादी के लिए मौत से भी ज्यादा खतरनाक कष्टों को हंसते,हंसते झेलने का अदम्य साहस और वीरता। भारत का स्वातंत्र्य समर, अण्डमान के पोर्टब्लेयर स्थित कालापानी के नाम से कुख्यात सेलुलर जेल में जीवन्त हो उठता है। अपने देशप्रेम के लिए एक साथ दो दो आजीवन कारावास की सजा भुगतने वाले वीर सावरकर के अप्रतिम शौर्य और साहस की गाथाएं यहां सजीव हो उठती है। तेरह फीट लम्बी और सवा सात सात फीट चौडी कालकोठरी में रहकर हर दिन बैल की जगह कोल्हू में जुतकर तेल निकालने वाले वीर सावरकर और अन्य असंख्य क्रान्तिकारियों के बलिदान की साक्षी रही सेलुलर जेल आज भारत का राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है। लेकिन इसे देखें बिना सिर्फ शब्दों से यहां की गई क्रूरता और अत्याचारों का अनुमान लगा पाना बेहद कठिन है।

Saturday, September 28, 2013

युवराज के लिए सर्वोच्च पद की गरिमा का बलिदान

- तुषार कोठारी
दागी नेताओं के हित में लाए जा रहे अध्यादेश पर कांग्रेस के युवराज द्वारा की गई टिप्पणी के चाहे जो राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हो,इससे ये जरुर निर्विवाद रुप से सिध्द हो गया है कि भारतीय लोकतंत्र के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री पद की गरिमा को पूरी तरह गिराManmohan दिया गया है। मनमोहन सिंह का नाम देश के इतिहास में शायद इसीलिए लिया जाएगा कि उन्होने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को शर्मसार होने के स्तर तक गिरा दिया है। निश्चय ही ऐसे अयोग्य व्यक्ति को देश पर दस साल तक थोपे रहने के लिए कांग्रेस और सोनिया गांधी के अपराध को भी अक्षम्य माना जाएगा।

Sunday, September 15, 2013

Saturday, July 27, 2013

दुविधा से उबरने का समय

- तुषार कोठारी

अब लगता है कि देश के दुविधा से निकलने के दिन नजदीक आ रहे है। लम्बे अरसे से देश दुविधा में जी रहा था। दुविधा हर स्तर पर थी। राजनैतिक पार्टियों से लगाकर नेताओं तक और बुध्दिजीवियों से लगाकर जनता तक हर कोई दुविधाग्रस्त नजर आ रहा था। कांग्रेस इस दुविधा में थी कि कैसे युवराज को सामने लाया जाए,तो भाजपा इस दुविधा में थी कि कैसे हिन्दूवादी छबि को वापस हासिल किया जाए? बुध्दिजीवियों की दुविधा सेक्यूलरिज्म और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर थी तो जनता इन सभी की दुविधा देख कर दुविधा ग्रस्त हो रही थी। लेकिन अब लगता है कि परिस्थितियां खुद ही दुविधा से उबारने का समय सामने ला रही है।

Sunday, June 2, 2013

बाबा मौर्य इ खबर टुडे कार्यालय में

आज प्रख्यात कलाकार बाबा मौर्य इ खबर टुडे के कार्यालय में आये. बाबा जी ने देश की ज्वलंत समस्याओ पर अपने मौलिक विचार व्यक्त किये. उन्होंने कहा कि देश आज विभिन्न समस्याओ से जूझ रहा है।इससे निपटने के लिए देशवासियों में राष्ट्र भाव होना आवश्यक है और यह राष्ट्र भावना विदेशो से इम्पोर्ट नहीं की जा सकती

Saturday, April 27, 2013

रेप की राजनीती

बलात्कार के बहुचर्चित विषय पर भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक एल एन स्टार में मेरा आलेख 


Tuesday, April 23, 2013

रेप की राजनीति


(तुषार कोठारी)
कुछ दिनों से दोबारा ऐसा लगने लगा है,जैसे भारत में रेप और गैंग रेप के अलावा कोई दूसरा काम ही नहीं हो रहा है। जिस टीवी न्यूज या अखबार को देखिए,सिर्फ और सिर्फ रेप या गैंग रेप। रेप पर विद्वानों के बहस मुबाहसे। व्यवस्था को दोष देते चीखते चिल्लाते चेहरे। चारो ओर यही माहौल। एक घटना पर देश के प्रधानमंत्री,गृहमंत्री,प्रदेशों के मुख्यमंत्री और तमाम पुलिस अधिकारी कर्मचारी सब के सब कटघरे में खडे किए जा रहे है। जैसे रेप के दोषी ये लोग ही हो।

Sunday, January 27, 2013

अनुमानों और भ्रम के भरोसे राजनीति

तुषार कोठारी

वर्तमान समय की राजनीति अनुमानों और भ्रम के भरोसे चल रही है। नेताओं की सफलता इसी बात से आंकी जाती है कि उनके अनुमान कितने सटीक रहे। नेता अपने पूर्वानुमान कुछ तथ्यों के आधार पर लगाते है और इन तथ्यों पर वे पूरा भरोसा भी करते है। कई बार उनके पूर्वानुमान सटीक बैठ जाते है,तो नेता सत्ता पा जाते है और जब पूर्वानुमान गलत साबित होते है,तो नेता को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पडता है।

Monday, January 14, 2013

डर और घबराहट हमारा राष्ट्रीय चरित्र

  • (तुषार कोठारी)

लगता है डर और घबराहट हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। जब भी सीमा पर तनाव की स्थिति बनती है,हमारा डर अहिंसा की आड में झलकने लगता है। एक आम आदमी से लेकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों तक हर किसी की शायद यही समस्या है। कुछेक अपवाद जरुर होंगे लेकिन देश का जो चेहरा नजर आता है,वह यही है। हमारे इसी राष्ट्रीय चरित्र की एक और खासियत है कि हम अपने गुस्से का प्रदर्शन करने में कोई कमी नहीं करते,चीख पुकार मचाने में हमें कोई समस्या नहीं होती,लेकिन जब भी मुद्दों की गहराई में जाकर ठोस कदम उठाने की बात आती है, डर और घबराहट का हमारा राष्ट्रीय चरित्र फिर सामने आ जाता है।

Wednesday, November 21, 2012

क्या सचमुच हम सॉफ्टस्टेट नहीं है?

सन्दर्भ-अजमल कसाब को फांसी
(तुषार कोठारी)

सुबह सवेरे टीवी पर खबरें शुरु हुई कि दुर्दान्त आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को पुणे के येरवडा जेल में फांसी दे दी गई। टीवी चैनलों ने फौरन ही विभिन्न नेताओं और विशेषज्ञों को बुलाकर उनकी प्रतिक्रियाएं और चर्चाएं प्रसारित करना भी शुरु कर दिया। देश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के तमाम नेताओं ने देर आये दुरुस्त आए कि टिप्पणी प्रस्तुत की और इससे आगे बढकर संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु को भी फांसी देने की मांग कर डाली। एक टीवी चैनल पर एक विद्वान वक्ता यह कहते हुए भी दिखाई दिए कि कसाब को फांसी देकर भारत ने दिखा दिया है कि भारत सॉफ्ट स्टेट नहीं है। क्या वाकई?

Tuesday, October 30, 2012

तिब्बत मसले पर सरदार पटेल का ऐतिहासिक पत्र


नई दिल्ली
७ नवंबर, १९५०

मेरे प्रिय जवाहरलाल,
चीन सरकार ने हमें अपने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के आंडबर में उलझाने का प्रयास किया है। मेरा यह मानना है कि वह हमारे राजदूत के मन में यह झूठ विश्वास कायम करने में सफल रहे कि चीन तिब्बत की समस्या को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहता है। चीन की अंतिम चाल, मेरे विचार से कपट और विश्र्वासघात जैसा ही है। दुखद बात यह है कि तिब्बतियों ने हम पर विश्र्वास किया है, हम ही उनका मार्गदर्शन भी करते रहे हैं और अब हम ही उन्हें चीनी कूटनीति या चीनी दुर्भाव के जाल से बचाने में असमर्थ हैं। ताजा प्राप्त सूचनाओं से ऐसा लग रहा है कि हम दलाई लामा को भी नहीं निकाल पाएंगे । यह असंभव ही है कि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति तिब्बत में एंग्लो-अमेरिकन दुरभिसंधि से चीन के समक्ष उत्पन्न तथाकथित खतरे के बारे में विश्र्वास करेगा।

truth about Soniya Gandhi

आधुनिक भारत की राबर्ट क्लाइव: सोनिया गांधी

सोनिया माइनो गांधी. भारत की सबसे ताकतवर महिला शासक जिसके प्रत्यक्ष हाथ में सत्ता भले ही न हो लेकिन जो एक सत्ताधारी पार्टी की सर्वेसर्वा हैं. जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी लंबे अरसे से सोनिया गांधी के बारे में ऐसे आश्चर्यजनक बयान देते रहे हैं जिसपर सहसा यकीन करना मुश्किल होगा. लेकिन अब जैसे जैसे समय बीत रहा है सोनिया गांधी का सच और सुब्रमण्यम स्वामी के बयान की दूरियां घटती दिखाई दे रही हैं. सोनिया गांधी के बारे में खुद सुब्रमण्यम स्वामी का यह लेख-

Wednesday, April 25, 2012

आर्थिक सुधार यानी गरीबों पर मार


(तुषार कोठारी)
देश में जब जब आर्थिक सुधारों की बात चलती है,देश के मध्यमवर्गीय और गरीब लोगों को घबराहट होने लगती है। जब भी बडे अर्थशाी देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का दावा करते है,गरीबों को लगता है कि उन पर कहर टूटने वाला है। जब भी देश का वित्तमंत्री या प्रधानमंत्री जीडीपी के उपर चढने और मुद्रास्फीती के गिरने का दावा करता है,गरीबों की पहले से खाली थाली में कोई और चीज कम होने की आशंका पैदा हो जाती है।

Saturday, April 7, 2012

Monday, March 19, 2012

दुनिया चाहे नकारे,हम नहीं छोडेंगे अंग्रेजी मीडीयम

शिक्षा की भाषा-कुछ विचारणीय बिन्दु
(तुषार कोठारी)
ग्लोबलाईजेशन के इस जमाने में अनपढ और गरीब व्यक्ति भी अपने बच्चे को पढा लिखा कर बडा और सफल आदमी बनाने की चाहत रखता है। मध्यमवर्गीय और नौकरीपेशा व्यक्ति के लिए तो बच्चों की सुव्यवस्थित शिक्षा बडी चुनौती है ही। हर व्यक्ति अपने बच्चों को लगातार तेेज होती जा रही शैक्षणिक प्रतिस्पर्धा में जीतने वाला बनाना चाहता है। इन सारी चुनौतियों में भारत के आम आदमी की धारणा यह भी है कि उच्चस्तरीय शिक्षा की एकमात्र चाबी है अंग्रेजी।

Tuesday, June 7, 2011

पर्यटन की आड में देश में बढता तबलीगी खतरा


दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के खात्मे के बाद अमरिका जहां लादेन के कुख्यात आतंकी संगठन अल कायदा के विश्वव्यापी नेटवर्क को नष्ट करने की योजनाओं में जुटा है वहीं पाकिस्तान में हुए आत्मघाती हमलों के बाद अलकायदा की सक्रियता के संकेत भी मिले है। अलकायदा के नेटवर्क को ध्वस्त करने की मुहिम के दौरान अमेरिका के जांचकर्ताओं के हाथ कुछ ऐसे तथ्य भी लगे है जिनसे यह मालूम पडता है कि अल कायदा के आतंकी, किसी न किसी रुप में तबलीगी जमातों का उपयोग अपने हित में करते थे।

Friday, May 20, 2011


ये फोटो रतलाम में हुई भा ज पा की प्रथम कार्यकारिणी की बैठक का है। फरवरी माह में हुई इस बैठक के दौरान राष्ट्रिय अध्यक्ष नितिन गडकरी का आमंत्रित जनों के लिए व्याख्यान आयोजित किया गया था.इस गरिमामय कार्यक्रम के सञ्चालन की जिम्मेदारी मुझे सौपी गई थी। मंच पर श्री गडकरी के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ,प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा महापौर शेलेन्द्र डागा और पूर्व संसद सदस्य डा लक्ष्मी नारायण पाण्डेय भी मौजूद थे। यह फोटो आज मेरे फोटो ग्राफर मित्र हेमेंद्र उपाध्याय ने आज मुझे दिया.

Tuesday, April 26, 2011

अधिकांश लोग नहीं जानते कौन है अण्णा हजारे


भ्रष्टाचार के विरुध्द ऐतिहासिक आन्दोलन कर केवल चार दिनों मे सरकार को झुका देने वाले अण्णा हजारे को लेकर लगता है कि पूरे देश में भ्रम का वातावरण बना हुआ है। आन्दोलन शुरु होते ही देश भर की मीडीया में अण्णा हजारे को गांधीवादी घोषित कर दिया गया। अब लेखक उनके पीछे हटने,अकेला पड जाने और अलग थलग पड जाने पर विश्लेषण कर रहे है।

Friday, April 15, 2011

बनाने वालों को ही दुख देगा जन लोकपाल बिल

रालेगढ शिंदी (रालेगांव) नामक गांव का कायापलट कर चर्चाओं में आए अण्णा साहेब हजारे अब पूरे देश में छाए हुए है। भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए जन लोकपाल बिल के मसले पर उन्होने सरकार को न सिर्फ झुका दिया बल्कि उनके आन्दोलन में पूरा देश उनके पीछे खडा नजर आया। अण्णा साहेब ने भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे को छेडा है उससे आज देश का कोई व्यक्ति अछूता नहीं है। बडा सवाल यह है कि अण्णा साहेब की यह पहल कोई बडा बदलाव ला पाएगी या नहीं?

Tuesday, April 5, 2011

क्रिकेट की जीत के जश्न में छुपे है कई सवाल भी

विश्व कप फाईनल में भारतीय टीम द्वारा ऐतिहासिक जीत दर्ज किए जाने के बाद पूरे देश में उत्साह का जो वातावरण देखने को मिला उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। देश का कोई शहर कस्बा यां गांव ऐसा नहीं बचा होगा जहां आधी रात तक लोगों ने जश्न ना मनाया गया हो। युवक अधेड बुजुर्ग यहां तक कि महिलाएं और छोटे बच्चें तक सड़कों पर आकर खुशी का ईजहार कर रहे थे। होली और दीवाली एक साथ मनाई जा रही थी। राष्ट्रीय भावना का ऐसा ज्वार उठता दिखाई दे रहा था जैसे राष्ट्रीय भावनाओं की सुनामी आ गई हो। इस सबके बीच में एक बडा सवाल यह है कि क्या हम भारतीयों की राष्ट्रीय भावना सिर्फ क्रिकेट तक ही है? देशप्रेम का ऐसा अभूतपूर्व प्रदर्शन क्रिकेट के अलावा और किसी मौके पर क्यो नजर नहीं आता? जाति,धर्म,भाषा,क्षेत्र के सारे भेदभाव सिर्फ क्रिकेट में ही क्यों भुलाए जाते है? क्या क्रिकेट का विश्व कप जीत लेने भर से देश की सारी समस्याएं समाप्त हो गई है?
आतंकवाद,अशिक्षा,अभाव और ना जाने कितनी समस्याओं से जूझते एक सौ इक्कीस करोड की आबादी वाले इस देश के लोग महज चौदह देशों की एक स्पर्धा को जीत लेने पर कुछ समय को लिए अपने सारे दुख दर्द भूल जाते है। यह ऐसा नहीं लगता जैसे दुनिया के दु:ख दर्दो से पीडीत कोई गरीब मजदूर शराब या ड्रग्स की खुराक लेकर अपनी समस्याओं से आंखे मूंद लेता है। ठीक उसी तरह भारत की गरीब जनता के लिए भी क्रिकेट एक नशा सा बन गया है।
विश्व कप स्पर्धा का आयोजन शुरु हुआ तब से लेकर इसके समापन तक के बयालीस दिनों में इस गरीब देश के अरबों कार्यघण्टे क्रिकेट पर कुर्बान हो गए। दफ्तरों में क्रिकेट का बुखार इस कदर हावी रहा कि सारे जरुरी काम लम्बित कर दिए गए। निजी संस्थानों के काम काज तक क्रिकेट से प्रभावित हुए। सरकारें भी जनता के इस नशें को बढाने में पीछे नहीं रही। भारत पाक क्रिकेट मैच के मौके पर कई राज्य सरकारों ने आधे दिन का अवकाश ही घोषित कर दिया। इलेक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडीया के लिए भी विश्व कप आयोजन के ये दिन सिर्फ क्रिकेट को ही समर्पित रहे। कई महत्वपूर्ण खबरों को क्रिकेट के नाम पर नजर अंदाज कर दिया गया।
क्रिकेट संभवत: विश्व में सबसे कम देशों द्वारा खेला जाने वाला खेल है। विश्व का कोई भी विकसित राष्ट्र क्रिकेट नहीं खेलता। अमेरिका,जापान,रुस,चीन,फ्रान्स,जर्मनी इत्यादि तमाम विकसित राष्ट्रोंने क्रिकेट को कभी नहीं अपनाया। इसका सीधा सा कारण यही है कि इस खेल में सबसे अधिक समय लगता है और आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कोई भी देश अपना ज्यादा समय महज खेल देखने पर व्यय करने को राजी नहीं है। दुनिया फुटबाल के पीछे पागल है,जिसमें महज डेढ घण्टे में निर्णय हो जाता है।
हम भारतीय उन खेलों में बेहद पीछे है जिनमें अनेक देशों से कडी प्रतिस्पर्धा करना पडती है। फुटबॉल जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय खेल में हमारी टीम क्वालिफाई करने तक की स्थिति में नहीं है। ओलम्पिक जैसी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्पर्धा में हमारे कुछ खिलाडी अपनी मेहनत के बलबूते पर पदक ले भी आते है तो देश की जनता को वह खुशी नहीं होती जो क्रिकेट का कोई मैच जीतने पर होती है। क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के खिलाडियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है।
इन सारी परिस्थितियों के बावजूद,जब विश्वकप जीतने पर राष्ट्रप्रेम का ज्वार उठने लगता है तो यह सवाल भी सिर उठाने लगता है कि यदि देश के सामने कभी युध्द जैसी कोई चुनौती खडी हो गई,उस समय क्रिकेट की जीत में सड़कों पर देशप्रेम का प्रदर्शन करने वाले क्या उसी तरह की भावनाएं प्रदर्शित करेंगे?
पिछले कुछ सालों में जब जब देश पर खतरे के बादल मण्डराए है हमारे नेताओं को कडे निर्णय लेने में यही डर सताता रहा है कि देश की जनता का समर्थन नहीं मिलेगा। याद कीजिए संसद पर आतंकवादी हमला। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनियाभर की बडी बडी बातें की। कडी कार्रवाई और आर पार का संघर्ष करने के दावे किए लेकिन जब संघर्ष का मौका आया सीमा पर तैनात की गई फौज को पीछे बुला लिया गया। 911 के मुंबई हमले की यादें तो अब भी लोगों के जेहन में ताजा है। भारत का एक एक व्यक्ति जानता था कि यह पाकिस्तान की करतूत है और हमारी सरकार ने इस बार भी बडी बडी बातें की थी। पाकिस्तान सरकार को कडी चेतावनी दी गई थी। भारत पाक वार्ता तभी से बंद थी। भारत सरकार ने शर्त रखी थी कि जब तक पाकिस्तान अपनी धरती से चलने वाली आतंकवादी कार्रवाईयों पर रोक नहीं लगाता,तब तक किसी भी हालत में वार्ता नहीं होगी। भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कडी कार्रवाई तो की नहीं उल्टे विश्वकप में भारत पाक मैच तय हो गया तो बडी बेशर्मी से पाकिस्तान के नेताओं को मेच देखने को बुला लिया। मीडीया भी क्रिकेट डिप्लोमैसी की तारीफों में खो गया। यह सवाल उठा ही नहीं कि आतंकवाद के मुद्दे पर परिस्थिति में कौनसा परिवर्तन आ गया जो भारत पाक वार्ता शुरु हो गई। क्रिकेट के बहाने देशप्रेम का प्रदर्शन करने वाले करोडों भारतीयों को भी इस घटना से कोई फर्क नहीं पडा। क्रिकेट के नशे के आदी हमारे देशवासी क्रिकेट में पाकिस्तान के खिलाफ जीत को ही असली जीत समझ कर खुशियां मनाने में मशगुल हो गए। किसी ने यह पूछने की जरुरत तक नहीं समझी कि क्या भारत पर से पाक प्रायोजित आतंकवाद का खतरा हमेशा के लिए समाप्त हो गया है,जो भारत पाक से क्रिकेट के रिश्ते बना रहा है।
देश के नेता बहुत चालाक है। वे जानते कि भारतवासियों को क्रिकेट के नशे में चूर रखे रखने में ही फायदा है। क्रिकेट के नशे में चूर देशवासी यह पूछने की स्थिति में ही नहीं होते कि देश की सुरक्षा का क्या हो रहा है। आतंकवाद को पनपाने वाले पाकिस्तान को रोकने के लिए भारत की सरकार क्या कर रही है। संसद हमले के दोषी को अब तक फांसी क्यो नहीं दी जा रही है। इसी नशे का असर है कि करोडों निर्दोष भारतीयों का खून बहा चुके पाकिस्तान जैसे शत्रु राष्ट्र की गतिविधियों पर भारतवासियों को कोई आपत्ति तब तक नहीं होती जब तक क्रिकैट जारी रहता है। शायद यही कारण है कि भारत में और कोई भी मौसम लगातार नहीं बना रहता लेकिन क्रिकेट का मौसम बारहों महीने छाया रहता है। अभी विश्व कप निपटा नहीं कि आईपीएल चर्चाओं में आ चुका है। महंगाई घोटाले,भ्रष्टाचार आतंकवाद इत्यादि सभी चलते रहेंगे लेकिन जब क्रिकेट का नशा कायम है देशवासियों को किसी बात से दुख नहीं होगा। जय भारत।

Saturday, March 5, 2011

12 Novembe...r, 2008 02:42;00फ्रैंको'स गोतिये

कश्मीर में हिन्दुओं का सफाया किसने किया?
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद "हिन्दू आतंकवाद" शब्द चर्चा में है. मैं कई अखबारों के लिए कालम लिखता हूं तो मुझे कहा गया कि आप इस बारे में कुछ लिखिए. लोग जानते हैं कि मैं आजन्म कैथोलिक ईसाई हूं, लेकिन २५ सालों तक दक्षिण एशियाई देशों में रहकर फ्रांस के अखबारों के लिए काम किया है इसलिए मैं इस भू-भाग मैं फैली हिन्दू संस्कृति को नजदीक से जानता समझता हूं.
१९८० के शुरूआत में जब मैंने दक्षिण एशिया में फ्रीलांसिग शुरू की थी तो सबसे पहला काम किया था कि मैंने अयप्पा उत्सव पर एक फोटो फीचर किया था. उसी दौरान मैंने हिन्दू जीवन दर्शन में व्याप्त वैज्ञानिकता को अनुभव किया. मैंने अनुभव किया कि हिन्दू दर्शन के हर व्यवहार में आध्यात्म कूट-कूट कर निहित है. अगर आप भारत के गांवों में घूमें तो आप जितने भी गांवों में जाएंगे वहां आपको आपके रूप में ही स्वीकार कर िलया जाएगा. आप किस रंग के हैं, कौन सी भाषा बोलते हैं या फिर आपका पहनावा उनके लिए किसी प्रकार की बाधा नहीं बनता. आप ईसाई हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं, अरब हैं, फ्रेच हैं या चीनी हैं, वे आपको उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं. आपके ऊपर इस बात का कोई दबाव नहीं होता कि आप अपनी पहचान बदलें. यह भारत ही है जहां मुसलमान सिर्फ मुसलमान होता है न कि भारतीय मुसलमान या फिर ईसाई सिर्फ ईसाई होता है न कि भारतीय ईसाई. जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में होता है कि यह सऊदी मुसलमान है या फिर यह फ्रेंच ईसाई है. यह भारत ही है जहां हिन्दुओं में आम धारणा है कि परमात्मा विभिन्न रूपों में विभिन्न नाम धारण करके अपने आप को अभिव्यक्त करता है. सभी धर्मग्रन्थ उसी एक सत्य को उद्घाटित करते हैं. अपने ३५०० साल के इतिहास में हिन्दू कभी आक्रमणकारी नहीं रहे हैं, न ही उन्होंने अपनी मान्यताओं को दूसरे पर थोपने की कभी कोशिश की है. धर्मांतरण जैसी बातों की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती.

बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक ऐसी घटना जरूर है जो हिन्दुओं के धैर्य का परीक्षा लेती दिखाई देती है. फिर भी इसमें एक भी मुसलमान की हत्या नहीं हुई थी. जबकि इस घटना के विरोध में मुंबई में जो बम धमाके किये गये उसमें सैकड़ों हिन्दू मारे गये थे. फिर भी मैं देखता हूं कि भारत में पत्रकार मुंबई बमकाण्ड से भी बड़ी "डरावनी" घटना बाबरी मस्जिद के गिरने को बताते हैं. हो सकता है कि मैं राजनीतिक रूप से सही न पाया जाऊं लेकिन मैंने दक्षिण एशिया में रहते हुए जो कुछ अनुभव किया उसको वैसे ही लिखा है.

हिन्दू आतंकवाद के बारे में भी मैं अपने विचार सीधे तौर पर आपके सामने रखना चाहता हूं. पहली बार अरब के आक्रमणकारियों के भारत पर हमले के साथ ही हिन्दू लगातार मुस्लिम आक्रमणकारियों के निशाने पर रहे हैं. १३९९ में तैमूर ने एक ही दिन में एक लाख हिन्दुओं का कत्ल कर दिया था. इसी तरह पुर्तगाली मिशनरियों ने गोआ के बहुत सारे ब्राह्मणों को सलीब पर टांग दिया था. तब से हिन्दुओं पर धार्मिक आधार पर जो हमला शुरू हुआ वह आज तक जारी है. कश्मीर में १९०० में दस लाख हिन्दू थे. आज दस हजार भी नहीं बचे है. बाकी हिन्दुओं ने कश्मीर क्यों छोड़ दिया? किन लोगों ने उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया? अभी हाल की घटना है कि अपने पवित्रम तीर्थ तक पहुंचने के लिए हिन्दुओं को थोड़ी सी जमीन के लिए लंबे समय तक आंदोलन चलाना पड़ा, जबकि इसी देश में मुसलमानों को हज के नाम पर भारी सब्सिडी दी जाती है. एक ८४ साल के वृद्ध संन्यासी की हत्या कर दी जाती है जिसपर भारतीय मीडिया कुछ नहीं बोलता लेकिन उसकी प्रतिक्रिया में जो कुछ हुआ उसको शर्मनाक घोषित करने लगता है.

कई बार मुझे लगता है कि यह तो अति हो रही है. दशकों, शताब्दियों तक लगातार मार खाते और बूचड़खाने की तरह मरते-कटते हिन्दू समाज को लतियाने की परंपरा सी कायम हो गयी है. क्या किसी धर्म विशेष, जो कि इतना सहिष्णु और आध्यात्मिक रहा हो इतना दबाया या सताया जा सकता है? हाल की घटनाएं इस बात की गवाह है कि इसी हिन्दू समाज से एक वर्ग ऐसा पैदा हो रहा है जो हमलावरों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहा है. गुजरात, कंधमाल, मंगलौर और मालेगांव सब जगह यह दिखाई पड़ रहा है. हो सकता है आनेवाले वक्त में इस सूची में कोई नाम और जुड़ जाए. इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर व्यापक हिन्दू समाज ने अपने स्तर पर आतंकी घटनाओं और हमलों के जवाब देने शुरू कर दिये तो क्या होगा? आज दुनिया में करीब एक अरब हिन्दू हैं. यानी, हर छठा इंसान हिन्दू धर्म को माननेवाला है. फिर भी सबसे शांत और संयत समाज अगर आपको कहीं दिखाई देता है तो वह हिन्दू समाज ही है. ऐसे हिन्दू समाज को आतंकवादी ठहराकर हम क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या आतंकवादी शब्द भी हिन्दू समाज के साथ सही बैठता है? मेरे विचार में यह अतिवाद है.

लेखक पेरिस स्थित "La Revue de l'Inde" (Review of India)के मुख्य संपादक हैं.

http://visfot.com/index.php/bat_karamat/495.html
See More
10 hours ago ·

Saturday, February 19, 2011

शिक्षा नीति के बदलाव से पहले व्यवहार में बदलाव की जरुरत-

शिक्षा नीति को लेकर देश में लम्बे समय से बहस जारी है। शिक्षा नीति कैसी हो, शिक्षा का लक्ष्य क्या हो जैसे मुद्दों को लेकर आए दिन बहस मुबाहसें होते रहते है,लेकिन शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू कहीं अनछुआ रह जाता है। देश की वर्तमान शिक्षा नीति में कई सारी खामियां हैं और इसमें आमूल चूल परिवर्तन जरुरी है लेकिन इससे भी पहले इससे और ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे पर चिंतन किया जाना चाहिए। शिक्षा नीति पर बहस से पहले इस पर विचार किया जाना चाहिए कि शिक्षा दी किस तरह जाए।
प्राथमिक स्तर से लेकर उच्चस्तर तक शिक्षक और विद्यार्थी के सम्बन्धों पर पहले विचार किया जाना जरुरी है। यदि शिक्षा ग्रहण करने वाले के मन में शिक्षा देने वाले के प्रति आत्मीयता का भाव होगा तो शिक्षा लेना और देना दोनो ही काम आसान हो सकते है। वर्तमान समय में इसी बात की सबसे ज्यादा कमी है। यह विषय सीधे सीधे मनोविज्ञान से जुडा है। प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक स्तर की शिक्षा पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि स्कूलों की एलकेजी यूकेजी और प्राथमिक कक्षाओं में जाने वाले नन्हे बच्चों के मामले में उनके अभिभावकों और शिक्षकों के बीच में कहीं कोई समन्वय दिखाई नहीं देता। एक आम भारतीय दम्पत्ति को जब अपने नन्हे बालक को स्कूल से पहला परिचय कराना होता है तो उसके सामने उंचे या बडे नाम वाले महंगे और अधिकांश बार अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में भेजने का सपना होता है। जिस स्कूल में बच्चे का दाखिला करवाया जाता है उस स्कूल के प्रबन्धन और शिक्षक की सोच ये रहती है कि उनके पास आए बच्चे को दो चार अंग्रेजी की कविताएं और अंग्रेजी के कुछ खास शब्द याद हो जाए ताकि उस बच्चे के अभिभावक अपने घर आए मेहमानों के सामने अपने बच्चे की क्षमताओं का प्रदर्शन कर सके और परिचितों में उनकी वाहवाही हो जाए। यदि बच्चे का प्रदर्शन ठीक होगा तो स्कूल का अच्छा प्रचार होगा और धन्धा ठीक से चल सकेगा।
समस्या यहीं से शुरु हो जाती है। जिस समय अभिभावक और शिक्षक का लक्ष्य ये होना चाहिए कि नन्हे बच्चे के कोमल मन में स्कूल और शिक्षा के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो तब वे बच्चे के प्रदर्शन की चिन्ता करते है। अपने जीवन की शुरुआत में ही उस बच्चे को रटना सिखाया जाता है। बच्चे को नन्ही उम्र में चंद अंग्रेजी की पंक्तियां रटने के लिए दबाव डाला जाता है ताकि उसका और उसके स्कूल का नाम चल सके। प्राथमिक और पूर्व प्राथमिक स्तर की शिक्षा देने का काम आमतौर पर महिला शिक्षिकाओं के हाथ में है। नन्हे बच्चे के कोमल मन में अपनी शिक्षिका के प्रति अत्यधिक स्नेह और आदर का भाव होता है। कई मामलों में तो बच्चा अपने माता पिता से ज्यादा अपनी शिक्षिका की बात मानता है। लेकिन अधिकांश मामलों में शिक्षिकाओं के लिए इन नन्हे बच्चो को पढाने का काम महज उनकी नौकरी है,जिसे वे जैसे तैसे अंजाम दे देती है। नन्हे बच्चों के मन में विद्यालय या शिक्षा के प्रति आकर्षण बढ सके इसकी कोई चिंता उन्हे नहीं होती। बच्चों को शिक्षा के प्रथम परिचय में सिर्फ रटने और नकल करने की सीख दी जाती है। यही सिलसिला फिर जीवन भर चलता रहता है। बच्चे के मन में अपनी शिक्षिका से अतिरिक्त स्नेह पाने की इच्छा दबी ही रह जाती है।
जब बच्चा माध्यमिक स्तर पर पंहुचता है,तब उसकी समझ कुछ विकसित हो चुकी होती है। लेकिन तब भी उसे अपनी कक्षा में आने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं में सिर्फ ऐसे लोग दिखाई देते है जिनके सामने सिर्फ कोर्स पूरा होने का महत्व होता है,बच्चे के मन में कोई झांकना नहीं चाहता। बच्चों को वे शिक्षक शिक्षिकाएं सर्वाधिक अच्छे लगते है जो पढाई के साथ साथ बच्चों से हंसी मजाक भी कर लेते है और कभी कभार विषय को छोडकर अन्य बातें भी पूछ लेते है। हांलाकि ऐसे लोग बेहद कम है। जब शिक्षक या शिक्षिका का अपने छात्रों के साथ अपनेपन का रिश्ता बन जाता है तो उस शिक्षक या शिक्षिका की कक्षा में बच्चों का प्रदर्शन भी अन्य लोगों की तुलना में बेहतर रहता है। छात्रों को महसूस होता है कि जो शिक्षक या शिक्षिका उन्हे स्नेह दे रहे है, उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना चाहिए। इसी वजह से वे अधिक मेहनत करते है और अच्छे परिणाम हासिल होते है। सिर्फ इतना ही नहीं स्कूली जीवन में जिन छात्रों को अपने किसी शिक्षक या शिक्षिका से अतिरिक्त स्नेह मिला है,जीवनभर उनके मन में अपने उस शिक्षक या शिक्षिका के प्रति आदर का भाव रहता है। ये अनुभव वह प्रत्येक व्यक्ति कर चुका होगा जो कभी न कभी स्कूल या कालेज गया है।
विचारणीय पहलू यह भी है कि आजकल शिक्षकों के लिए बीएड की डिग्री को लगभग अनिवार्य कर दिया है। बीएड के पाठयक्रम में भी शिक्षा के नए तौर तरीके तो बताए गए है लेकिन इस विद्यार्थियों से शिक्षकों के तादात्म्य के महत्व पर कहीं कोई बात नहीं समझाई जाती। पूरे पाठयक्रम में किताबी बातें है लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू नदारद है।
महाविद्यालयों में छात्रों की बढती उश्रृंखलता के प्रश्न का समाधान भी इसी तथ्य में है। कालेज चाहे सरकारी हो या निजी,वहां छात्रों को पढाने वाले प्राध्यापकों में से अधिकांश छात्रों के प्रति या तो पूर्वाग्रहों से ग्रस्त रहते है,या उनके मन में युवाओं से कहीं न कहीं डर बना रहता है। नतीजा यह होता है कि अधिकांश प्राध्यापक अपने विद्यार्थियों से बिना जुडे किसी न किसी तरह कोर्स पूरा करने के चक्कर में लगे रहते है। चूंकि प्राध्यापकों का व्यवहार इस तरह का होता है,असीम उर्जा से भरे युवा छात्र भी विद्रोही होने लगते है। प्राध्यापकों में सम्मान प्राप्त करने की योग्यता नदारद सी हो गई है। किसी भी कालेज के क्लास रुम को नजदीक से देखिए,वहां प्राध्यापक कोर्स पढाने वाले रोबोट की तरह नजर आएगा और ऐसी स्थिति में निस्संदेह छात्र भी उसे मशीन ही मान कर धमाल मस्ती में लगे हुए दिखाई देंगे।
इसके विपरित चाहे प्राथमिक स्तर हो या माध्यमिक या उच्च स्तर,प्रत्येक स्तर पर कुछ ऐसे शिक्षक या प्राध्यापक होते है जो छात्रों में लोकप्रिय होते है। उनकी लोकप्रियता का मुख्य कारण ही यह होता है कि वे अपने छात्रों से जुड कर उन्हे पढाते है। छात्रों को जब अपनापन मिलता है तो वे भी बदले में अपने शिक्षक को सम्मान देने में नहीं हिचकते। हांलाकि शिक्षा के क्षेत्र में बढती व्यावसायिकता ने भी शिक्षकों के व्यवहार को प्रभावित किया है। आज के अनेक शिक्षक प्राध्यापक यह भी मानते है कि यदि वे स्कूल कालेज की क्लास में ही सही ढंग से पढा लेंगे तो टयूशन का उनका व्यवसाय कैसे चलेगा। लेकिन इसके बावजूद यदि अपने विद्यार्थियों के प्रति उनके मन में स्नेह का भाव होगा तो उन्हे कहीं अधिक लोकप्रियता और सफलता मिल सकती है।
बहरहाल,शिक्षा नीति के बदलाव से पहले शिक्षा देने वालों के व्यवहार में बदलाव लाना जरुरी है। उन्हे यह समझाया जाना जरुरी है कि उनके छात्र उनसे चाहते क्या है। यदि शिक्षा देने वाले इस बात का महत्व समझ जाएंगे तो नई पीढी के बच्चों की क्षमताओं का अधिक से अधिक उपयोग हो सकेगा और गुरु का घटता महत्व फिर से स्थापित हो सकेगा।

Thursday, January 28, 2010

republic day- a day for thinking about nation

This year we've celibrated our 61 th republic day before two days. today i'm writing on republic day. 60 year ago,in year of 1950 we have created our constituion and our leaders of that time like Mr.Jawaharlal Nehru and other congress leaders wrote INDIA THAT IS BHARAT. The biggest Question of last six decades is that where is Bharat. We becomes indian but nobudy wants to be Bharatiy. We are a Nation who has'nt our National language till today. we could'nt made our national language in sixty years. Gujrat High court commented some day before that hindi is not national language. We have only a language which we have got from our old ruler that we called british. Our supreem court works in English not in any Bharatiy language. Even i'm writing my blog also in English. Only language is not sublect there are so many things that we have not achived yet. We are devided in casts,states and in languages also.late have a look on Maharashtra's insidentes.We hav'nt national pride yet.We feel pruod in following weston culter.whenever we celibrats any birthaday we are happy in cake cutting but we dont like any Puja Or yagya which are our culter.

Tuesday, January 19, 2010

भारत की जनता-प्रयोगशाला के चूहे

भारत की जनता शायद प्रयोगशाला के चूहों के समान है। कम से कम भारत की सरकार और विदेशी कम्पनिया तो यही मानती है। शायद इसीलिए भारत सरकार ने अमेरिका की कंपनी US Agrochemicals and Bio technology (Monsanto) को भारत में बी टी बैंगन के बीज बेचने और इसके उत्पादन की अनुमति दे दी है। भारत में बी टी कोटन पहले से आ चूका है लेकिन यह खाने की नहीं उपयोग की वस्तु थी । भारत में लाये गए बी टी बैंगन की मार्केटिंग महाराष्ट्र हायब्रिड सीड्स कम्पनी लिमिटेड Mahyco कर रही है। इस बी टी बैंगन को Genetic Engineering Approval Commitee GEAC ने भारत में उत्पादन करने की अनुमति दी है कहा जाता है की बी टी किस्मे रोग प्रतिरोधक होती है। उत्पादक कंपनी का यह भी दावा है कि इसके उत्पादन से किसानो की गरीबी दूर होगी।
अब देखिये कि बी टी की असलियत क्या है । भारत में सबसे पहले बी टी काला फार्मूला कपास के लिए आया । कहा गया कि बी टी काटन से किसानो की तकदीर बदल जाएगी । किसानो ने भी महंगे दामो पर बी टी काटन के बीज ख़रीदे और बुवाई शुरू की । लेकिन कुछ समय बाद सचाई सामने आने लगी । आंध्र प्रदेश की सरकार ने अपने किसानो को चेतावनी दी है की वे जिन खेतो में बी टी काटन की फसले ली गई है वहा अपने मवेशियों को न जाने दे ।जहा बी टी काटन की फसले ली गई थी वहा चरने वाले कई मवेशियों की मौत हो गई। पता चला की उनकी किडनी और लीवर ख़राब हो गए थे। तब निष्कर्ष निकला गया की बी टी से किडनी और लीवर को नुकसान होने काला खतरा है। शायद यही कारन रहा की केरल और उड़ीसा सरकारों ने अपनी सीमाओं के भीतर

GM Food (Geneticaly modified food) के ट्रायल पर रोक लगा दी है । उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल ने जीएम फ़ूड की फिल्ड ट्रायल में अनियमितताओ और जी इ ऐ सी की कमजोर मोनिटरिंग की शिकायते की है। अंतर राष्र्टीय ख्यातिप्राप्त खाध्य सुरक्षा विशेषग्य देवेन्द्र शर्मा के मुताबिक जी इ ऐ सी पर आरोप है की उसने भारत में बी टी बैंगन को अनुमति देने के मामले में अंतर राष्ट्रीय बायो टेक इंडस्ट्री के दबाव में सुरक्षा और पर्यावरण को नजर अंदाज किया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे अम्बुमणि रामदौस ने भी बी टी बैंगन का विरोध इस आधार पर किया था की इससे होने वाले प्रभावो पर पर्याप्त शोध नहीं किया गया है। इसकी वजह से स्वास्थ्य सुरक्षा और पर्यवारव पर क्या असर होगा इस पर भी शोध नहीं किया गया है। इसी आरोप को फ़्रांस के विशेषग्य गिलिस एरिक सेरालिनी ने भी सही ठहराया।

फ़्रांस के कीन विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर गिलिस एरिक सेरालिनी के नेतृत्व में गठित commitee for indipendent research and information on genetic engineering ने बी टी बैंगन पर व्यापक शोध किया और पाया की बी टी बैंगन मानव जीवन के लिए पूरी तरह असुरक्षित है। कमिटी ने महाराष्ट्र हाय ब्रिड सीड्स कंपनी द्वारा उपलब्ध कराये गए तथ्यों (डाटा) को भी संदिग्ध बताया। कमिटी के अध्ययन से स्पष्ट हुआ की बी टी बैंगन खाने से बकरियों को भूख लगाना कम हो गया। चूहों में खून के थक्के बनने लगे और बायलर चिकन में ग्लूकोज का स्टार कम होने लगा। इससे इन प्राणियों में केनामयसीन नामक एंटी बायोटिक तत्व कम होने लगा। कमिटी ने महाराष्ट्र हाय ब्रीड्स कंपनी द्वारा किये गए सुरक्षा परीक्षणों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाये है। ग्रीन पिस संस्था से जुड़े श्री सेरालिनी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान उम्मीद जताई की भारत की सरकार अपनी जनता को प्रयोगशाला के चूहे नहीं बनने देगी जिन पर बी टी बैंगन का परिक्षण किया जाना हो। यूरोप में भी जनमत बी टी के खिलाफ है। इटली और ऑस्ट्रिया में बी टी पर करवाए गए शोध जी एम् फ़ूड के खिलाफ परिणाम देने वाले साबित हुए। यह तथ्य भी सामने आया की जी एम् फ़ूड काला उपयोग महिलाओ को बाँझ बना सकता है।

डेल्ही हाय कोर्ट ne मार्च २००८ में दिए अपने एक निर्णय में बी टी बैंगन के विरुध कई प्रमाण दिए है। अब भी सर्वोच्च न्यायलय में एक याचिका विचाराधीन है। इस सब के बावजूद अमेरिका की यह कंपनी अब बी टी मक्का और सोयाबीन के बिज बनाने की तयारी कर रही है.

Friday, December 25, 2009

who will be president

Election of Ratlam carporation has finished successfully and now everyone is busy in talks about the selection of president. The big question is who will be the president of RMC. As we know that the picture of RMC is a hung board.There are 23 carporators won the election on BJP ticket and 22 won by Congress.Four carporators are indipendent but three indipendents are connected with BJP idology. The house is having totel 49 seats and The Mayor is also a voter of presidential election. So that who wants to become president he need atleast 26 votes. BJP is hopefull for election b'coz BJP wnats only tow corporators support. The planners of BJP thougts that they will arrenge two vote from Indioendents. Othere side The congress leaders also hopefull for it.Leaders of congress think about cross voting. Congress leadership dosent ruled out the possibility of horse treading and they are trying for it.
In BJP there are many corporators dreaming to become president.Some female corporators also think so. It is a intresting senerio of politics which will be mentene for some more days.Only Time will decided that who will be preident of RMC

Monday, November 16, 2009

locle body Election

After only 28 day we will elect our mayor and 49 corporaters.Leaders from different parties has started exercise for election. the biggest Question for every citizen of Ratlam that who will be our Mayor.We already seen three mayor in past time.First was Mr.Jayanti lal Jain POPI SETH,second was present MLA Paras Saklecha and third present Mayor Asha Mourya. the tenor of three different mayors were not satisfactory. We have seen that one who elected for any important post he become corrupt.All three mayor were fully unsuccess in their tenor.all three were faced charges of corruption.
When we talk about present mayor Mrs.Asha Mourya when she elected as BJP Mayor we thought that Ratlam city would run on the path of development but it could'nt done. In her leadership municipal corporation were busy in only fight of group ism. She faced many serious charges of corruption in her tenour and no doubt that some charges are right also.When we talk about her predesesor indepandent Mayor Paras Saklecha many stories of coruuption come in our mind.But Mr.Saklecha has elected MLA again on the bais of falls alligation made by him on his apponent Himmat Kothari.Present senerio of city politics is very cloudy.No one can say who will be the candidet of BJP or Congress.It will clear after some days.It will also clear that what roll will be played by Mr.Saklecha.That time we would discuss on the issue of Mayor But this time I can say that We should elect some good person for the post of Mayor.Our mayor should be honest and vise.He should think about city not for himself only.It is a chanc for every one of us to serve our city by cast our presious vote for our city in fevour of a right person.

Sunday, September 13, 2009

Mahi Project

After a long piriod I'm again starting on blog. due to various reasions I could'nt rais any new issue on my blog. Preently the issue before the citizens are Mahi River. Some Ratlami has started the movement for Mahi brings to Ratlam.No doubt that Ratlam facing serious water crysis and it is nessasarry for city that any water based project should start immidiatly. The idea of Mahi maybe good but very first it should be clear that weather Mahi project fisible or not. technical data can be good supporter of Mahi Movement.

Sunday, August 9, 2009

जागो रतलाम के नागरिको

वैसे तो रतलाम के लोगो को यह बोलना ठीक नही लगता क्योकि इससे चुनावी बाते याद आ जाती है लेकिन मुद्दा ही ऐसा है कि अब बोलना पड़ रहा है.डेल्ही मुंबई इंडस्ट्रीयल कोरिडोर के मामले में रतलाम के साथ जो अन्याय होने जा रहा है यदि इस बारे में समय रहते कुछ नही किया गया तो एक बार फिर रतलाम पतन के गर्त में चला जाएगा। याद कीजिये चुनावी भाषणों को जब नेता रतलाम के लोगो को नेनो और रेनबेक्सी के सपने दिखा कर वोट चीन रहे थे आज वो गायब है और समस्या सामने खड़ी है। यह अवसर है कि सारे जागरुक लोग सक्रीय होकर रतलाम के हक कि लडाई मिलकर लड़े कई जनप्रतिनिधि इस कड़वी सचाई को छुपाने की फिराक में है मंत्री और विधायक कह रहे है कि रतलाम को अलग नही किया जा सकता लेकिन वास्तविकता यह है कि रतलाम को इस योजना से बाहर रखा गया है.इसलिए जरुरी है कि रतलाम के लोग अब जाग जाए वरना कई सालो तक पछताना पड़ेगा.

अयोध्या-3 /रामलला की अद्भुत श्रृंगार आरती

(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे )  12 मार्च 2024 मंगलवार (रात्रि 9.45)  साबरमती एक्सप्रेस कोच न. ए-2-43   अयोध्या की यात्रा अब समाप्...