Friday, May 15, 2015
Monday, May 11, 2015
Friday, May 8, 2015
Sunday, April 26, 2015
यात्रा वृत्तान्त-7 शबरी कुंभ (11,12 और 13 फरवरी 2006)
दुविधा से बचने के लिए कल शबरी कुंभ में जाने का पक्का निर्णय कर लिया था। 10 फरवरी की आधी रात को भोपाल से लौटने के बाद यह तय कर लिया था कि आने वाले 4 दिनों की जबर्दस्त दुविधा से बचने का यह अच्छा उपाय होगा और इसलिए दो हजार का जूता खाते हुए भी जाने का मन बन गया। 11 फरवरी की सुबह मा.प्रभाकर जी का चेकअप कराकर फ्री होते होते दोपहर दो बज गए। 2 बजे जब स्टेशन पर टिकट लेने पंहुचे तो बडी आसानी से आज सुबह की जनता में 3 रिजर्वेशन मिल गए।
Thursday, April 16, 2015
Monday, April 13, 2015
सच को सामने लाने का सही वक्त
Saturday, March 28, 2015
यात्रा वृत्तान्त-6 अमरनाथ बाबा के दरबार में
गाडी की समस्या आशुतोष ने ही हल की। उसने अपने किसी परिचित की गैस से चलने वाली मारुति वैन किराये पर दिलाने का इंतजाम किया। पिछली बार की तुलना में यह गाडी बेहद आरामदायक थी क्योकि यह पैट्रोल और गैस दोनो से चलती थी। इसके अलावा इस बार हम लोग अनुभवी ड्राइवर और यात्री बन चुके थे। हमारी यह यात्रा 14 जुलाई को रतलाम से शुरु हुई।
Sunday, March 8, 2015
गठबन्धन धर्म बडा या राष्ट्रधर्म….?
Tuesday, March 3, 2015
Friday, February 27, 2015
Wednesday, February 25, 2015
मदर की सच्चाई बताने का हक सिर्फ विदेशियों को,भारतीयों को नहीं
Saturday, February 21, 2015
क्या सचमुच आ गए अच्छे दिन….?
Monday, February 16, 2015
हिमालय का हाई एल्टीट्यूड
रतलाम से लद्दाख की यह यात्रा चार पहिया वाहन से पहली हमारी पहली यात्रा थी। यात्रा के लिए हमने आशुतोष नवाल की मारुति वैन ली थी। यह गाडी आशुतोष ने कुछ ही दिन पहले खरीदी थी और इसमें स्टीमर का इंजिन लगाकर इसके डीजल से चलने वाली गाडी में तब्दील कर लिया था। इस यात्रा में मेरे साथ राजेश घोटीकर,कमलेश पाण्डेय,विनय कोटिया और आशुतोष नवाल (मन्दसौर) थे। यात्रा की एक खासियत यह भी थी कि हममें से कोई भी परफेक्ट ड्राइवर नहीं था,लेकिन फिर भी हम डीजल की मारुति वैन से 2 सितम्बर 2000 को लद्दाख यात्रा के लिए निकल पडे। यह यात्रा 26 सितम्बर को समाप्त हुई।
केन्सर व झुलसी त्वचा के कई मरीज हुए लाभान्वित
शिविर का आयोजन कस्तूरबा नगर स्थित गीतादेवी अस्पताल में किया गया था। शिविर के दौरान करीब तीन दर्जन से अधिक मरीजों ने विशेषज्ञ डॉ.सुमित सिंघल से परामर्श प्राप्त किया। शिविर में मुंह के केन्सर,झुलसने से चिपकी त्वचा,शरीर पर बनाए गए टैटू को हटाने,चेहरे पर बनी झुर्रियों को हटाने,गंजेपन को समाप्त करने,चेहरे और गर्दन पर मस्से जैसी समस्याओं से पीडीत मरीज आए थे।
शिविर आयोजन में गीतादेवी अस्पताल के डॉ.लेखराज पाटीदार,भारत भक्ति संस्थान के राजेश घोटीकर,तुषार कोठारी,राजेश पाण्डेय,दशरथ पाटीदार,उदित अग्रवाल,संजय पाटीदार इत्यादि का सराहनीय सहयोग रहा।
http://epaper.patrika.com/c/4521303
Monday, February 9, 2015
Monday, February 2, 2015
वरिष्ट पत्रकार श्री गर्ग ई खबर टुडे के कार्यालय मे
देश के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्रवण गर्ग पिछले दिनो
महाराष्ट्र समाज के एक कार्यक्रम मे व्याख्यान देने रतलाम आए थे. इस मौके पर वे ई खबर टुडे के कार्यालय मे भी आये.उन्होने यहा काफ़ी समय गुज़ारा और ई खबर टुडे के समाचारो की सराहना भी की. यह समाचार उज्जैन से प्रकाशित दैनिक अवन्तिका मे भी प्रकाशित हुआ था.
Thursday, January 29, 2015
दुनिया के लिए जरुरी है तिब्बत की स्वतंत्रता
Thursday, January 15, 2015
चमत्कारी तनोट माता,जहां बेकार हो गए पाकिस्तान के बम
रतलाम-जैसलमेर-रतलाम
इस यात्रा में हम चार मित्र मै,कमलेश पाण्डेय,अनिल मेहता और राजेश घोटीकर मोटर साइकिलों से गए थे। यूथ होस्टल्स आफ इण्डिया की नेशनल डेजर्ट सफारी में हिस्सा लेने के लिए हम लोग रतलाम से निकले थे। यह यात्रा हमने मेरी राजदूत (175 इलेक्ट्रानिक) और कमलेश की यामाहा आरएक्स-100 से की थी। इस यात्रा में पहले विनय कोटिया जाने वाला था,लेकिन एन वक्त पर उसका कार्यक्रम रद्द हुआ और उसके स्थान पर राजेश घोटीकर हमारे साथ हो गया।
Wednesday, January 7, 2015
Tuesday, January 6, 2015
कलात्मकता और विशालता है खजुराहो की खासियत
सांची-खजुराहो-झांसी-ओरछा-ग्वालियर यात्रा
दि. 4 जनवरी 1997 शनिवार
पूरे 362 दिन बाद फिर से यात्रा पर। इस यात्रा में भी हम दो ही लोग थे। मै और अनिल मेहता। एक बहाना भोपाल में एपीपी की परीक्षा का था,जो कल सुबह नौ बजे बैरागढ में होना है। सोचा था,दोपहर तीन की ट्रेन से उज्जैन पंहुचकर इन्दौर भोपाल पैसेंजर से भोपाल पंहुचेंगे। घर से निकलने में कुछ देरी हो गई और आखिरकार शाम 5.30 पर रतलाम-ग्वालियर बस से साढे आठ पौने के बीच उज्जैन पंहुचे। समय का
प्राकृतिक गुफा में रहती है मां काली
रतलाम से अम्बा जी और माउण्ट आबू की यह यात्रा मैने और अनिल मेहता (सैलाना) ने मेरी राजदूत मोटर साइकिल से की थी। रतलाम से निकलते समय यह तय नहीं था कि वास्तव में जाना कहां है। रतलाम से निकलने के बाद हमने रोड एटलस देखकर यह तय किया कि माउण्ट आबू देखा जाए। इस यात्रा पर हम 7 जनवरी 1996 को निकले थे।
Tuesday, December 30, 2014
फिल्म पीके का विरोध कितना जायज?
Friday, December 19, 2014
Thursday, December 18, 2014
भारतीय सिध्दान्त से ही चल पाएगी दुनिया
Wednesday, December 10, 2014
अयोध्या कारसेवा का आंखोदेखा हाल
बाईस साल पहले 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण के लिए कारसेवा की गई थी। इस कारसेवा में बाबरी ढांचे को ध्वस्त कर रामलला का अस्थाई मन्दिर बनाया गया था। इन बाईस सालों में आज तक यह कहीं भी प्रकाशित नहीं हुआ था कि उन दिनों में वास्तव में कारसेवा किस तरह से हुई थी। इस कारसेवा में,मैं दुनिया का अकेला शख्स था जो कैमरे के साथ उस परिसर के भीतर मौजूद था। क्योकि मीडीया के लोगों को वहां से हटा दिया गया था और मैं कारसेवक की हैसियत से वहां था। उसी समय मैने कारसेवा का आंखोदेखा हाल अपनी डायरी में नोट किया था। फोटो फिलहाल मेरे पास उपलब्ध नहीं है। कारसेवा के मेरे संस्मरण इन्दौर से प्रकाशित दैनिक स्वदेश में 6 दिसम्बर 2014 से 10 दिसम्बर तक निरन्तर प्रकाशित हुए है। ये संस्मरण www.ekhabartoday.com पर और मेरे ब्लाग tusharkothari.blogspot.com पर भी उपलब्ध है।
Monday, December 8, 2014
Sunday, December 7, 2014
रामजन्मभूमि कारसेवा का आंखोदेखा हाल
Wednesday, November 5, 2014
देश के लिए घातक है यह मौन
दिल्ली की जामा मस्जिद के कथित शाही इमाम द्वारा देश के प्रधानमंत्री की
खतरनाक है,उससे कहीं अधिक खतरनाक इस मुद्दे पर राष्ट्रवादी मुस्लिमों का
मौन है। देश में यदि कोई अल्पसंख्यक समस्या है,तो उसका हल मुख्यधारा में
मौजूद राष्ट्रवादी अल्पसंख्यकों के ही पास है। उनकी मुखरता ही देश में
मौजूद इक्का दुक्का अलगाववादी स्वरों को बन्द कर सकती है।
Friday, September 5, 2014
Saturday, August 30, 2014
इतिहास फिर से क्यों लिखा जाना चाहिए
Friday, August 29, 2014
भ्रम के बादलों में घिरा दुनिया का सबसे बडा संगठन
Wednesday, August 6, 2014
Tuesday, June 17, 2014
हम कब खेलेंगे फुटबाल?
Friday, May 23, 2014
Andman & Nicobaar Journey कालापानी नहीं स्वतंत्रता का महातीर्थ अण्डमान
Tuesday, May 20, 2014
अपने अन्त के निकट आ पंहुची है कांग्रेस
कांग्रेस से सम्बन्धित कुछ रोचक तथ्य देखिए। कांग्रेस की स्थापना के समय भी मनमोहन मौजूद थे और समाप्ति के समय भी मनमोहन मौजूद है। हर कोई जानता है कि एक सौ उन्तीस वर्ष पूर्व 1885 में सर ए ओ ह्यूम ने कांग्रेस की स्थापना की थी। लेकिन ये तथ्य बहुत कम लोग जानते होंगे कि संस्थापक सदस्यों में से एक मनमोहन घोष भी थे। दूसरा रोचक संयोग। कांग्रेस की स्थापना विदेशी व्यक्ति ने की थी,उसके अन्त की इबारत भी विदेशी महिला श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता में लिखी जा रही है।
Saturday, May 10, 2014
Thursday, May 8, 2014
आरोपों को अपने पक्ष में मोडने की कला
Sunday, February 23, 2014
पाशविकता की पराकाष्ठा और अदम्य साहस का साक्षी कालापानी
(स्वातंत्र्यवीर वि.दा.सावरकर की पुण्यतिथी २६ फरवरी पर विशेष)
अमानवीय अत्याचारों की इन्तेहा,पाशविकता की पराकाष्ठा और इनके साथ देश की आजादी के लिए मौत से भी ज्यादा खतरनाक कष्टों को हंसते,हंसते झेलने का अदम्य साहस और वीरता। भारत का स्वातंत्र्य समर, अण्डमान के पोर्टब्लेयर स्थित कालापानी के नाम से कुख्यात सेलुलर जेल में जीवन्त हो उठता है। अपने देशप्रेम के लिए एक साथ दो दो आजीवन कारावास की सजा भुगतने वाले वीर सावरकर के अप्रतिम शौर्य और साहस की गाथाएं यहां सजीव हो उठती है। तेरह फीट लम्बी और सवा सात सात फीट चौडी कालकोठरी में रहकर हर दिन बैल की जगह कोल्हू में जुतकर तेल निकालने वाले वीर सावरकर और अन्य असंख्य क्रान्तिकारियों के बलिदान की साक्षी रही सेलुलर जेल आज भारत का राष्ट्रीय स्मारक बन चुका है। लेकिन इसे देखें बिना सिर्फ शब्दों से यहां की गई क्रूरता और अत्याचारों का अनुमान लगा पाना बेहद कठिन है।
Thursday, October 3, 2013
Saturday, September 28, 2013
युवराज के लिए सर्वोच्च पद की गरिमा का बलिदान
Saturday, July 27, 2013
दुविधा से उबरने का समय
अब लगता है कि देश के दुविधा से निकलने के दिन नजदीक आ रहे है। लम्बे अरसे से देश दुविधा में जी रहा था। दुविधा हर स्तर पर थी। राजनैतिक पार्टियों से लगाकर नेताओं तक और बुध्दिजीवियों से लगाकर जनता तक हर कोई दुविधाग्रस्त नजर आ रहा था। कांग्रेस इस दुविधा में थी कि कैसे युवराज को सामने लाया जाए,तो भाजपा इस दुविधा में थी कि कैसे हिन्दूवादी छबि को वापस हासिल किया जाए? बुध्दिजीवियों की दुविधा सेक्यूलरिज्म और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर थी तो जनता इन सभी की दुविधा देख कर दुविधा ग्रस्त हो रही थी। लेकिन अब लगता है कि परिस्थितियां खुद ही दुविधा से उबारने का समय सामने ला रही है।
Sunday, June 2, 2013
बाबा मौर्य इ खबर टुडे कार्यालय में
Saturday, April 27, 2013
Wednesday, April 24, 2013
Tuesday, April 23, 2013
रेप की राजनीति
Sunday, January 27, 2013
अनुमानों और भ्रम के भरोसे राजनीति
तुषार कोठारी
वर्तमान समय की राजनीति अनुमानों और भ्रम के भरोसे चल रही है। नेताओं की सफलता इसी बात से आंकी जाती है कि उनके अनुमान कितने सटीक रहे। नेता अपने पूर्वानुमान कुछ तथ्यों के आधार पर लगाते है और इन तथ्यों पर वे पूरा भरोसा भी करते है। कई बार उनके पूर्वानुमान सटीक बैठ जाते है,तो नेता सत्ता पा जाते है और जब पूर्वानुमान गलत साबित होते है,तो नेता को सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पडता है।Friday, January 25, 2013
Monday, January 21, 2013
Monday, January 14, 2013
डर और घबराहट हमारा राष्ट्रीय चरित्र
- (तुषार कोठारी)
लगता है डर और घबराहट हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। जब भी सीमा पर तनाव की स्थिति बनती है,हमारा डर अहिंसा की आड में झलकने लगता है। एक आम आदमी से लेकर सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों तक हर किसी की शायद यही समस्या है। कुछेक अपवाद जरुर होंगे लेकिन देश का जो चेहरा नजर आता है,वह यही है। हमारे इसी राष्ट्रीय चरित्र की एक और खासियत है कि हम अपने गुस्से का प्रदर्शन करने में कोई कमी नहीं करते,चीख पुकार मचाने में हमें कोई समस्या नहीं होती,लेकिन जब भी मुद्दों की गहराई में जाकर ठोस कदम उठाने की बात आती है, डर और घबराहट का हमारा राष्ट्रीय चरित्र फिर सामने आ जाता है।
Wednesday, November 21, 2012
क्या सचमुच हम सॉफ्टस्टेट नहीं है?
(तुषार कोठारी)
सुबह सवेरे टीवी पर खबरें शुरु हुई कि दुर्दान्त आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को पुणे के येरवडा जेल में फांसी दे दी गई। टीवी चैनलों ने फौरन ही विभिन्न नेताओं और विशेषज्ञों को बुलाकर उनकी प्रतिक्रियाएं और चर्चाएं प्रसारित करना भी शुरु कर दिया। देश के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के तमाम नेताओं ने देर आये दुरुस्त आए कि टिप्पणी प्रस्तुत की और इससे आगे बढकर संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु को भी फांसी देने की मांग कर डाली। एक टीवी चैनल पर एक विद्वान वक्ता यह कहते हुए भी दिखाई दिए कि कसाब को फांसी देकर भारत ने दिखा दिया है कि भारत सॉफ्ट स्टेट नहीं है। क्या वाकई?
Tuesday, October 30, 2012
तिब्बत मसले पर सरदार पटेल का ऐतिहासिक पत्र
नई दिल्ली
७ नवंबर, १९५०
मेरे प्रिय जवाहरलाल,
चीन सरकार ने हमें अपने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के आंडबर में उलझाने का प्रयास किया है। मेरा यह मानना है कि वह हमारे राजदूत के मन में यह झूठ विश्वास कायम करने में सफल रहे कि चीन तिब्बत की समस्या को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहता है। चीन की अंतिम चाल, मेरे विचार से कपट और विश्र्वासघात जैसा ही है। दुखद बात यह है कि तिब्बतियों ने हम पर विश्र्वास किया है, हम ही उनका मार्गदर्शन भी करते रहे हैं और अब हम ही उन्हें चीनी कूटनीति या चीनी दुर्भाव के जाल से बचाने में असमर्थ हैं। ताजा प्राप्त सूचनाओं से ऐसा लग रहा है कि हम दलाई लामा को भी नहीं निकाल पाएंगे । यह असंभव ही है कि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति तिब्बत में एंग्लो-अमेरिकन दुरभिसंधि से चीन के समक्ष उत्पन्न तथाकथित खतरे के बारे में विश्र्वास करेगा।
truth about Soniya Gandhi
आधुनिक भारत की राबर्ट क्लाइव: सोनिया गांधी
Thursday, April 26, 2012
Wednesday, April 25, 2012
आर्थिक सुधार यानी गरीबों पर मार
(तुषार कोठारी)
देश में जब जब आर्थिक सुधारों की बात चलती है,देश के मध्यमवर्गीय और गरीब लोगों को घबराहट होने लगती है। जब भी बडे अर्थशाी देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने का दावा करते है,गरीबों को लगता है कि उन पर कहर टूटने वाला है। जब भी देश का वित्तमंत्री या प्रधानमंत्री जीडीपी के उपर चढने और मुद्रास्फीती के गिरने का दावा करता है,गरीबों की पहले से खाली थाली में कोई और चीज कम होने की आशंका पैदा हो जाती है।
Saturday, April 7, 2012
Thursday, April 5, 2012
Sunday, April 1, 2012
Monday, March 19, 2012
दुनिया चाहे नकारे,हम नहीं छोडेंगे अंग्रेजी मीडीयम
Saturday, March 3, 2012
Tuesday, June 7, 2011
पर्यटन की आड में देश में बढता तबलीगी खतरा
Friday, May 20, 2011
ये फोटो रतलाम में हुई भा ज पा की प्रथम कार्यकारिणी की बैठक का है। फरवरी माह में हुई इस बैठक के दौरान राष्ट्रिय अध्यक्ष नितिन गडकरी का आमंत्रित जनों के लिए व्याख्यान आयोजित किया गया था.इस गरिमामय कार्यक्रम के सञ्चालन की जिम्मेदारी मुझे सौपी गई थी। मंच पर श्री गडकरी के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ,प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा महापौर शेलेन्द्र डागा और पूर्व संसद सदस्य डा लक्ष्मी नारायण पाण्डेय भी मौजूद थे। यह फोटो आज मेरे फोटो ग्राफर मित्र हेमेंद्र उपाध्याय ने आज मुझे दिया.
Tuesday, April 26, 2011
अधिकांश लोग नहीं जानते कौन है अण्णा हजारे
Friday, April 15, 2011
बनाने वालों को ही दुख देगा जन लोकपाल बिल
Thursday, April 14, 2011
Tuesday, April 5, 2011
क्रिकेट की जीत के जश्न में छुपे है कई सवाल भी
विश्व कप फाईनल में भारतीय टीम द्वारा ऐतिहासिक जीत दर्ज किए जाने के बाद पूरे देश में उत्साह का जो वातावरण देखने को मिला उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। देश का कोई शहर कस्बा यां गांव ऐसा नहीं बचा होगा जहां आधी रात तक लोगों ने जश्न ना मनाया गया हो। युवक अधेड बुजुर्ग यहां तक कि महिलाएं और छोटे बच्चें तक सड़कों पर आकर खुशी का ईजहार कर रहे थे। होली और दीवाली एक साथ मनाई जा रही थी। राष्ट्रीय भावना का ऐसा ज्वार उठता दिखाई दे रहा था जैसे राष्ट्रीय भावनाओं की सुनामी आ गई हो। इस सबके बीच में एक बडा सवाल यह है कि क्या हम भारतीयों की राष्ट्रीय भावना सिर्फ क्रिकेट तक ही है? देशप्रेम का ऐसा अभूतपूर्व प्रदर्शन क्रिकेट के अलावा और किसी मौके पर क्यो नजर नहीं आता? जाति,धर्म,भाषा,क्षेत्र के सारे भेदभाव सिर्फ क्रिकेट में ही क्यों भुलाए जाते है? क्या क्रिकेट का विश्व कप जीत लेने भर से देश की सारी समस्याएं समाप्त हो गई है?
आतंकवाद,अशिक्षा,अभाव और ना जाने कितनी समस्याओं से जूझते एक सौ इक्कीस करोड की आबादी वाले इस देश के लोग महज चौदह देशों की एक स्पर्धा को जीत लेने पर कुछ समय को लिए अपने सारे दुख दर्द भूल जाते है। यह ऐसा नहीं लगता जैसे दुनिया के दु:ख दर्दो से पीडीत कोई गरीब मजदूर शराब या ड्रग्स की खुराक लेकर अपनी समस्याओं से आंखे मूंद लेता है। ठीक उसी तरह भारत की गरीब जनता के लिए भी क्रिकेट एक नशा सा बन गया है।
विश्व कप स्पर्धा का आयोजन शुरु हुआ तब से लेकर इसके समापन तक के बयालीस दिनों में इस गरीब देश के अरबों कार्यघण्टे क्रिकेट पर कुर्बान हो गए। दफ्तरों में क्रिकेट का बुखार इस कदर हावी रहा कि सारे जरुरी काम लम्बित कर दिए गए। निजी संस्थानों के काम काज तक क्रिकेट से प्रभावित हुए। सरकारें भी जनता के इस नशें को बढाने में पीछे नहीं रही। भारत पाक क्रिकेट मैच के मौके पर कई राज्य सरकारों ने आधे दिन का अवकाश ही घोषित कर दिया। इलेक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडीया के लिए भी विश्व कप आयोजन के ये दिन सिर्फ क्रिकेट को ही समर्पित रहे। कई महत्वपूर्ण खबरों को क्रिकेट के नाम पर नजर अंदाज कर दिया गया।
क्रिकेट संभवत: विश्व में सबसे कम देशों द्वारा खेला जाने वाला खेल है। विश्व का कोई भी विकसित राष्ट्र क्रिकेट नहीं खेलता। अमेरिका,जापान,रुस,चीन,फ्रान्स,जर्मनी इत्यादि तमाम विकसित राष्ट्रोंने क्रिकेट को कभी नहीं अपनाया। इसका सीधा सा कारण यही है कि इस खेल में सबसे अधिक समय लगता है और आज के प्रतिस्पर्धा के युग में कोई भी देश अपना ज्यादा समय महज खेल देखने पर व्यय करने को राजी नहीं है। दुनिया फुटबाल के पीछे पागल है,जिसमें महज डेढ घण्टे में निर्णय हो जाता है।
हम भारतीय उन खेलों में बेहद पीछे है जिनमें अनेक देशों से कडी प्रतिस्पर्धा करना पडती है। फुटबॉल जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय खेल में हमारी टीम क्वालिफाई करने तक की स्थिति में नहीं है। ओलम्पिक जैसी सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्पर्धा में हमारे कुछ खिलाडी अपनी मेहनत के बलबूते पर पदक ले भी आते है तो देश की जनता को वह खुशी नहीं होती जो क्रिकेट का कोई मैच जीतने पर होती है। क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के खिलाडियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है।
इन सारी परिस्थितियों के बावजूद,जब विश्वकप जीतने पर राष्ट्रप्रेम का ज्वार उठने लगता है तो यह सवाल भी सिर उठाने लगता है कि यदि देश के सामने कभी युध्द जैसी कोई चुनौती खडी हो गई,उस समय क्रिकेट की जीत में सड़कों पर देशप्रेम का प्रदर्शन करने वाले क्या उसी तरह की भावनाएं प्रदर्शित करेंगे?
पिछले कुछ सालों में जब जब देश पर खतरे के बादल मण्डराए है हमारे नेताओं को कडे निर्णय लेने में यही डर सताता रहा है कि देश की जनता का समर्थन नहीं मिलेगा। याद कीजिए संसद पर आतंकवादी हमला। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनियाभर की बडी बडी बातें की। कडी कार्रवाई और आर पार का संघर्ष करने के दावे किए लेकिन जब संघर्ष का मौका आया सीमा पर तैनात की गई फौज को पीछे बुला लिया गया। 911 के मुंबई हमले की यादें तो अब भी लोगों के जेहन में ताजा है। भारत का एक एक व्यक्ति जानता था कि यह पाकिस्तान की करतूत है और हमारी सरकार ने इस बार भी बडी बडी बातें की थी। पाकिस्तान सरकार को कडी चेतावनी दी गई थी। भारत पाक वार्ता तभी से बंद थी। भारत सरकार ने शर्त रखी थी कि जब तक पाकिस्तान अपनी धरती से चलने वाली आतंकवादी कार्रवाईयों पर रोक नहीं लगाता,तब तक किसी भी हालत में वार्ता नहीं होगी। भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कडी कार्रवाई तो की नहीं उल्टे विश्वकप में भारत पाक मैच तय हो गया तो बडी बेशर्मी से पाकिस्तान के नेताओं को मेच देखने को बुला लिया। मीडीया भी क्रिकेट डिप्लोमैसी की तारीफों में खो गया। यह सवाल उठा ही नहीं कि आतंकवाद के मुद्दे पर परिस्थिति में कौनसा परिवर्तन आ गया जो भारत पाक वार्ता शुरु हो गई। क्रिकेट के बहाने देशप्रेम का प्रदर्शन करने वाले करोडों भारतीयों को भी इस घटना से कोई फर्क नहीं पडा। क्रिकेट के नशे के आदी हमारे देशवासी क्रिकेट में पाकिस्तान के खिलाफ जीत को ही असली जीत समझ कर खुशियां मनाने में मशगुल हो गए। किसी ने यह पूछने की जरुरत तक नहीं समझी कि क्या भारत पर से पाक प्रायोजित आतंकवाद का खतरा हमेशा के लिए समाप्त हो गया है,जो भारत पाक से क्रिकेट के रिश्ते बना रहा है।
देश के नेता बहुत चालाक है। वे जानते कि भारतवासियों को क्रिकेट के नशे में चूर रखे रखने में ही फायदा है। क्रिकेट के नशे में चूर देशवासी यह पूछने की स्थिति में ही नहीं होते कि देश की सुरक्षा का क्या हो रहा है। आतंकवाद को पनपाने वाले पाकिस्तान को रोकने के लिए भारत की सरकार क्या कर रही है। संसद हमले के दोषी को अब तक फांसी क्यो नहीं दी जा रही है। इसी नशे का असर है कि करोडों निर्दोष भारतीयों का खून बहा चुके पाकिस्तान जैसे शत्रु राष्ट्र की गतिविधियों पर भारतवासियों को कोई आपत्ति तब तक नहीं होती जब तक क्रिकैट जारी रहता है। शायद यही कारण है कि भारत में और कोई भी मौसम लगातार नहीं बना रहता लेकिन क्रिकेट का मौसम बारहों महीने छाया रहता है। अभी विश्व कप निपटा नहीं कि आईपीएल चर्चाओं में आ चुका है। महंगाई घोटाले,भ्रष्टाचार आतंकवाद इत्यादि सभी चलते रहेंगे लेकिन जब क्रिकेट का नशा कायम है देशवासियों को किसी बात से दुख नहीं होगा। जय भारत।
Monday, April 4, 2011
Saturday, March 5, 2011
कश्मीर में हिन्दुओं का सफाया किसने किया?
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद "हिन्दू आतंकवाद" शब्द चर्चा में है. मैं कई अखबारों के लिए कालम लिखता हूं तो मुझे कहा गया कि आप इस बारे में कुछ लिखिए. लोग जानते हैं कि मैं आजन्म कैथोलिक ईसाई हूं, लेकिन २५ सालों तक दक्षिण एशियाई देशों में रहकर फ्रांस के अखबारों के लिए काम किया है इसलिए मैं इस भू-भाग मैं फैली हिन्दू संस्कृति को नजदीक से जानता समझता हूं.
१९८० के शुरूआत में जब मैंने दक्षिण एशिया में फ्रीलांसिग शुरू की थी तो सबसे पहला काम किया था कि मैंने अयप्पा उत्सव पर एक फोटो फीचर किया था. उसी दौरान मैंने हिन्दू जीवन दर्शन में व्याप्त वैज्ञानिकता को अनुभव किया. मैंने अनुभव किया कि हिन्दू दर्शन के हर व्यवहार में आध्यात्म कूट-कूट कर निहित है. अगर आप भारत के गांवों में घूमें तो आप जितने भी गांवों में जाएंगे वहां आपको आपके रूप में ही स्वीकार कर िलया जाएगा. आप किस रंग के हैं, कौन सी भाषा बोलते हैं या फिर आपका पहनावा उनके लिए किसी प्रकार की बाधा नहीं बनता. आप ईसाई हैं, मुसलमान हैं, जैन हैं, अरब हैं, फ्रेच हैं या चीनी हैं, वे आपको उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं. आपके ऊपर इस बात का कोई दबाव नहीं होता कि आप अपनी पहचान बदलें. यह भारत ही है जहां मुसलमान सिर्फ मुसलमान होता है न कि भारतीय मुसलमान या फिर ईसाई सिर्फ ईसाई होता है न कि भारतीय ईसाई. जैसा कि दुनिया के दूसरे देशों में होता है कि यह सऊदी मुसलमान है या फिर यह फ्रेंच ईसाई है. यह भारत ही है जहां हिन्दुओं में आम धारणा है कि परमात्मा विभिन्न रूपों में विभिन्न नाम धारण करके अपने आप को अभिव्यक्त करता है. सभी धर्मग्रन्थ उसी एक सत्य को उद्घाटित करते हैं. अपने ३५०० साल के इतिहास में हिन्दू कभी आक्रमणकारी नहीं रहे हैं, न ही उन्होंने अपनी मान्यताओं को दूसरे पर थोपने की कभी कोशिश की है. धर्मांतरण जैसी बातों की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती.
बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक ऐसी घटना जरूर है जो हिन्दुओं के धैर्य का परीक्षा लेती दिखाई देती है. फिर भी इसमें एक भी मुसलमान की हत्या नहीं हुई थी. जबकि इस घटना के विरोध में मुंबई में जो बम धमाके किये गये उसमें सैकड़ों हिन्दू मारे गये थे. फिर भी मैं देखता हूं कि भारत में पत्रकार मुंबई बमकाण्ड से भी बड़ी "डरावनी" घटना बाबरी मस्जिद के गिरने को बताते हैं. हो सकता है कि मैं राजनीतिक रूप से सही न पाया जाऊं लेकिन मैंने दक्षिण एशिया में रहते हुए जो कुछ अनुभव किया उसको वैसे ही लिखा है.
हिन्दू आतंकवाद के बारे में भी मैं अपने विचार सीधे तौर पर आपके सामने रखना चाहता हूं. पहली बार अरब के आक्रमणकारियों के भारत पर हमले के साथ ही हिन्दू लगातार मुस्लिम आक्रमणकारियों के निशाने पर रहे हैं. १३९९ में तैमूर ने एक ही दिन में एक लाख हिन्दुओं का कत्ल कर दिया था. इसी तरह पुर्तगाली मिशनरियों ने गोआ के बहुत सारे ब्राह्मणों को सलीब पर टांग दिया था. तब से हिन्दुओं पर धार्मिक आधार पर जो हमला शुरू हुआ वह आज तक जारी है. कश्मीर में १९०० में दस लाख हिन्दू थे. आज दस हजार भी नहीं बचे है. बाकी हिन्दुओं ने कश्मीर क्यों छोड़ दिया? किन लोगों ने उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया? अभी हाल की घटना है कि अपने पवित्रम तीर्थ तक पहुंचने के लिए हिन्दुओं को थोड़ी सी जमीन के लिए लंबे समय तक आंदोलन चलाना पड़ा, जबकि इसी देश में मुसलमानों को हज के नाम पर भारी सब्सिडी दी जाती है. एक ८४ साल के वृद्ध संन्यासी की हत्या कर दी जाती है जिसपर भारतीय मीडिया कुछ नहीं बोलता लेकिन उसकी प्रतिक्रिया में जो कुछ हुआ उसको शर्मनाक घोषित करने लगता है.
कई बार मुझे लगता है कि यह तो अति हो रही है. दशकों, शताब्दियों तक लगातार मार खाते और बूचड़खाने की तरह मरते-कटते हिन्दू समाज को लतियाने की परंपरा सी कायम हो गयी है. क्या किसी धर्म विशेष, जो कि इतना सहिष्णु और आध्यात्मिक रहा हो इतना दबाया या सताया जा सकता है? हाल की घटनाएं इस बात की गवाह है कि इसी हिन्दू समाज से एक वर्ग ऐसा पैदा हो रहा है जो हमलावरों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहा है. गुजरात, कंधमाल, मंगलौर और मालेगांव सब जगह यह दिखाई पड़ रहा है. हो सकता है आनेवाले वक्त में इस सूची में कोई नाम और जुड़ जाए. इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर व्यापक हिन्दू समाज ने अपने स्तर पर आतंकी घटनाओं और हमलों के जवाब देने शुरू कर दिये तो क्या होगा? आज दुनिया में करीब एक अरब हिन्दू हैं. यानी, हर छठा इंसान हिन्दू धर्म को माननेवाला है. फिर भी सबसे शांत और संयत समाज अगर आपको कहीं दिखाई देता है तो वह हिन्दू समाज ही है. ऐसे हिन्दू समाज को आतंकवादी ठहराकर हम क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या आतंकवादी शब्द भी हिन्दू समाज के साथ सही बैठता है? मेरे विचार में यह अतिवाद है.
लेखक पेरिस स्थित "La Revue de l'Inde" (Review of India)के मुख्य संपादक हैं.
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