द्रास में कारिगल वार मेमोरियल,मोहर्रम और जाम का मातम
(प्रारंभ से पढने के लिए यहां क्लिक करें)10 सितंबर 2019 (दोपहर 2.30)
सोनमर्ग (लेह-श्रीनगर हाईवे)
इस वक्त हम लेह से निकल कर कारगिल जाने की तैयारी कर रहे हैं। कल रात डायरी से जुडने का मौका ही नही मिल पाया था। टीवी पर थ्री इडियट्स फिल्म आ रही थी। वही देखते देखते नींद आ गई,डायरी रह ही गई। इस वक्त भी समय कम है,देखते है कितना आगे बढ पाती है।
8 दिसंबर 2019 (सुबह 9.00)
सुबह हम ठीक आठ बजे,होटल चलते चलते से निकल पडे थे। रोहतांग पास यहां से 40 किमी दूर था। शुरुआती रास्ता ठीक था,लेकिन थोडी ही देर बाद बेहद खराब रास्ता आ गया। जगह जगह लैंड स्लाइडिंग के कारन पतथर कीचड,हज से ज्यादा उबड खाबड रास्ता। हम चलते रहे,लेकिन रोहतांग पास से 15 किमी पहले बडा जाम लगा हुआ था। इस जाम में हम करीब ढाई घंटे फंसे रहे। सारा ट्रैफिक रोहतांग पास तक ही था। हम करीब बारह बजे रोहतांग पास पर पंहुच गए।
आप चाहे जितनी मोमबत्तियां जलाईए,कडे से कडे शब्दों में निन्दा कीजिए,टीवी चैनलों पर पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ जहर उगलिए,पाकिस्तान को सबक सिखाने के दावे कीजिए,लेकिन इन सबसे न तो आतंकवाद की समस्या समाप्त होगी,ना ही कश्मीर में शांति स्थापित होगी। भारत के लिए वास्तविक समस्या ना तो कश्मीर में है और ना ही आतंकवाद वास्तविक समस्या है। भारत के लिए वास्तविक समस्या एक ही है और वह है पाकिस्तान। यही वह समस्या है,जिसके समाधान से सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो सकती है।
हम सुबह महाबलेश्वर की वेण्णा लेक में बोटिंग कर रहे थे। इस वक्त खारघर लौट चुके है। आज सुबह थोडे आराम से उठे,तो नौ बजे कमरों से बाहर हुए। महाबलेश्वर की यात्रा पूरी हो चुकी थी। आज के दिन का उपयोग करना था। पहले सोचा कि माथेरान चलते है। लेकिन दूरी को देखते हुए तय किया कि रास्ते में खण्डाला रुक जाएंगे। सुबह कमरे छोड दिए। सामान गाडी में रख दिया। कमरों से निकले तो मुख्य बाजार के एक ठेले पर वडा पाव चाय का डोज लिया। साढे नौ पर गाडी में सवार होकर वेण्णा लेक पंहुच गए। सुबह का वक्त कोई भीडभाड नहीं। बडे आराम से आधे घण्टे बोटिंग की और फिर चल पडे।
कल रात तय किया था कि सुबह 7 बजे निकल जाएंगे। मैं ठीक पांच बजे उठ गया। फ्रैश होकर सबको उठाया,लेकिन आखिरकार सुबह आठ बजे निकल पाए। होटल मालिक ढेबे ने समझाया था कि जल्दी जाओगे तो ही ठीक रहेगा,लेकिन हम एक घण्टा लेट हो चुके थे। तय किया कि पहले तो महाबलेश्वर महादेव के दर्शन करेंगे फिर नाश्ता करेंगे। निकल गए और महाबलेश्वर मन्दिर पंहुच गए।
मुंबई-पूणे के सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल महाबलेश्वर की यात्रा पारिवारिक यात्रा थी,जो महाबलेश्वर के खास सीजन मई के महीने में की। यह यात्रा 22 मई से 28 मई तक की संक्षिप्त यात्रा थी,जिसमें मै,वैदेही और चिंतन के अलावा अभिभाषक मित्र प्रकाशराव पंवार,उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कीर्ति और बालिकाएं संस्कृति और प्रकृति शामिल थी। यह यात्रा रतलाम से मुंबई तक ट्रेन से और फिर मुंबई से महाबलेश्वर तक मारुति अर्टिगा से पूरी की थी।
हैदराबाद की रामोजी फिल्म सिटी ने हैदराबाद को एक नई पहचान दी है। दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपरस्टार रहे रामोजी राव ने 1996 में अपनी इस अनूठी कल्पना को साकार करना शुरु किया था। यह लगभग चालीस वर्ग किमी में फैला दुनिया का सबसे बडा फिल्म स्टुडियो माना जाता है। इसमें करीब पाच सौ शूटिंग लोकेशंस और पचास से ज्यादा तैयार फिल्मी सेट्स है। रामोजी फिल्म सिटी दुनियाभर के फिल्मकारों के लिए आदर्श स्थान है।
आज हमें फिर से मल्लिकार्जुन स्वामी और भ्रमराम्बा देवी के दर्शन करना है। दोपहर तो पौने तीन बजे हमारी
श्री शैलम मल्लिकार्जुन देवस्थान के चंदेश्वरा सदन में इस वक्त हम सोने की तैयारी कर रहे हैं।
दिनों के बाद ही बन गया। 15 सितम्बर की मध्यरात्रि को मैं गंगौत्री गौमुख यात्रा से लौटा था। केवल अठारह दिनों के बाद 3 अक्टूबर को रतलाम से हैदराबाद होते हुए श्री शैलम की यात्रा प्रारंभ हो गई। इस यात्रा की योजना गंगौत्री यात्रा करने से पहले ही बन चुकी थी और टिकट आदि भी पहले ही बुक करवाए जा चुके थे। यह एक पारिवारिक यात्रा थी,जो वायुमार्ग से की गई। इस यात्रा में मेरे साथ आई दादा वैदेही और प्रतिमा भी थे।
दसवां दिन
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हम गौमुख ग्लैशियर के नजदीक तक गए। मेरी बाई ओर की पहाडी पर चलते हुए गौमुख ग्लैशियर के सामने पंहुचा जाता है। झण्डों से आगे का रास्ता बडे बडे पत्थरों पर से होकर है। इन पत्थरों पर काफी देर चलने के बाद बाई पहाडी में लैण्ड स्लाइडिंग की जगह से बेहद खतरनाक रास्ते से उपर चढना पडता है। इस रास्ते पर एक
8 सितम्बर 2018 शनिवार/ शाम पांच बजे
स्टेट गेस्ट हाउस आईजोल
वर्तमान में डोकलाम के चीनी भारत सीमा विवाद को शायराना अंदाज में कुछ यूं कहा जा सकता है कि लम्हो ने खता की,सदियों ने सजा पाई। यह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु की नासमझी थी,जिसका कष्ट आज तक भारत,तिब्बत और भूटान भुगत रहे हैं। पं. नेहरु की नासमझी इतनी अधिक थी कि इसे सरासर मूर्खता भी कहा जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति को यह बता दिया जाए कि दीवार पर सिर मारने से उसका सिर फूट जाएगा और वह घायल हो जाएगा। यह स्पष्ट तौर पर समझाने के बावजूद यदि कोई व्यक्ति दीवार पर अपना सिर मार कर घायल होता है,तो उसे नासमझ कहेंगे या मूर्ख और पागल....? यदि स्नेह अधिक हो,तो ऐसे व्यक्ति को नासमझ कह लिया जाएगा,वरना तो ऐसा कृत्य मूर्खता या पागलपन की श्रेणी में ही आता है।
देश की स्वतंत्रता के बाद बनी लोकतांत्रिक सरकारों में से प्रत्येक सरकार ने देश के गरीब और पिछडे वर्गों की बेहतरी के लिए तमाम योजनाएं बनाई और लागू की। सात दशकों के इस लम्बे कालखण्ड में बनाई गई तमाम योजनाएं इतनी आकर्षक प्रतीत होती थी,कि लगता था कि इनके लागू होने के बाद समस्या जड से समाप्त हो जाएगी। लेकिन ये योजनाएं जब क्रियान्वयन के स्तर पर पंहुची तो पता चला कि योजनाओं का असर दस प्रतिशत भी नहीं हुआ। परिणाम यह है कि सत्तर साल पहले देश में जो समस्याएं थी,कमोबेश वही समस्याएं आज भी मुंह बाए खडी है।(प्रारम्भ से पढ़ने के लिए यंहा क्लिक करें ) 21 जुलाई 2024 रविवार (रात 11.45) प्रिन्स गेस्ट हाउस सवाई माधोपुर (राज.) इस वक्त हम उसी होटल में ...